6कहन लागे मोहन मइया मइया
नन्द राय जी को बाबा ही बाबा बलदाऊ जी सो भइया
दूर खेलन मत जाओ प्यारे लनना मारेगी काहू की गैया
सिंह पोरि चड़ टेरे यशोदा ले ले नाम कन्हैया
मोर मुकुट मकरा कृत कुण्डल उर वन माल सुहैया
मातु यशोदा करत आरति मैं मोहन की मइया
छप्पन भोग छत्तीसो व्यजन व्यालू करलो कन्हैया
आटो दूध दूध में मेवा पीलेऊ दोनों भइया
खेलत फिरत सकल गोकुल में घर घर वजत वधैया
ओरन के दुई चार ख्ेालत हैं मेरे तो एक कन्हैया
मदन मोहन जी की छवि के ऊपर सूरदास वलि जैया
77मुखड़ा क्या देखे दरपन में तेरे दया धर्म नही मन में
जब तक फूल रही फूलवारी वास रही फूलन में
एक दिन ऐसा आयेगा खाक उड़ेगी तन से मुखड़ा ...
चन्दन अगर कंुकुमी जामा सोहत गोरे तन में
भय योवन डंगर का पानी उतर जाय एक दिन में ...
नदिया गहरी नाव पुरानी डूब जाय एक पल में
धर्मी धर्मी पार उतर गये पापी अधवर में मुखड़ा....
कोड़ी कोड़ी माया जोड़ी सुरत लगी इस धुन में
दस दरबाजे बन्द भये तब रह गई मन की मन में
पगड़ी बाँधत पेच सभालत तेल मलत अंगन में
कहत कबीर सुनो भई साधो यह क्या लगेगी रन में ...
78सर पे कदम की छैया मुरलिया बाज रही
मेारी लाज रही
राधा भी नाचे कन्हैया भी नाचे में भी नाचू नथैया भी नाचे
नाचे नाचे आखें बोल बोल जैया मुरलिया ......
वंशी ने क्या धूम मचाई हर गोरी गोपी वन आई
मुरली धर वन सैया मुरलिया बाज रही
79अजब हैरान हूँ भगवन तुम्हें कैसे रिझाऊ मैं
कोई वस्तु नही ऐसी जिसे सेवा में लाऊ मैं
करू किस तरह आवाहन कि तुम मोजूद हो हर जा
निरादर है बुलाने में अगर घन्टी बजाऊ मैं
लगाना भोग कुछ तुमको यह एक अपराध करना है
खिलाता है जो सब जग को उसे कैसे खिलाऊँ मैं
तुम्हारी ज्योति से रोशन है सूरज चाँद और तारे
महा अन्धेर है भगवन अगर दीपक दिखाऊँ मैं
भुजाये है न सीना है न गरदन है न पैशानी
तू है निर्लेप नारायणा कहाँ चन्दन लगाऊ मैं
80ब्रज राज श्याम सुन्दर दिल मंे समाय रहे है
जित देखता हूँ मोहन मुझको दिखा रहे हैं
गुण जिनके सश्ी शारद नारद मुनी ने गाये
डमरू बजा बजा के शंकर जी गा रहे हैं
ब्रज..........
गाते हैं गुणा सदा वो पर पार नही पावे
है वह अजब खिलाड़ी संसार को खिला रह हैं
ब्रज..........
है माया उनकी अदृभुत अरू है अजब मुरारी
अदृभुत है उनकी गीता अर्जुन जी गा रहे हैं
ब्रज......................
गो द्विज को कट होता अरू धन क्षीरा होता
प्रेमी समझ लें जन ही भगवान आ रहे हैं
ब्रज..................................
81नर तन चोला रतन अमोला वृथा खोवे मतीना
भई ये देह मिली तो है नर की जिसमें भक्ति करले तू हरि की
सुध बुध मूल गया उस घर की नीद में सोवे मतीना .....
जो है पहले की सब करनी होगी यहाँ पर सबने मरनी
ऋषी मुनियों ने ऐसी वरनी विपद में रेवे मतीना
देखे ऋाि मुनी फफ्कर से फँस गये माया के चक्कर में
किश्ती आन पड़ी टक्कर में इसे डुबोब मतीना
कमर सिंह बाँध कमर हो तगड़ा यह तो व्यर्थ का मूढा झगड़ा
सीधा पड़ा मुक्ति का दगड़ा कायर रोने मतीना
82चले श्याम सुन्दर से मिलने सुदामा जाते चलो मन में हरे कृणा रामा
चावलों की पोटली बगल में दबाये हाथों में लोटा और डोरी लटकाये
चले विप्र पहुँच गये द्वारका पुरी धामा गाते .......
द्वार पाल से खबर जनाई हरि मिलने को सुदामा जी आये
दौड़े हरि गले से लगाये सुदामा गाते ............
सोने के सिहासन पे विप्र को बैठाये नैनों के नीरो से चरणा धुलाये
दावे हरी पाँव पंखा भले सत्य माया गाते ..............
हसि हसि पूछे कुवर कन्हाई क्या भेट भेजी है मेरी भोजाई
छीन प्रभु पोटली तो सकुचे सुदामा गाते ................
तन्दुल के खाये प्रभु दिये धन धाना गाते ..........................
एक मुट्टी खाय प्रभु एक तुने ही दीन्ही हू
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