Monday, 25 August 2025

Brij ke Bhajan

 6कहन लागे मोहन मइया मइया 

नन्द राय जी को बाबा ही बाबा बलदाऊ जी सो भइया 

दूर खेलन मत जाओ प्यारे लनना मारेगी काहू की गैया 

सिंह पोरि चड़ टेरे यशोदा ले ले नाम कन्हैया 

मोर मुकुट मकरा कृत कुण्डल उर वन माल सुहैया 

मातु यशोदा करत आरति मैं मोहन की मइया 

छप्पन भोग छत्तीसो व्यजन व्यालू करलो कन्हैया 

आटो दूध दूध में मेवा पीलेऊ दोनों भइया 

खेलत फिरत सकल गोकुल में घर घर वजत वधैया 

ओरन के दुई चार ख्ेालत हैं मेरे तो एक कन्हैया 

मदन मोहन जी की छवि के ऊपर सूरदास वलि जैया 





77मुखड़ा क्या देखे दरपन में तेरे दया धर्म नही मन में 

जब तक फूल रही फूलवारी वास रही फूलन में 

एक दिन ऐसा आयेगा खाक उड़ेगी तन से मुखड़ा ...

चन्दन अगर कंुकुमी जामा सोहत गोरे तन में 

भय योवन डंगर का पानी उतर जाय एक दिन में ...

नदिया गहरी नाव पुरानी डूब जाय एक पल में 

धर्मी धर्मी पार उतर गये पापी अधवर में मुखड़ा....

कोड़ी कोड़ी माया जोड़ी सुरत लगी इस धुन में 

दस दरबाजे बन्द भये तब रह गई मन की मन में 

पगड़ी बाँधत पेच सभालत तेल मलत अंगन में 

कहत कबीर सुनो भई साधो यह क्या लगेगी रन में ...


78सर पे कदम की छैया मुरलिया बाज रही 

मेारी लाज रही 

राधा भी नाचे कन्हैया भी नाचे में भी नाचू नथैया भी नाचे 

नाचे नाचे आखें बोल बोल जैया मुरलिया ......

वंशी ने क्या धूम मचाई हर गोरी गोपी वन आई 

मुरली धर वन सैया मुरलिया बाज रही 

79अजब हैरान हूँ भगवन तुम्हें कैसे रिझाऊ मैं 

कोई वस्तु नही ऐसी जिसे सेवा में लाऊ मैं 

करू किस तरह आवाहन कि तुम मोजूद हो हर जा

निरादर है बुलाने में अगर घन्टी बजाऊ मैं 

लगाना भोग कुछ तुमको यह एक अपराध करना है 

खिलाता है जो सब जग को उसे कैसे खिलाऊँ मैं 

तुम्हारी ज्योति से रोशन है सूरज चाँद और तारे 

महा अन्धेर है भगवन अगर दीपक दिखाऊँ मैं 

भुजाये है न सीना है न गरदन है न पैशानी 

तू है निर्लेप नारायणा कहाँ चन्दन लगाऊ मैं 


80ब्रज राज श्याम सुन्दर दिल मंे समाय रहे है 

जित देखता हूँ मोहन मुझको दिखा रहे हैं

गुण जिनके सश्ी शारद नारद मुनी ने गाये

डमरू बजा बजा के शंकर जी गा रहे हैं 

ब्रज..........

गाते हैं गुणा सदा वो पर पार नही पावे 

है वह अजब खिलाड़ी संसार को खिला रह हैं 

ब्रज..........

है माया उनकी अदृभुत अरू है अजब मुरारी

अदृभुत है उनकी गीता अर्जुन जी गा रहे हैं 

ब्रज......................

गो द्विज को कट होता अरू धन क्षीरा होता 

प्रेमी समझ लें जन ही भगवान आ रहे हैं 

ब्रज..................................


81नर तन चोला रतन अमोला वृथा खोवे मतीना 

भई ये देह मिली तो है नर की जिसमें भक्ति करले तू हरि की 

सुध बुध मूल गया उस घर की नीद में सोवे मतीना .....

जो है पहले की सब करनी होगी यहाँ पर सबने मरनी 

ऋषी मुनियों ने ऐसी वरनी विपद में रेवे मतीना 

देखे ऋाि मुनी फफ्कर से फँस गये माया के चक्कर में 

किश्ती आन पड़ी टक्कर में इसे डुबोब मतीना 

कमर सिंह बाँध कमर हो तगड़ा यह तो व्यर्थ का मूढा झगड़ा 

सीधा पड़ा मुक्ति का दगड़ा कायर रोने मतीना 


82चले श्याम सुन्दर से मिलने सुदामा जाते चलो मन में हरे कृणा रामा 

चावलों की पोटली बगल में दबाये हाथों में लोटा और डोरी लटकाये

चले विप्र पहुँच गये द्वारका पुरी धामा गाते .......

द्वार पाल से खबर जनाई हरि मिलने को सुदामा जी आये

दौड़े हरि गले से लगाये सुदामा गाते ............

सोने के सिहासन पे विप्र को बैठाये नैनों के नीरो से चरणा धुलाये 

दावे हरी पाँव पंखा भले सत्य माया गाते ..............

हसि हसि पूछे कुवर कन्हाई क्या भेट भेजी है मेरी भोजाई 

छीन प्रभु पोटली तो सकुचे सुदामा गाते ................

तन्दुल के खाये प्रभु दिये धन धाना गाते ..........................

एक मुट्टी खाय प्रभु एक तुने ही दीन्ही हू


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