Monday 30 November 2015

ये पति कैसे कैसे ?

न जाने कितने प्रकार के जीव हैं। उनमें एक पति नामक जीव है जो हर समय अपनी पत्नी को कोसता रहता है कि हाय भरी जवानी में अपने आपको बरबाद कर लिया ,लेकिन एक मिनट भी बरबादी के कारण के बिना चलता नहीं है। अंग्रेजी में जहां पति इकठ्ठे हों पता है उस दल को क्या कहते हैं? अनहैप्पीनैस। मतलब यह ग्लोबल समस्या है कि तेरी मेरी बने ना तेरे बिना सरे ना। हमारा देश रंगों से भरपूर है। हर रंग के आदमी व महिलाएँ मिल जायेंगे एक दम काले एकदम गोरे या बीच के भी।


हर मौसम है। विविध संस्कृति हैं। विभिन्न भाषा एवम् बोलियां हैं। उसी प्रकार पतियों की भी भिन्न भिन्न किस्में हैं ,भिन्न भिन्न जमाने हैं, परन्तु विचार सब एक से हैं। यह हो सकता है कि परिस्थितियां फर्क हो या शौक कुछ ऐसे भी हैं। एक शव यात्रा निकल रही थी उसे देखकर गोल्फ खेलते व्यक्ति ने सिर झुकाया। उसका साथी बोला ,‘लगता है मृतक के प्रति बहुत श्रद्धा है, तुम्हारे मन में।’ गेंद पर नजर टिकाये व्यक्ति बोला, ‘हां क्या करूं ? आखिर चालीस साल तक साथ रहे थे।’


 कुछ पति अपनी पत्नी की याद में  फूट फूट कर रोते हैं । एक पति माॅं ,पिता ,भाई ,बहन की मृत्यु पर बिलकुल नहीं रोया पर पत्नी मरी फूट फूट कर रोया।कारण था भाई मरा एक बोला मत रोओ मैं तुम्हारे भाई जैसा हॅूं । बहन मेरी पड़ोसन बोली,‘मत रोओ मैं तुम्हारी बहन जैसी हॅू  माॅं मेरी एक महिला बोली ‘मत रोओ मैं  माॅं जैसी हॅूं । पर पत्नी मेरी किसी ने नहीं कहा कि मैं तुम्हारी पत्नी जैसी हॅूू । ये पति सबसे पहला काम अपने आप को गाली देने का करते हैं, साले, उल्लू के पठ्ठे थे जो शादी की या बेटे को गाली देंगे,‘गधे की औलाद,’ ‘उल्लू की दुम’ यानि अपने आगे बेचारे का लेबल लगाये रहते हैं बेचारा शादी शुदा है।

दो यार लड़ाई के मैदान में मिले, बहुत पुराने दोस्त थे एक पूरब का तो दूसरा पश्चिम का। दोनों गले लगे फिर एक बोला, ‘भाई तू क्यों सिपाही बना है ?’वह बेचारगी से बोला, ‘ क्या करूं शादी वादी हुई नहीं, न जोरू न जाता, अल्लाह मियां से नाता, सोचा चलो जौहर दिखाने के लिये बीबी नही है तो यहीं दिखा दें ,पर भाई तू अपनी सुना ,तू क्यों आया ?’  
‘मेरी शादी हो गई इसलिये आया भाई।’
मतलब शादी वो लड्डू है जो खाये तो पछताये ना खाये तो पछताये, यानि बीबी तो लड्डू है ही अब जो कुछ भी गलती है तो वो इन बेचारे पतियों की है। अब यह भाई बेचारा कहकर किसकी सहानुभूति बटोरना चाहते हैं ? या तो जो इनके जैसे बेचारे हैं वो या वो जो इन्हें देख कर बेचारा बनने को बेचैन हैं, और जब ये बेचारे वेदी पर बैठने की तैयारी करते हैं तो उनसे कुछ भी करालो। उस समय यदि कोई पूंछ लगाकर सड़क पर भागने के लिये कहे तो भी तैयार हो जायेंगे। पर कहेंगे अपने को बेचारा बलि का बकरा। इन बेचारों की चालाकी देखिये कि अपनी पत्नी के लिये परिचय कराते समय कहेंगे इन से मिलिये ये हैं मेरी धर्मपत्नी। पत्नी तो कभी नहीं कहेगी कि इनसे मिलो ये हैं मेरे धर्मपति। असल में दिल का चोर जुबान पर आ ही जाता है। अब जैसे होता है धर्म भाई, इसका मतलब भाई है पर वास्तव में भाई नहीं है। धर्म बहन इसका मतलब बहन है पर वास्तव में बहन नहीं है। तो क्या धर्म पत्नी कहने में भी यही अर्थ छिपा है कि वे पत्नी है वास्तव में पत्नी नहीं है।


कुछ पति अपने आपको हीरो से कम नहीं समझते । रास्ते चलते या पार्टी में अपनी टाई की नाॅट ठीक करते चलते हैं। उन्हें लगता है दुनिया की सारी हसीन लड़कियां उन पर मरती हैं। इसी प्रयास में गाना गाना भी शुरू कर देते हैं, पर ऐसा लगता है कि बांस एक साथ फटाफट कर रहे हों। सबसे बड़ी मुश्किल यह है समझते यह हैं कि वो भी किसी हीरो की तरह गाना बनाते जायेंगे ,चुन चुन कर भाव गायेंगे। पर होता क्या है शुरू करने में ही गड़बड़ा जायेंगे। तुक तो बहुत दूर ,बंदी भी नहीं कर पाते।

एक पति महोदय ने गला खखाकर कर इधर-उधर देखा ,सामने अंगूर दिखाई दिये गाना शुरू किया ‘तू है मीठी- मीठी गोल गोल अंगूर’,यहां तक तो ठीक था उनकी बीबी थी कुछ-कुछ गदबदी। पर आगे की लाइन के साथ ही नौबत तलाक पर आ पहुंची, बड़ी मुश्किल से मनाया गया और उन्होंने आगे गाने से तौबा कर ली। आगे पंक्ति थी, ‘सूरत तेरी ऐसी लगती जैसे हो लंगूर’ अब वो बेचारे भी क्या करे उस समय जल्दी में काफिया ही उन्हें अंगूर के साथ लंगूर का मिला।


एक पति महोदय अपने आपको ऋतिक रोशन से कम नहीं समझते थे। सुंदर सी साली एक बारात में साथ साथ चल रही थी । उस पर और लड़कों पर रौब गालिब करने के लिये जैसे ही कमर के दो चार झटके लगाये कि बारात में भी फिर आगे कार में गये ओर तीन दिन तक कमर की सिकाई करते रहे।

कुछ पति उमर मात कर दें। जवान बनने के सारे नुस्खे घंटे डालते हैं । डाक्टर दर बढ़ जायेगी पर अपने आपको छैला ही समझते रहते हैं। शीशे के आगे जुल्फें संभालते ही रहेंगे ,यहां तक कि एक दिन गंजे हो जाते हैं । चाहे एक बाल रह जाये पर उसे भी कंघे से काढ़ते हुये खिड़की से बाहर झाकेंगे जरूर कि कोई हसीना उन्हें देख रही है या नहीं। खुदा न करे यदि गलती से किसी हसीना की निगाह उनकी उल्टी सीधी हरकतों पर पड़ जाये तो तुरन्त पत्नी से कहेंगे, मुझ पर आज भी लड़कियां मरती हैं।  चाहे वो देखने वाली उनसे दोगुनी उम्र की हो। केशव केसन असकरी का तो मामला अब रहा नहीं । ऐसे ऐसे गाने गायेंगे,‘अभी तो मैं जवान हूँ अभी तो मैं जवान हूँ।’ अभी तो मैं जवान हूँ गाते पति से एक पत्नी बोली ‘
मुआ, टी.वी. खोलो तो अब तो माटी मिटे लिपटते चिपटते ही दिखें हैं, केश काला तेल के विज्ञापन, असली कालेपन को भी डाॅक्टर के चक्कर लगाते रहेगें, हमारे जमाने में तो एक चुंबन के लिये कितने कितने लुका छिपी के खेल खेलते थे

अब तो सरे आम मागेंगे ‘जुम्मा चुम्मा दे दे मुझे । खूब याद है एक बार ही दिया था तुमने गर्म गर्म चुंबन ।’ पति महोदय, बोले, ‘अरे वाह! अब तो कोई बात ही नहीं अकेले हैं अभी देता हूँ गर्म गर्म चुंबन ,पर जरा ठहरो दांत लगा आता हूँ ‘ । हुआ न रोमांस का भुरता।
ये पति कैसे कैसे जारी है

Saturday 21 November 2015

ये पति कैसे कैसे का जारी है

ये पति कैसे कैसे का पिछला भाग-


कुछ पति होते हैं हर समय निंदियाये से रहते हैं, पत्नी क्या कह रही है सुनते ही नहीं । जब तीर कमान से निकल जाता है तो पछताते हैं कि बीबी की बात क्यों नहीं सुनी ? एक बीबी ने अखबार पढ़ते अपने पति से कहा, ‘आज इसमें आया है कि बिना दिमाग के व्यक्ति की उम्र लंबी होती है।’ हां ,बेध्यानी में पढ़ते पढ़ते हुजूर बोले’, हां ईश्वर तुम्हारी भी उम्र लंबी करेगा।’ ऐसे ही अखबार प्रेमी पति दफ्तर से आते ही सीधे अखबार में जुट गये। क्षुब्ध पत्नी झुंझलाकर बोली, ‘चलना नही है क्या?’ सुबह कहीं जाने की कह कर गये थे । पत्नी सज धज कर तैयार थी पर महोदय थे कि अखबार से आंख ही नहीं उठा रहे थे। पति महोदय हैरान बिना आंख उठाये ही बोले, ‘कहां ?’ एक तो जली फुंकी ऊपर से यह प्रतिक्रिया, गुस्से से बोली, ‘जहन्नुम में’,‘ चलो’,सहज भाव से अखबार समेटते बोल, ‘ पर रास्ता तो तुम्हें ही बताना पड़ेगा, क्योंकि तुम तो जाती रहती हो, मैं तो पहली बार जाऊँगा।’ ऐसे जल कुकड़े पति यही तमन्ना करते रहते हैं पर ऊपर से कह नहीं पाते, पर कभी कभी दिल की बात मुँह पर आ ही जाती है। एक पत्नी किसी पत्रिका के ‘मैं और मेरा परिवार’ के लिये बात कर रही थी। वह  बोली, ‘मेरा घर स्वर्ग है।’ जब पति से पूछा तो वह बोला, ‘इस घर को मैंने और मेरी स्वर्गवासी पत्नी ने मिलकर बनाया है’। अब वह घर स्वर्ग ही रहा होगा या नर्क बना होगा यह तो उस पत्रिका वाले ही बता सकते हैं।


ऐसे पतियों का हाल दफ्तर में भी यही रहता है। एक बार एक दफ्तर में उनके दफ्तर के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर उत्सव मनाया जा रहा था, दफ्तर पहाड़ों पर था। केन्द्र निदेशक भाषण दे रहे थे हमें कर्तव्य और निष्ठा के साथ कार्य करना चाहिए ताकि हम संस्थान को और ऊपर ले जा सकें । उबासी लेते महोदय बोले, बुदबुदाये, ‘पता नही और कितनी ऊँचाई पर ले जायेेगे, यहीं ठंड से कुड़कुडाये जा रहे हैं।’कुछ पति पत्नी की हर बात का कितना ध्यान रखते हैं,अगर पत्नी का अपहरण हो जाये तो उसे छोड़ने की धमकी मिलने पर तुरंत पैसे देने को तैयार हो जायेंगे ।


कुछ पति होते हैं कि पत्नी पर इतने डिपेन्ड होते हैं कि उन्हें कुछ पता ही नहीं होता कि कहां क्या हो रहा है ? यहां तक कि एक पति महोदय बीमार हुए ,डाक्टर बुलाया गया । डाक्टर साहब से पूछा, भाई क्या बीमारी है’ ’? तो भाई मेरे बगलें झांकने लगे, ‘अरे भई बताओ तुम्हें क्या बीमारी है ? ’ थोड़े झिझकते बोले, ‘साहब शीला को बुलाता हूँ वहीं बतायेगी मेरी सब चीजें उसे ही मालूम रहती हैं।’


कुछ पति पत्नियों के सताये होते हैं उनकी हर बात मानते हैं पत्नी कहे मसाला पीस दो, चुपचाप पीस देते हैं, कुछ दांत भी साथ साथ पीसते जाते है। कुछ पति ऐसे होते हैं हर किस्म के खाने के स्वाद उन्हें मालूम होते हैं। अगर सब्जी में उन्हें मजा नहीं आयेगा तो कहेंगे,‘ क्या गोबर सी सब्जी बनाई है।’ और हैरान सी पत्नी देखती रह जाती है, कि हाय उनके पति क्या क्या खाते रहते हैं ? कुछ पति अपने आपको दुनिया का सबसे बड़ा शैफ मानते हैं हर चीज को खुद बनाने का प्रयास करेंगे, ‘अरे तुम से नहीं बनेगा मैं बनाता हूँ देखों कैसे सब उंगलियां चाटोगे ’ और होता यह है किसी प्रकार की लपसी सी तैयार होगी और उससे ज्यादा फैलावा रसोई में होगा, एक एक चीज मांगी जायेगी । पता चलेगा उस लपसी को स्वयं भी नहीं खा पायेंगे, कहेंगे, ‘खाकर देखो मजा आ जायेगा, हां मुझे देखो ब्र्रैड हो या रात की सब्जी पड़ी हो दे देना।’


अब उसे आप उसकी तारीफ में कसीदे पढ़ते निगलते ,उदरस्थ करते रहिये क्योंकि फिक्र भी तो आपको ही है कि न जाने कितने कितने मसालों का सत्यानाश हुआ है ,बेकार डस्टबिन के हवाले क्यों करें आपका पेट तो है ही डस्टबिन, किचिन समेटते रहिये। कुछ पति बस दूसरों की पत्नियों को ही ताकते जाते हैं, समझते यह कि उनकी पत्नी को नहीं मालूम। एक पति महोदय रोज शाम हुई पड़ोसन को देखने छत पर चढ़ जाते। चोरी चोरी निगाहों से उसे देखते रहते। एक दिन बहुत देर तक पड़ोसन नहीं आई । इंतजार करते रहे अंधेरा हो गया। बीबी ने आवाज लगाई कि क्या ऊपर ही रहेगें तो अनमने ढंग से बोले,‘ जरा चांद निकल आये तब आऊँगा।’ तो बीबी बोली, ‘चांद तो आज निकलेगा नहीं तो क्या छत पर ही बैठे रहोगे ,आज तुम्हारा चांद दूसरे शहर गया है। ’


कुछ पति ऐसे होते हैं जो घरवाली से साली को ज्यादा महत्व देते हैं । उसके चारो ओर चक्कर खाते रहेंगे। कहते रहेगें ‘साली आधी घरवाली’ और पत्नी की नई परिभाषा निकाल लेगें कहेगें पत्नी वह जो पति पर तनी रहे और साली को रस की प्याली कहेगे और जब पत्नी का जीजा उसे रस की प्याली कहेगा तो लफंगा चरित्रहीन कहकर पत्नी के रखवाले बन जायेंगे।


कुछ पति हमेषा पत्नियों को चरका ही देते रहते हैं। एक पत्नी ने पति से पूछा,‘कहाॅं हो ?’ पति बोला,‘पिछली होली हम ज्वैलरी की दुकान में गये थे न, जहाॅं हमने हार पसंद किया था ।’ पत्नी सुनकर प्रसन्न हो गई , उत्साह से बोली, ‘हाॅं हाॅं ’
पति ,‘उस समय मेरे पास पैसे नहीं थे’। पत्नी ने खुषी से कहा,‘ हाॅं ,याद है । ’


पति ,‘ और मैने कहा था ,ये हार एक दिन लेकर तुम्हें दूॅंगा ।’ पत्नी बहुत ही खुष हुई,‘ हाॅं, हाॅं , अच्छी तरह याद है ।’ पति,‘तो बस उसी की बगलवाली दुकान पर बाल कटवा रहा हॅूं ।’ आप खुद ही समझ लें आपके पति महोदय किस प्रकार के हैं।

हास्यम शरणम् गच्छामि

हंसी क्या है, और क्यों आती है?
हंसी एक प्रबल क्रिया है, जो हृदय गति एवं रक्त संचार को बढ़ाती है। लय से पूर्ण, ध्वनि युक्तः स्फूर्त क्रिया। एक ध्वनि जो लोगों को आपस  में बांधती है । एक भाषा जिसे हम अभिव्यक्त करते हैं। एक व्यवहार जो मनुष्यों में स्वतः कार्यान्वित होता है। 

हंसी सर्वजन्य माध्यम है, जो दुनिया को जोड़ती है। यह जीवन की स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। यह हृदय की भावनाओं की अभिव्यक्ति है। संसार में जीवों के पास हर संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है । वे रोते हैं, उदास होते हैं, चिड़चिड़ाते हैं। क्रोधित होते हैं। आपस में बात करते हैं, बस उन्हें हंसते हुए नहीं देखा। यह अभिव्यक्ति एक ईश्वरीय उपहार है। 

इससे प्रकृति खिलखिलाती सी नजर आती है। एक सकारात्मक ऊर्जा का उत्सर्जन होने लगता है। जैसे अमावस की यवनिका हटा कर सूर्य झांक दिया हो। दिलों को मिलाने जीतने की सहज अभिव्यक्ति है।
ईरानी कहावत है किसी हंसने वाले इंसान के आने से ऐसा लगता है जैसे एक दीपक जल गया हो।

यद्यपि कहा यह जाता है कि मनुष्य ही हंस सकता है, परंतु प्रसन्नता का अनुभव तो प्रकृति का कण-कण करता है। हर जीव करता है। सूरज क्रोधित होता है तो उसके ताप से पृथ्वी गरम हो जाती है, अकुला उठती है लेकिन बसंत की हंसी उसे झूमने पर मजबूर कर देती है। जब कभी अपना मन प्रसन्न होता है तब प्रकृति सुंदर लगती है, थिरकती सी । तब तारे टिमाटमाते नजर आते हैं, तो चंदा जैसे खिलखिला रहा है। पर्वत पर वर्फ मुस्कराकर रश्मियाँ बिखेर देती है।

हंसी और हास्य के बीच फर्क है- हंसी हास्य के प्रति प्रतिक्रिया है। यह प्रतिक्रिया दो तरह से प्रकट होती है। चेहरे के हावभाव और उसके दौरान निकलने वाली आवाज ,इन दोनों का जब संश्लेषण होता है तब हंसी आती है। हंसने से चेहरे की मांसपेशियों में कसाव आता है। त्वचा में चमक आती हैं। हंसी ऐसा मसाज है जो अच्छे अच्छे व्यूटी पार्लर नहीं दे सकते। जिनकी भृकुटियाँ हर दम तनी रहती हैं उनके माथे पर सलवट , गालों पर लटकन रहती है, आंखों में क्रूरता, बेरुखी सी होती है। पर हंसने वाले व्यक्ति की आंखों में चमक सी रहती है।
हर व्यक्ति का जीवन तनाव से भरा है। हंसने से इंसान कुछ देर के लिये कुछ दुःख भूल जाता है।


इंकागुअटी थ्योरी के अनुसार तर्क और घटनाऐं जीवन के साधारण ढर्रे से अलग रूप ले लेती हैं, तब हास्य उत्पन्न होता है।
एक चुटकुला तब हास्य उत्पन्न करता है। जब उसका अंत हमारे अंदाज के विपरीत होता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण वर्ल्ड ट्रेंड सेंटर के समय हुये हमले में बचने के लिये भागते लोगों का अनुभव है ,जहाँ जीवन के सबसे भयानक क्षण भी सहज सरल हो गये।

हास्यम शरणम् गच्छामि  का अगला भाग

दूरदर्शिनी महाभारत जारी है...

पिछला भाग- दूरदर्शिनी महाभारत


बहुत आदर से सम्मान से मैंने गौ माताजी को प्रणाम किया और हाथ जोड़ कर विनम्र विनती की माताजी जरा रस्ता छोड़ दो , तो मैं आगे निकलूँ तुम हमारी पालनहार हो लेकिन तुम्हारे इन सीधे सीगों से और जोर से सिर हिलाकर पीछे दौड़ने से बहुत डर लगता है। मैं अकिंचन नादान, मेरी काया में नहीं है दम, पैर दे गये हैं जबाब, दौड़ नहीं सकती, इसलिये हे! माताजी आप जरा सी अपनी काया को सरका लीजिये।


लेकिन व्यर्थ मेरी प्रार्थना नहीं सुनी और पतली गली में दीर्घ काया के साथ मुझे घूरती आगे बढ़ती रहीं। मुझे वापस दौड़ कर घर में घुसना पड़ा तो माताजी समझी मैं उन्हें मार्ग दर्शन कर रही हूँ ,और मेरे पीछे मेरे घर में घुसकर रखे, गमलों के फूलों को उदरस्थ करती रहीं । मै लाचार उनके पेट की भूख को शांत होते देखती रही क्योंकि मुझे मेरा कर्तव्य याद था। भूखे की भूख शांत होने देना, उनके प्रति दया दिखाना न कि डंडा दिखाना यही है जीव दया। मैं अपने ही घर में कैद थी जब माताजी मुँह घुमा घुमा कर कोचिया के पौधों को घास समझकर खा चुकी, तब वहीं आराम के लिये बैठ गई। अपना जाना स्थगित कर उनके जाने की वाट देखती रही । अतिथि तुम कब जाओगे। हे! मातृशक्ति मुझे शक्ति दो और मैंने प्रार्थना की तो उन्होंने ढेर से गोबर का प्रसाद और गोमूत्र का अमृत जल प्रदान कर दिया खाओ पीओ और मस्त रहो और मंथर गति से चली गई।


बंदर नहीं कहो, हम तुम्हारे पूर्वज हैं। हमें कष्ट मत देना। तुम्हारे घर से सामान लेना, फ्रिज में से फल निकाल कर खाना और अगर बच्चे हमारे बीच में जरा भी दखल दे तो उन्हें घुड़की देकर दौड़ाना हमार परम कर्तव्य है। अब इसमें हमारे पूर्वजों का क्या दोष है कि आप उनकी घुड़की से इतना डर जायें कि मुंडेर से गिरकर नीचे सड़क पर आ गिरे और हाथ पैर तुड़वा बैठे या हमारे भी पूर्वजों से जा मिले इसमें हमारी कोई गलती नहीं है हमें डंडा दिखाने की भी जुर्रत नहीं करना।

हमारा मन करता है कपड़े पहनने का तो उठा लेते हैं, तो रोते क्यों हो ? क्या अपने पूर्वजों को कपड़े भी नहीं पहनाओगे ? छत हमारे लिये है। तुम्हारे बच्चों के लिये कमरे हैं। हमें छत पर तो रहने दो, यह तो होता नहीं है हमारे लिये एक कमरा एसी लगवा कर बनवा दो जिसमें आराम से लेट सके, वो हम गुस्सा भी न हों। अब हमारी घुड़की ,बंदर घुड़की नहीं है । अब हमसे डरो, नहीं तो जेल जाओगे। बहुत हमें पकड़ कर लैब में परीक्षण कराये हैं। अब हमारी नस्ल बढ़ रही है बढ़ने दो ,परिवार नियोजन तुम्हारे लिये है।  हमारा साम्राज्य तो निरंतर बढ़ रहा है,बढ़ेगा और बढ़ता रहेगा जलभुन कर खाक मत हो।


कुत्ते जी हम पर अलग घुरघुराते हैं। मुझे कुत्ता कहने की हिम्मत मत करना मुझे डाॅगजी कहो, कुत्ते तो अब तुम खुद हो। बनते इंसान हो पर जिदंगी हम पशुओं की जीते हो। जवानी में बीबी एक मिनट में उल्लू बना देती है प्रौढ़ावस्था में गधे की तरह बोझा ढोते हो और अंत में मेरी बिरादरी में आ मिलते हो टुकड़ा मिल जाये तो खा लो, नहीं तो सिकुड़ कर पड़ो एक कोने में। इसलिये मुझे देखो और अपना अंत देखो। इसलिये मेरी अच्छी देखभाल करो मुझे प्यार से बुलाओ, सहलाओ। मैं काटूँ तुम धावक की तरह भागो नहीं। छड़ी लेकर घूमना बंद करो। मेरे बहुत हिमायती हैं। मेरे दांतों में खुजली हो और जरा सा काट लूँ, इससे डरते हो। अरे! इंजेक्शन लगवाओ सरकार इसीलिये देती है पर मुझे कुछ मत कहना, खबरदार मुझसे डर के रहो नहीं तो मैं भी गाली दे दूँगा ‘


हमारे सनातन धर्म पिता श्री श्री 108 श्री सांड महाराज का जब कभी मन आता है पूरी सड़क पर अपना साम्राज्य जोड़कर बैठ जाते हैं। जब कभी वह रंग महल हो जाता है क्या मजाल किसी की हिम्मत जो उन्हें छेड़ जाये,


अपने प्रतिद्वंदी को बीच चैराहे पर घेरते हैं और पांडव कौरव की सेना की तरह आमने सामने सींग से सींग भिड़ाकर खड़े हो जाते हैं और कहते हैं, बच्चा धीरज धरो हमें देखो अखाड़े में पहलवानों के लिये जुड़ते हो, हम भी पहलवान हैं सूमो पहलवान हैं, वो भी बिना किसी बैरीकेटिग के। जिधर चाहे प्रतिद्वंदी को खदेड़ दें। यह अब तुम्हारी समस्या है वही क्यों खड़े हो हम तो चलेंगे, लड़ेंगे। सड़क हमारी हमारे बेटों की। आखिर हम तुम्हारी पूज्यनीय माताजी के पति हैं, क्या मजाल तुम्हारी कि तुम हमें मवेशी खाने भेज सको। हमारी जब इच्छा होगी तुम्हें उठाकर पटकेंगे, झटकेंगे लटकायेंगे। तुम क्या तुम्हारी औकात क्या ? सही है हम आपसे कहां कुछ कह सकते हैं साड़ जी। आप सबके आगे हम तुच्छ प्राणी है। आप सब पूज्यनीय हो । आपको न हम काट सकते न घुरघुरा सकते , न घुड़की दे सकते ,न हमारे सींग है कि हम उछाल दें । हम निरीह प्राणी आप हमारे भाग्य विधाता है। आप चुनाव में चिन्ह के रूप में हमारी उपस्थिति का आभास दिलाते है आप की जय है।

दूरदर्शिनी महाभारत

रामायण, महाभारत सीरियल क्या सफल हुए ,जैसे धार्मिक सीरियल की बाढ़ आ गई हो, अगर धर्म की बात हो और युद्ध न हो, यह तो हो ही नहीं सकता। अगर राजा महाराजाओं का सीरियल है तो युद्ध। क्योंकि सत्ता और युद्ध का चोली दामन का साथ है । अब युद्ध जुवान से लड़ा जाता है पहले तीर तलवारों से।
हर युग में संग्राम तो हुआ ही है ,चाहे देवासुर संग्राम हो, चाहे राम रावण युद्ध हो ,चाहे कंस और कृष्ण का युद्ध हो, महाभारत तो है ही युद्ध, शिव पर है तो युद्ध, अर्थात युद्ध तो होना ही है।

और जब कथा ही महायुद्ध पर आधारित हैं तो उनका चित्रण भी परम आवश्यक है। लेकिन महायुद्ध अर्थात अक्षौहिणी सेना ,वह कहां से आये ? जितने योद्धा रखेंगे उतने पैसे देने पड़ेंगे, तो लड़ा देते हैं ऐसा महायुद्ध जिसमें एक योद्धा से केवल एक ही व्यक्ति लड़ता है। रुक-रुक कर ,बातें करते समय एक दूसरे को तीर मारना या अन्य किसी अस्त्र का उपयोग करना तो मना है ही, साथ उस समय किसी भी अन्य योद्धा का वार करना भी मना होता है। योद्धा एक दूसरे योद्धा के पेट में तलवार धंसा कर बाहर निकाल भी लेता है मानो मक्खन मलाई में से निकाला हो, पर न मक्खन लगता है न रक्त, तलवार झक सफेद, न मिट्टी गीली।


सुर्योदय से सूर्यास्त तक युद्ध करने के पश्चात् भी वीरों, महावीरों के कपड़ों पर सिकुड़न तो क्या एक मिट्टी का धब्बा भी नहीं लगता। तीर ऐसे जैसे फूलों की मार। उनसे बहा रक्त, अदृश्य रक्त जो बाहों आदि पर एक दो क्षण चमकता है दूसरे क्षण साफ, और सावधान जो कपड़ों पर एक बूँद भी टपके ,‘कपड़े पर चमकना या गिरना मना है ‘ । इस लेबल के साथ रक्त लगा होता है क्योंकि कपड़े किराए के हैं। किसी किसी जगह साॅस बिखर जायेगी  हो गया रक्त , ज्यादा नहीं , मालिक पूरे पैसे रखवा लेगा। अगर बनवाये भी होंगे तो बार बार बनवाने और धुलवाने का खर्च जो बढ़ जायेगा। गहनों से लदे फदे राजा युद्ध करेंगे पर मोती की माला तक नहीं टूटती यहाॅं तो बच्चा भी माला पहने गोद लेलो माला समझो गई ।

सभी योद्धा कितने अनुशासन प्रिय होते हैं कि शोर से पर्यावरण दूषित न हो इसलिये चुपचाप युद्ध करते हैं।तलवार की टनटन साफ सुनाई देगी । यहां तो मुहल्ले में दो बच्चों में हाथापाई होती है तो इतना शोर होता है कि सारे घरों के खिड़की दरवाजे खुल जाते हैं।

अलाउद्दीन के चिराग का भूत हर योद्धा के रथ में बैठा उन्हें तीर पर तीर पकडाता रहता है क्योंकि रथ तो खाली दिखता है। तूणीर में दो तीर चमकते रहते हैं और तीरों की वर्षा होती रहती है। शायद बीच में आपस में कहते होंगे जरा रुक तीर बटोर लाऊँ फिर मारूँगा ,तू चाहे तो तू भी बटोर ले। मंत्र पढ़कर जब तीर मारे जाते हैं तो घात खाने वाला इंतजार करेगा तू पूरा मंत्र पढ ले, आराम से मारियो जब तक तीर मुझे नहीं लगेगा मैं हिलॅूंगा भी नहीं।
घोड़े पर से पैदल इस तरह सवार को खींचता है मानो कह रहा हो, घोड़े पर अब तू बहुत बैठ लिया अब मुझे भी कुछ देर सवारी करने दे।

सूर्यास्त के समय मैदान में लाशें जलती सी पड़ी होती है, और योद्धा भी मरे पड़े होते हैं, लेकिन प्रातः मैदान ऐसा साफ होता है जैसे नया मैदान चुना गया हो, एक भी लाश नहीं मिलती , उस नगर निगम के कर्मचारी बड़े कर्मठ होते हैं यहाॅं तो कुत्ता तो क्या आदमी भी जब सड़ने लगेगा तब उठेगा । और कमाल है हाथी घोड़े जितनी देर मैदान में रहेंगे लीद नहीं करेंगे। हमारे बाजार में गाय, भैंस निकलती है तो बाजार में गोबर ही गोबर हो जाता है। पर योद्धाओं की जूतियाँ भी कमाल है फिसलना तो दूर गंदी भी नहीं होती। हर दिन शूटिंग के बाद योद्धा बातें करते होंगे,
आज मैं दो बार मरा, दो बार के इतने पैसे मिले, तू कितनी बार मरा ?
‘मैं मैं, तो तीन बार मरा फिर भी मुझे भी इतने ही पैसे दिये। कल मैं मरने से मना कर दूंगा, यह भी भला कोई बात रही।’

किसी भी मृत योद्धा का अंग भंग नहीं होता, न कपड़े रक्त से सने होते है न मैदान में रक्त की एक बूंद। जहाँ योद्धाओं का रक्त बहा हो वह स्थान सूखा ,भुरभुरी धूल से भरा रहता है। चमेली बाई और मुन्नीबाई में मुहल्ले में लड़ाई हुई  दोनों  के बाल नुच कर बिखर गये  धोती फट गई आॅंखें थी कि खा जायेंगी , पल भर में बेचारे ठेल वाले का सामान बिखर गया  जो बीच में आया पिट गया पर फिल्मी युद्ध में पगड़ी भी नहीं  गिरती फॅेंटा बंधा ही रहेगा। फिल्मी युद्धों में तो सब भले हैं किसी के बीच में नहीं पड़ते । कितना अच्छा है फिल्मी युद्ध । है न!

अगला भाग- दूरदर्शिनी महाभारत जारी है...

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