Friday, 11 April 2025

Bhajan

 10फुलन के वाजू बन्द फूलन की माला 

गइया चराय घर आये नन्द लाला 

माथे पर मुकुट सोहे कानों में वाला

रतन जड़ित जाके उंगिलिन में छाजा 

आगे आगे दाऊजी पीछे पीछे ग्वाला 

बीच बीच नाचे मदन गोपाल

जामा पचंरगी सोहे पीत दुःशाला 

गले सोहे हीरा लाल मोतीयन माला, 

चन्द्र सखी भज वाल कृष्ण छवि 

निरखि निरखि मन मोहे बृज बाला

फूलन के सेज गले वन माला 

गइया चराय घर आये नन्द लाला 










11राजाराम ने पठ़ाये हनुमान जड़ी तो संजीवन की 

भरी सभा में बीड़ा डालो राम चन्द्र भगवान

इस बीड़ा को कोई नही झेले झेलेगें श्री हनुमान जड़ी सो ............................

उठे पवनसुत बैठ पवन सुत पहुँचे लंका जाय

खबर पड़ी राजा रखया कू पर्वत दियो है जलाय जड़ी तो संजीवन की 

ठाड़े हनुमत सोच करें हैं सोच करे मन मार

संजीवन तो कहूँ नही पाई पर्वत लियो है उठाय जड़ी तो संजीवन की 

उठे पवन सुत बैठ पवन सुत पहुँचे अयोध्या जाय

ताल वान गोदे में मारो राम ही राम पुकार जड़ी तो सजीवन की .............

कोनस के तुम पुतर कहियो कहा तुम्हारो नाम

कोन रजा की करो नौकरी कौन के लागा शक्तिवान जड़ी तो संजीवन ......................

अंजनी के हम पुत्तर कहिये हनुमान मेरो नाम 

राजा राम की करें नौकरी लक्ष्मण के लागा शक्तिवान जड़ी तो संजीवन की 

उठे पवन सुत बैठ पवन सुत पहुँचे लंका जाय 

संजीवन तो घोट पिलाई दई लक्ष्मण लिये है जिलाय जड़ी तो संजीवन की .............

तुलसी दास आस रघुवर की हरि चरणों चित लाय

जैसे कारज  राम के सारे वैसे ही मेरे भी सारो



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12घर आयेगें श्री भगवान शिवरी के मन हरष भयो

वोले वचन मतंग ऋषि तू सुनि शिवरी मेरी बात 

एक दिना तेरे घर आयेगे लक्षमन और श्री राम 

शिवरी के मन हरष मयो..................

वचन सुने निश्चय कर मन में छोड़े गृह के काज 

बार बार घर भीतर आवे देखत लक्ष्मन राम

शिवरी के मन हरष भयो...................

चरण धोय चरणमृत लीन्हो आसन दियो बिछाय 

कन्दमूल फल देनन लागी रूचि रूचि भोग लगाय

शिवरी के मन हरष भयो.............

शिवरी जैसी जात अधम की दीन्ही धाम पठाय 

श्याम कहे विश्वास रखे से घर बैठे प्रभु आय  

 शिवरी के मन हरष भयो................







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13राम दशरथ के घर जन्में घराना हो तो ऐसा हो 

लोग दर्शन को चले आवे सुहाना हो तो ऐसा हो 

यज्ञ का काम करने को मुनीश्वर ले गये वन में 

उड़ये शीष दैत्यन के निशाना हो तो ऐसा हो 

तोड़ डाला धनष्ुा जाकर जनक की राजधानी में 

भूप सब मन में शरमाये लजाना हो तो ऐसा हो

पिता की मान कर आज्ञा राम वनवास चल दिये

न छोड़ा साथ सीता ने जनाना हो तो ऐसा हो

सिया को ले गया रावण बना कर भेष साधु का 

कराया नाश सब अपना ठिकाना हो तो ऐसा हो

प्रीति सुग्रीव से करके गिराया वाण से वाली

दिलायी स्त्री तब उसकी याराना हो तो ऐसा हो 

गया हनुमान सीता को खबर लेने को लंका में 

जला कर के नगर आया सताना हो तो ऐसा हो 

बाँध सेतु समन्दर में उतारा पार सेना को

मिटाया वंश रावण का हराना हो तो ऐसा हो 

राज्य देकर विभीषण को अयोध्या लोटकर आये

वो गंगा बालधर अपना दिखाना हो तो ऐसा हो 



14रावण की सभा में विभीषण के उर लात लगाई भारी है

हा राम राम सुमरन करके चल दिया तुरन्त ब्रह्मचारी है

क्यों अब भी शोखी मार रहे लंका को जलाकर ताप रहे

एक बन्दर शान विगाड़ गया अब आई तुम्हारी वारी है।

है माई कहन मेरी मानो श्री राम से बैर न तुम ठानों

सीता को कर अर्पण प्रभु के लंकेश सलाह ये हमारी हैं

शिव सुनो विभीषण चल दिन्हा रामा दल के हनुमत चीन्हा

श्रीराम तरफ गये चरणा कमल चरणों में शीष दियो डारी

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15गुरू पास रहे या दूर रहे नजरों में समाये रहते हैं

इतना तो बता दे कोई हमें क्या कृपा इसी को कहते हैं

दुखियों की मंजिल लम्बी है जीवन की घड़िया थोड़ी है

इन दोनों को समझो एक समान गुरू अपना बनाये रहते हैं

जिस अंश के सारे अशी है उस श के हम भी वंसी है

माया में फंस कर झूले हैं गुरू याद दिलाये रहते हैं।

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16घड़ी दो घड़ी राम गुन गाया करो

शील सनेह की दरिया विछाई

प्रेम का पंखा डुलाया करो 

घड़ी दो घड़ी......................

सत संगत की बैठक जोड़ी 

प्रेमी भक्त बुलाया करो

घड़ी दो घड़ी राम गुन गाया करो

चेारी बुराई और पर निन्दा 

कोई कहे समुझाया करो

घड़ी दो घड़ी राम गुन गाया करो

गंगा बाई कहे कर जोरी 

हरि के चरण चित लगाया करो 

घड़ी दो घड़ी राम गुन गाया करो

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20भज मन राम राम राम तज मन काम काम काम

भोर मई मुख मल मल धोयो रे

धोय धाय तेने उदर ढढोरो रे

मुख से मजो न राम मजमन...............

बातन बातन सब दिन खोयो रे 

साँझ मई पलका चढ़ सोयो रे 

मारे होत उठो जाय मजमन ...............

भाई बन्धु और कुटुम्ब कबीला रे 

महल तिवारी तेरे धन बहुतेरे रे 

संग चले न छदाम मज मन ........................


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