Monday, 5 April 2021

अभिशप्त मूर्ती

 

vfHk”kIr ewfrZ& 1904 esa fixesfy;u uke ds f”kYidkj us xzhl dh jktdqekjh vrykark dh ,d dkB dh ewfrZ cukbZA jktdqekjh dh ;g ewfrZ xkmu igus gS vkSj xkmu nk;s da/ks ls tjk uhps f[kld x;k gSA ftlls ,d Lru [kqyk gSA cekZ dh etcwr lkxkSu dh ydM+h ls fufeZr bl ewfrZ esa xtc dk vkd’kZ.k gSA dgk tkrk gSA fd vrykark xzhl dh jktdqekjh Fkh vkSj l=goha “krkCnh dh bl jktdqekjh dk izse ,d ukSdj ls gks x;k FkkA lezkV xzksfj;l us ukSdj dks ejok Mkyk rks jktdqekjh us vkRegR;k dj yhAप्रारम्भ में इस मूर्ति को अतलांता नामक जहाज के अग्र भाग पर स्थापित किया गया लेकिन अपनी प्रथम यात्रा के दौरान ही यह मूर्ति अभिशप्त सिद्ध हुई  जहाॅं इस मूर्ति के हजारों दीवाने थे वहीं यह हालत है कि अब इस मूर्ति का मुॅह देखना भी कोई पसंद नहीं करता । 1889 में अतलांता जहाज को पानी में उतारा गया लेकिन जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया । मरम्मत करके तीन महिने बाद जब अतलांता जहाज एलिजाबेथ जलयान की ओर जा रहा था कि एकाएक जहाज का मस्तूल टूट गया तथा दो व्यक्ति मारे गये। एण्टवर्प में जब यह बोस्टन के लिये रवाना हुआ अक्समात् जहाज डगमगाया और एक सौ बीस नाविकों सहित और खूबसूरत प्रतिमा सहित समुद्र की भेंट चढ़ गया। आश्चर्य की बात यह थी न तो जहाज की किसी अन्य जहाज से टक्कर हुई और नही तूफान आया था।


     1866 मं अतलांतिक महासागर मंे इटालियन गश्ती जहाज वैलोस पर पहरा देते एक नाविक की निगाह बीच समुद्र में तैरती लाश जैसी वस्तु पर पड़ी। कप्तान कैमी ने उसे उठवाया तो ज्ञात हुआ कि वह काठ की एक मूर्ति है और उसके नीचे लगे चबूतरे पर नाम खुदा था अतलांता।


     नाविकों के हृदय भय से कांप उठे लेकिन मूर्ति में न जाने कैसा आर्कषण था कि वे उसे वापस समुद्र की भेंट न कर सके। यात्रा के दौरान ही उस मूर्ति को जिस व्यक्ति ने बाहर निकाला था, एक दिन फिसल कर समुद्र में जा गिरा और मौत के आगोश में चला गया। अब नाविक उस मूर्ति को हाथ लगाने से भी डरने लगे।


     इस मूर्ति को इटली के ला स्पंजिया नामक स्थित ‘‘मेरी टाइम म्यूजियम’’ में रखवा दिया गया। वहां लगभग 30 अन्य मूर्तियां भी रखी थीं जो बलिष्ठ योद्धा स्त्रियों की थी उनमें अपरूप सौदर्य की अधिकरिणी ‘‘अतलांता’’ पर्यटकों और अजायबघर के कर्मचारियों के आर्कषण की वस्तु बन गई। सन् 1924 में एक सफाई कर्मचारी उसके प्रेम में दीवाना हो गया और अंत में उसने समुद्र में डूब कर आत्महत्या कर ली। उसकी लाश भी अतलांता की तरह डूबती उतराती मिली थी।


     सन् 1931 में नार्थ का एक कैप्टन उस प्रतिमा का पुुजारी हो गया। वह अपलक उस मूर्ति के रूप का पान किया करता था। उसने अजायबघर के अध्यक्ष से उस मूर्तिको खरीदना चाहा। परन्तु अध्यक्ष ने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया कि मूर्ति इटली नौ सेना की सम्पत्ति है और इसके साथ विनाश की कई घटनाऐं जुड़ी है। वे इसे किसी हालत में नहीं बेच सकते। एक दिन वह नवजवान अपने बिस्तर पर मृत पाया गया। उसकी मौत कैसे हुई कारण ज्ञात न हो सका और एक अनसुलझा रहस्य रह गया।


  सन् 1931 ही में एक स्कूली बच्चों का समूह अजायबघर देखने आया । एक बच्चे ने नजर बचाकर उसके पैरों की ऐक चिप्पड़ उखाड़ ली रास्ते में ही बस का संतुलन बिगड़ जाने के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गई एक भी बच्चा जीवित नहीं बचा । बच्चे की मुठ्ठी में पाये गये उस चिप्पड़ से ज्ञात हुआ कि उस मूर्ति का अभिशाप कहर बन कर बच्चों  पर बरसा था ।


     1938 में एक अन्य नौकर उस प्रतिमा के सम्मोहन का शिकार हो गया, उसे लगता मूर्ति जानदार हो गई और उसकी ओर कामुक निगाहों से घूर रही है।


     1943 में जर्मन सेना ने उस नगर पर अधिकार कर लिया, एक जर्मन अधिकारी कुर्ज उस मूर्ति को उठवा कर घर ले गया। एक दिन वह अधिकारी मूर्ति के सामने मृत पाया गया। रिवाल्वर उसके हाथ में थी और माथे पर गोली लगने का बड़ा सा छिद्र था। मूर्ति के शरीर पर नीले रंग का कागज का टुकड़ा पिन से खोसा हुआ था। कागज पर लिखा था ‘‘अतलांता जो स्वर्गीय आनंद तुमने प्रदान किया। वह दूसरी कोई औरत मुझे नहीं दे सकती। इसलिये अपना यह जीवन में तुम्हें ही भेंट करता है।’-एरिक कुर्ज

    

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