Thursday, 1 April 2021

krishn Bhajan

 32

कोई मेरे हाथों में मेहदी लगादो

मुझे श्याम सुन्दर की दुलहिन बना दो

सत्संग ने मेरेी बात चलाई 

सतगुरू ने मेरी कर दी सगाई 

आओ मेरे प्रियतम मुझे अपना बना लो 

मुझे श्याम .................

वही पहनू चुड़िया जो कबहूँ न टूटे

वही करू दूल्हा जो कभी न छूटे

अटल सुहाग की बिन्दिया लगा दो 

मुझे ......................

वही ओढू चुन्दरी जो रंग नही छूटे

प्रीत का धागा कभी न टूटे

आज मेरी मोतियन से माँग भरा दो 

मुझे ..................

प्रीत पायल पहन में नाँचू गाँऊ

नाच नाच गा गा पीतम को रिझाऊ

सतगुरू को बुला के मेरे फेरे करा दो 

मुझे ...............

भक्ति का सुरमा मैं अखियों में लगाऊगी 

अविनाशी प्रीतम से ब्याह रचाऊँगी 

कोई मेरे मोहन की गली तो बता दो 

मुझे .............

बाँध के घुघरूं मेें प्रभु को रिझाऊगी 

ले के एकतारा में प्रभु गुन गाऊँगी 


33

                      बंहिया न मरोर कान्हा बंहिया न मरोर

जो कान्हा तुम दहिया के भूखे 

                       पत्ता लाओ तोड़ मोर कान्हा

जो कान्हा तुम दूध के भूखे बछड़ा लाओ खोल

ना ग्वालिन हम दहिया के भूखे

                        घुघँट डालो खोल ग्वालिन 

जो कान्हा तुम सूरत के भूखे 

                        घर आना जरूर मोर कान्हा

चन्द्र सखी भज बाल कृष्णा छवि 

                         पार लगाना जरूर मोर कान्हा

34

मेरी गोदी में आजा गोपाल खड़ी हूँ मै तो तेरे लिये

पीले पीताम्बर का जामा बनादू पटका बना तेरा लाल

चैरासी की टोपी बना दू सिर पे घूॅंघर वाले बाल

सिर सोने का मुकुट मँगा दूँ गल बैजन्ती माल    खड़ी 

खेलने को तुम्हें चन्दा मगाँ दू माखन मिश्री के थाल

सेाने का तुम्हें पलना मगाँ दू झूले में झूलो गोपाल

चन्द्र सखी भज वाल कृष्णा छवि हरि चरणो में मेरा ध्यान 

खड़ी हूँ मैं तो तेरे लिये 


35

                       भक्तों की पुकार है दुखी संसार है 

आजा मेरे सांवले तेरा इन्तजार है

धर्म कर्म को भूली दुनिया करती है मनमानी हो 

गीता का वह सार न जाने कितनी बड़ी नादानी है

जीवन असार है तू ही एक सार है 

आजा मेरे साॅवले .............................

डोल रही है जीवन नइया मिलता नहीं किनारा है

दुख की घोर घटायें छाई तेरा एक सहारा है

नैया मझधार है तू ही खेवन हार है 

आजा मेरे सांवले तेरा इन्तजार है ...

दर दर फिरते चक्कर खाते कोई न सुने सुनावे

रो रो फिर दुनिया वालों को तेरी याद सताये है।

सम्बन्धी बेकरार है तू ही सरकार है 

आजा मेरे ........................

मारो चाहे तारो प्रभु जी नइया भवॅर में डोले है

रामेश्वर तो व्याकुल होकर ह्नदय से बोले हो 

तेरा ही एक सहारा है नैन अश्रु धार है 

आजा मेरे ..............................

36

लखि न परे तेरो अन्त कन्हैया 

तुम हो पार बह्ना परमेश्वर गोकुल प्रगट चरावत गैया 

वृथा तुम्हें ये सुत करि मानत नन्दराय और जसुमति मैया 

बांधि सके को भुजन तुम्हारे तुम हो सकल जगत के बघैया 

तारन यमला अर्जुन के हित लीला कौतुक केलि रचैया 

सूरदास प्रभु भक्त कृपानिधि ब्रज जन की सब विपद हरैया 


 

37

दया का भिखारी दया चाहता हूँ 

तुम्हें रात दिन पूजना चाहती हूँ

नही कोई दुनिया में साथी हमारा

जगत को जो देखा तो झूठा है सपना 

उसी ने बनाया है प्रभू तुमको अपना

तुम्हें हर घड़ी देखना चाहता हूँ 

दया का ................................

यह माना कि भगवन गुनहगार हूँ 

मगर तेरा भगवन तलवगार हूँ

दया मुझ पर कर दो कि लाचार हूँ

मै और कुछ न तेरे सिवा चाहता हँ

मैं दया का .................

मेरी आशा पूरी कर दो मुरारी

मैं सेवक तेरे दर का हूँ अति भिखारी

पड़ी है भवर बीच नइया हमारी

सहारा प्रभो में तेरा चाहता हॅँ

दया का ............................

38

श्री कृष्णा चन्द्र ने मथुरा से गोकुल को आयवो छोड़ दियो

तब से प्यारी ब्रज गोपिन ने पनघट  जानो छोड़ दिया

लता पता सब सूख गई यमुना ने किनारो छोड़ दियो

वहाँ मेवा भोग लगावत माखन को खानो छोड़ दियो

बीन परवाज धरी रहे मुरली को बजानो छोड़ दियो

वहाँ कुन्जा संग बिहार करे राधा गुन गावो छोड़ दियो

कंस कू मार गये राजा गौअन को चरायवो छोड़ दियो

सूर श्याम प्रभु निठुर भये हॅंसनो इठलावो छोड़ दियो


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