Thursday, 1 April 2021

abhishapt kothi

 किसी बेबस की सताई हुई आत्मा जब चीत्कार करती है तो वह श्राप बन सदियों सदियों तक अपना प्रभाव छोड़ती है । या जब मोह वश अपनी प्रिय वस्तु को किसी को उपयोग नहीं करने देना चाहता है तो वह अभिशप्त हो जाती है । अतृप्त आत्मा उसके साथ साथ रहती है । महाभारत का युद्ध श्रापों का ही परिणाम है । रामायण की कथा श्राप के ही कारण बनी । यदि ऋषियों का श्राप यादव वंश के राजकुमारों को न लगता तो कृष्ण की मृत्यु न होती । वे तो ऋषि मुनियों के श्राप थे जिसने बड़े बड़े युद्ध कराये। पर इंसान की तो ताकत जरा सी है तो वह बस अपनी वस्तुओं को ही बचा पाती है ,दूसरों के लिये अनुपयोगी बना देती है ।अधिकतर अभिशप्त वे ही वस्तुएॅं होती हैं जिन्हें  हर कोई पाना चाहता है । सुंदर अदभुत् ।

अभिशप्त कोठी- सन् 1980 में बनी शिकागो की बिस्कुटी रंग की पथरीली कोठी ‘द सिलवर ओक’ भुतही सिद्ध हुई है। उसमें अब तक बावन मौतें हो चुकी हैं। इस कोठी का निर्माण अलैक्जेंडर बेयरिंग ने करवाया। उसे सितारों के अध्ययन का व्यसन था लेकिन 1889 को वो मृत पाये गये । नौकरों के अनुसार उन्होनें उनके गगुआने की आवाज सुनी जैसे कोई उनका गला घोंट रहा हो। घर के सदस्यों और नौकरों ने दरवाजा खटखटाया कोई उत्तर ने मिलने पर दरवाजा तोड़ दिया गया। लेकिन पलंग पर अलैक्जैन्डर बैयरिंग की लाश पड़ी थी। 

उनकी मौत के कई बरस बाद 1891 में फ्रांस की एक अपूर्व सुंदरी मेथिल्डी ने सिल्वर औक की सुदरता से प्रभावित होकर उसे खरीद लिया। उसके साथ उसका प्रेमी वलिन्यूद भी था। नये सिरे से बनवाते में मैथिल्डी को एक कुअंा मिला, जिसमें एक खोपड़ी मानवदेह और जंग लगी बंदूक मिली। उसने कुंऐ को वहीं बंद करा दिया। लेकिन 6 अगस्त 1906 को वेलिन्यूद सात सप्ताह बाद मैक्सिको से लौटा तो जैसे ही मैथिल्डी उसकी और बढ़ी ,वह पागलों की तरह चीखता आगे बढ़ा और एक छुरा निकालकर मेथिल्डी को छाती में घोंप दिया और फिर उसी छुरे से आत्महत्या कर ली। 

1909 में द शिकागो ट्रिव्यून के संपादक जाॅन सिंगल्टन कोपले उसके मालिक बने। 11 जनवरी 1910 को उनके विवाह की पचीसवी वर्षगाठ थी । एक छोटा सा परिवारिक समारोह मनाया जा रहा था ,लेकिन 12 जनवरी को जाॅन सिगल्टन कोपले उनकी पत्नी डोरोथी उनके बारह मित्र ,उनकी पत्नियाँ तथा छः बच्चे इस तरह कुल मिलाकर अड़तीस व्यक्ति मरे पाये गये। पता चला उन सबकी मौत जहरीला खाना खाने से हुई। 

सैमुउल औपी 1915 में सिलवर ओक का मालिक बना। वह स्फिंक्स के अध्ययन के लिये आया था उसने 26 जुलाई 1915 को डायरी में लिखा । मुझे सिलवर ओक जल्दी से जल्दी छोड़ देना चाहिये, यहाँ चीखें गुर्राहटे हर रात रहती हैं। इस समय भी मुझे लग रहा है कि दो भयानक आँखंे मुझे घूर रही हैं लेकिन दूसरे दिन वह मृत पाया गया। 

1920 में एक सौदागर थाॅमसन प्रेयरी ने उसे खरीद ले लिया एक सप्ताह बाद ही वे पत्नी सहित मृत पाये गये किसी ने चमड़े की पेटी से उन दोनों का गला घोट दिया था। 

1922 में दो विधवायें उसमें आयी। कुछ दिन बार उन्होंने नगर पालिका अध्यक्ष कालिवन को बताया लगता है दुष्ट आत्मायें उन्हें निरंतर घूरती रहती हैं। वे उनसे मिलने आये थे। रात के आठ बजे जब वे वापस जाने लगे तो उन्हें लगा उनकी कार के पास कुछ है ,उनकी आँखे डर से फट गई उन्हें गले पर दाब महसूस हुआ और वे बेहोश हो गये। सुबह जब उन्हें होश आया वे पागल हो चुके थे बस इतना ही कह रहे थे मैने उसे देखा है मैने उसे देखा है। उसी रोज सुबह दोनों विधवायें भी मृत पाई गई। 

सन् 1979 में सिलवर ओक को सूसन और एडवर्ड नामक दम्पति ने खरीद लिया। एक दिन बगीचे में आग दिखाई दी जिसे देखने एडवर्ड गया तो वहाँ उसकी क्षत विक्षत लाश पाई गई और उस हादसे के तीन बाद अनर्गल प्रलाप करती सूसन भी अस्पताल मंे मर गई। 

1980 में शिकागो प्रशासन ने उस मकान को अभिशप्त घोषित कर उसे गिरवा दिया लेकिन हर रात वह भूखंड रुदन और अट्टहास से आज भी गूंज उठता है। 


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