Tuesday, 14 January 2025

Brij ke bhajan 17

 90तुम तो जाय बसे मथुरा में गोकुल अब कब आओगे

मोर मुकुट पीताम्बर माला गल पहराओगे

जमुना तट पर ग्वालन के संग धेनु चराओगे 

तुम तो जाय बसे मथुरा में गोकुल अब कब आओगे

मीठी धुन में श्याम मनोहर वेनु बजाओगे

वृन्दावन की कुंज गलिन में रास रचाओगे

तुम तो जाय बसे मथुरा में गोकुल अब कब आओगे

छीन छीन सखियन दधि माखन कब खाओगे

राधा प्यारी सोच करे मन फिर मिल जाओगे

तुम तो जाय बसे मथुरा में गोकुल अब कब आओगे

अखियाँ तरस रही दरशन को फिर मिल जाओगे

बह्नाानन्द हमारे मन की आस पुराओगे 

तुम तो जाय बसे मथुरा में गोकुल अब कब आओगे

91तैने खूब रचा भगवान खिलौना माटी का 

नैने दिये दरशन करने को श्रवण दिये सुन ज्ञान

तैने खूब रचा भगवान खिलौना माटी का 

जीभ दई हरि गुन गाने को हाथ दिये कर दान

तैने खूब रचा भगवान खिलौना माटी का 

पैर दिये तीरथ करने को तू अपना कर कल्याण

प्रीत पतंग करी दीपक संग तू कर अपना ध्यान

मेरी प्रीत बढ़े तुम्हारे संग ज्यो ज्यो बढ़ता चाँद

सुन्दर श्याम सहाय हमारे अब सुमिरो कृपानिधान

                        मन सा नाथ मनोरथ दाता इसे कोई न सका पहिचान


92ढूंढे से राम मिलत नाही मेरी लागी लगन छुटत नाही

लगन लागी मीरा बाई तुम बिन जहर पिवत नाही प्रभु 

लगन लागी प्रहलाद भक्त को तुम बिन खंम्भ फटत नाही 

प्रभु तुम बिन खम्भ फटत नाही 

लगन लागी द्रोपदी को तुम बिन चीर बढ़त नाही 

प्रभु तुम बिन लाज बचत नाही 

लगन लागी राजा हरिचन्द्र को तुम बिन धर्म बचत नाही

लगन लगी नरसी मेहता की तुम बिन भात भरत नाही 

प्रभु तुम बिन भात भरत नाही 

लगन लगी शबरी भिलनी की तुम बिन भक्ति मिलत नाही

प्रभु तुम बिन बेर खबत नाही 

प्रभु लगन लगी इस दासी की तुम बिन स्वर्ग मिलत नाही

प्रभु तुम बिन भक्ति मिलत नाही 


93हे मेरे प्रेमी जनो एक प्रार्थना सुन लीजिये

आज इस नगरी से जाती सब कृपा अब कीजिये

इतने दिनो सत्संग का इतना लिया आनन्द है 

पर इसे उर में बसालो तब ही परमानन्द है 

मोह मुझसे छोड़ दो यह मोह ही अज्ञान है 

मोह को त्यागे बिना हेाता नही कल्यान है 

आपका श्रद्वा बड़ी है और सात्विक प्रेम है 

प्रेम हो प्रभु के चरण मे ंतब सफल सब नेम है 

श्याम सुन्दर की कृपा से आपका दर्शन हुआ 

हरि कथा का लाभ पाकर धन्य जग जीवन हुआ 

शीघ्र ही दर्शन करूँगी यदि ह्नदय में मान है 

ह्नदय के भाव से बंॅंधता स्वंय भगवान है


84सालिगराम सुनो विनती मेरी यह वरदान दया कर पाँऊ

प्रात समय उठ मन्जन करके प्रेम साहित स्नान कराऊँ

चन्दन धूप दीप तुलसा दल तरह तरह के फूल चढ़ाऊँ

आप विराजो रतन सिहांसन घन्टा शंख मृदंग बजाऊँ

एक बूँद चरणामृत ले के कुटुम्ब सहित वैकुण्ठ पठाऊँ

जो कुछ भोग मिले प्रभु मोकू भोग लगा कर भोजन पाऊॅं

जो कुछ पाप कियो काया से परिकम्मा के साथ धटाऊँ

डर लागत मोहे भव सागर से जम के द्वार प्रभु के जाऊँ

माधो दास आस रघुवर की हरि दासन को दास कहाऊँ


95प्राणी तेरी काया न आवे कोई काम 

याके मुख से उचारो हरी

राधे श्याम सीता राम राधे श्याम 

याके मुख से उचारो हरी नाम 

नर तन को पाके वनता गुमानी 

चार दिन की तेरी जिन्दगानी

रघुपति चरनन में कोटिक प्रणाम 

मुख से उचारो हरि का नाम

झूठे जगत के है सब नाते 

स्वास्थ के वस प्रीति निभाते 

भगवत भजन से हो मुक्ति धाम

मुख से उचारो हरी का नाम 


96मेरी साड़ी को खीचे अधम लाज उसको न आये तो मैं क्या करूँ

खेच लाया दुशासन पकड़ केश है ला सभा में है मुझको खड़ा कर दिया 

मेरे तन पर से साड़ी हटाने लगा नगन मुझको बनाये तो मैं क्या करूँ

बाबा भीष्म भी बैठे निहारे मुझे और गुरू द्रोण है वे कुछ कहते नहीं

जेठ मेरे यहाँ पर है कर्ण से बली सब नजर को झुकाये तो मैं क्या करूँ

बैठे पाँचो पती मेरे सब मौन है आज दुनिया में मेरा कोई भी नहीं

एक आस थी श्याम तुम्हारी मुझे आज तुमने भुलाया तो मेै क्या करूँ

नगन आई थी जग में ऐसे प्रभु जाऊ ऐसे ही दुनिया से प्रभु 

हँसी होगी कन्हैया तुम्हारी प्रभु देर तुम हूँ लगाओ तो मै क्या करूँ


97राधा की छवि देख मचल गये साँवरिया 

हँस मुसकाय प्रेम रस चाख्यो 

दोऊ नैनन बिच ऐसे रखूँ

ज्यौं काजर की रेख पड़ेगी तोसे भावरिया 

राधा की छवि देख मचल गये साँवरिया 

तू गौरी वृषभान दुलारी

मैं कारो मेरी चितवन कारी

कारो ही मेरो भेष कि कारी मेरी कामरिया 

राधा की छवि देख मचल गये साँवरिया 

मैं राधा तेरे घर पर आँऊ 

अॅंगना में बॉंसुरी बजाऊँ

नृत्य करूँ दिल खोल नाथ दऊ नागरिया 

राधा की छवि देख मचल गये साँवरिया 

अपनी सब सखियाँ बुलवाले 

हिल मिलकर मोहे नाच नचाले

गढे प्रेम की मेख ऊख रखे पावरिया 

राधा की छवि देख मचल गये साँवरिया 

बरसाने की राधा प्यारी वृन्दावन के बाँके बिहारी

सुख सागर में खेल तू ग्वालिन गामरिया 

राधा की छवि देख मचल गये साँवरिया 


98

भक्तों की पुकार है दुखी ये संसार है 

आजा मेरे साँवले तेरा इन्तजार है 

धर्म कर्म को भूली दुनिया करती है मन मानी है 

गीता का वह सार न जाने कितनी बड़ी नादानी है 

जीवन आसार है तू ही एक सार है 

आजा मेरे साँवले तेरा इन्तजार है

डोल रही है जीवन नैया मिलता नही किनारा है 

दुख की घोर घटाये छाई तेरा एक सहारा है 

नैया मझधार है तू ही खेवन हार है 

आजा मेरे साँवले तेरा इन्तजार है

दर दर फिरते चक्कर खाते कोई न सुने सुनावे है 

रो रो फिर दुनियाँ वालों को तेरी याद सताये है 

सम्बन्धी बेकार है तू ही सरकार है 

आजा मेरे साँवले तेरा इन्तजार है

मारो चाहे तारो प्रभुजी नैया भँवर में डोले है 

यह दासी तो व्याकुल होकर प्रेम ह्नदय में बोले है 

तेरा ही सहारा है नैन अश्रुधार है

 आजा मेरे साँवले तेरा इन्तजार है


99एक पलड़े मे पती विराजे दूजे में गिरधारी

आँख खोल के देखो री बहना किसका पलड़ा भारी

पती से ज्यादा सब देवो में देव नही कोई दूजा 

पति चरन को छोड़ चली तुम करने किसकी पूजा

पति का घर है सती का मन्दिर सुनो सुहागिन नारी 

आँख खोल के देखो री बहना किसका पलड़ा भारी

महाकाल भी तोड़ सके न पती सती का नाता

एक सती है जिसके आगे झुका स्वंय विधाता

सातवार और सात बरत भी काम नही कुछ आते 

एक पतीव्रत भक्ती से दोनों भव सागर तर जाते

स्वर्ग बनाती है पृथ्वी को भारत की सच्ची नारी 

आँख खोल के देखो री बहना किसका पलड़ा भारी

एक पती को छोड़कर नारी दूजे से प्रीत लगाती है 

सात जन्म दुखों को भोगे मोक्ष कभी नही पाती है 

पती चरन में रहो री बहना यही है अरज हमारी

आँख खोल के देखो री बहना किसका पलड़ा भारी



100अब जप करले देह विरानी कछु दिन रज में मिल जाय

चले अकड़ के बोले लड़के काहे पै इतराय 

पानी को सो उठे बबूला हवा चले उड़ जाय 

अब जप करले देह विरानी कछु दिन रज में मिल जाय

ऊँचे नीचे महल चिनावे गहरी नीव खुदाय 

पंछी कौ सो रेन बसेरा भोर होत उड़ जाय 

अब जप करले देह विरानी कछु दिन रज में मिल जाय

पाप कपट कर माया जोड़ी बड़ो रहो गरूआय 

सभी छोड़ कर चला मुसाफिर संग न चोला जाय 

अब जप करले देह विरानी कछु दिन रज में मिल जाय

न कुछ लेकर आया बन्दे न कुछ लेकर जाय 

मुट्ठी बाँधे आया बन्दे हाथ पसारे जाय 

अब जप करले देह विरानी कछु दिन रज में मिल जाय



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