90तुम तो जाय बसे मथुरा में गोकुल अब कब आओगे
मोर मुकुट पीताम्बर माला गल पहराओगे
जमुना तट पर ग्वालन के संग धेनु चराओगे
तुम तो जाय बसे मथुरा में गोकुल अब कब आओगे
मीठी धुन में श्याम मनोहर वेनु बजाओगे
वृन्दावन की कुंज गलिन में रास रचाओगे
तुम तो जाय बसे मथुरा में गोकुल अब कब आओगे
छीन छीन सखियन दधि माखन कब खाओगे
राधा प्यारी सोच करे मन फिर मिल जाओगे
तुम तो जाय बसे मथुरा में गोकुल अब कब आओगे
अखियाँ तरस रही दरशन को फिर मिल जाओगे
बह्नाानन्द हमारे मन की आस पुराओगे
तुम तो जाय बसे मथुरा में गोकुल अब कब आओगे
91तैने खूब रचा भगवान खिलौना माटी का
नैने दिये दरशन करने को श्रवण दिये सुन ज्ञान
तैने खूब रचा भगवान खिलौना माटी का
जीभ दई हरि गुन गाने को हाथ दिये कर दान
तैने खूब रचा भगवान खिलौना माटी का
पैर दिये तीरथ करने को तू अपना कर कल्याण
प्रीत पतंग करी दीपक संग तू कर अपना ध्यान
मेरी प्रीत बढ़े तुम्हारे संग ज्यो ज्यो बढ़ता चाँद
सुन्दर श्याम सहाय हमारे अब सुमिरो कृपानिधान
मन सा नाथ मनोरथ दाता इसे कोई न सका पहिचान
92ढूंढे से राम मिलत नाही मेरी लागी लगन छुटत नाही
लगन लागी मीरा बाई तुम बिन जहर पिवत नाही प्रभु
लगन लागी प्रहलाद भक्त को तुम बिन खंम्भ फटत नाही
प्रभु तुम बिन खम्भ फटत नाही
लगन लागी द्रोपदी को तुम बिन चीर बढ़त नाही
प्रभु तुम बिन लाज बचत नाही
लगन लागी राजा हरिचन्द्र को तुम बिन धर्म बचत नाही
लगन लगी नरसी मेहता की तुम बिन भात भरत नाही
प्रभु तुम बिन भात भरत नाही
लगन लगी शबरी भिलनी की तुम बिन भक्ति मिलत नाही
प्रभु तुम बिन बेर खबत नाही
प्रभु लगन लगी इस दासी की तुम बिन स्वर्ग मिलत नाही
प्रभु तुम बिन भक्ति मिलत नाही
93हे मेरे प्रेमी जनो एक प्रार्थना सुन लीजिये
आज इस नगरी से जाती सब कृपा अब कीजिये
इतने दिनो सत्संग का इतना लिया आनन्द है
पर इसे उर में बसालो तब ही परमानन्द है
मोह मुझसे छोड़ दो यह मोह ही अज्ञान है
मोह को त्यागे बिना हेाता नही कल्यान है
आपका श्रद्वा बड़ी है और सात्विक प्रेम है
प्रेम हो प्रभु के चरण मे ंतब सफल सब नेम है
श्याम सुन्दर की कृपा से आपका दर्शन हुआ
हरि कथा का लाभ पाकर धन्य जग जीवन हुआ
शीघ्र ही दर्शन करूँगी यदि ह्नदय में मान है
ह्नदय के भाव से बंॅंधता स्वंय भगवान है
84सालिगराम सुनो विनती मेरी यह वरदान दया कर पाँऊ
प्रात समय उठ मन्जन करके प्रेम साहित स्नान कराऊँ
चन्दन धूप दीप तुलसा दल तरह तरह के फूल चढ़ाऊँ
आप विराजो रतन सिहांसन घन्टा शंख मृदंग बजाऊँ
एक बूँद चरणामृत ले के कुटुम्ब सहित वैकुण्ठ पठाऊँ
जो कुछ भोग मिले प्रभु मोकू भोग लगा कर भोजन पाऊॅं
जो कुछ पाप कियो काया से परिकम्मा के साथ धटाऊँ
डर लागत मोहे भव सागर से जम के द्वार प्रभु के जाऊँ
माधो दास आस रघुवर की हरि दासन को दास कहाऊँ
95प्राणी तेरी काया न आवे कोई काम
याके मुख से उचारो हरी
राधे श्याम सीता राम राधे श्याम
याके मुख से उचारो हरी नाम
नर तन को पाके वनता गुमानी
चार दिन की तेरी जिन्दगानी
रघुपति चरनन में कोटिक प्रणाम
मुख से उचारो हरि का नाम
झूठे जगत के है सब नाते
स्वास्थ के वस प्रीति निभाते
भगवत भजन से हो मुक्ति धाम
मुख से उचारो हरी का नाम
96मेरी साड़ी को खीचे अधम लाज उसको न आये तो मैं क्या करूँ
खेच लाया दुशासन पकड़ केश है ला सभा में है मुझको खड़ा कर दिया
मेरे तन पर से साड़ी हटाने लगा नगन मुझको बनाये तो मैं क्या करूँ
बाबा भीष्म भी बैठे निहारे मुझे और गुरू द्रोण है वे कुछ कहते नहीं
जेठ मेरे यहाँ पर है कर्ण से बली सब नजर को झुकाये तो मैं क्या करूँ
बैठे पाँचो पती मेरे सब मौन है आज दुनिया में मेरा कोई भी नहीं
एक आस थी श्याम तुम्हारी मुझे आज तुमने भुलाया तो मेै क्या करूँ
नगन आई थी जग में ऐसे प्रभु जाऊ ऐसे ही दुनिया से प्रभु
हँसी होगी कन्हैया तुम्हारी प्रभु देर तुम हूँ लगाओ तो मै क्या करूँ
97राधा की छवि देख मचल गये साँवरिया
हँस मुसकाय प्रेम रस चाख्यो
दोऊ नैनन बिच ऐसे रखूँ
ज्यौं काजर की रेख पड़ेगी तोसे भावरिया
राधा की छवि देख मचल गये साँवरिया
तू गौरी वृषभान दुलारी
मैं कारो मेरी चितवन कारी
कारो ही मेरो भेष कि कारी मेरी कामरिया
राधा की छवि देख मचल गये साँवरिया
मैं राधा तेरे घर पर आँऊ
अॅंगना में बॉंसुरी बजाऊँ
नृत्य करूँ दिल खोल नाथ दऊ नागरिया
राधा की छवि देख मचल गये साँवरिया
अपनी सब सखियाँ बुलवाले
हिल मिलकर मोहे नाच नचाले
गढे प्रेम की मेख ऊख रखे पावरिया
राधा की छवि देख मचल गये साँवरिया
बरसाने की राधा प्यारी वृन्दावन के बाँके बिहारी
सुख सागर में खेल तू ग्वालिन गामरिया
राधा की छवि देख मचल गये साँवरिया
98
भक्तों की पुकार है दुखी ये संसार है
आजा मेरे साँवले तेरा इन्तजार है
धर्म कर्म को भूली दुनिया करती है मन मानी है
गीता का वह सार न जाने कितनी बड़ी नादानी है
जीवन आसार है तू ही एक सार है
आजा मेरे साँवले तेरा इन्तजार है
डोल रही है जीवन नैया मिलता नही किनारा है
दुख की घोर घटाये छाई तेरा एक सहारा है
नैया मझधार है तू ही खेवन हार है
आजा मेरे साँवले तेरा इन्तजार है
दर दर फिरते चक्कर खाते कोई न सुने सुनावे है
रो रो फिर दुनियाँ वालों को तेरी याद सताये है
सम्बन्धी बेकार है तू ही सरकार है
आजा मेरे साँवले तेरा इन्तजार है
मारो चाहे तारो प्रभुजी नैया भँवर में डोले है
यह दासी तो व्याकुल होकर प्रेम ह्नदय में बोले है
तेरा ही सहारा है नैन अश्रुधार है
आजा मेरे साँवले तेरा इन्तजार है
99एक पलड़े मे पती विराजे दूजे में गिरधारी
आँख खोल के देखो री बहना किसका पलड़ा भारी
पती से ज्यादा सब देवो में देव नही कोई दूजा
पति चरन को छोड़ चली तुम करने किसकी पूजा
पति का घर है सती का मन्दिर सुनो सुहागिन नारी
आँख खोल के देखो री बहना किसका पलड़ा भारी
महाकाल भी तोड़ सके न पती सती का नाता
एक सती है जिसके आगे झुका स्वंय विधाता
सातवार और सात बरत भी काम नही कुछ आते
एक पतीव्रत भक्ती से दोनों भव सागर तर जाते
स्वर्ग बनाती है पृथ्वी को भारत की सच्ची नारी
आँख खोल के देखो री बहना किसका पलड़ा भारी
एक पती को छोड़कर नारी दूजे से प्रीत लगाती है
सात जन्म दुखों को भोगे मोक्ष कभी नही पाती है
पती चरन में रहो री बहना यही है अरज हमारी
आँख खोल के देखो री बहना किसका पलड़ा भारी
100अब जप करले देह विरानी कछु दिन रज में मिल जाय
चले अकड़ के बोले लड़के काहे पै इतराय
पानी को सो उठे बबूला हवा चले उड़ जाय
अब जप करले देह विरानी कछु दिन रज में मिल जाय
ऊँचे नीचे महल चिनावे गहरी नीव खुदाय
पंछी कौ सो रेन बसेरा भोर होत उड़ जाय
अब जप करले देह विरानी कछु दिन रज में मिल जाय
पाप कपट कर माया जोड़ी बड़ो रहो गरूआय
सभी छोड़ कर चला मुसाफिर संग न चोला जाय
अब जप करले देह विरानी कछु दिन रज में मिल जाय
न कुछ लेकर आया बन्दे न कुछ लेकर जाय
मुट्ठी बाँधे आया बन्दे हाथ पसारे जाय
अब जप करले देह विरानी कछु दिन रज में मिल जाय
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