Thursday, 23 January 2025

brij ke bhajan 20

  ब्रजराज कहीं रघुराज कहीं नित रूप अनूप दिखावत हो

कभी तीर कमान है हाथों में नैनन के सेन दिखावत हो 

ये है विश्व तुम्हारे हाथों में फिर नाथ बंधे क्यों उरवल से 

कभी फूल से कोमल आप बने कभी नख पर गिरवर धारे हो

वही आपका दरशन पाये है जिसे ज्ञान के नैन दिये तुमने

है वास तुम्हारा घट घट में मन कुंज में रास रचावत हो 

रस राज निराले हो नटखट संसार को नाच नचावत हो


                121 इतना तो करना भगवन् जब प्रान तन से निकले

गोविन्द नाम भजकर जब प्राण तन से निकले

श्री गंगा जी का तट हो यमुना का वंशी बट़ हो 

वह सॉंवला निकट हो जब प्राणा तन से निकले 

इतना तो करना ..........................

सिर सेाहना मुकुट हो मुखड़े पर काली लट हो

यह ध्यान मेरे घट हो जब प्राण तन से निकले

वह सावँला खड़ा हो वंशी का सुर भरा हो

तिरछा चरण धरा हो जब प्राण तन से निकले

जब तन मंे प्राण आये कोई रोग ना सताये

नहि त्रास यम दिखाये जब प्राण तन से निकले

श्री वृन्दावन का थल हो विष्णु चरण का जल हो

मेरे मुख में तुलसीदल हो जब प्राण तन सेनिकले

निकले ये प्राण सुख से प्रभु नाम निकले मुख से 

बच जाये दास दुख से जब प्राण तन से निकले

यह नैकसी अरज है मानो तो क्या हरज है 

कुछ तेरा भी फरज है जब प्राण तनसे निकले

उस वक्त जल्दी आना न हमकोे भूल जाना 

नूपुर की धुन सुनाना जब प्राण तन से निकले 


                      122    माखन की चोरी छोड़ कन्हैया मैं समझाऊॅं तोय

नौलख धेनु नन्द बाबा के नित नयो माखन होय

बड़ो नाम है तेरे बाबा को हँसी हमारी होय

बरसाने तेरी भई सगाई नित नई चरचा होय

बड़े घरन की राजदुलारी नाम धरेंगी तोय

मोसे कहे गऊन के पाछे रहो खिरक में सोय

                            काऊ ग्वालिन से जाय बतरायो तेने दई कदरिया                                                        खोय

यह चोरी नही छोड़ूं मइया होनी होय सो होय 

सूर श्याम ग्वालिन के आगे दिये नैन भर रोय 

123

सांवरे  घनश्याम तुम तो प्रेम के अवतार हो

फँस रही हूँ झन्झटो में तुम ही खेवनहार हो

चल रही आंधी भयानक भंवर में नइया पड़ी

थाम लो पतवार मोहन अब तो बेड़ा पार हो

हाथ में बंशी मुकुट सर पर गले में हार हो

आपका दर्शन मुझे इस छवि से बारम्बार हो

नग्न पद गज के रूदन पर दौड़ते आये प्रभु

देखना निष्फल न मेरे ऑंसुओं की धार हो

है यही अन्तिम विनय तुम से मेरी नंदलाल है

मै तुम्हारा दास हू तुम मेरे सरताज हो।


124

जसुदा तेरे ही लाला ने मोरी दई है मटुकिया फोर 

दधि की मटुकी धरी शीश पर मैं आई बड़ी भोर 

वृन्दावन की कुंज गलिन में मिल गयो नन्द किशोर 

दधि मेरो खायो मटुकिया फोरी ऐसो भयो है कठोर 

दोऊ हाथन से बइँया पकरि के डाली हूँ झकझोर 

इत जाँऊ तो जमुना गहरी लहरें लेत हिलोर 

उत जाँऊ तो सखा संग के घेर रहे चहुं ओर

अब न बसे या ब्रज में मइया लीन्हो है मुख मोर 

छोटी सी कहुँ अन्त नगरिया लेगें कहु और ठोर 

प्रीत करो या नन्द नंदन जैसे चन्द्र चकोर

जैसे चन्द्र चकोर सखीरी वैसे ही नन्द किशोर 


125मोहे देजा दधि को दान गुजरिया बरसाने की 

तू रोज यहाँ पर आवे तू नजर बचा के जाये 

अरे मैने आज लई पहचान गुजरिया .....

तू कौन गाँव से आई और कौन गाँव को ब्याही

तेरे कौन भये भरतार गुजरिया 

मैं बरसाने से आई और नन्द गाँव को ब्याही 

मेरे श्याम भये भरतार गुजरिया.....

बाने मटकी वही उतारी मोहन को दहि खवाई 

अरे मेरो राधा प्यारी नाम गुजरिया .......

126

यमुना किनारे मेरो गाँव साँवरे आ जइयो

यमुना किनारे मेरी ऊँची हवेली मैं ब्रज की गोपिका नवेली

राधा रंगीली मेरो नाम कि वंशी बजा जइयो यमुना किनारे ..........................................

मल मल के स्नान कराऊँ घिस घिस चन्दन तिलक लगाऊॅं 

पूजा करूँगी सुबह शाम कि माखन खाय जइयो यमुना किनारे ............................

खस खस को बंगला बनवाऊं चुन चुन कलियन सेज बिछाऊं

धीरे दाबू तेरे पाँव प्रेम रस पगा जइयो यमुना किनारे ........................

देखत रहूँगी बाट़ तुम्हारी जल्दी अइयो श्याम मुरारी 

झाँकी करेगी ब्रजवाल के हँस मुसकाय जइयो यमुना किनारे ....................



127

माई ये मनमोहन के साथ ग्वालन के गये दधि खाने को 

घुसे एक गुजर के घर में ग्वाल सहित गोपाल 

गोरस की छींके पर मटकी लटकी देख विशाल  

लगे सोचन राह जतन की गुणी हर फन के गये दधि खाने को 

नाँद पे खड़ा किया ग्वाले को ता कांधे चढ़ श्याम 

फिर भी ना पाया मटकी को तो किया अनोखा काम 

मारा है लोटा हन के चतुर बचपन के गये दधि खाने को 

पेंदा फोड़ दिया मटकी का बही दूध की धार 

वारी वारी लगा के चुल्लू पीवे बाल गुपाल

पूरे परन हुये मन के ग्वाल बालन के गये दधि खाने को 

ता विच गोरस बेच के गुजरी आई अपने धाम 

ग्वाल बाल छिप गये तुरत और पकड़ गये घनश्याम 

मन में बसे है गोपिन के नाथ भक्तन के गये दधि खाने 


128मइया जब मैं घर से चलंू बुलावे ग्वालिन घर में होय 

अचक हाथ को झालो दे के मीठी बोली देवर कह के 

निधरक है जाय सॉकर देके झपट उतारे काछनी मुरली लेत छिनाय 

मैं बालक यह धीगरी मेरो बस न चलाय

 आपहु नाचे मेाहि नचावे कहा बताऊं तोय 

मइया जब ..................................

मैं भोरो यह चतुर गुजरिया 

एक दिन ले गई पकड़ उंगलिया 

 टूटी सी जाकी राम कुठरिया

 धरी मटुकिया मो निकट गोरस की तत्काल  

 माखन दूंगी घनों सौ जो चेंटी बीनो लाल 

मैने या की चेंटी बीनी यह निधरक रही सोय मइया जब ..............................

एक दिना पनघट पर मइया  मैं बैठो एक द्रुम की छैया 

ढिंग बैठो बलदाऊ भइया 

यह ले पहुँची गगरिया सो रपटो जाको पाय 

मेरे गोहन पड़ गई कि धक्का दीनो श्याम 

गुलचा दे दे लाल गाल किये 

मैं ठाड़ो रहो रोय मइया जब ...............................

हमें दिखावत हो ठकुराई 

नन्द बाबा की गाय चराई 

घर ही में बढि रहे कन्हाई 

तनिक छाछ पर नाच दिखावो कहा सिखावो मोय मइया जब .....................................

भक्तन हित यह देह हमारी

 तू कहा जाने जाति की ग्वारी 

बन्शी तीन लोक से न्यारी 

श्रवण सुनत सुर नर मुनि मोहे जल थल नाद समाय 

मइया जब ..........................


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