ब्रजराज कहीं रघुराज कहीं नित रूप अनूप दिखावत हो
कभी तीर कमान है हाथों में नैनन के सेन दिखावत हो
ये है विश्व तुम्हारे हाथों में फिर नाथ बंधे क्यों उरवल से
कभी फूल से कोमल आप बने कभी नख पर गिरवर धारे हो
वही आपका दरशन पाये है जिसे ज्ञान के नैन दिये तुमने
है वास तुम्हारा घट घट में मन कुंज में रास रचावत हो
रस राज निराले हो नटखट संसार को नाच नचावत हो
121 इतना तो करना भगवन् जब प्रान तन से निकले
गोविन्द नाम भजकर जब प्राण तन से निकले
श्री गंगा जी का तट हो यमुना का वंशी बट़ हो
वह सॉंवला निकट हो जब प्राणा तन से निकले
इतना तो करना ..........................
सिर सेाहना मुकुट हो मुखड़े पर काली लट हो
यह ध्यान मेरे घट हो जब प्राण तन से निकले
वह सावँला खड़ा हो वंशी का सुर भरा हो
तिरछा चरण धरा हो जब प्राण तन से निकले
जब तन मंे प्राण आये कोई रोग ना सताये
नहि त्रास यम दिखाये जब प्राण तन से निकले
श्री वृन्दावन का थल हो विष्णु चरण का जल हो
मेरे मुख में तुलसीदल हो जब प्राण तन सेनिकले
निकले ये प्राण सुख से प्रभु नाम निकले मुख से
बच जाये दास दुख से जब प्राण तन से निकले
यह नैकसी अरज है मानो तो क्या हरज है
कुछ तेरा भी फरज है जब प्राण तनसे निकले
उस वक्त जल्दी आना न हमकोे भूल जाना
नूपुर की धुन सुनाना जब प्राण तन से निकले
122 माखन की चोरी छोड़ कन्हैया मैं समझाऊॅं तोय
नौलख धेनु नन्द बाबा के नित नयो माखन होय
बड़ो नाम है तेरे बाबा को हँसी हमारी होय
बरसाने तेरी भई सगाई नित नई चरचा होय
बड़े घरन की राजदुलारी नाम धरेंगी तोय
मोसे कहे गऊन के पाछे रहो खिरक में सोय
काऊ ग्वालिन से जाय बतरायो तेने दई कदरिया खोय
यह चोरी नही छोड़ूं मइया होनी होय सो होय
सूर श्याम ग्वालिन के आगे दिये नैन भर रोय
123
सांवरे घनश्याम तुम तो प्रेम के अवतार हो
फँस रही हूँ झन्झटो में तुम ही खेवनहार हो
चल रही आंधी भयानक भंवर में नइया पड़ी
थाम लो पतवार मोहन अब तो बेड़ा पार हो
हाथ में बंशी मुकुट सर पर गले में हार हो
आपका दर्शन मुझे इस छवि से बारम्बार हो
नग्न पद गज के रूदन पर दौड़ते आये प्रभु
देखना निष्फल न मेरे ऑंसुओं की धार हो
है यही अन्तिम विनय तुम से मेरी नंदलाल है
मै तुम्हारा दास हू तुम मेरे सरताज हो।
124
जसुदा तेरे ही लाला ने मोरी दई है मटुकिया फोर
दधि की मटुकी धरी शीश पर मैं आई बड़ी भोर
वृन्दावन की कुंज गलिन में मिल गयो नन्द किशोर
दधि मेरो खायो मटुकिया फोरी ऐसो भयो है कठोर
दोऊ हाथन से बइँया पकरि के डाली हूँ झकझोर
इत जाँऊ तो जमुना गहरी लहरें लेत हिलोर
उत जाँऊ तो सखा संग के घेर रहे चहुं ओर
अब न बसे या ब्रज में मइया लीन्हो है मुख मोर
छोटी सी कहुँ अन्त नगरिया लेगें कहु और ठोर
प्रीत करो या नन्द नंदन जैसे चन्द्र चकोर
जैसे चन्द्र चकोर सखीरी वैसे ही नन्द किशोर
125मोहे देजा दधि को दान गुजरिया बरसाने की
तू रोज यहाँ पर आवे तू नजर बचा के जाये
अरे मैने आज लई पहचान गुजरिया .....
तू कौन गाँव से आई और कौन गाँव को ब्याही
तेरे कौन भये भरतार गुजरिया
मैं बरसाने से आई और नन्द गाँव को ब्याही
मेरे श्याम भये भरतार गुजरिया.....
बाने मटकी वही उतारी मोहन को दहि खवाई
अरे मेरो राधा प्यारी नाम गुजरिया .......
126
यमुना किनारे मेरो गाँव साँवरे आ जइयो
यमुना किनारे मेरी ऊँची हवेली मैं ब्रज की गोपिका नवेली
राधा रंगीली मेरो नाम कि वंशी बजा जइयो यमुना किनारे ..........................................
मल मल के स्नान कराऊँ घिस घिस चन्दन तिलक लगाऊॅं
पूजा करूँगी सुबह शाम कि माखन खाय जइयो यमुना किनारे ............................
खस खस को बंगला बनवाऊं चुन चुन कलियन सेज बिछाऊं
धीरे दाबू तेरे पाँव प्रेम रस पगा जइयो यमुना किनारे ........................
देखत रहूँगी बाट़ तुम्हारी जल्दी अइयो श्याम मुरारी
झाँकी करेगी ब्रजवाल के हँस मुसकाय जइयो यमुना किनारे ....................
127
माई ये मनमोहन के साथ ग्वालन के गये दधि खाने को
घुसे एक गुजर के घर में ग्वाल सहित गोपाल
गोरस की छींके पर मटकी लटकी देख विशाल
लगे सोचन राह जतन की गुणी हर फन के गये दधि खाने को
नाँद पे खड़ा किया ग्वाले को ता कांधे चढ़ श्याम
फिर भी ना पाया मटकी को तो किया अनोखा काम
मारा है लोटा हन के चतुर बचपन के गये दधि खाने को
पेंदा फोड़ दिया मटकी का बही दूध की धार
वारी वारी लगा के चुल्लू पीवे बाल गुपाल
पूरे परन हुये मन के ग्वाल बालन के गये दधि खाने को
ता विच गोरस बेच के गुजरी आई अपने धाम
ग्वाल बाल छिप गये तुरत और पकड़ गये घनश्याम
मन में बसे है गोपिन के नाथ भक्तन के गये दधि खाने
128मइया जब मैं घर से चलंू बुलावे ग्वालिन घर में होय
अचक हाथ को झालो दे के मीठी बोली देवर कह के
निधरक है जाय सॉकर देके झपट उतारे काछनी मुरली लेत छिनाय
मैं बालक यह धीगरी मेरो बस न चलाय
आपहु नाचे मेाहि नचावे कहा बताऊं तोय
मइया जब ..................................
मैं भोरो यह चतुर गुजरिया
एक दिन ले गई पकड़ उंगलिया
टूटी सी जाकी राम कुठरिया
धरी मटुकिया मो निकट गोरस की तत्काल
माखन दूंगी घनों सौ जो चेंटी बीनो लाल
मैने या की चेंटी बीनी यह निधरक रही सोय मइया जब ..............................
एक दिना पनघट पर मइया मैं बैठो एक द्रुम की छैया
ढिंग बैठो बलदाऊ भइया
यह ले पहुँची गगरिया सो रपटो जाको पाय
मेरे गोहन पड़ गई कि धक्का दीनो श्याम
गुलचा दे दे लाल गाल किये
मैं ठाड़ो रहो रोय मइया जब ...............................
हमें दिखावत हो ठकुराई
नन्द बाबा की गाय चराई
घर ही में बढि रहे कन्हाई
तनिक छाछ पर नाच दिखावो कहा सिखावो मोय मइया जब .....................................
भक्तन हित यह देह हमारी
तू कहा जाने जाति की ग्वारी
बन्शी तीन लोक से न्यारी
श्रवण सुनत सुर नर मुनि मोहे जल थल नाद समाय
मइया जब ..........................
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