Friday, 3 January 2025

Bhajan 12

      तैने नाम जपन क्यों छोड़ दिया 

                        तैने राम भजन क्यों छोड़ दिया 

तैने क्रोध न छोड़ा झूठ न छोड़ा 

                        सत्य वचन क्यों छोड़ दिया 

तैने नाम जपन .............................................

झूठे जग में दिल ललचा कर 

                        असल वतन क्यों छोड़ दिया 

तैने नाम .........................................

कौड़ी को तेा तूने खूब संभाला 

                        असल रतन क्यों छोड़ दिया 

जिस सुमरन से अति सुख पावे 

                        वो सुमरन क्यों तैने छोड़ दिया

खालिस एक भगवान भरोसे 

                        तन मन धन क्यों न छोड़ा 

तेने नाम जपन ...........................................................

                  

                 43

                   वन वन डोले लक्ष्मण बोले मेरे भ्राता करो विचार रे

अब कौन चुरायी मात सिया

रो रो कर यू राम पुकारे कहाँ गई जनक दुलारी

बेलि विचारे तुम्ही कहो कहाँ गई जनक दुलारी

लता से पूछे पेड़ से पूछे रो रो करे पुकार रे

अब कौन चुराई मात सिया

हाय हाय चिल्लाते देानों फेरि अगाड़ी आये

आगे चलकर मार्ग में देखे पड़े जटायु पाये

मुख में राम कटा चाम खॅंू की चले फुहार रे

अब कौन चुराई मात सिया

बोले लक्ष्मण सुनो जटायु किसने तुम्हें सताये

वाणी सुनकर जब लक्ष्मण के नैन नीर भर आये

वो दसकन्धर रथ के अन्दर ले गया सीय चुराय रे 

अब कौन चुराई मात सिया 


44

मथुरा न सही कुजंन ही सही रहो मुरली बजाते कहीं न कहीं

कुंजन न सही मधुवन ही सही रहो रास रचाते कहीं न कहीं

चाहे लाख छिपो प्रभु भक्तन से दीदार न दो तरसाओ न तुम 

प्रेमी है जो तेरे दर्शन के चलो पार लगाते कहीं न कहीं

उस वक्त उठाया था गिरवर इस वक्त उठा भी गिरता धरम

मन्दिर न सही इस दिल में सही रहो झलक दिखाते कहीं न कहीं

अब वक्त मुसीबत का है प्रभु दम आखिर आया लवो पर है

नहीं तेरे सिवा कोई और मेरा रहो दुख से बचाते कहीं न कहीं

भक्तों पर विपदा भारी है हर तरफ से आहें जारी है

अब नाथ तेरी इन्तजारी है रहो चाहे निभाते कहीं न कहीं 

45

छोड़कर श्याम ब्रज से है मथुरा गये 

खबर मेरी न लीन्हों तो मैं क्या करूँ

मैं तो उनके विरह में वियोगन बनी 

वह हमको भुलाये तो मैं क्या करूॅं 

मुझसे वादा किया चार दिन का प्रभु

 बीते छः मास मथुरा से आये नहीं

में तो लिख लिख कर पाती पढ़ाती रही 

उनका उत्तर न आये तो मैं क्या करूँ

चूक हमसे भई क्या गये तो भूल 

जो आकर उतना तो हमको बता दे कोई 

रात दिन नाम की मैं तो माला जपूँ 

अब न दामन दिखाये तो क्या कँरू

रो रो ब्रज की ये सखियाँ तड़पती है यूॅं

 जैसे जल के बिना मीन व्याकुल रहे

प्रेम हम गोपियों का वह तोड़कर 

प्रीत कुब्जा से कीन्ही तो मैं क्या करूॅं।


46

कोई कहियो रे हरि आवन की श्याम मिलावन की

 कोई कहियो रे 

आप न आये पाती न भेजी बान पड़ी ललचावन की 

कोई कहियो रे ...................

यह दोऊ नैन कहा नही माने नदिया बहे जैसे सावन की 

कोई कहियो रे ............................

कहा करूॅं कहु कहा नही जाय पंख नही उड ़जावन को 

कोई कहियो रे .......................

भगुवा वेश कियो गोपिन ने अंग भमूत रमावन की 

कोई कहियो रे ..............

चन्द्र सखी आशा में दासी बैठी है दरशन पावन की 

कोई कहियो रे ................................

                          


                


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