25 मई , कोई बदलाव नहीं। मेरी दशा कुछ अजीब सी हैं । शाम आते ही चित्त अशांत हेा जाता है ।
रात आते आते किसी अघटित का भय हावी हो जाता है। मैं जल्दी से खाना खाता हूँ फिर पढ़ने की कोशिश करता हूँ लेंकिन शब्द समझ ही नही पाता । अक्षरों को पहचान नहीं पाता ,तब मैं अपने ड्राइंगरूम में टहलने लगता हूँ एक भय का दबाब बना रहता है ,मुझे नींद का डर ,अपने बिस्तर का डर सताने लगता है।
दस बजे के करीब अपने कमरे में जाता हूँ । जैसे ही कमरे का दो ताले का ताला खोलता हूँ मै डर जाता हूँ । किससे ? इस समय तो किसी से नहीं डर रहा हूँ । मैं अपनी दराजें देखता हूँ ,पलंग के नीचे झांकता हूँ । मैं सुनता हूँ ,किसे ? कितना आश्चर्यजनक है ,एक केवल एक असहजता की भावना मेरे रक्त में दबाब बढ़ा देती है ।
संभवतः स्नायुतंत्र गड़बड़ा जाता है हल्की सी जकड़न हमारे जीवन की यात्रिकता में रूकावट है। खुशमिजाज व्यक्ति को उदास कर देती है। साहसी को कायर बना देती है। तब मैं बिस्तर पर जाता हूँ मैं नींद का इंतजार करता हूँ जैसे फांसी की सजा पाया व्यक्ति जल्लाद का इंतजार करता है।
मैं उसका डरते हुए इंतजार करता हूँ । मेरे दिल की धड़कन और टांगे कांपने लगती हैं। मेरा शरीर लिहाफ के अंदर कांपने लगता है । मैं नींद के आगोश में चला जाता हूँ मानों कोई धीरे धीरे पानी में डूब रहा हो, मैं उसका आना महसूस नहीं करता जैसे पहले करता था यह विश्वासधाती नींद मेरे निकट खड़ी मुझे देखती है। मुझे सिर से पकड़कर मेरी आंखे बंद कर देती है और मेरे आस्तित्त्व को मटा देती है।
मैं नींद लेता हूँ लंबे समय तक। संभवतः दो और तीन घंटे । मुझे लगता है ,मैं जानता हूँ ,मुझे महसूस होता है कोई मेरे निकट आ रहा है और मुझे देख रहा है। मुझे छू रहा है । वह मेरे बिस्तर पर आ रहा है ।
मेरी छाती पर झुक रहा है । मेरी गर्दन अपने हाथों में ले रहा है और दबा रहा है ,अपनी पूरी शक्ति से दबा रहा है जिससे मेरा दम घुट जाय।
मैं संधर्ष करता हूँ , मुझमें अशक्तता आती जा रही है । मैं सपने में लकवाग्रस्त हो रहा हूँ । मैं चिल्लाने की कोशिश करता हूँ लेकिन आवाज नहीं निकलती । मैं हिलना चाहता हूँ लेकिन हिल नहीं पाता । मैं पूरी कोशिश करता हूँ जोर से सांस लेता हूँ जिससे जो मुझे दबा रहा है ,मेरा दम घोट रहा है उसको उठाकर फेंक सकूँ ,लेकिन नहीं ,मैं नहीं कर पाता।
और तब मैं एकाएक जाग जाता हूँ , कांपता हुआ पसीने से भीगा हुआ । मैं मोमबत्ती जलाता हूँ ,लेकिन देखता हूँ मैं अकेला हूँ । इस चरम अनुभव के बाद ,जो हर रात होता है मैं लंबी तान कर सो जाता हूँ और शांति से सुबह तक सोता रहता हूँ।
2 जून, मेरी दशा बिगड़ रही है क्या होता है मेरे साथ ? लाल दवा कुछ नहीं कर पाती नहाने से भी कुछ नहीं होता । कभी कभी अपने को थका लेता हूँ और बहुत थकने के बाद भी जंगलो की ओर घूमने निकल जाता हूँ ।
मैं सोचता हूँ कि ताजा रोशनी मंद शीतल ,जड़ी बूटियों की खुशबू लिये हवा मेरी नसों में नया खून भर देगी मेरे दिल को नई ताकत मिलेगी। मैं चैड़ी सड़क पर मुड़ जाता हूँ फिर ‘ला बोले ’की और मुड़ जाता हूँ एक पतले रास्ते पर जिसके दोनों और लंबे ऊँचे वृक्ष खड़े हैं । जिन्होंने मेरे और आकाश के बीच में एक धनी स्याह छत खड़ी कर दी है।
सहसा कंपकमी भर गई , ठंडी कंपकपी, नहीं एक अजनबी चिंता की कंपकपी । मैंने कदम बढ़ा दिये जंगल में अकेला हूँ । यह एहसास आते ही डर गया । एकाएक मुझे लगा मेरे पीछे कोई है वह मेरे कदम से कदम मिलाकर चल रहा है । बिल्कुल निकट से इतने पास कि मुझे छू सकें।
मैं एकदम पलटा लेकिन मैं अकेला था। मुझे कुछ नहीं दिखाई दिया सिर्फ खाली दोंनों तरफ खड़े बड़े पेड़ों से घिरा चैड़ा रास्ता । खौफनाक एकांत रास्ता लंबा लग रहा था । सामने भी एकदम लम्बा रास्ता जो कहीं दूर खो गया था खौफनाक।
मैंने अपनी आंख बंद कर ली और एक एड़ी से जल्दी से मुड़ गया फिर मैंने आंखें पूरी चौड़ी खोल ली। वृक्ष मेरे चारों ओर नाचने लगे, जमीन आह भरने लगी । मैं वही बैठ गया तब मुझे नहीं मालूम मैं वापस कब कैसे आया। अद्भुत विचार पता नहीं कैसे पहूँच गया । मैं सीधा चला फिर उल्टा और जंगल के बीच में पहुंच गया।
होरला: भाग 3
होरला: भाग 3
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