हर वाक्य के पीछे उस वाक्य की ध्वनि छिपी होती है, एक कार्यक्रम में अमिताभ बच्चन प्रतिभागी के मित्र से कहते है कि कुमार एक प्रश्न पर अटक गये हैं। मित्र का जबाब ‘अच्छी बात है’ अर्थात ध्वनि निकलती है कि कितनी अच्छी बात है कि वह अटक गया। किसी हालत में जीतना नहीं चाहिये। एक विज्ञापन आता है ‘कर कैसे बचायें ’ अर्थात् सरकार को चूना कैसे लगायें ?’ समाचार होता है बिल्डिग गिरी चार मृत सात गंभीर अर्थात् सात मरने वाले हैं ।
रोज सुबह सुबह एक आवाज के साथ मेरी आंख खुलती हैं, वह है ‘रामू.. मेरी चाय बना दे। अब मैं कल्पना में लाख कोशिश करती हूँ कि रामू मेरी सासूजी की चाय बनायेगा तो वह कैसे बनायेगा ? कितना बड़ा भगोना चाहियेगा और कितनी बड़ी चलनी फिर क्या बनेगा उफ कल्पना से भी हंसी आ जाती है साथ ही सिहरन भी। पतिदेव उठेंगे उठते ही फरमाइश होती है दाढ़ी का पानी लाना’ अब दाढ़ी में से पानी कैसे निकलेगा ? बढ़ी हुई दाढ़ी हो तो खींच कर निचोड़कर कुछ कोशिश की जा सकती है।
सब दुनिया में बकरी गाय-भैंस, भेड़ दूध देती है पर हमारे घर में नेकराम (दूधवाला दूधवाली भी नहीं जिसकी अपनी गायं-भैंस हैं,) का दूध आता है, कल्पना कीजिये जब नेकराम का दूध दुहा जाता होगा। आटा पिसाया जाता है, कभी गेहूँ नहीं पिसते, आटा जब पिसा हुहा है ही तो क्यों उसे पिसाते हो ?
कपड़ो की छटाई के समय सास जी आवाज लगायेगी, बहू देखना यह पैंट तुम्हारी है.. अरे... बाप रे... आप बचपन से आज तक पैंन्ट नहीं पहनी वो तो हमारे देखते देखते अब लड़कियाँ पैन्ट पहनने लगीं है और पैन्ट पहनकर जिस दिन खड़ी हो जाऊँगी मेरे पुरखे तार दिये जायेंगे, पर तब भी पैन्ट मेरी है यहाँ तक कि चड्ढी बनियान तक मेरी बताई जाती है। धोबी आयेगा कहेगा। बहू जी आपका पाजामा छोटी बहू जी के कपड़ों में चला गया है।
आफिस में जाइये चपरासी कहेगा, ‘साहब मेज पर नही हैं’ ,अब साहब मेज पर बैठते हैं या कुर्सी पर यह वही जानें ,फाइलें कुर्सी पर रखते होगें।’
दुकान पर जाइये ग्राहक चिल्लाते मिलेंगे ,‘भाई मेरे को पहले दे दो।’ अरे भाई तुम्हें कैसे दे दें, भिखारी भी मना कर देगा, आज कल सबसे सस्ता आदमी हीै है टके में दो बिकते हैं, अनाथालय वाले भी कहेंगे बाबा.. कुछ खर्चा पानी दे जाओं ये आदमी ले जाओ। बेकारी के जमाने में भी नौकरी तो किसी से होती नहीं है
परन्तु कहतेे सुने जायेंगे ,‘मेरे को कहीं लगा दो।’ अब तुम कोई तस्वीर तो हो नहीं जो तुम्हें मढ़वा कर टांग दिया जाये। हां किसी विदेशी के आगे गिड़गिड़ाओगे तो वह अवश्य भारत की असली तस्वीर कह कर किसी तमाशे में खड़ा कर देगा।
सड़क पर जाइये पीछे आते स्कूटर-गाड़ी वाले कहेंगे ,‘हाथ दो, हाथ दो,’ न देने पर गुस्सा करेंगे कि हाथ क्यों नहीं दिया। अब हाथ भी कोई ऐसी चीज है उठाया और दे दिया ,अगर दे भी देगें तो स्कूटर या गाड़ी तेरा बाप आकर चलायेगा, कोई हार्न मांगेगा ‘हार्न दो ’ कमाल है यहाँ तो गाड़ी चलती ही हॉर्न के सहारे है ।
दावत में जाइये पत्तल पर परोसने वाले कहेंगे ‘साहब लड्डू, साहब कचैड़ी, ‘ साहब सींकिया भी तुम्हें कचैड़ी लड्डू जैसे दिख रहे हैं, और गोल गुदाज भी। अगर आप खास मेहमान हैं, अधिक खातिर दिखानी है तो आवाज लगेगी ‘अरे... सुनो समधी साहब को गरम भट्टी पर से उतारकर लाओ।’ अब समधी साहब खाना खायें या अपनी जान बचायें।
चिठ्टियाँ डलवानी हों तो अधिकतर सुनाई देगा जा रहे हो तो रास्ते में डालने जाना। अब अगर रास्ते में ही में डलवानी थीं उन्हें इतनी मेहनत करके लिखने स्टाम्प लगाने की क्या आवश्यकता थी। अब ये बात पुरानी हो गई। भूले भटके ही सड़क पर डालते हैं।
सड़क पर खड़ें हो जाइये जुमले सुनने को मिलेंगे ‘माली मेरी पौध ले आया ?’ ईश्वर बचाये एक नंबर की चंडिका हैं ,उनकी पौध यानी उन जैसी पचीस पचास महिलायें तैयार हो गई तो मुहल्ले से क्या शहर से आतंकवादी डर कर भाग जायेंगे।
अगर ठेला लेकर आवाज लगाता अंगूर बेचने वाला निकल रहा है, चमन के अंगूर ले लो शहद से अंगूर... तो आवाजें उभरेगी ‘ओ चमन के अंगूर रुकना’ और चमन के अंगूर का सोंठ सा काला सूखा चेहरा देखकर चमन से घबराहट होने लगेगी। हाँ अब आगे का वार्तालाप सुनिये ‘क्या भाव दोगे’ बहिन जी बीस रुपया किलो, यानि बहन जी जितनी वजनी हैं उतनी ही मंहगी बैठेंगी।
बाबूजी का अंडा अगला भाग
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