Tuesday 12 January 2016

पूजा के दायरे

किसी पोखर के किनारे एक पीपल का विशाल वृक्ष था। गांव की स्त्रियां उस पोखर में आकर स्नान करतीं और पीपल के वृक्ष पर जल चढाकर उसकी पूजा करतीं, मनौती का धागा बांधकर उसकी परिक्रमा करतीं पीपल के वृक्ष का सिर दिन दिन गर्व ऊंचा होता गया वह अपनी लंबी-लंबी टहनियों को हर-हर कर लहराता और पोखर से कहता

मेरे कारण देख तेरे पास भी चहल-पहल रहती है। मेरी पूजा करती हैं , इसलिये तुझमें नहा लेती हैं नही  तो और कितने ही ऐसे गड्ढे हैं उनमें जाकर नहाती ? मैं हूं ही पूजा के योग्य। मेरे कारण तेरी पूछ हो जाती है।

पोखर कहता ,‘यह बात नहीं है भइया, आसपास इतना बडा गड्ढा और कोई नहीं है और स्वच्छ भी, इसलिये यहां गांव की औरतें आती है।

पीपल सारे पत्तों को बजा बजाकर हंस देता तो बेचारा पोखर मन मारकर चुप हो जाता।
एक बार तीन साल तक लगातार वर्षा नहीं हुई। 


पोखर में पहले साल छिछला पानी रह गया कोई-कोई स्त्री आती और जैसे-तैसे पानी मे नहाती पीपल पर जल चढाती और चली जाती दूसरे साल पोखर में बिलकुल पानी नहीं रहा वहां घास फूस उग आई। 


अब औरतें दूसरी तरफ कुऐं पर जाने लगीं, वहां से दोबारा पीपल के पास आने का मन नहीं करता था इसलिये अब कोई पूजा करने नहीं आतीं। अब धीरे-धीरे पीपल की जडें सूखने लगीं उन्हें पानी नहीं मिलता था। पहले तो पोखर से उसकी जडे पानी ले लेती थीं 

लेकिन अब वहां की जमीन भी कठोर हो गयी धीरे-धीरे उसका फैलना तो रूक ही गया अब बल्कि वह सूखा सा हो गया, उसे बहुत दुःख हुआ अब वह समझा कि सब एक दूसरे के कारण था एक अकेला अधूरा है। 


अब पीपल रोज इंद्र देवता से प्रार्थना करता कि वह बादल भेजे और पोखर फिर से आबाद हो जाये।


 अंत में वर्षा आई पोखर फिर से भर गया अपने मित्र को देख पीपल झूम उठा पोखर बोला, ‘अरे ! मित्र तुम्हें यह क्या हुआ तुम इतने दुबले कैसे हो गये।
  
‘‘मित्र तुम नहीं थे तो मैं कैसे रहता अब तम गये हो देखो कैसे जल्दी से मोटा हो जाऊँगा।

उसने देखा गांव की औरतें सावन के गीत गाती घड़ा लिये रही हैं तो वह झूम उठा। 

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