3 जून,
मैंने
भयानक
रात
व्यतीत
की
मुझे
कुछ
दिन
कहीं
यात्रा
पर
निकल
जाना
चाहिये।
2
जुलाई
,
मैं
वापस
आ
गया,
बिल्कुल
ठीक
बहुत
खुशनुमा
यात्रा
रही
।
मैं
मौन्ट
सैन्ट
मिशेल
गया
जहाँ
पहले
कभी
नहीं
गया
था।
कैसा
सुदर
दृश्य
था
?
जब
कोई
पहुंचता
है
जैसे
मैं
ढलते
हुए
दिन
के
समय
,कस्बा
पहाड़ी
पर
था
मैं
कस्बे
के
आखिरी
छोर
पर
सार्वजनिक
बगीचे
में
था
।
आश्चर्य
से
मेरे
मुँह
से
हल्की
सी
चीख
निकल
पड़ी
।
एक
असाधारण
बड़ी
घाटी
मेरे
सामने
थी
।
जहाँ
तक
मेरी
नजर
जा
सकती
थी
दो
पहाडि़यों
के
बीच
जो
छुटपुटे
में
खोती
जा
रही
थी
इस
लम्बी
पीली
घाटी
के
बीच
,साफ
सुनहरे
आसमान
में
एक
अलग
सी
पहाड़ी
।
उभरी
नुकीली
धुंधली
,बलुई
।
सूर्य
गायब
हो
गया
,अग्नि
की
लपट
सी
लिये
आकाश
में
उस
बलुई
पहाड़ी
का
आकार
उभरा
उसकी
चोटी
पर
एक
प्रतीक
चिह्न
था।
भोर
होते
ही
मैं
वहाँ
गया
सागर
में
भाटा
था,
मैंने
देखा
वह
चर्च था।
कई
घंटे
चलने
के
बाद
मैं
पहाडि़यों
की
अनगिनत
शृंखलाओं
के
पास
पहुंचा
।
विशाल
चर्च
खड़ा
था
।
गहरी
और
संकरी
सड़क
चढ़कर
विशाल
चर्च
तक
पहंचा
।
मैं
उस
अद्भुत
इमारत
के
अंदर
गया
जो
ईश्वर
के
लिये
पृथ्वी
पर
बनाई
गई
थी
इतनी
बड़ी
जितना
कस्बां । नीचे
नीचे
छोटे
लंबे
गलियारे बने
थे।
मै
इस
अद्भुत
नगीने
में
घुसा
।
नाजुक
लेस
की
तरह
लगने
वाला
यह
चर्च
मीनारों
से
ढका
था
पतले
घंटाघर
के
लिये
घुमावदार
सीढि़याँ
थी
जिसके
किनारे
किनारे
काल्पनिक
तरह
तरह
के
चेहरे
लगे
थे
राक्षसों
,के
जानवरों
के
दानवीय
फूलों
के
।
अलंकृत
मेहराब
थी।
जब
मैं
चोटी
पर
पहुंचा
तो
मैने
पादरी
से
पूछा
,जो
मेरे
साथ
था,
‘फादर आप
यहाँ
किस
हद
तक
खुश
है।?’
उन्होंने
जबाब
दिया
यह
बहुत
हवादार
है
मान्श्यार
! हम उठती
लहरों
को
देखते
हुए
बातें करते
रहे।
लहरें
बालू
पार
कर
रेंलिंग
से
टकरा
रही
थीं।
तब मुझे पादरी ने कहानियाँ ,सब पुरानी कहानी ,कहना चाहिये उसने आख्यान सुनाये केवल आख्यान।
उनमें
से
एक
मेरे
जेहन
में
बैठ
गया।
कस्बे
के
आदमियों
ने
जो
पहाड़ी
थे
कहा
कि
रात
में
कोई
भी
बालू
पर
आवाजें
सुन
सकता
है
।
तब
एक
ने
दो
बकरियों
को
मिमयातें
सुना।
एक
ने
जोर
से
कहा
।
एक
ने
कमजोर
आवाज
में।
‘असंभव
’
आदमियों
ने
कहा,
यह
केवल
समुद्री
पक्षियों
की
चीखें
हैं
जो
कभी
बकरी
के
मिमियाने
की
आवाज
लगती
है
तो
कभी
आदमियों
के
रोने
कलपने
की
।
लेकिन
स्वर्गीय
मछुआरों
ने
कसम
खा
कर
कहा
था
कि
उन्होंने
एक
एक
भेड़पालक
को
घूमते
देखा
था
उसका
सिर
उसके
लबादे
में
छिपा
था
।
उसके पीछे एक बड़ा सा बकरा आ रहा था जिसका चेहरा मनुष्य का था और उससे छोटी बकरी जिसका चेहरा औरत का था दोनों के लम्बे सफेद बाल थे । दोनों झगड़ते बदजुवानी में बात करते चल रहे थे और एकदम दोनों रुक गये और जोर-जोर से पूरी शक्ति से मिमियाने लगे।
उसके पीछे एक बड़ा सा बकरा आ रहा था जिसका चेहरा मनुष्य का था और उससे छोटी बकरी जिसका चेहरा औरत का था दोनों के लम्बे सफेद बाल थे । दोनों झगड़ते बदजुवानी में बात करते चल रहे थे और एकदम दोनों रुक गये और जोर-जोर से पूरी शक्ति से मिमियाने लगे।
‘आप इस पर विश्वास करते हैं? ’
मैंने पादरी से पूछा। ‘मैं नहीं जानता’, वह बोलता रहा ,‘अगर धरती पर अन्य जीव भी हमारे समानान्तर हैं यह क्यों है कि हम अभी तक नहीं जान पाये, क्यों नहीं हमने उन्हें देखा? मैंने कभी नहीं देखा, ’ वह बोल रहा था ‘क्या हमने सौ हजारवे का एक भी हिस्सा कभी महसूस किया ,यहां देखो, हवा प्रकृति में सबसे शक्तिशाली है । वह आदमी को गिरा देती है बड़ी बड़ी इमारतें धराशायी कर देती है
पेड़ों को जड़ से उखाड़ देती है । हवा जो जान ले लेती है जो सीटी बजाती है जो आह भरती है जो गरजती है क्या तुमने उसे कभी देखा हैं? कभी उसे देख सकते हो ? लेकिन उसका अस्तित्व है। मैं चुप रहा एक साधारण सा सच था वह व्यक्ति दार्शनिक था या वेवफूक, नहीं कह सकता इसलिये चुप रहा जो कुछ वह कह राह था मेरे भी दिमाग में चलता रहता था।
3
जुलाई
,मैं
गहरी
नींद
सो
गया
।
शाम
कुछ
हरारत
थी।
मेरा
कोच
चालक
भी
कुछ
कुछ
ऐसा
ही
हो
रहा
था
जैसा
मैं
।
जब
कल
वापस
घर
गया
था
मुझे
उसके
चेहरे
पर
पीलापन
नजर
आया
मैंने
उससे
पूछा,
जीन
तुम्हारे
साथ
क्या
समस्या
है
?’
‘मुझे आराम नहीं मिलता है । मेरी रातें मेरा दिन खा जाती है आपके जाने के बाद मैं सो नही पाया।’
4
जुलाई
,मैं
दोबारा
बीमार
हो
गया
मेरे
रात्रि
के
स्वप्न
लौट
आये
थे।
पिछली
रात
को
मुझे
लगा
था
कि
कोई
मुझ
पर
झुका
हुआ
हैं
और
मेरे
होठो
के
बीच
मेरा
जीवन
चूस
रहा
है।
हाँ
वह
मेरे
गले
से
जोंक
की
तरह
चूस
रहा
था
मैं
उठ
गया़,
थका
हुआ
कमजोर
कुचला
हुआ
मैं
हिल
भी
नहीं
पा
रहा
था
अगर
यह
आगामी
दिनों
में
फिर
होता
है
तो
मुझे
निश्चय
ही
चले
जाना
चाहिये।
5
जुलाईै, क्या
मैंने
अपनी
अक्ल
खो
दी
है
।
जो
कुछ
भी
रात
में
हुआ
इतना
अजीब
था
कि
अगर
उसके
विषय
में
सोचता
हूँ
तो
मेरा
दिमाग
घूम
जाता
है।
मैंने
दरवाजे
का
ताला
लगा
लिया,
जैसा
कि
हर
शाम
करता
हूँ
फिर
प्यास
महसूस
होने
पर
आधा
गिलास
पानी
पिया
,देखा
पानी
की
बोतल
मुँह
तक
भरी
हुई
है।
फिर मैं बिस्तर पर चला गया वही भयानक निद्रा । इस बार और भयानक झटका लगा।
मैंने
अपने
आपको
देखा
छाती
में
खंजर
घुसा
हुआ
है
।
सांस
उखड़
रही
है
खून
से
लथपथ
सांस
नहीं
ले
पा
रहा
हूँ
।
मरने
ही
वाला
हूँ
और
समझ
नहीं
पा
रहा
हूँ
क्या
यह
मैं
ही
हूँ
।
No comments:
Post a Comment
आपका कमेंट मुझे और लिखने के लिए प्रेरित करता है