कुछ भी
हो
मानव
नवीनता
की
ओर
भाग
रहा
है
मैसमर
और
कुछ
अन्य
व्यक्तियों
ने
हमें
अलग
रास्ते
पर
डाल
दिया
है
खासतौर
से
पिछले
दो
तीन
साल
से
हमें
कुछ
आश्चर्यजनक
परिणाम
मिल
रहे
हैं।
मेरी
बहन
जो
जरा
सहज
ही
विश्वास
नहीं
करती
मुस्कराई
डा॰
पेरेट
उससे
बोले,‘
क्या
आपको
मैं
नींद
की
अवस्था
में
पहुंचा
दूँ
मैडम’
‘हाँ,
अवश्य
।’
वह
एक
आराम
कुर्सी
पर
बैठ
गई
डा॰
उसकी
आंखों
में
एकटक
देखने
लगा।
मेरा
दिल
धड़क
रहा
था
मेरा
गला
घुटने
सा
लगा।
मैने
देखा
मैडम
सबले
की
आंखों
भारी
होने
लगी
।
उसका
मुँह
बंद
हो
गया
और
छाती
भारी
होने
लगी
और
दस
मिनट
में
वह
सो
गई
।
‘उसके पीछे जाओ,’
डाक्टर ने मुझसे कहा मैं उसके पीछे चला गया डाक्टर ने एक विजिटर कार्ड उसके हाथ मे दिया यह एक दर्पण है तुम्हें इसके अंदर क्या दिखाई देता है ?
‘उसके पीछे जाओ,’
डाक्टर ने मुझसे कहा मैं उसके पीछे चला गया डाक्टर ने एक विजिटर कार्ड उसके हाथ मे दिया यह एक दर्पण है तुम्हें इसके अंदर क्या दिखाई देता है ?
उसने
कहा,
‘मैं अपने
चचाजाद
भाई
को
देख
रही
हूँ
।’
‘वह
क्या
कर
रहा
है?’
‘वह
अपनी
मूँछे
उमेढ़
रहा
है’
‘और
अब?’
‘वह
अपनी
जेब
से
एक
फोटोग्राफ
निकाल
रहा
है।’
सही था
यह
फोटोग्राफ
मुझे
उसी
शाम
होटल
में
दिया
था
‘उस
चित्र
में
किस
तरह
दिख
रहा
है’।
वह हाथ
के
सफेद
कागज
ऐसे
देख
रही
थी
जैसे
दर्पण
हो। युवती
डर
गई
और
आश्चर्य
से
चिल्लाई
यह
बहुत
है
काफी
है
काफी।
लेकिन डाक्टर
ने
मैडम
सेबल
से
कहा
,‘जब
तुम
आठ
बजे
सुबह
उठोगी
,फिर
तुम
जाओगी
और
अपने
चचाजाद
भाई
को
अपने
होटल
में
बुलाओगी
उससे
5 हजार फ्रैंक
मांगोगी जो
तुम
से
तुम्हारा
पति
मांगेगा
।
यह
वह
अपनी
आगे
जाने
वाली
यात्रा
के
लिये
लेने
वाला
होगा।
फिर
उसने
उसे
जगा
दिया
अपने
होटल
लौटते
हुए
मैं
आगे
आने
वाले
दृश्य
के
लिये
उत्सुक
,कुछ
भ्रमित
भी
था
।
अपनी
बहन
की
तरह
मुझे
उस
पर
पूरा
यकीन
नहीं
था।
मैं
उसे
अच्छी
तरह
जानता
था
मैं
बचपन
से
उसे
देख
रहा
था
मैंने
अपने
हाथ
में
वह
छोटा
सा
शीशे
का
टुकड़ा
छिपा
रखा
था
जिसे
बहन
को
सोने
से
पहले
दिखाया
था
,उस
समय
भी
जब
उसे
कार्ड
दिखाया
,ऐसा
व्यावसायिक
तांत्रिक
करते
है।
मैं
सोने
चला
गया
और सुबह
करीब
साढ़े
आठ
बजे
मुझे
मेरे
नौकर
ने
जागाया
उसने
कहा,
‘मैडम सबले
आप
से
तुरंत
मिलना
चाहती
है।’
वह
कुछ
चिढ़ी
सी
बैठी
थी
।
उसकी
आंखे
फर्श
पर
थी
।
उसने
चेहरे
से
जालीदार
आवरण
हटाये
बिना
कहा,
‘भाई मुझे
तुम्हारा
सहयोग
चाहिये।’
‘क्या?’
‘मैं
बताना
तो
नहीं
चाहती
पर
बताना
पड़ा
,मुझे
पाँच
हजार
फ्रैंक
चाहिये।’
‘क्या
?तुम्हें
।’
‘हाँ
मुझे,
या
कहो
मेरे
पति
को,
उसने
मुझसे
उनका
इंतजाम
करने
को
कहा
है।’
मुझे धक्का
सा
लगा
और
मै
हकला
उठा
,मुझे
लगा
कहीं
वो
मुझे
डा॰
पेरेंट
से
मिलकर
वेबकूफ
तो
नहीं
बना
रही
है
।
कहीं
पहल
से
रिहर्सल
करके
मुझको
बेवकूफ
बना
रहे
हो,
उसे
ध्यान
से
देखने
पर
मेरा
शक
उड़
गया
।
वह
दुःख
से
कांप
रही
थी
।
उसके
लिये
यह
बहुत
कठिन
कदम
था
।
उसका
गला
भर
गया
था।
मैं
जानता
था
कि
वह
बहुत
अमीर
है
।
मैंने
कहना
जारी
रखा,‘
क्या
?
क्या
तुम्हारे
पति
के
पास
पांच
हजार
फ्रैंक
नहीं
है
,सोचो
तुम्हें
विश्वास
है
कि
उसने
मुझसे
मांगने
के
लिये
कहा
है।’
वह
फिर
हिचकिचाई
,मैं
उसके
दिमाग
के
झंझावात
को
समझ
रहा
था।
वह
नहीं
जानती
थी
।
वह
इतना
जानती
थी
कि
उसे
अपने
पति
के
लिये
पांच
हजार
फ्रेंक
मुझसे
लेने
है
इसलिये
उसने
झूठ
बोला,‘
हाँ,
उसने
मुझे
लिखा
है’
‘कब
?
कल
तो
तुमने
कुछ
कहा
नहीं’।
‘ मुझे
उसका
पत्र
आज
सुबह
ही
मिला
है’
‘मुझे
दिखाना’
‘ नही, नहीं, नहीं
उसमें
कुछ
व्यक्तिगत
बातें
भी
हैं
,बहुत
व्यक्तिगत
,मैंने
उसे
जला
दिया।’
‘ अच्छा
तो
तुम्हारा
पति
कर्जदार
हो
गया
है?’
वह
दोबारा
हिचकिचाई
कुछ
बुदबुदाई
,‘मुझे
नहीं
मालुम।’
मैंने
स्पष्ट
कहा,
‘मेरे पास
इस
समय
तो
पांच
हजार
फ्रेंक
है
नहीं,
प्यारी
बहन
’
।
वह
कुछ
बुदबुदाई
एक
तरह
से
सिसकी
भरी
।
जैसे
बहुत
दर्द
में
हो
और
बोली
,‘ओह
ओह!
मैंने
अनुरोध
किया
था
तुमसे
अनुरोध
किया
थ
मेरा
काम
कर
दो।’
वह
उद्विग्न
हो
गई
मेरा
हाथ
पकड़
लिया
और
मुझसे
प्रार्थना
करने
लगी।
उसका
स्वर
बदल
गया
वह
रोने
लगी
उसे
विश्वास
नहीं
था
कि
उसके
साथ
ऐसा
व्यवहार
होगा
वह
हताश
हो
गई।
‘ओह!
मैं
तुमसे
भीख
मांगती
हूँ
,तुम्हें
नहीं
मालुम
मैं
किस
कष्ट
से
गुजर
रही
हूँ।
मुझे
आज
ही
पैसे
चाहिये।’
मुझे
उस
पर
दया
आई ,‘ठीक
है
तुम्हें
कैसे
न
कैसे
मिल
जायेगा
,मैं
कसम
खाता
हूँ
।’
‘ओह!
धन्यवाद
,धन्यवाद
,तुम
मेरे
प्रति
बहुत
दयालु
हो।’
मैंने
कहना
जारी
रखा
,‘तुम्हें
मालुम
है
तुम्हारे
घर
कल
रात
क्या
हुआ?’
‘हाँ’
‘तुम्हें
याद
है
डा॰पेरेंट
ने
तुम्हें
सुला दिया
था।’
‘ हां’
‘बहुत
अच्छा
,उसने
तुम्हें
आज्ञा
दी
थी
कि
सुबह
तुम
मुझसे
पांच
हजार
फ्रेंक
मांगोगी
और
इस
समय
तुम
उसकी
आज्ञा
का
पालन
कर
रही
हो’
वह कुछ
देर
समझने
की
कोशिश
करती
रही
फिर
बोली
,‘लेकिन
ये
तो
मेरे
पति
मुझसे
मांग
रहे
हैं।’
होरला: भाग 6
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