Sunday 10 January 2016

होरला: भाग 9

और मैं सोचता गया मेरी आंखे इतनी कमजोर हैं कि वे बड़ी वस्तुओं को भी नहीं देख पाती अगर वे शीशे की तरह पारदर्शी है जिसके पीछे परत नहीं है तो मैं उससे टकरा जाउंगा मै उस पक्षी की तरह कमरे में उडूंगा जो खिड़की के शीशे से सिर टकरा देता है, इसमें अद्भुत क्या है जो पारदर्शी है उसे वह नहीं देख पाता।


       एक नया, क्यों नहीं, वह जरूर आना था, हम आखिरी नहीं है हम अन्य प्रकृति की रचनाओं को नहीं देख पाते। कारण प्रकृति अधिक पूर्ण है उसका शरीर अधिक परिष्कृत हैं। हमारा बहुत कमजोर है अजीब ढंग से बना है   


अंगो का भार मात्र है, जो हमेशा थकी रहता है। अत्यधिक जटिल एक पौधे की तरह एक जानवर की तरह, हवा, जड़ी-बूटी और मांस पर जीवित मशीन जो रोगों का शिकार, कुरचना, नष्ट होने वाली , टूटी सी बुरी तरह प्रवाहित उत्केन्द्रित अनियमित, बुरी तरह बनाई हुई। एक साथ कठोर और कोमलतम कलाकृति, एक आकृति जो   मेधावी है ,विशद है।


       हम बहुत कम हैं ब्रह्मांड में बहुत कम, हम और क्यों नहीं हैं? क्यों नहीं है? क्यों अन्य फूलों फलों वाले वृक्ष हैं क्यों अग्नि हवा, पानी, मिट्टी के अलावा अन्य पदार्थ हैं। ये केवल चार तत्व हैं, केवल चार ही क्यों जो सब को पाल रहे हैं चालीस क्यों नहीं, चार सौ, चार हजार, सब कुछ कितना निरीह है, अनगढ़, जल्दीबाजी में बनाये गये। 


ओह हाथी और दरियाई घोड़े को देखो कितने भव्य और ऊँट कितने सौम्य लेकिन तितली एक उड़ता हुआ फूल मैं कल्पना करता हूँ इतनी बड़ी तितली दस संसारों के बराबर ,उसके पंखों की बनावट सुन्दरता रंग और पंखों का हिलना  में बता भी नहीं सकता, मैं एक सितारे से दूसरे सितारे तक उड़ते देखता हूँ रोशनी से नहाते, उड़ते हुए संगीतमय सांसं लेते और मनुष्य हर्षित उसे देखकर अत्यन्त सुख प्राप्त करता है।


       मेरे साथ क्या हो राह है ? यह वह है होरला वह मुझे डरा रहा है वह मुझे इन बेकार बातों को सोचने को मजबूर कर रहा है। वह मेरे अंदर हैं वह मेरी आत्मा बन रहा है मुझे उसे मारना होगा।


       29 अगस्त , मुझे उसे मारना है, मैंने उसे देखा है कल मैं अपनी मेज पर बैठा था और कुछ लिखने का बहाना कर रहा था। अच्छी तरह जानता था वह मेरे चारो ओर चक्कर काटेगा, बिल्कुल मेरे पास इतने पास कि मैं उसे छू सकूंगा, पकड़ सकूंगा और तब मुझे निराशा पर काबू पाना होगा। अपने हाथ अपने घुटने अपनी छाती, अपना माथा , अपने दांत, सबको उसका गला घोंटने के लिये उसको काटने के लिये उसे टुकड़ों में फाड़ने के लिये तैयार करने होगे मैंने सारे मन प्राण से उसे देखा।


       मेरे पलंग का सिरहाना, पुरानी ओक की लकड़ी का मेरे सामने था मेरे सीधे हाथ पर फायरप्लेस था, बाये दरवाजा जो कस कर बंद था पहले मैंने इसे लुभाने के लिये खोल कर रखा मेरे पीछे एक बहुत बड़ी कपड़ों की आलमारी थी जिसमें दर्पण था जिसके आगे प्रतिदिन में दाढ़ी बनाने के लिये और कपड़े पहनने के लिये खड़ा होता उसमें सिर से पैर तक देखने की मेरी आदत हो गई थी।


       मैं उसे धोखा देने के लिये लिखने का बहाना कर रहा था। वह मुझे देख रहा था मैंने महसूस किया, निश्चय ही वह मेरे कंधे पर झुका पढ़ रहा था, वह वहां था मेरे कान छू रहा था।
       मैं उठ खड़ा हुआ मेरे हाथ बढ़े और तेजी से घूमे कि मैं लगभग गिर ही गया, बहुत बढि़या, चारों ओर दोपहर का सा उजाला था लेकिन मुझे दर्पण में अपना अक्स नहीं दिख रहा था वह खाली था साफ, रौशन। 


लेकिन मेरा शरीर उसमें नहीं दिख रहा था मैं उसके सामने था। मैंने उस विशाल साफ आईने को ऊपर से नीचे देखा, मैंने आंख सिकोड़ कर देखा ,मैं बढ़ नहीं पा रहा था ,मैं यह जान रहा था वह वहाँ है वह फिर बच जायेगा क्योंकि उसके अदृश्य शरीर ने मेरा अक्स भी अपने अंदर समा लिया है।



       मैं डर गया, तब एकाएक मैं दिखाई देने लगा, धुंधला सा एक दम दूर जैसे पानी में देख रहा हूँ जैसे पानी मेरे ऊपर से बह रहा है जो हरपल साफ होता जा रहा है, यह ग्रहण के उग्रहण होते जाना जैसा है जो कुछ भी हो जिसने मुझे अपने में समा लिया था उसके शरीर  की छाया भी नहीं दिख रही थी बल्कि एक तरह की पारदर्शिता थी वह ,और साफ हो गई। अंत में मैं पूरी तरह से दिखने लगा जैसा कि मैं रोज अपने को देखता था।


       मैंने देखा है यह सोच सोच कर भी भय से कांप रहा था।
होरला भाग:10

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