पहले से
वहां
हलवाई
से खाना
बनाने
के
लिये
कह
दिया
जाता
है।
वहां
पर
पूरा
इंतजाम
रहता
अर्थात्
दरी
चादर
आदि
लेकर
मुनीम
जी
सीधे
कुसुम
सरोवर
पर
पहुंचते
और
हमारे
पहुंचते
ही
शर्बत
ठंडाई
आदि
के
साथ
खाना
मिलता
मेरी
सबसे
बड़ी
बहन
का
नाम
कुसुम
है
तब
हम
यही
समझते
यह
जीजी
के
नाम
का
सरोवर
है।
इनके अलावा हम लोग बाजार सजाते एक-एक मेज पर तरह-तरह की चीजें कागज के खिलौने गुडडे-गुडि़या बना कर लगाते और कागज के पैसे बनाकर मेला लगाते और एक दूसरे की दुकान से सामान खरीदते कितने प्रकार के खिलौने धीरे-धीरे बनाना सीख गये हम गत्ते की नली मे तीन शीशे चूड़ी लगा कर बतनाते न जाने कितनी डिजाइन बन जातीं कभी दूसरी डिजाइन नहीं बनती थी।
गली से निकलते ही चूड़ी वाले की दुकान थी उससे टूटी चूडि़यां ले आते फिर उनको और टुकड़ो में तोड़कर लिफाफे साते पैन तोड़कर आदि बनाते कागज से बहुत खिलौने बनाते स्अीमर, हंस, फूल, हवाई जहाज, कोट पैन्ट नाव तो कितने ही तरह की बनाते थे पाल वाली नोक वाली हमारे घर के सामने बाजार जरा नीचा था जरा तेज बारिश होती तो कमर तक पानी किनारें पर जरा सी वारिश में भर जाता था तब प्रारम्भ होती थी हमारी नाव प्रतियोगिता आगे जाकर सब्जी मंडी में सारा पानी तेजी से निकल कर यमुना जी में मिल जाता था।
हम अपनी-अपनी नाव दुकान से नीचे तैराते और देखते रहते किसकी सबसे आगे जाती है जरा सी भी वारिश होती नाव बनना शुरू हो जाता वारिश होने से पहले ही किताब काफी बदल जाती और पुरानी कापी से फाड़-फाड़ कर नाव एक दूसरे में फंसा तैयार रखते पानी जैसे ही भरत नाव तैरात पंक्ति बद्ध नाव बहती जाती
कभी कभी तो उस पर पत्ते का दीपक जला कर रख देते सब दुकानदार भी देखते और खुश होते देखो लाली की सबसे आगे वाई लाला तेरी तो डूब गई। जिसकी नाव डूब जाती वह दूसरी तैराता वह कागज की कश्ती के वारिश का पानी इसका सुख बहुत कम लोग उठा पाते हैं बहुत कम जगह बच्चे इस प्रकार नाव पाते होंगे।
इनके अलावा हम लोग बाजार सजाते एक-एक मेज पर तरह-तरह की चीजें कागज के खिलौने गुडडे-गुडि़या बना कर लगाते और कागज के पैसे बनाकर मेला लगाते और एक दूसरे की दुकान से सामान खरीदते कितने प्रकार के खिलौने धीरे-धीरे बनाना सीख गये हम गत्ते की नली मे तीन शीशे चूड़ी लगा कर बतनाते न जाने कितनी डिजाइन बन जातीं कभी दूसरी डिजाइन नहीं बनती थी।
गली से निकलते ही चूड़ी वाले की दुकान थी उससे टूटी चूडि़यां ले आते फिर उनको और टुकड़ो में तोड़कर लिफाफे साते पैन तोड़कर आदि बनाते कागज से बहुत खिलौने बनाते स्अीमर, हंस, फूल, हवाई जहाज, कोट पैन्ट नाव तो कितने ही तरह की बनाते थे पाल वाली नोक वाली हमारे घर के सामने बाजार जरा नीचा था जरा तेज बारिश होती तो कमर तक पानी किनारें पर जरा सी वारिश में भर जाता था तब प्रारम्भ होती थी हमारी नाव प्रतियोगिता आगे जाकर सब्जी मंडी में सारा पानी तेजी से निकल कर यमुना जी में मिल जाता था।
हम अपनी-अपनी नाव दुकान से नीचे तैराते और देखते रहते किसकी सबसे आगे जाती है जरा सी भी वारिश होती नाव बनना शुरू हो जाता वारिश होने से पहले ही किताब काफी बदल जाती और पुरानी कापी से फाड़-फाड़ कर नाव एक दूसरे में फंसा तैयार रखते पानी जैसे ही भरत नाव तैरात पंक्ति बद्ध नाव बहती जाती
कभी कभी तो उस पर पत्ते का दीपक जला कर रख देते सब दुकानदार भी देखते और खुश होते देखो लाली की सबसे आगे वाई लाला तेरी तो डूब गई। जिसकी नाव डूब जाती वह दूसरी तैराता वह कागज की कश्ती के वारिश का पानी इसका सुख बहुत कम लोग उठा पाते हैं बहुत कम जगह बच्चे इस प्रकार नाव पाते होंगे।
इसके
अलावा
हमारे
खेल
के
इक्कड़-दुक्कड़
लंगड़ी
टांग
से
सात
घर
खेलना
उतरे
खड़े
होगर
नंबर
का
घर
पर
पिन
डालना
जिस
पर
पिन
गिरती
उसका
लांध
कर
पार
करना
और
पूरा
होने
पर
घर
बनाना।
इसे
लंगड़ी
टांग
भी
कहते
थे।
एक खेल था किलकिल काटिया जगह जगह छिपाकर निशान बनाते चार को ढूढने होते जो सब निशान ढूढं देता वह साहूकार हो जाता।
पर्चियों
से
चारे
सिपाही
का
खेल
बड़ा
मजेदार
था
चोर
सिपाही
राजा
पर्चियां
उठाई
जाती
राजा
आवाज
लगाता
सिपाही-सिपाही
चोर
का
पता
लगाओ।
चोर
आंख
मारता
दूसरे
का
सिपाही
की
नजर
बचाकर
और
सिपाही
को
पकड़ना
होता।
जब
कई
बच्चे
इकठठे
हो
जाते
तब
खेलते
फूलों
से
हम
आते
है
दो
पार्टियां
बनती
जिस
बहन
या
भाई
का
एक
पार्टी
मांगती
उसे
दूसरी
पार्टी
बचाती
और
मांगने
वाली
खींचती।
गुटटे
खेलना
हम
बहनों
का
प्रिय,
खेल
था
उसे
तो
हमारी
बड़ी
बहने
भी
खेलने
बैठ
जाती
थी।
गुटटे
मां
लाख
के
गुटके
होते
थे
उन्हें
उछाल
कर
क्रमबद्ध
तरीके
से
खेला
जाता
था।
क्रिकेट
तब
भी
बाल
प्रिय
था
दूर
के
कमरे
में
चैका
माना
जाता
था
और
पहली
मंजिल
तक
पंहुची
छक्का
तब
कितनी
ऊर्जा
होती
थी
हममें
सारा
दिन
जीना
चढ़ना
उतरना
आज
उन
जीनों
को
देखकर
सिहरन
होती
है
डेढ़-डेढ़
फुट
ऊँची
सीढि़यां
हर
मंजिल
में
सोलह
सोलह
सीढि़या
थी
पर
पलक
झपकते
ही
नीचे
दूसरे
परल
ऊपर
होते
थे।
बहुत याद आता है प्यारा सा बचपन: भाग 8
बहुत याद आता है प्यारा सा बचपन: भाग 8
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