माखनचोरी
के
बाद
कृण
की
रासलीला
प्रसिध्द
है इसलिये
कृष्ण
लीला
का
रासलीला
रूप
मे
मंचन
तो
होता
ही
रहता
है
।
कई
रासलीला
मंडली
पूरे
भारत
में
प्रसिद्व
हैं
।
कंस
का
किला
कंस
टीला
घर
से
जरा
सी
दूर
जमुना
किनारे
है
कंस
हमारे
लिये
असुर
राक्षस
भूत
न
जाने
क्या
क्या
है
कंस
किले
के
पीछे
जमुना
किनारे
बड़ी
पतली
पगडंडी
थी
वहां
से
हमारा
नानीघर
बहुत
पास
था
वह
गऊघाट
कहलाता
था
वहां
से
हम
चुपचाप
पीछे
डरते
डरते
जाते।
कंस
निकल
आयेगा
बच्चो
केा
मार
देता
है
फिर
किले
के
अंदर
जाते
जरा
भी
खटका
होता
भागते।
नानी
घर
पहुंचते
तो
मामाजी
डांटते
उधर
मत
जाय
करो।
कंस
कृष्ण
का
मामा
था
कृष्ण
ने
कंस
का
वध
किया।
देवकी
को
बंदी
बनाया।
वह
कारागार
देखा
था
छोटी
सी
कोठरी
कोई
खिडकी
नही
कैसे
रहती
होगी
देवकी वहां
जाने
पर
डर
लगता
अब
तो
कृष्ण
जन्मस्थान बहुत
भव्य
और
विषाल
हो
गया
है
और
हर
समय
श्रद्वालुओं
की
भीड
रहती
है
पर
तब
सुनसान
रहता
था
कभी
कभी
बाहर
से
आने
वाले
रिष्तेदारों
को
दिखाने
जाते
तो
हम
सब
बच्चे
भी
तांगे
मे
या
कार
मं
लद
लेते
थे
जैसे
जैसे
श्रद्वा
बढ
रही
है
जन्मस्थान
का
स्वरूप
भी
बृहद
होता
जा
रहा
है
नया
नया
निर्माण
हो
रहा
है
पर
वह
कोठरी
अब
भी
वैसी
है
अगर
इसी
प्रकार
श्रद्वा
बढती
रही
तो
नया
जन्मस्थान
बनवाना
पडेगा।
कंस
का
किला
कही
हो
करागार
कही
भी
हो
पर
कंस
का
वध
हमारे
जहां
घर
था
ठीक
वहीं
हुआ
था
तभी
उस
स्थान
का
नाम
है
कंसखार
कंस
के
वध
की
लीला
देखना
भी
हमारे
बचपन
मे
पूरी
वर्ष
की
लीलाओं
के
इंतजार
मे
से
एक
दिन
था।
षाम
को
बाजार
घुलने
लगता
सफाई
होती
चतुर्वेदी
समाज
नये
नये
अंगरखे
पाजामे
या
धोती
पहने
तिलक
लगा
कर
लठ्ठ
ले
ले
कर
इक्टठे
होने
लगते
जगह
जगह
प्याऊ
ष्षर्वत
और
खोमचे
सज
जाते
झंडिया
सज
जाती
सारा
बाजार
चहल
पहल
से
भर
उठता
साथ
आस
पास
की
सभी
इमारतों
पर
चेहरे
नजर
आने
लगते।
विषेश्
चतुर्वेदी
समाज
की
महिलाए
सज
सजकर
सम्पूर्ण
श्रंगार
के
साथ
आसपास
की
छतों
पर
दुछत्तियों
पर
बैठ
जातीं
उन्हें
हम
चैबन
कहते
थे वैसे
इस
समाज
की
सभी
महिला
पुरुश
एकदम
गोरे
और
ललाई
लिये
होते
हैं
इसलिये
बेहद
सुंदर
लगती
थीं।
आस
पास
के
सभी
घरों
मं
उस
दिन
जैसे
मथुरा
शहर
मिसट
आता
ठीक
सात
बजे
ढोल
नगाडो
के
साथ
अखाडों
का
दल
निकलता
फिर
एक
बल्ली
पर खाट
का
पाया बाँध कर
एक
चैबे
आता
एकचैबे
हाथ
लिये
आता।,
कंस
का
हाथ
टांगे
लेकर
भागते
आते
पीछे
पीछे
बच्चों
का
झुंड
रस
में
गाते
जाते
छज्जू लाये खाट के पायेकंसा के घर के घबरायेमारि मारि लठ्ठन झूरि करि आयेहाथीउ लाए घोड़ाउ लाएनव मुतियन के चैक पुराये।
भागता भागता
वह
व्यक्ति
उसे
लेकर
बागे
जाता
फिर
लौट
कर
आता
कई चक्कर
लगा
कर
बाजार
में
गिरा
दिये
जाते
फिर
चैबे
लट्ठों
से
पीटने
पर
तुल
जाते
।
उसके
बाद
एक
मोटी
बल्ली
पर
कम
से
कम
बीस
फुट
लम्बा
दस
फुट
घेरे
का
कागज
बांस
की
पट्टीयों
से
बना
दानवीय
चेहरा
लिये
चतुर्वेदी
समाज
का
व्याक्ति प्रगट
होता
साथ
ही
जोष
से
यही
गीत
चलता
।
चेहरा
हमारी
दुछत्ती
तक
आ
जाता
बड़
बड़ीआखें
इतने
पास
हमें
डराने
के
लिये
प्र्याप्त
होती
थीं
।
‘मारि
मारि
लटठन
झूरि
करि
आये’
बलिष्ठ
चैबे
उसे
भी
लेकर
अन्तपाडा
तक
जाता
वहां
से
लौट
कर
विश्राम
बाजार
तक
इसी
प्रकार
कई
चक्कर
लगाता
फिर कृष्ण
बलराम
आते
और
गदा
और
तीर
से
प्रहार
करते
फिर
उस
कंस
के
प्रतिरूप
को
नीचे
गिरा
दिया
जाता
अैर
सभी
चैबे
लाठी
लेकर
उस
पर
टूट
पडते
फाट
फट
फटा
फट
कर
ठक
ठक
लाठियां
बजती
कुछ
ही
देर
में
विषाल
चेहरा
चिंदी
चिंदी
हो
जाता
और
फिर
कृष्ण
बलराम
हाथी
पर
सवार
हो
जाते
उनकी
शोभा
यात्रा विश्राम
घाट जाती
वहाँ
उनकी
आरती
उतारी
जाती।
विश्राम
घाट
नाम
ही
इसलिये
पडा
है
कहते
है
कंस
केा
मार
कर
कृष्ण
ने
वहाँ
विश्राम
किया
था।
अब
किसी
की
भी
मृत्यु
होती
है
तो
उसके
विमान
को
एक
मिनट
के
लिये
विश्राम
घाट
पर
रखा
जाता
है
फिर
आगे शमषान
ले
जाया
जाता
है।
जैसा कि
विदित
है
मथुरा
लीला
स्थली
है
वराह
क्षेत्र
है
प्रभास
क्षेत्र
मधु
दैत्य
की
राजधानी
अर्थात
यह
इतनी
प्राचीन
है
कि
अवतार
वाराह
का
भी
क्षेत्र माना
जाता
है
हिरणयाक्ष
और
हिरणकष्यप
को
भी
जोडा
जाता
है
इसिलिये
यहां
वराह
का
मंदिर
तो
है
ही
नरसिंह
लीला
भी
बहुत
जेाष
और
उत्साह
से
मनायी
जाती है।
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