Wednesday, 13 January 2016

त्रासदी

सदियों तक जिससे त्रस्त रहे, जिसके लिये प्रलाप करते हैं, सुधारना कुत्ते की पूंछ सीधी करने के समान है , जिसे त्रासदी बोलना, वह है पुरुषों की त्रासदी अर्थात स्त्रियों की आलोचना करना।सबसे ज्यादा त्रस्त अपनी पत्नी से है लेकिन  एक दिन भी बिना उसके नहीं रह पाते है इसका उलट महिलाओं की त्रासदी है ,सिर पीटना कि हर पुरुष निकम्मा होता है, यह तो वही है जो उसका घर संभाल रही है, उससे अच्छी तो काम वाली बाई है जो कम से कम चार पैसे तो हाथ में रखती है


एक वह है मुफ्त में चैबीस घंटे काम कर रही हैं। पुरुष हैं कि परेशान है कि कमा कमा कर मरे जा रहे हैं पर महारानी है कि पेट ही नही भरता। दो दोस्त आपस में बात कर रहे थे। एक बोला, ‘पता नहीं मेरी बीबी को जाने कितने पैसे चाहिये, कल उसने दो सौ रुपये मांगे आज उसने पांच सौ।दूसरा बोला, ‘इतने पैसे का वह करती क्या है ?’
पहला बोला, ‘पता नहीं, मैंने तो कभी दिये नहीं दिन भर मांगना उसकी त्रासदी है क्या करे कभी बच्चों के कपड़े बनवा देगी कभी पति की पैन्ट, कभी राशन,  सब उसी का तो खर्चा है


तो लेखक की त्रासदी है लिखना। राजे गये, महाराजे गये दसवीं सदी के सम्राट का कुत्ता क्या खाता था ? उसकी पीठ के चार बाल सफेद थे, बाकी काले यह खोज कर बताना भी कला है। चाहे संपादक की टिप्पणी है कि कुत्ता पालना इक्वीसवीं शताब्दी का फैशन है कि दसवीं का। जब लोग शेर दिल होते थे शेर पालते थे अब .... मुझे अपने मुँह से कुछ नहीं कहना कि अब लोगों का दिल कैसा होता है ? हाँ सफेद चूहे भी पालते हैं।


 हाँ तो एक सज्जन ने लिखा तुलसीदास की चोटी पर, चित्रों में वर्णित चोटी में गांठ लगी होती थी या नहीं। उनकी चोटी के बाल खुले रहते थे या सीधी नुकीली मोम से खड़ी रहती थी। अब तुलसीदास जी की त्रासदी कि उन्होंने एक चित्र स्पष्ट पीछे छोड़ना था। स्पष्ट बनवाया था जिससे आजकल के पाठकों को त्रासदी भोगनी पड़ती। अब सब से विनम्र निवेदन है अपने हर कोण से फोटो तैयार कराकर हर पुस्तक पर छपवायें जिससे आने वाली पीढ़ी त्रासदी से बची रहे क्योंकि वे पढ़ते जाते हैं और लेखक को कोसते जाते हैं कि पन्ने काले करके मर गये हमें रटना पड़ रहा है


 संपादक की त्रासदी है हर आने वाली रचना को पढ़ना और समझ पाना कि उसने क्या पढ़ा है अंत में झुझलाकर अपने किसी परिचित लेखक की रचना को उठाकर सही का निशाना लगा देना और लेखक की रचना के साथ लिख देना कि नहीं जानता सोने से पहले केवल करवटें बदलने में तीस पृष्ठ भर सकते हैं। अपने नायक को डाॅक्टर को दिखाओ उसे नींद आने की बीमारी है।


 कवि पत्नी की त्रासदी है। जितनी देर कवि महोदय घर रहते हैं नचकैयों की तरह नाच-नाच कर मुद्राऐं बनाते है और अपनी बनाई मुद्राओं पर मुग्ध हो कविता लिखकर बाहर वालों को सुनाते हैं। उनके परिचित उडरकर उनके ही घर में छिपते हैं क्योंकि जानते है घर पर तो कविता सुनने वाला मिलेगा नही। और पति से त्रस्त लोगों को खिलाते पिलाने में खत्म हुए राशन से तंग पति के काव्यग्रथों की पांडुलिपियों को रद्दी में बेचती रहती है कवि पत्नी।


 प्रेमी प्रेमिकाओं की त्रासदी है आजकल के माँ-बाप जो कभी खुद तो छिप-छिपकर मिलकर प्रेम का पूर्ण आनन्द उठा चुके हैं, और अब बच्चों को खुलकर मिलने की छूट देकर उनको प्रेम का रसास्वादन ही नहीं करने देते हैं। उन्हें थ्रिल रोमांच ही नहीं मिलता। इसके लिये रोज प्रेमी-प्रेमिका बदलते है शायद किसी का बाप तो ऐसा निकले जो लड़की-लड़के के भागने के लिये स्वयं सीढ़ी लिये खड़ा हो और दहेज से बचना चाह रहा हो कि मिले कोई उल्लू का पठ्ठा हर्र लगे फिटकरी लड़की घर से भाग ले और उसके गिरह की गाँठ खुलने से बच जाय।


 महिलाओं के लिये अब असली त्रासदी बनी है रोज-रोज सेल लगना। कहां तक सेल में से सामान खरीदें कभी कपड़ों की सेल, चादरों की सेल, क्राकरी की सेल, सेल मतलब, दुनियां भर का चीजों की सेल बस कुछ कसर है पतियों और बच्चों की भी सेल लगेंगे यानी घटी दरों पर ठोक बजाकर ले लो।


 नेता की त्रासदी हैं पत्रकार जो हर सौदे के पीछे अटके रहते हैं, लटके रहते हैं और अखबार में वे उन्हें झटके देते रहते है


No comments:

Post a Comment

आपका कमेंट मुझे और लिखने के लिए प्रेरित करता है

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...