हमारी डर के मारे घिग्गी बंध गई थी। दो दिल पहले कबाड़ी के घर से कुर्सी लाये थे वहीं टार्च दिखी तो ले आये। अपनी कारस्तानी दिखाई ठीक करके सैल डलवा लिये थे। अब बिजली का तो भरोसा है नहीं ,मालुम पड़े एक कदम ठीक उठाया, दूसरे में छपाक से नाले में जा गिरे। जिन्न को देख हम खुशी से पागल हो गये ।
खुशी में उससे जा लिपटे उसे उठाने लगे लेकिन कहां वह स्वर्ग के माल खाने वाला कहां हम वनस्पति के दो छंटकी के शरीर वाले। झेंप मिटाकर उसके हाथ को ही जोर जोर से हिला कर बोले, ‘वाह मियाँ अब तो हम तुम्हारी बदौलत दुनिया के सबसे नामी गिरामी आदमी हो जायेंगे ,वाह माशा अल्लाह क्या खूब आये हो। दिमाग धीरे धीरे ठिकाने आया तो उससे बोले, ‘भाई इस समय तो जाओ हम जरा सोच लें कि हमें क्या काम कराना है।’
‘क्या कहा? मेरे आका, बिना कोई काम किये नहीं मैं ऐसे तो नहीं जाऊँगा, अगर कोई काम नहीं था तो बुलाया क्यों था ?
और सुन लीजिये आका आप आगे से ऐसे खाली पीली मुझे नहीं बुलाना नहीं तो हमेशा के लिये गायब हो जाऊँगा, अपन का भी बाॅस है उसके सामने हिसाब देना होता है कि हमने जाकर क्या काम किया, ये सरकारी दफ्तर नहीं है कि यहाँ कोई काम बिना किये तनखा मिलेगी।’
वो हमें गुस्से से घूरने लगा। हम अपनी गरदन संभालने लगे कि कहीं यह टीप न दे और हमारी अम्मा बिचारी तड़प कर रह जाये, जैसे ही अम्मा का ख्याल आया तभी हमने कहा, ‘जाओ इस मकान की जगह एक शानदार महल बना दो। बिचारी बहुत दिन से कह रही है कि छत टपक रही है मकान मालिक तो बनवा नही रहा है जरा पलस्तर तू ही करा दे।’
यह हुक्म दे हम अपने आफिस के लिये प्रस्थान कर गये। अभी हमने फाइल खोलनी ही शुरू की थी कि हमारे नाम फोन आया, कोई पड़ोसी बोल रहा था, माँ ने तुरंन्त बुुलाया था। जाकर देखा तो धड़धड़ा आसपास के तीन चार मकान गिर रहे थे और उनकी जगह नवीन निर्माण हो रहा था। बनाने वाले दिख नहीं रहे थे।
सब की घिग्गी बंधी हुई थी, जान सूख रही थी तीन चार ओझा और भूतपे्रत भगाने वाले खड़े हुए थे। ये इसे किसी भूत का प्रकोप मान रहे थे, पर मुझे तो असलियम मालुम थी, मैं दौड़कर अपने मकान में गया और टार्च उठाई जिन्न बुलाया और कहा,‘ यह क्या कर रहे हो, मेरी मुसीबत बुलाओंगे क्या, इन सबको वैसा का वैसा कर दो और बस मेरे मकान को ही ठीक कर दो।’
खुशी में उससे जा लिपटे उसे उठाने लगे लेकिन कहां वह स्वर्ग के माल खाने वाला कहां हम वनस्पति के दो छंटकी के शरीर वाले। झेंप मिटाकर उसके हाथ को ही जोर जोर से हिला कर बोले, ‘वाह मियाँ अब तो हम तुम्हारी बदौलत दुनिया के सबसे नामी गिरामी आदमी हो जायेंगे ,वाह माशा अल्लाह क्या खूब आये हो। दिमाग धीरे धीरे ठिकाने आया तो उससे बोले, ‘भाई इस समय तो जाओ हम जरा सोच लें कि हमें क्या काम कराना है।’
‘क्या कहा? मेरे आका, बिना कोई काम किये नहीं मैं ऐसे तो नहीं जाऊँगा, अगर कोई काम नहीं था तो बुलाया क्यों था ?
और सुन लीजिये आका आप आगे से ऐसे खाली पीली मुझे नहीं बुलाना नहीं तो हमेशा के लिये गायब हो जाऊँगा, अपन का भी बाॅस है उसके सामने हिसाब देना होता है कि हमने जाकर क्या काम किया, ये सरकारी दफ्तर नहीं है कि यहाँ कोई काम बिना किये तनखा मिलेगी।’
वो हमें गुस्से से घूरने लगा। हम अपनी गरदन संभालने लगे कि कहीं यह टीप न दे और हमारी अम्मा बिचारी तड़प कर रह जाये, जैसे ही अम्मा का ख्याल आया तभी हमने कहा, ‘जाओ इस मकान की जगह एक शानदार महल बना दो। बिचारी बहुत दिन से कह रही है कि छत टपक रही है मकान मालिक तो बनवा नही रहा है जरा पलस्तर तू ही करा दे।’
यह हुक्म दे हम अपने आफिस के लिये प्रस्थान कर गये। अभी हमने फाइल खोलनी ही शुरू की थी कि हमारे नाम फोन आया, कोई पड़ोसी बोल रहा था, माँ ने तुरंन्त बुुलाया था। जाकर देखा तो धड़धड़ा आसपास के तीन चार मकान गिर रहे थे और उनकी जगह नवीन निर्माण हो रहा था। बनाने वाले दिख नहीं रहे थे।
सब की घिग्गी बंधी हुई थी, जान सूख रही थी तीन चार ओझा और भूतपे्रत भगाने वाले खड़े हुए थे। ये इसे किसी भूत का प्रकोप मान रहे थे, पर मुझे तो असलियम मालुम थी, मैं दौड़कर अपने मकान में गया और टार्च उठाई जिन्न बुलाया और कहा,‘ यह क्या कर रहे हो, मेरी मुसीबत बुलाओंगे क्या, इन सबको वैसा का वैसा कर दो और बस मेरे मकान को ही ठीक कर दो।’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (05-12-2015) को "आईने बुरे लगते हैं" (चर्चा अंक- 2181) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जानकारी के लिए धन्यवाद
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