अखबार के मारे हैं हम का पिछला भाग
इस रोड से घर को फौरन बदल लेंगे... नया फर्नीचर भी ले आयेंगे। अगर पहला इनाम न मिला तो कोई न कोई तो मिलेगा ही आठ दस जगह की मैंने लाटरी खरीद रखी है। हरेक में न सही चार ,पांच में कोई न कोई इनाम निकले तो हम आदमी हो जाएंगे। हां, एक बात कहे देती हूँ ,यह न कहना कि क्या गंवारों की सी बात कही है। मैं एक या दो वाली बात नहीं मानूंगी कम से कम चार पांच तो होने चाहिए। और हम सिर पकड़े उस कुघड़ी को कोस रहे थे। जब हम बड़ी शान से लाटरी के टिकिट खरीदने वाले अपने दोस्तों को आफिस में लेक्चर पिला रहे थे।
यही नहीं आये दिन पोस्टल आर्डर मंगा मंगा कर क्रासवर्ड पहेलियाँ आदि भरी जाने लगी थी। अखबार ने पैसे कमाने का चस्का लगा दिया था। उनकी एक से एक बढि़या दिल को मखमल पर लोटा देने वाली प्लानिंग व ख्याली पुलाव अपने गले से नीचे नहीं उतर पाते थें ,पर कमाई के लिये खरीददार चाहिए जो पैसे दे, हमारी श्रीमती जी पैसे दे रही थीं और कमाई और लोगों की हो रही थी। हल्की फुल्की प्रतियोगिताऐं भरकर आॅलबेब ट्रांजिस्टर आधे दाम में खरीदने के चक्कर में पूरे पैसे गंवा मुंह बाये उनके चेहरे के आत जाते रंग को देखा करते थे।
उनके अखबार पढ़ने ने ऐसा रंग दिखाया कि हमको आये दिन घर में नई नई चीजें दिखाई देती थी। किसी दिन देखते श्रीमती जी प्लास्टिक की बाल्दी में छः साबुन के पैकेट लिये चली आ रही हैं। किसी दिन मैजिक के दो डिब्बे अगर उनसे पूछिए कि इतने साबुन का क्या होगा तो जबाब मिलेगा ,‘अरे ! कैसा अखबार पढ़ते हो। मैंने कल ही तो अखबार में पढ़ा था, कि साबुन के छः डिब्बों के साथ एक बाल्टी मुफ्त।’ अरे! वाह क्या बढि़या बात है, कुछ रुपये की चीज मुफ्त आ गई फिर साबुन रोज के काम आने की चीज है।
मैजिक की ओर देखकर बोली, घर में नहाने वाला साबुन खत्म हो गया था। हमने चौंक पर देखा कि नहाने वाला साबुन भी ऐसे डिब्बों में कब से आने लगा तो सब कुछ साफ था, उस पर लिखा था दो के साथ मोती सोप मुफ्त। अरे ! कैसा अखबार पढ़ते हो ,इतना बड़ा बड़ा तो लिखा था दो के साथ एक नहाने वाला मुफ्त। हद तो जब हो गई हमें दूध में घोल घोल कर चुस्ती फुर्ती के आइटम पिलाये जाने लगे , कारण उनके साथ मिलने वाली चम्मचें थीं।
हां तो इस मर्ज की समाप्ति यही नहीं थी। कभी नहाने वाले साबुन के लिये मटर के पैकेट खरीदे जाते तो कभी गिलास के लिये एनर्जी ड्रिंक पीकर उसके ढक्कन इकठ्ठे किये जाते। बच्चों को आइसक्रीम जबरदस्ती खिलाई जाती जिससे ताश का पैकेट मिल जाये। कभी काली वाली को छोड़कर श्रीमती ने दूसरी ड्रिंक को हाथ नहीं लगाया। पर अब तीन लाख ने उनका आंख खोल दी थी ,अब दूसरी के आगे काली बेकार हो गई है। किसी दिन शृंगार मेज पर कोई क्रीम दिखाई देती किसी दिन अन्य। कभी कोई सा तेल कभी कोई सी शेविंग क्रीम।
हम हैं अपने चेहरे और बालों की सही सलामती के लिये भगवान से दुआ मांगते डोलते हैं। क्रीम लगानी ही पड़ती, दूसरे दिन दूसरी से चाहे ऐलर्जी हो जाये और उसके लिये डाॅक्टर को पूरी फीस देनी पड़े साथ ही चेहरे और बालों की सलामती की दुआ भगवान से मांगते रहते हैं।
मजाक उनका उ़ड़ा सकते नहीं क्योंकि जरा से मजाक से उनके दिल को ऐसी चोट पहुँचती है कि आठ दस दिन तक उसमें दरार पड़ी रहती हैं, और हमें फीकी चाय और जली दाल रोटी खाने को मिलती हैं। पहले उनके लिये अखबार एक रद्दी का ढेर और आलमारी में बिछाने के सिवाय और किसी उपयोग का नहीं था, अब वही उनके लिये सबसे अधिक उपयोगी बन गया है। उनके हिसाब से अखबार पढने से उन्हें एक नया प्रकाश मिला है।
ज्ञान का भंडार उनके आगे खुला है। मतलब घर नई चीजों से भर गया है। मुफ्त चीजों से, चाहे उनके कारण से खरीदी गयी चीज फालतू ही क्यों न हो परन्तु, मुफ्त चीज का आर्कषण, बस पैसे वसूल। कितनी ही इनाम पाकर तिजोरी भरने के चान्सेज हैं वैसे अब तक घर में सिर्फ रद्दी का ढेर अवश्य ऊँचां होता जा रहा है। उनके लिए वह घड़ी महाशुभ वरदायनी है जिस क्षण से उन्होंने अखबार पढ़ना शुरू किया है , और हम , न बाबा ,हमसे न पूछो तब ही अच्छा है।
रद्दी अधिक पैसों में बिकने लगी है पर हमारी जेब हल्की हो गई है। अखबार उनके लिये नियामत और हमारे लिये कयामत बन गया है।
अखबार के मारे हैं हम
इस रोड से घर को फौरन बदल लेंगे... नया फर्नीचर भी ले आयेंगे। अगर पहला इनाम न मिला तो कोई न कोई तो मिलेगा ही आठ दस जगह की मैंने लाटरी खरीद रखी है। हरेक में न सही चार ,पांच में कोई न कोई इनाम निकले तो हम आदमी हो जाएंगे। हां, एक बात कहे देती हूँ ,यह न कहना कि क्या गंवारों की सी बात कही है। मैं एक या दो वाली बात नहीं मानूंगी कम से कम चार पांच तो होने चाहिए। और हम सिर पकड़े उस कुघड़ी को कोस रहे थे। जब हम बड़ी शान से लाटरी के टिकिट खरीदने वाले अपने दोस्तों को आफिस में लेक्चर पिला रहे थे।
यही नहीं आये दिन पोस्टल आर्डर मंगा मंगा कर क्रासवर्ड पहेलियाँ आदि भरी जाने लगी थी। अखबार ने पैसे कमाने का चस्का लगा दिया था। उनकी एक से एक बढि़या दिल को मखमल पर लोटा देने वाली प्लानिंग व ख्याली पुलाव अपने गले से नीचे नहीं उतर पाते थें ,पर कमाई के लिये खरीददार चाहिए जो पैसे दे, हमारी श्रीमती जी पैसे दे रही थीं और कमाई और लोगों की हो रही थी। हल्की फुल्की प्रतियोगिताऐं भरकर आॅलबेब ट्रांजिस्टर आधे दाम में खरीदने के चक्कर में पूरे पैसे गंवा मुंह बाये उनके चेहरे के आत जाते रंग को देखा करते थे।
उनके अखबार पढ़ने ने ऐसा रंग दिखाया कि हमको आये दिन घर में नई नई चीजें दिखाई देती थी। किसी दिन देखते श्रीमती जी प्लास्टिक की बाल्दी में छः साबुन के पैकेट लिये चली आ रही हैं। किसी दिन मैजिक के दो डिब्बे अगर उनसे पूछिए कि इतने साबुन का क्या होगा तो जबाब मिलेगा ,‘अरे ! कैसा अखबार पढ़ते हो। मैंने कल ही तो अखबार में पढ़ा था, कि साबुन के छः डिब्बों के साथ एक बाल्टी मुफ्त।’ अरे! वाह क्या बढि़या बात है, कुछ रुपये की चीज मुफ्त आ गई फिर साबुन रोज के काम आने की चीज है।
मैजिक की ओर देखकर बोली, घर में नहाने वाला साबुन खत्म हो गया था। हमने चौंक पर देखा कि नहाने वाला साबुन भी ऐसे डिब्बों में कब से आने लगा तो सब कुछ साफ था, उस पर लिखा था दो के साथ मोती सोप मुफ्त। अरे ! कैसा अखबार पढ़ते हो ,इतना बड़ा बड़ा तो लिखा था दो के साथ एक नहाने वाला मुफ्त। हद तो जब हो गई हमें दूध में घोल घोल कर चुस्ती फुर्ती के आइटम पिलाये जाने लगे , कारण उनके साथ मिलने वाली चम्मचें थीं।
हां तो इस मर्ज की समाप्ति यही नहीं थी। कभी नहाने वाले साबुन के लिये मटर के पैकेट खरीदे जाते तो कभी गिलास के लिये एनर्जी ड्रिंक पीकर उसके ढक्कन इकठ्ठे किये जाते। बच्चों को आइसक्रीम जबरदस्ती खिलाई जाती जिससे ताश का पैकेट मिल जाये। कभी काली वाली को छोड़कर श्रीमती ने दूसरी ड्रिंक को हाथ नहीं लगाया। पर अब तीन लाख ने उनका आंख खोल दी थी ,अब दूसरी के आगे काली बेकार हो गई है। किसी दिन शृंगार मेज पर कोई क्रीम दिखाई देती किसी दिन अन्य। कभी कोई सा तेल कभी कोई सी शेविंग क्रीम।
हम हैं अपने चेहरे और बालों की सही सलामती के लिये भगवान से दुआ मांगते डोलते हैं। क्रीम लगानी ही पड़ती, दूसरे दिन दूसरी से चाहे ऐलर्जी हो जाये और उसके लिये डाॅक्टर को पूरी फीस देनी पड़े साथ ही चेहरे और बालों की सलामती की दुआ भगवान से मांगते रहते हैं।
मजाक उनका उ़ड़ा सकते नहीं क्योंकि जरा से मजाक से उनके दिल को ऐसी चोट पहुँचती है कि आठ दस दिन तक उसमें दरार पड़ी रहती हैं, और हमें फीकी चाय और जली दाल रोटी खाने को मिलती हैं। पहले उनके लिये अखबार एक रद्दी का ढेर और आलमारी में बिछाने के सिवाय और किसी उपयोग का नहीं था, अब वही उनके लिये सबसे अधिक उपयोगी बन गया है। उनके हिसाब से अखबार पढने से उन्हें एक नया प्रकाश मिला है।
ज्ञान का भंडार उनके आगे खुला है। मतलब घर नई चीजों से भर गया है। मुफ्त चीजों से, चाहे उनके कारण से खरीदी गयी चीज फालतू ही क्यों न हो परन्तु, मुफ्त चीज का आर्कषण, बस पैसे वसूल। कितनी ही इनाम पाकर तिजोरी भरने के चान्सेज हैं वैसे अब तक घर में सिर्फ रद्दी का ढेर अवश्य ऊँचां होता जा रहा है। उनके लिए वह घड़ी महाशुभ वरदायनी है जिस क्षण से उन्होंने अखबार पढ़ना शुरू किया है , और हम , न बाबा ,हमसे न पूछो तब ही अच्छा है।
रद्दी अधिक पैसों में बिकने लगी है पर हमारी जेब हल्की हो गई है। अखबार उनके लिये नियामत और हमारे लिये कयामत बन गया है।
अखबार के मारे हैं हम
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