Friday, 18 December 2015

हाय! गजब

कैसे कैसे घर ? गजब के घर, गजब के लोग कहाँ से पकड़ कर लाते हैं ये सीरियल वाले घर। महिलाऐं भारी भारी जेवर कपड़े से लदी रहती हैं यहाँ तक रात सोते समय भी न साड़ी सिकुड़े, न जेवर टूटे, न चुभे। सोकर अंगड़ाई लेकर उठेंगी, गजब जो जरा भी बाल बिखरें,जिसे कहते हैं न तुम्हारा बाल बांका भी नहीं होगा । एक तरफ घर नीलाम हो रहा होगा बहुओं को फिक्र होगी दूसरे की टांग कैसे खींचे ? एक भी जेवर कम नहीं होगा। न जाने कौन से देशों से गजब की कोमलांगी आई है पति से तकरार हुई उठाया सूटकेस वह भी चालीस इंच वाला। हैंगर साहित कपड़े डाले और उठाया चल दी ,सूटकेस ऐसे झुलाती जायेगी जैसे दारा सिह से बाहें उधार ली थीं, अब सुशील कुमार या विजय कुमार से मांग लेती होंगी। यहाँ तो कभी सूटकेस की जरूरत पड़ती है तो पहले दुछती पर से लाना पड़ता है या सामान ठुंसा होगा और फिर उठाने में कमर ही लचक जायेगी पर बाप रे, गजब दो इंच की कमर जो जरा लचके पटर पटर चलती जायेगी।
क्या गजब का काम करने का माद्दा है। पूरे बड़े महल जैसे घर चमचमाते हुए, पर एक भी नौकर नहीं, कभी कभी रसोइया काका अवश्य दिख जाता है। क्या झक्कास सफेद कपड़े ,काम करता वह भी नहीं दिखेगा, मेज पर व्यंजन क्या गजब ? मेज के इर्द गिर्दे दस दस सदस्य छोटा सा बाउल एक काम करने वाली वह भी वही साड़ी जेवर से लदी न दाग न धब्बा । एक गैस पर फटाफट एक गद्दी पालक से बड़ा भगौना पालक पनीर तैयार कर देगी। सब्जी कढ़ाई भरकर बनायेगी। हाय! कहाँ से खरीदती भी है वो सब्जी, एक गोभी से ही कटोरा भर बना देगी। इतना खाना बनाने में अपन को तो हुलिया टाइट हो जायेगी। न झाडू न फटका न पोछा न               धुलाई घर है कि उसे देख मुझे आती है रूलाई, ऊपर वाले यह कैसी दुनिया बनाई। हमें भी दे दे जादू भरे हाथ ऐसी मजबूत कलाई, सबको बहू आज के जमाने में सिर ढके परोसते नजर आयेगी, खायेगे सब पर सीरियल की बहु कभी खाना नहीं खायेगी। न मेज पर न रसोई में बहू कौन से देश से आई ? कहाँ से यह ताकत पाई ?
सबसे ज्यादा हैरानी होती है चाहे कोई मरे एक मिनट में क्या सफेद कपड़े पहन पहन कर लिपटकर रोने आ जाती हैं । सब औरत मर्द एकदम सफेद कपड़े तैयार रखते हैं कोई मरे और हम पहने। तुरंत साड़ी ब्लाउज तैयार एक दम चुस्त, एकदम फिट, न ढीला न झोला, हीरो साड़ी लाकर देगा और उस रंग का ब्लाउज पेटीकोट न जाने कहाँ से बराबर में मिल जाते हैं पहन कर फिर चली आती हैं वैसे एक भी कपड़ा नहीं टंगा होगा। एक अलमारी में चंद साड़ी लटकी होंगी पर क्या भक्कास सुबह दोपहर शाम बदलती रहेगी। तैयार ऐसी रहेगी हमेशा जैसे शादी में जाना है पर कहीं जाना हैं कहेगी अभी तैयार होकर आई, अब भैया इस में और कया तैयार होगे।


बच्चों का ट्रेंड कम है बड़े बड़े बच्चे मिलेंगे, उनके बच्चे नहीं मिलेंगे। अगर अपने घर में दो तीन देवरानी जिठानी दो बच्चे भी होंगे तो लगेगा घर युद्ध का मैदान है। एक भी चीज ठिकाने पर नहीं मिलेगी पर सीरियल में पूरे पूरे परिवार में एक या दो सभ्य बच्चे होंगे जो कभी कभी कमरे में मिल जायेेंगे। असली हम दो  बस का जमाना सीरियल में दिखता है, बहुत सभ्य बच्चे। मैने तो उदण्ड बच्चे देखें हैं भागते दौड़ते गले में झूलते, बच्चों के होने के साथ मोती के जेवर तो बड़ी बड़ी दावतों में नहीं पहन पाते पर सीरियल की महिलाएं मोती के सतलड़े झुलाती रहती हैं। मतलब यह है अरबपतियों के घरों के सीरियल आम जनता को ललचाने के लिये दिखाये जाते हैं कि तुम तो भैये चींटी हो इन सबसे ऊपर जब बच्चे पूछते हैं, मम्मी आप सीरियल वाली मम्मी क्यों नहीं बन सकती तब सबसे ज्यादा बेवकूफ अपने को ही पाते हैं।




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