कवियों ने बारहमासा और षट्ऋतु पर न जाने कितने ग्रन्थ लिख दिये हैं। नायक, नायिकाओं के जीवन में हर ऋतु अदभुत रोमांच लेकर आती है। रीतिकाल में लिखे महाकाव्य बिना बारहमासा और षट्ऋतु के पूर्ण ही नहीं
माना गया।
विवाहित जीवन भी तो जीवन का महाकाव्य है, अगर विवाहित जीवन को इन ऋतुओं का अनुभव न करना पड़े तो समझ लो जीवन बेहद नीरस और उबाऊ हो जायेगा। नायक के लिये कम मगर नायिका के षट्ऋतु वर्णन में कवि खो जाता है । पर जब नायिका की वजह से षट्ऋत का अनुभव प्रतिदिन नायक को झेलना पड़े तो उस नायक का क्या हो सकता है
यह आप अच्छी तरह समझ सकते हैं और सभी भुक्तभोगी हैं यह अलग बात है हमने इन अनुभवनों को षट्ऋत दिवस का नाम दिया है।
दिवस, जी हां इन ऋतुओं का एहसास एक दिन में होता रहता है, वह दिन होता है जब अधिकांश दुकानों पर एक साथ सेल का बोर्ड लग जाता है, साड़ी सेल पर तो जैसे उनमें एक उन्माद छा जाता है यह दिसम्बर या अप्रैल का कोई भी दिन हो सकता है।
बसंत का आगमन प्रातःकाल ही समाचार पत्र के साथ होता है। बसंत में नवांकुर को देख जहां कोयल के स्वर में कुहुक भर जाती है हमारी श्रीमती जी के स्वर में अखबार में सेल का विज्ञापन देखते ही कुहुक भर जाती है। चाय के साथ साथ हमें उंगलियाँ गुदगुदाती है। बासंती बयार बालों को सहलाती है। वाणी में अमृत रस घुला होता है। चेहरे की दमक हमें शृंगार रस से सराबोर कर देती है। रससिक्त तन बदन हमारी एक एक चाहत को जल्दी जल्दी पूरा करता जाता है।
बिना मांगे एक एक चीज स्थान पर मिलती जाती है, जैसे जीवन हमारे इर्दगिर्द मंडरा रहा हो। लेकिन साथ ही जब अपनी खाली जेब देखते हैं तो ऋतुऐं बदलने लगती हैं।
षट्ऋतु अगला भाग
माना गया।
विवाहित जीवन भी तो जीवन का महाकाव्य है, अगर विवाहित जीवन को इन ऋतुओं का अनुभव न करना पड़े तो समझ लो जीवन बेहद नीरस और उबाऊ हो जायेगा। नायक के लिये कम मगर नायिका के षट्ऋतु वर्णन में कवि खो जाता है । पर जब नायिका की वजह से षट्ऋत का अनुभव प्रतिदिन नायक को झेलना पड़े तो उस नायक का क्या हो सकता है
यह आप अच्छी तरह समझ सकते हैं और सभी भुक्तभोगी हैं यह अलग बात है हमने इन अनुभवनों को षट्ऋत दिवस का नाम दिया है।
दिवस, जी हां इन ऋतुओं का एहसास एक दिन में होता रहता है, वह दिन होता है जब अधिकांश दुकानों पर एक साथ सेल का बोर्ड लग जाता है, साड़ी सेल पर तो जैसे उनमें एक उन्माद छा जाता है यह दिसम्बर या अप्रैल का कोई भी दिन हो सकता है।
बसंत का आगमन प्रातःकाल ही समाचार पत्र के साथ होता है। बसंत में नवांकुर को देख जहां कोयल के स्वर में कुहुक भर जाती है हमारी श्रीमती जी के स्वर में अखबार में सेल का विज्ञापन देखते ही कुहुक भर जाती है। चाय के साथ साथ हमें उंगलियाँ गुदगुदाती है। बासंती बयार बालों को सहलाती है। वाणी में अमृत रस घुला होता है। चेहरे की दमक हमें शृंगार रस से सराबोर कर देती है। रससिक्त तन बदन हमारी एक एक चाहत को जल्दी जल्दी पूरा करता जाता है।
बिना मांगे एक एक चीज स्थान पर मिलती जाती है, जैसे जीवन हमारे इर्दगिर्द मंडरा रहा हो। लेकिन साथ ही जब अपनी खाली जेब देखते हैं तो ऋतुऐं बदलने लगती हैं।
षट्ऋतु अगला भाग
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