Friday 18 December 2015

सरकारी नौकरी

‘ए !बहू जी तुम तो इत्ती जगह जात होई ,मेरे लाला के लिए नौकरी लगवाय दो ’ मेरी मनुहार करती काम वाली बाई बोली ।

‘कितना पढ़ा है ? क्या काम कर सकता है ?’
मेरे अंदर समाज सेवा करने  का उत्साह कुलबुलाया ,किसी के लिए कुछ करने का जज्वा जोर मारने लगा, तुरंत कहा।

‘बाने दसई को साटिफिकेट लियो है, एक हजार लगे वैसे स्कूल में सातवीं तो पढ़ो हतो पास कर ली है।’
‘तब क्या नौकरी लगेगी ? पास मैं गोदाम है लगवा दूं  मेहनत का काम है कार्टून उठा उठा कर रखने होते हैं।।’‘ अरे बापे, काम ई तो ना होत ,कछु करे न चाहत ,जई लिए कह रही है कि सरकारी लगवाय दो,चपरासी की तौ लग जायेगी वामें दसई पास होनो चहिये।’

‘ये दसवीं के कागज कहां से बनवाये।’मेरे अंदर का जासूस चैतन्य हो गया
‘चैं बन जात है, हजार रुपया लगत है सरकारी नौकरी में दसवीं पास चाहिए न ’।
‘सरकारी ! सरकारी नौकरी क्या इतनी आसानी से लग जायेगी ।’


‘खच्च कर दूंगी ,बाकी चिंता मत करो, काई भी जगे लगवा दो अब का करुँ बिलकुल हर्रम्मा है । बासे काम ही तो नाय होत। पिरैवेट में तो काम कारनो पड़ेगो । काम नाय करेगो तो कल निकार देंगे । सरकारी में तो एक बार परमामेंट है जय फिर कोई माई कौ लाल न निकार सकत। ’


नहीं मालुम फिर उसका क्या हुआ , क्योंकि मैंने मना कर दिया कि मैं नहीं कर पाऊँगी ,तो वह काम छोड़ गई । जाते जाते  मेरे मुहँ पर तमाचा सा मार गई ,‘मैंने तो सुनी त्यारी भौत पौंच है , तौ का फायदा काम करवे तै ।’

फिर दिखी भी नहीं । सच है, सरकार कई डिब्बे वाली ट्रेन है जिसके फस्र्ट ,सेंकंड ,थर्ड पर तो ऊपरी तंत्र टांग पसार कर सो रहा है । अगर एक भी सीट खाली तो मौजूदा व्यक्ति के परिवार का बच्चा ही सही स्टेशन से चढ़ जायेगा स्लीपर पर अफसर बैठे हैं ,सो रहे हैं।

कुछ डिब्बे जनता के इसमें ठुस्सम ठुस्सा हो रही है और सरक यार । सरक यार । दुसरे दरवाजे से गिर जाये कोशिश करते हैं और खुद लटक कर ही सही चढ़ जाते हैं ,फिर क्या बस ठुसना चाहिए । रेल तो अपने आप चल रही है चलती जायेगी ।

आराम बड़ी चीज है मुंह ढक के सोइये,
किस किस को याद कीजिए किस किस को रोयिये।’
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम
दस मलूका कह गए सब के दाता राम।

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