Friday 18 December 2015

ऐश

‘चल भैये, आज ऐश करते हैं

फटी कमीज और गंधाते शरीर से एक हाथ से खुजाते फते लाल बोले ‘आज सत्ताइस की जगह तीस रुपये कमा लिए हैं , आज हम अमीर हो गए है ,चल नमक से प्याज खाई जाये ’ फत्ते और सुर्ती सब्जी वाले के पास पहुॅंचे और उसको तीन रुपये देकर बोले ,‘लाला तीन रुपये हैं, तीन रुपये , ला प्याज तोल दे,’ प्याज को ढकते लाला बोला, ‘जा ,जा, प्याज खाएगा ,ऐसे आ गया ,तीन रुपये का सोना तोल दे।



दोनों ने एक दूसरे को देखा, सुर्ती बोला,‘ फत्ते , चल जामा मस्जिद ही चलते हैं यही टिन डाल लेंगे, नहीं तो सोने की जगह तो मिल ही जाएगी ,पांच रुपये का खाना खायेंगे भर पेट ,पांच सुबह, पांच शाम ,दस रुपये बाकी बैंक मेे जमा कर देंगे ,हो जायेंगे हाल लखपति, जब सात साल मैं फटेलाल अरबों पति बन सकता है ,तो हम लखपति तो बन ही सकते हैं ।’


अरे नहीं सुर्ती दिल्ली नहीं मुम्बई चलते हैं। बारह रुपये में राजबब्बर के साथ खायेंगे’ ‘हां हां यही ठीक है ,पर बूढ़े मां-बाप और बच्चों का क्या करे वो तो कमाते नहीं ।’


‘सुरती तू रहेगा घौंचू, ,उनकी क्या फिकर ,मां-बाप को वृद्ध आश्रम मैं और बच्चों को अनाथालय में डाल देंगे। वहां कम से कम नहाने को और चाय तो मिल जायेगी । नहाने का साबुन ,पानी चाहिए । पहले तो जमुना में नहा लेते थे । अब तो वहां भी पानी नहीं हैं ।

नल लगवायेंगे तो पैसे लगेंगे । पैसा क्या पेड़ पर उगता हैं । मंत्रियों के खर्चें तो पूरे होने वाहिये चाहिए भय्ये। फत्ते ,जनता रुपी पेड़ हैं तो हिला मंदिर के आगे कटोरा लेकर बैठेंगे । वहां खाने के साथ और भी कुछ न कुछ मिल जायेगा ।


सोमवार शिव, मंगल हनुमान, बुध गणपति, ब्रहस्पति साईं, शुक्र देवीजी, शनिवार शनि देवता, रविवार को तो बहुत जगह मिलता है, नहीं तो गुरुद्वारा तो हैं ही सुरती । गोगी साहब ने एक खाना और सुझाया है कीड़े मकोड़े का चल वहीं पकड़ेगे बैठे बैठ। बोलो धरम करम की जय।
लो । चल


एक अदृश्य सत्ता के सामने हम नत मस्तक हैं । हर धर्म मानता है कि कोई शक्ति है जो कण कण में व्याप्त है । हिन्दू धर्म में हम उस सत्ता को भगवान् कहते हैं ।

क्या भगवान है ?
प्रश्न उठता है हमारा अस्तित्व भगवान् से है या भगवान् का आस्तित्व हम से है। भगवान् है यह हमने कहा है ,भगवान् ने तो कभी आकर नहीं कहा कि वह है । हमें किाी को तो अपने कर्मों का दोषी ठहराना है ,हमने एक स्वरूप बनाया । इसलिए भगवान के निर्माता हम हैं । क्योंकि हम स्त्रष्टा हैं , इसीलिए  रोज एक भगवान का निर्माण कर लेते  हैं।भगवान् के कोई मानदंड नहीं बनाये इसलिये जिसे चाहे भगवान् कहना शुरू कर देते हैं।नहीं तो खुद अपने को भगवान् कहना शुरू कर देता है ।


कभी वो भगवान् हमे जेल के अंदर मिलता है। कभी कलकत्ते मैं ढूढ़ने जाते हैं । पता लगता है वह कही मैदान में है और अगर कभी जरा कम देर के लिए मैदान में टिकता है तो हम तुरंत भगवान् के पद से उतार देते हैं ।

ऐश:अगला भाग

No comments:

Post a Comment

आपका कमेंट मुझे और लिखने के लिए प्रेरित करता है

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...