Friday 18 December 2015

ऐश भाग 2

ऐश पिछला भाग
कुर्सी खिसकाने में हम माहिर हैं। हिन्दू धर्म के भगवान् अगर अजन्में हैं  अमर हैं तो जन्म भी लेते हैं। अवतार हैं न ।एक भगवान चन्द्रमा कि कलाओं के साथ आये ,मस्त मस्त आश्रम बनवाये , लेकिन  इस दुनिया को छोड़ गए उनकी आवाज आज भी सुनने को मिल जायेगी ,प्रवचन मिल जायेंगे ।


राम कृष्ण की तो नहीं मिलेगी तो  कौन बड़ा भगवान् हुआ एक भगवान् पुट्टपर्थी में थे ,कहा जाता था कि उनकी उम्र किसी को नहीं मालुम ,लेकिन हमारे देखते देखते वो बूढ़े हुए और मर गए । छोड़ गए अरबों रुपये लूटते सेवकों को। भगवान् निर्लिप्त हैं तभी सोने पर सोते थे क्या रुपयों का पलंग बनाया था।


एक लम्बी सूची है भगवानों की। हिन्दू धर्म में वैसे भी 33 करोड़ देवी देवता हैं। अपने अपने भगवान्, अलग अलग धर्म के अलग भगवान्, इस हिसाब से औसत प्रति तीन व्यक्ति एक भगवान् हैं । पर हम दूसरे को अपना भगवान् कैसे मानने दें इसलिये रोज एक भगवान् बना लेते हैं। 


जितने जीव उतने भगवान्। रोज हम भगवान् बनाते हैं । नए भगवान् का निर्माण करते हैं । फिर उसका कुछ दिन बाद नाम मिटा देते हैं। अजर अमर अनादि अनन्त के आस्तित्व का एक अदना सा आदमी निर्माता है ।वाल्तेयर ने कहा था ‘ भगवान् का निर्माता इन्सान है और फिर उस इन्सान ने भगवान् को  अपने सिक्के में ढाल लिया ।



बहुत भव्य कार्यक्रम था, बड़े पुण्य के कार्य के लिए कार्यक्रम हुआ । शहर के प्रसिद्ध समाजसेवी उपस्थित थे। बड़़े धार्मिक गुरु भी उपस्थित थे क्योंकि अभिनेत्री नृत्यांगना उनकी प्रिय शिष्या थी। भव्य मंच ,भव्य साज सज्जा और  भव्य कार्यक्रम हो तो सारा प्रशासन तो होगा ही । शहर की सभी नामचीन हस्तियां, उपस्थित होंगी ही । पास से एंट्री आावश्यक हैं, यदि पास नहीं तो शहर का नामी व्यक्तित्व नहीं ,इसलिये उनकेा अपनी उपस्थिति दिखाना जरूरी होता है नहीं तो कैसे मालुम पड़ेगा कि वे शहर की हस्ती हैं ।

समाज सेवा का उद्देश्य भी तो बहुत नेक था । सुन्दर अशिक्षित अविकसित सभ्य समाज से दूर इंसानों के भले के लिए आयोजन । सबने नृत्यांगना की कला को देखा और सराहा और धन्य हुए और धन्य हुए  वे दूरस्थ प्राणी नयन सुख मिला , आत्मा बाग बाग हुई तो लहरें सुदूर वासियों को जरूर पहुंची होंगी । कवि निंदा फाजली ने कहा तो माँ के लिए हैं पर सटीक बैठती हैं

मै रोया पददेस में भीगा (माँ) समाजसेवियों का प्यारदिल ने दिल से बात की बिन चिट्ठी बिल तार

राम ने अपने साथ जंगल वासियों को जोड़ा था तो स्वाभाविक है कार्यक्रम भी राम को ही समर्पित किया गया।  संस्था उनके हित में कभी रामकथा कराती उस अशिक्षित समाज के लिये राम के वन गमन पर रो-रो देती । यह शहर में होता  उन्हें शिक्षा मिल जायेगी । हां अपने शहर की बस्तियों में उससे बुरा हाल हैं ।  विदेश में बसे बच्चों ने  मां का जन्मदिन मनाया ।


बड़ा सा केक काटा और स्वदेश में अकेली बैठी मां को फोन किया मां हम तुम्हारा जन्मदिन मना रहे है  माॅं आप टैब चलाना जानती तो दिखाते। फोन पर माँ को सुनाया ,‘माँ हैप्पी वर्थ डे टू यू ’सबने मिल कर गाया । सुन सुन कर कल्पना कर रही माँ प्रसन्न थी , आर्शीवाद दे रही थी ,कितना ख्याल रखते हैं बच्चे और बच्चे केक के साथ स्वादिष्ट खाना खाते कह रहे थे ,‘माँ बहुत बढि़या खाना है ’

बच्चे तृप्ति से खा रहे  हैं माॅं प्रसन्न थी , और माँ सुबह की रखी रोटी एक सब्जी से खा, आशीष देती अकेली सो गई।

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