समय की उम्र
समय की उम्र ज्ञात करना भी एक मुश्किल कार्य है। पृथ्वी पर कई तह हैं और ये तह पृथ्वी के बनने के बाद से समय समय पर बनती रहती हैं। रेडियो तरंगों से और अन्य तरीकों से वैज्ञानिक अनुमान लगा लेते हैं। यदि कोई जीव धरातल की सतह में हो तथा सतह के समय का ज्ञान हो तो उससे जीव के काल का पता लग जाता है। जीवाष्मों से सतह की उम्र का भी अंदाज लगता है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
मानव के जन्म से करोड़ों वर्ष पूर्व इस पृथ्वी पर सरीसृप जाति के जीवों का साम्राज्य था। नवीनतम खोजों के अनुसार डायनोसोर पृथ्वी पर बाईस करोड़ अस्सी लाख वर्ष पहले विचरण करते थे। अमेरिका और अर्जेन्टीना के वैज्ञानिकों ने समय की मोटी-मोटी परतों को बेधकर एक ज्वालामुखी की राख से यह पता लगाया कि इनका समय बाइस करोड़ पचास लाख वर्ष है। साथ ही एंडीज पर्वत श्रेणी की तराई में एक डायनोसोर के जीवाश्म ढूँढ़ निकाले हैं। पूरा प्राणी भीमकाय न होकर आकार प्रकार में एक कुत्ते जितना है। दो पैरों वाला यह सरीसृप नाक से पूँछ तक एक मीटर से कुछ लम्बा था ,और उसका वजन था 11 किलोग्राम, इस जीव का पता अक्टूबर 1991 में पाल सेरेना और ए फ्रेजे मोनेटो नामक वैज्ञानिकों ने लगाया, इसका नाम उन्होंने ‘इओरेप्टर ’ रखा। अजेंन्टाइना की स्थानीय भाषा में इसका अर्थ होता है ‘उत्पत्ति काल का जीव’ ।
ये जीव रीढ़ की हड्डी रहित होता था। रीढ़ की हड्डी वाले जानवर में मछली चिड़िया एवम स्तनपायी जानवर आते थे और बिना रीढ़ वालों में रेंगने वाले जानवर आते हैं। इनका रक्त ठंडा होता था ,ये अपने शरीर के तापमान को घटा बढ़ा नहीं सकते थे। उनका जीवन मौसम के साथ चलता था। गर्म दिन इनके लिये खुुशगवार दिन होता और ये सक्रिय रहते थे। ये सभी सरीसृप अंडे देते थे। अब रेंगने वाले जीव केवल गर्म प्रदेशों में ही पाये जाते हैं। ऐतिहासिक काल में धु्रव प्रदेश को छोड़कर अन्य सब स्थानों पर जलवायु विषवत् तथा समसीतोष्ण प्रदेशों के समान गरम थी।
प्रागैतिहासिक काल का आर्चोसोरस का अंश आज के मगर में तथा समुद्र के विशाल कछुए में देखा जा सकता है। कोई कोई कछुआ 160 किलो का भी होता है। ये विशाल कछुए हिंद महासागर में पाये जाते हैं। सबसे पहले ये रीढ़ वाले प्राणी मछली के रूप में पानी में पाये जाते थे। धीर-धीरे इन प्राणियों ने पानी से बाहर रेंगना प्रारम्भ किया। सबसे प्राचीन पानी का जीव कनाडा में पाया गया जिसे फ्लाईलोनेमस का नाम दिया गया।
धीरे धीरे रंेगने वाले प्राणी बढ़ते गये और स्थान स्थान पर फैल गये। कुछ रेगिस्तान में रहने लगे कुछ दलदल में। ये भयानक छिपकलियाँ विशाल रूप लेती चली गई। ये शाकाहारी होती थीं। ये डायनोसोर आलसी भी होते थे। एक प्रकार का डायनोसोर तो चलता फिरता टैंक था और मोटी मोटी हड़ीली पर्तो से ढका था। बाईस करोड़ साल पहले डायनोसोर बहुत आम जीव था, लेकिन हमारे लिये विचित्र और अदभुत् संभवतः दूसरे ग्रह के प्राणी के समान।
प्राप्त जीवाश्मों से ही इनके प्रारम्भिक जीवन खानपान और शारीरिक संरचना के विषय में ज्ञात होता है। इनकी खाल भूरी हरी सी होती थी। मांसाहारी डायनोसोर का जबड़ा मजबूत और नुकीले दांत होते थे, जिससे वे मांस चीर फाड़ सकंे। शाकाहारी जीव के दांत नुकीले न
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होकर पिसाई मशीन के दांत की तरह सींगों के से होते थे। जिससे डालियाँ आसानी से काटी जा सकें।
सबसे पहले मेगालोसोरस नामक डायनोसोर का नामकरण हुआ। यद्यपि 1824 तक यह ज्ञात नहीं हो सका कि यह जीव डायनोसोर है या ऐसा प्राणी है कि पृथ्वी पर कभी पाया जाता था। 1600 में छपी एक पुस्तक में मेगालोसोरस की एक विशाल हड्डी का चित्र था उस समय लोगों का यही अनुमान था कि वह किसी विशाल मनुष्य की हड्डी है।
अब तक के ज्ञात डायनोसोर में ब्रेंाकियोसोरस सबसे विशाल था। संभवतः इसका वजन सौ टन या इससे भी अधिक होता था। इसका प्राप्त जीवाश्म 90 फिट लम्बा है। इसका सर 39 फुट जमीन से था। ब्रेकियोसोरस उत्तरी अमरीका और अफ्रीका के दलदली इलाके में पाया जाता था, यद्यपि यह थलीय प्राणी था लेकिन पानी में इसके भारी शरीर को अच्छा सहारा मिलता था। इसके जीवाश्म अधिकतर दलदली इलाकों में पाये जाते हैं। भारी शरीर अपने आपको दलदल में से निकाल नहीं पाता था और वहीं फंस कर मर गया।
टाइरनोसोरस सभी डायनोसोर क्या अब तक के ज्ञात सभी प्राणियों में भयानक था। इसकी ऊँचाई जमीन से करीब 13 फुट और लम्बाई पचास फुट थी। इसके पेंसिल के समान लंबे लंबे नुकीले दांत थे। टायनोसोरस के जीवाश्म उत्तरी अमेरिका और एशिया में पाये गये।
कुछ डायनोसोर ऐसे थे जिनके कूल्हे की हड्डी पक्षियों से मिलती हुई थीं। इनमें चार जातियाँ मुख्य थीं आर्नीथोपोडस, स्टेगोसोरस, एन्किलोसोरस, सेरेप्टियोसियन्स। अनीथोपोडस अपने दोनों पिछले पैरों पर चलता था। बाकी के अन्य अपने चारों पैरों पर। स्टेगोसोरस के मछलियों केे शक्ल जैसे शंकु पीठ पर लगे रहते थे। एन्किलोसोरस के पीठ पर मोटी परतें रहती थीं ,सिरेटायसियन्स के सींगों के पीछे झालर सी लगी रहती थी। पैसीसिफैलोसोरस की खोपड़ी मनुष्य की खोपड़ी से पच्चीस गुना मोटी और मजबूत होती थी। लेकिन करीब करीब सभी डायनोसोर का मस्तिष्क मुर्गी के मस्तिष्क के बराबर होता था।
पेट्रोसोरस आकाश में उड़ते थे, लेकिन थे रंेगने वाले जीव ही। हैरानी है कैसे समुद्र से पृथ्वी पर आये और उड़ने कैसे लगे? संभवतः कुछ प्रारम्भिक डायनोसोर जो पेड़ों पर रहते थे। उनके पैरों पर झिल्लियाँ बन गईं। क्योंकि वे एक पेड़ से दूसरे पर कूदते थे। धीरे धीरे वे उनसे ग्लाइडर का काम लेने लगे। आजकल भी कुछ उड़ने वाले पशु जैेसे छिपकली गिलहरी बिलाव पाये जाते हैं। धीरे धीरे पैट्रोसोरस के मजबूत नाड़ी तंत्र भी विकसित हो गया।
सभी पैट्रोसोरस का शरीर छोटा होता था ,लेकिन पंख बड़े बड़े थे। लम्बे भारी जबड़ों में दांत नहीं होते थे, लेकिन नुकीली हड्डियाँ रहती थीं। पैट्रोसोरस के पंख खाल की पतली झिल्ली के समान थे और सामने की ओर से हाथ की कन्नी उंगली जो अप्रत्याशित रूप से लम्बी हो जाती थी। उससे धनुषाकार रूप में जुड़े रहते थे। लम्बी पूँछ संतुलन बनाये रखती थी। पैट्रोनोडोन नामक डायनोसोर चिड़िया के सिर पर हड्डी का सा मुकुट था। संभवतः वह उड़ते समय सिर को सीधा रखने में सहायक होता था। पैट्रोसोर तो अधिक बड़े नहीें होते थे। परन्तु पैट्रोसोडोन के एक पंख का फैलाव करीब पचास फुट का था।
समुद्र के डायनोसोर में इचीथिसोरस और प्लैसीसोरस बहुतायत में पाई जाने वाली जातियाँ थीं। इचीथिसोरस पानी में ही रहता था जबकि प्लैसीसोरस कभी कभी जमीन पर भी आ जाता था। मौसासोर पानी की विशाल छिपकली जैसा था। प्लैसीसोरस के पैडल नुमा पैर तैरने में सहायक होते थे। विशाल बरमूदा क्षेत्र में खींचा गया लाचनेस का चित्र प्लैसीसोरस से मिलता हुआ है। यद्यपि यह विवादास्पद ही है कि वहाँ क्या देखा गया था।
मैरी एनिंग सन 1799-1847 पहली महिला थीं जिन्हेांने इचियोसोर, पलैसीसोर और
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पैट्रोसोर के कंकालों को एकत्रित किया था। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन इंगलैंड के डोरसेट शहर में व्यतीत किया और पिता की तरह जीवाश्मों की खोज करती रहीं। डोरसैट तट जीवाश्मों के लिऐ प्रसिद्ध रहा है।
संभवतः डायनोसोर पृथ्वी पर हुए परिवर्तनों की वजह से अपने को जीवित नहीं रख पाये। पेड़ों और पौधों के आकार प्रकार बदल गये जो उनका भोजन नहीं था। ठंडा खून होने की वजह से पृथ्वी का ठंडा होता वातावरण उन्हें जीवित रखने में असमर्थ हुआ। यह सब अनुमान ही है ,लेकिन वास्तव में इतना विशाल प्राणी अपना आस्तित्व क्यों नही रख पाया यह पहेली ही है? कई करोड़ वर्ष तक कई युगों में और कई भौगोलिक परिवर्तनों में अपना साम्राज्य रखने के बाद एकाएक थोड़े से समय में क्यों खत्म हो गये?
लेकिन अब उन्हें जगह जगह प्राकृतिक संग्रहालय में देखा जा सकता है। जैसे जैसे जीवाश्म मिलते जाते हैं, उनके कंकालों में और आकृति में सुधार किया जाता है।
लंदन के क्रिस्टल महल की 1854 की प्रदर्शनी में डायनोसोर को पूर्ण आकृतियों में दिखाया गया था। इनका निर्माण बेन्जामिन वाटर हाउस हाकिन्स ने प्रोफेसर रिचर्ड ओन के निर्देशन में किया था।
मंगोलिया और गोबी रेगिस्तान जीवाश्म अन्वेषकों के लिए भंडार हैं। यहाँ क्रेटेसस युग के डायनोसोर के जीवाश्म बहुतायत में पाये गये। यहाँ पर प्रोटोसरेटॉप के अंडो का समूह पाया गया।
तंजानिया में बींसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ब्रेंकोसोरस, स्टेगोसोरस तथा अन्य उड़ने वाले सरीसृपों के जीवाश्म प्राप्त हुए थे।
अर्जेंटाइना में सरोपोड और क्रटेसस युग के डायनोसोर मिले थे। ब्रूसेल्स के प्राकृतिक ऐतिहासिक संग्रहालय में 1877 में मिले डायनोसोर को आकार देकर 20 कंकाल रखे हुए हैं।
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