रामायण, महाभारत सीरियल क्या सफल हुए ,जैसे धार्मिक सीरियल की बाढ़ आ गई हो, अगर धर्म की बात हो और युद्ध न हो, यह तो हो ही नहीं सकता। अगर राजा महाराजाओं का सीरियल है तो युद्ध। क्योंकि सत्ता और युद्ध का चोली दामन का साथ है । अब युद्ध जुवान से लड़ा जाता है पहले तीर तलवारों से।
और जब कथा ही महायुद्ध पर आधारित हैं तो उनका चित्रण भी परम आवश्यक है। लेकिन महायुद्ध अर्थात अक्षौहिणी सेना ,वह कहां से आये ? जितने योद्धा रखेंगे उतने पैसे देने पड़ेंगे, तो लड़ा देते हैं ऐसा महायुद्ध जिसमें एक योद्धा से केवल एक ही व्यक्ति लड़ता है। रुक-रुक कर ,बातें करते समय एक दूसरे को तीर मारना या अन्य किसी अस्त्र का उपयोग करना तो मना है ही, साथ उस समय किसी भी अन्य योद्धा का वार करना भी मना होता है। योद्धा एक दूसरे योद्धा के पेट में तलवार धंसा कर बाहर निकाल भी लेता है मानो मक्खन मलाई में से निकाला हो, पर न मक्खन लगता है न रक्त, तलवार झक सफेद, न मिट्टी गीली।
सुर्योदय से सूर्यास्त तक युद्ध करने के पश्चात् भी वीरों, महावीरों के कपड़ों पर सिकुड़न तो क्या एक मिट्टी का धब्बा भी नहीं लगता। तीर ऐसे जैसे फूलों की मार। उनसे बहा रक्त, अदृश्य रक्त जो बाहों आदि पर एक दो क्षण चमकता है दूसरे क्षण साफ, और सावधान जो कपड़ों पर एक बूँद भी टपके ,‘कपड़े पर चमकना या गिरना मना है ‘ । इस लेबल के साथ रक्त लगा होता है क्योंकि कपड़े किराए के हैं। किसी किसी जगह साॅस बिखर जायेगी हो गया रक्त , ज्यादा नहीं , मालिक पूरे पैसे रखवा लेगा। अगर बनवाये भी होंगे तो बार बार बनवाने और धुलवाने का खर्च जो बढ़ जायेगा। गहनों से लदे फदे राजा युद्ध करेंगे पर मोती की माला तक नहीं टूटती यहाॅं तो बच्चा भी माला पहने गोद लेलो माला समझो गई ।
अलाउद्दीन के चिराग का भूत हर योद्धा के रथ में बैठा उन्हें तीर पर तीर पकडाता रहता है क्योंकि रथ तो खाली दिखता है। तूणीर में दो तीर चमकते रहते हैं और तीरों की वर्षा होती रहती है। शायद बीच में आपस में कहते होंगे जरा रुक तीर बटोर लाऊँ फिर मारूँगा ,तू चाहे तो तू भी बटोर ले। मंत्र पढ़कर जब तीर मारे जाते हैं तो घात खाने वाला इंतजार करेगा तू पूरा मंत्र पढ ले, आराम से मारियो जब तक तीर मुझे नहीं लगेगा मैं हिलॅूंगा भी नहीं।
सूर्यास्त के समय मैदान में लाशें जलती सी पड़ी होती है, और योद्धा भी मरे पड़े होते हैं, लेकिन प्रातः मैदान ऐसा साफ होता है जैसे नया मैदान चुना गया हो, एक भी लाश नहीं मिलती , उस नगर निगम के कर्मचारी बड़े कर्मठ होते हैं यहाॅं तो कुत्ता तो क्या आदमी भी जब सड़ने लगेगा तब उठेगा । और कमाल है हाथी घोड़े जितनी देर मैदान में रहेंगे लीद नहीं करेंगे। हमारे बाजार में गाय, भैंस निकलती है तो बाजार में गोबर ही गोबर हो जाता है। पर योद्धाओं की जूतियाँ भी कमाल है फिसलना तो दूर गंदी भी नहीं होती। हर दिन शूटिंग के बाद योद्धा बातें करते होंगे,
किसी भी मृत योद्धा का अंग भंग नहीं होता, न कपड़े रक्त से सने होते है न मैदान में रक्त की एक बूंद। जहाँ योद्धाओं का रक्त बहा हो वह स्थान सूखा ,भुरभुरी धूल से भरा रहता है। चमेली बाई और मुन्नीबाई में मुहल्ले में लड़ाई हुई दोनों के बाल नुच कर बिखर गये धोती फट गई आॅंखें थी कि खा जायेंगी , पल भर में बेचारे ठेल वाले का सामान बिखर गया जो बीच में आया पिट गया पर फिल्मी युद्ध में पगड़ी भी नहीं गिरती फॅेंटा बंधा ही रहेगा। फिल्मी युद्धों में तो सब भले हैं किसी के बीच में नहीं पड़ते । कितना अच्छा है फिल्मी युद्ध । है न!
हर युग में संग्राम तो हुआ ही है ,चाहे देवासुर संग्राम हो, चाहे राम रावण युद्ध हो ,चाहे कंस और कृष्ण का युद्ध हो, महाभारत तो है ही युद्ध, शिव पर है तो युद्ध, अर्थात युद्ध तो होना ही है।
और जब कथा ही महायुद्ध पर आधारित हैं तो उनका चित्रण भी परम आवश्यक है। लेकिन महायुद्ध अर्थात अक्षौहिणी सेना ,वह कहां से आये ? जितने योद्धा रखेंगे उतने पैसे देने पड़ेंगे, तो लड़ा देते हैं ऐसा महायुद्ध जिसमें एक योद्धा से केवल एक ही व्यक्ति लड़ता है। रुक-रुक कर ,बातें करते समय एक दूसरे को तीर मारना या अन्य किसी अस्त्र का उपयोग करना तो मना है ही, साथ उस समय किसी भी अन्य योद्धा का वार करना भी मना होता है। योद्धा एक दूसरे योद्धा के पेट में तलवार धंसा कर बाहर निकाल भी लेता है मानो मक्खन मलाई में से निकाला हो, पर न मक्खन लगता है न रक्त, तलवार झक सफेद, न मिट्टी गीली।
सुर्योदय से सूर्यास्त तक युद्ध करने के पश्चात् भी वीरों, महावीरों के कपड़ों पर सिकुड़न तो क्या एक मिट्टी का धब्बा भी नहीं लगता। तीर ऐसे जैसे फूलों की मार। उनसे बहा रक्त, अदृश्य रक्त जो बाहों आदि पर एक दो क्षण चमकता है दूसरे क्षण साफ, और सावधान जो कपड़ों पर एक बूँद भी टपके ,‘कपड़े पर चमकना या गिरना मना है ‘ । इस लेबल के साथ रक्त लगा होता है क्योंकि कपड़े किराए के हैं। किसी किसी जगह साॅस बिखर जायेगी हो गया रक्त , ज्यादा नहीं , मालिक पूरे पैसे रखवा लेगा। अगर बनवाये भी होंगे तो बार बार बनवाने और धुलवाने का खर्च जो बढ़ जायेगा। गहनों से लदे फदे राजा युद्ध करेंगे पर मोती की माला तक नहीं टूटती यहाॅं तो बच्चा भी माला पहने गोद लेलो माला समझो गई ।
सभी योद्धा कितने अनुशासन प्रिय होते हैं कि शोर से पर्यावरण दूषित न हो इसलिये चुपचाप युद्ध करते हैं।तलवार की टनटन साफ सुनाई देगी । यहां तो मुहल्ले में दो बच्चों में हाथापाई होती है तो इतना शोर होता है कि सारे घरों के खिड़की दरवाजे खुल जाते हैं।
अलाउद्दीन के चिराग का भूत हर योद्धा के रथ में बैठा उन्हें तीर पर तीर पकडाता रहता है क्योंकि रथ तो खाली दिखता है। तूणीर में दो तीर चमकते रहते हैं और तीरों की वर्षा होती रहती है। शायद बीच में आपस में कहते होंगे जरा रुक तीर बटोर लाऊँ फिर मारूँगा ,तू चाहे तो तू भी बटोर ले। मंत्र पढ़कर जब तीर मारे जाते हैं तो घात खाने वाला इंतजार करेगा तू पूरा मंत्र पढ ले, आराम से मारियो जब तक तीर मुझे नहीं लगेगा मैं हिलॅूंगा भी नहीं।
घोड़े पर से पैदल इस तरह सवार को खींचता है मानो कह रहा हो, घोड़े पर अब तू बहुत बैठ लिया अब मुझे भी कुछ देर सवारी करने दे।
सूर्यास्त के समय मैदान में लाशें जलती सी पड़ी होती है, और योद्धा भी मरे पड़े होते हैं, लेकिन प्रातः मैदान ऐसा साफ होता है जैसे नया मैदान चुना गया हो, एक भी लाश नहीं मिलती , उस नगर निगम के कर्मचारी बड़े कर्मठ होते हैं यहाॅं तो कुत्ता तो क्या आदमी भी जब सड़ने लगेगा तब उठेगा । और कमाल है हाथी घोड़े जितनी देर मैदान में रहेंगे लीद नहीं करेंगे। हमारे बाजार में गाय, भैंस निकलती है तो बाजार में गोबर ही गोबर हो जाता है। पर योद्धाओं की जूतियाँ भी कमाल है फिसलना तो दूर गंदी भी नहीं होती। हर दिन शूटिंग के बाद योद्धा बातें करते होंगे,
‘आज मैं दो बार मरा, दो बार के इतने पैसे मिले, तू कितनी बार मरा ?
‘मैं मैं, तो तीन बार मरा फिर भी मुझे भी इतने ही पैसे दिये। कल मैं मरने से मना कर दूंगा, यह भी भला कोई बात रही।’
किसी भी मृत योद्धा का अंग भंग नहीं होता, न कपड़े रक्त से सने होते है न मैदान में रक्त की एक बूंद। जहाँ योद्धाओं का रक्त बहा हो वह स्थान सूखा ,भुरभुरी धूल से भरा रहता है। चमेली बाई और मुन्नीबाई में मुहल्ले में लड़ाई हुई दोनों के बाल नुच कर बिखर गये धोती फट गई आॅंखें थी कि खा जायेंगी , पल भर में बेचारे ठेल वाले का सामान बिखर गया जो बीच में आया पिट गया पर फिल्मी युद्ध में पगड़ी भी नहीं गिरती फॅेंटा बंधा ही रहेगा। फिल्मी युद्धों में तो सब भले हैं किसी के बीच में नहीं पड़ते । कितना अच्छा है फिल्मी युद्ध । है न!
बहुत ही उम्दा लिखा आपने
ReplyDeleteआपने इसमें द्वापरयुग की और कलयुग की सच्चाई का जो वर्णाद किया है काफी सोचनीय है और उच्च कोटि का है
आपके कहे अनुसार फ़िल्माने और स्पेशल इफ़ेक्ट डालने के खर्च से सीरियल निर्माता का घर दुआर बिक जाएगा। नाटक आखिर नाटक ही होता है, उसे नाटक ही रहने दें तो ठीक है। वैसे अच्छा लिखती हैं आप, सतत जारी रखें। शुभकामनाएं।
ReplyDelete- आपके ब्लॉग पर फ़ालो विगेट नहीं है, कृपया लगा लें तो फ़ालो किया जाए।
आपकी बात भी सही है पर वो लोग कमाते भी बहुत हैं :)
Deleteआपके कहे अनुसार फोलो विजेट लगाने की कोशिश तो की, पर मुझे सिर्फ गूगल+ फॉलो विजेट ही मिला सो लगा लिया है। कोई और विजेट हो तो बताएं।
धन्यवाद
this is really nice...you write too good :)
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