Monday, 16 April 2018

कुच्छ भी बोलो

खड़कसिंह के खड़कने से खड़कती हैं खिड़कियॉं, खिड़कियॉं खड़कने का बहाना चाहिये खड़कने का समय हो न हो खड़काना चाहिये कहीं  शांति अच्छी लगती है शांति तो सन्नाटा कहलाता है । सन्नाटा श्मशान में होता है ।  कृतिदेव यहां 

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