कोई कहता
आदमी
जैसा
बंदर
है
कोई
कहता
भूत
है
कितनो
पर
तो
वह
रात
मे
हमला
करता
था।
बंदर
खूब
सनसनी
रही।
एक
बार
बहुत
बड़े
बंदर
का
शोर
मचा
धीरे-धीरे
अफवाहों
उसका
आकार
राजे
बढ़ते-बढ़ते
वह
सात
फुट
जा
पहुँचा
बढ़ता
था
हां
एक
रात
बहुत
विशाल
बंदर
हमने
भी
देखा
आकार
मे
वह
आम
बंदर
से
दोगुने
आकार
का
होगा
फिर
एकाएक
वह
शोर
भी
कनकट
बंदर
के
समान
थम
गया।
सूरज की किरन जगाती तकियों का थपथपाती है उठो-उठो आलस छोड़ो पलकों को छू सहलाती है चाँद अपने देश गया तारों को भी साथ ले गया सपनों की पोटली बांधकर सलेट साफ कर गया
खाना शाम
को
सात
बजे
तक
समाप्त
हो
जाता
अपनी-अपनी
थाली
लेकर
छत
पर
चले
जाते
कभी
कभी
पुली
बना
कर
ही
खा
जाते
क्योंकि
पतंग
उड़ाना
छोड़ना
एक
मिनट
भी
भारी
होता
पतंग
लूटने
के
चक्कर
मे
कभी
कभी
हादसे
भी
हो
जाते
थे।
परांठे
पूढ़ी
उठाले
भागते
लाख
निगाहे
लगाये
रखते
पर
एक
छलांग
दो
छलांग
और
प्याली
से
पराठें
गायब
आज
की
माँ
एकाएक
गस्सा
लेकर
पीछे-पीछे
लगी
रहती
है
बंटा खले जरा सी पूरी बची है पर हमारे पेट हर समय खाना मांगते पांच-पांच मंजिल उतरते भागते खाना किस कोने में जा बैठा था पता ही नहीं चलता था न कोई चाइस थी जो बना है वही खाना है न पिज्जा न बर्गर पर उस खाने का स्वाद पंच सितारा या सात सितार होटल भी नहीं कर सकते क्या अमृत था
उस खाने में मिट्टी की कढाही में दूध उबलता फिर धीमी आंख पटाखों रहता पर माँ गिलास मे डाल देती ऊपर से थोड़ी-थोड़ी मलाई आज बच्चे छान कर दूध पीते हैं जरा भी मलाई आ जाये तो उल्टी कर देते हैं। गले में छन्नी लगी है। आज भी कुल्हड़ का दूध पीने में आनंद आता है विवाह शादी में दूध के कड़ाई के चारो ओर दूध पीने वाले मिल जायेंगे मलाई भी डालते हैं पर दूध में पनीला पन होता है ब्रज के दूध का स्वाद कान्हा की गायों की याद दिला देता है।
बंटा खले जरा सी पूरी बची है पर हमारे पेट हर समय खाना मांगते पांच-पांच मंजिल उतरते भागते खाना किस कोने में जा बैठा था पता ही नहीं चलता था न कोई चाइस थी जो बना है वही खाना है न पिज्जा न बर्गर पर उस खाने का स्वाद पंच सितारा या सात सितार होटल भी नहीं कर सकते क्या अमृत था
उस खाने में मिट्टी की कढाही में दूध उबलता फिर धीमी आंख पटाखों रहता पर माँ गिलास मे डाल देती ऊपर से थोड़ी-थोड़ी मलाई आज बच्चे छान कर दूध पीते हैं जरा भी मलाई आ जाये तो उल्टी कर देते हैं। गले में छन्नी लगी है। आज भी कुल्हड़ का दूध पीने में आनंद आता है विवाह शादी में दूध के कड़ाई के चारो ओर दूध पीने वाले मिल जायेंगे मलाई भी डालते हैं पर दूध में पनीला पन होता है ब्रज के दूध का स्वाद कान्हा की गायों की याद दिला देता है।
मथुरा की बेअी गोकुल की गाया करम फूट तो बाहर जाये दूध, दही का अपयोग आज भी अधिक होता है। तब दूध की मलाई एक मिठाई के रूप् में भी बिकती थी खुरचन जो मथुरा में मिलती है कहीं नहीं मिलती मथुरा के पास एक गांव है वहां खुरचन की परत प्याली के आकार की जम कर आती मन नाचता है
तब ही उत्सव होता है बिना प्रकृति के हमारा जीवन गुणवत्ता पूर्ण नहीं हो समता प्रकृति नहीं बढ़ी हम बदल गये हैं कभी कभी बाबूजी भी पूरा थाल खरीद लेते जिन्हें लच्छों में काटकर उसमें केवड़े की खुशबू मिलाई जाती। हर वक्त हर काम एक उत्सव के रूप में होता। उत्सव हद्रयों में होता है। मन नाचता है तब ही उत्सव होता है बाबूजी मित्र परिवर के इनमे एक को हमा मासी जी कहते थे एक को चाची जी एक मित्र
लक्ष्मी रमण एक आधय जी थे वे राजनीति मे चले गये और उत्तर प्रदेश की राजनीति में गृह मंत्रालय तक पहुँचे। पलक थपकते चरित्र के संग आकाश में उड़ने लगते पहाड़ पर पहुँच जाजे। सिदबंढ़ की कहानियां बगदाद की कहानी पंचतत्र कथा सरित्सागर के साथ साथ तोता मैना का किस्सा और हातिम ताई के किस्से भी पढ़ डाले।
पर इन दोनों किताबों के ऊपर डांट भी पड़ी थी। कि ये हटाओ तुम्हारे मतलब की नहीं है तो मैना के किस्से तो अब कुछ समझ में आई। डांटने से और उत्सुकता हुई थी किताबके में से कितना कोई रोक पता एक किताब हम से ले ली गई। प्रैस में ही दूसरी किताब लेकर पढ़ डाली अब और अधिक उत्सुकता से पढ़ी। देवकी नंदन खजी की भूतनाथ और चंद्रकांता संतति में तो अपने घर की दीवारों को ठोक ठोक कर देख डाली।
एक छोटी सी कोठरी थी उसके अंदर अलग से एक चैकोर पत्थर लगा था उस पर फूल पत्तियां खुदी थी हम सब उसमें जगह जगह से दबाकर खुफिया दरवाजा खोजते न पत्थर हिलता न हमारे सामने खजाने
निकलते थे उनके एक पुत्र अब भी राजनीति में है गर्मियों दो नावें में भरकर नदी पर पिकनिक मनाई जाती थी। नाव में कानी न दरी आदि विछी रहती कुछ सामान हमारे घर से बनकर जाता कुछ कुछ अन्य परिवार बना कर लाते फिर नाव में ही ठंडाई बनती तथ दाल के मंगोड़े बनाये जाते। नाव लंबी लंबी सैर पर धीरे धीरे बीच मझधार में चलती रहती क्या आनंद आता था। कभी कछुओं को चने डाले जाते
कभी कछुआ कभी मछलियां मुंह निकाल चने लपक लेती कभी कभी तो दो दो तीन तीन हाथ लंबी मछलियां तैरती आती अपना मुंह खोलती और तैरते चने को लपक लेती हाथ हम पानी में डालते साथ ही हटा कर हम बच्चों को बीच में कर दिया जाता पर खतरों से अनजान बड़ो के भ्या को एक तरफ रखते धीरे धीरे फिर किनारे पहुंच जाते।
साथ ही अंगोछे में आंख बांध कर नदी मं डाल दिये जाते। आगा के साथ ठंडाई रबड़ी पूड़ी आदि खाई जाती। तब पत्तल दोने साथ होते थे ठंडाई कुल्हड़ में पी जाती ठंडाई घोटने का काम भाइयों के सुपुर्द रहता।
बहुत याद आता है प्यारा सा बचपन: भाग 6
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