होश ठिकाने
आने
पर
मुझे
फिर
से
प्यास
लगी
।
मैंने
मोमबत्ती
जलाई
और
मेज
के
पास
तक
गया
और
पानी
की
बोतल
के
पास
गया
।
मैंने
उसे
उठाया
और
गिलास
मं
ओजने
लगा
,लेकिन
कुछ
बाहर
नहीं
आया
।
वह
खाली
थी।
वह
बिलकुल
खाली
थी
पहले
मेरी
कुछ
समझ
नहीं
आया
लेकिन
फिर
मैं
एकदम
इतने
खतरनाक
हद
तक
डर
से
जकड़
गया
कि
मुझे
बैठना
पड़ा
।
एक तरह से कुर्सी पर गिर पड़ा। फिर अपने को देखने के लिये उछला। फिर मैं दोबारा बैठ गया । मैं भय और आश्चर्य से जड़ हो रहा था । पारदर्शी कांच की बोतल पर नजरे गड़ा दी ,अनुमान लगाने लगा और मेरे हाथ कांप उठे। किसी ने पानी पी लिया था लेकिन किसने? मैंने, बिना शक मैंने ,इसका मतलब है मैं नींद में चलने लगा हूँ , मुझे पता ही नही है ।
दोहरी जिंदगी जिसके विषय में हमें पता ही नहीं होता है । हमारे अंदर दो व्यक्ति हैं या अजनबी, अनजान और अदृश्य । उन क्षणों में जब हमारी आत्मा जड़ हो रही है हमारे शरीर पर हावी हेा जाती है ,वह उसकी आज्ञा मानने लगती है उतनी तो हमारी भी आज्ञा नहीं मानती है।
एक तरह से कुर्सी पर गिर पड़ा। फिर अपने को देखने के लिये उछला। फिर मैं दोबारा बैठ गया । मैं भय और आश्चर्य से जड़ हो रहा था । पारदर्शी कांच की बोतल पर नजरे गड़ा दी ,अनुमान लगाने लगा और मेरे हाथ कांप उठे। किसी ने पानी पी लिया था लेकिन किसने? मैंने, बिना शक मैंने ,इसका मतलब है मैं नींद में चलने लगा हूँ , मुझे पता ही नही है ।
दोहरी जिंदगी जिसके विषय में हमें पता ही नहीं होता है । हमारे अंदर दो व्यक्ति हैं या अजनबी, अनजान और अदृश्य । उन क्षणों में जब हमारी आत्मा जड़ हो रही है हमारे शरीर पर हावी हेा जाती है ,वह उसकी आज्ञा मानने लगती है उतनी तो हमारी भी आज्ञा नहीं मानती है।
ओह!
मेरी
यह
व्यथा
कौन
समझेगा
,कौन
मेरी
भावना
को
समझेगा
जब
कि
मैं
अपने
पूरे
होश
में
हूँ
,पूरे
संज्ञान
में
हूँ
।
कौन
एक
पानी
की
बोतल
को
देखेगा
जिसका
पानी
खत्म
हो
गया
,जब
वह
सोया
हुआ
था
।
सुबह
तक
मैं
इसी
दशा
में
रहा
दोबारा
बिस्तर
पर
जाने
का
प्रयास
भी
नहीं
किया।
6
जुलाई
,
मैं
पागल
हो
रहा
हूँ
फिर
मेरी
पारी
की
बोतल
का
पानी
रात
में
कोई
पी
गया
या
मैंने
ही
पी
लिया।
लेकिन
क्या
मैं
?
क्या
मैं
?
कौन
हो
सकता
है?
हे
ईश्वर!
क्या
मैं
पागल
हो
रहा
हूँ
मुझे
कौन
बचायेगा
?
10
जुलाई
,
मैं
एक
कठिन
परीक्षा
से
गुजर
रहा
हूँ।
निश्चय
ही
मैं
पागल
हूँ
लेकिन
फिर
भी।
6
जुलाई
को
बिस्तर
पर
जाने
से
पहले
मैंने
जरा
सी
शराब,
दूध,
पानी,
ब्रेड
और
कुछ
स्ट्रोबरी
अपनी
मेज
पर
रखदीं
,लेकिन
कोई
पी
गया
।
मैंने
पिया
।
सारा
पानी
,थोड़ा
सा
दूध,
लेकिन
शराब
ब्रैड
और
स्ट्रोबरी
को
छुआ
भी
नही।
सात
जुलाई
को
भी
वही
अनुभव
दोबारा
हुआ
उसी
परिणाम
के
साथ
और
आठ
जुलाई
को
मैंने
पानी
और
दूध
नहीं
रखा,
कुछ
भी
नहीं
छुआ
गया।
अंत
में
नौ
जुलाई
केा
मैने
केवल
दूध
और
पानी
मेज
पर
रखा,
मैंने
बोतल
को
सफेद
मलमल
के
कपड़े
में
लपेट
दिया
और
अपने
हाथ
अपने
होठ
अपनी
दाढ़ी
को
पेंसिंल
के
बुरादे
से
मल
लिया
और
सो
गया।
गहरी
नींद
ने
मुझे
आगोश
में
ले
लिया
ओर
चैक
कर
जागा।
मैं
हिला
भी
नहीं
चादर
पर
पेंसिंल
के
बुरादे
का
कोई
निशान
नहीं
था
।
मैं
मेज
पर
गया
मलमल
का
कपड़ा
ढक्कन
पर
कसकर
बंधा
था।
मैंने
डोरी
खोली,
मैं
भय
से
कांप
उठा,
सारा
पानी
पी
लिया
गया
था
और
दूध
भी
! आह दिव्य
ईश्वर
तुम
दिव्य
हो
मुझे
शीघ्र
ही
पेरिस
चले
जाना
चाहिये।
12
जुलाई, पेरिस,
मेरा
दिगाग
कुछ
खोता
जा
रहा
है
।
कल्पना
मुझे
कमजोर
कर
मुझसे
खेल
रही
है
मुझे
नींद
में
चलने
की
आदत
है
या
मेरे
मस्तिष्क
पर
दबाब
अधिक
है
मुझ
पर
पागलपन
हावी
हो
रहा
है
पेरिस चैबीस
घंटे
में
ही
मेरे
दिमाग
को
शांत
कर
देगा।
कल
कुछ
व्यापारिक
काम
और
लोगों
से
मिलकर
कुछ
अच्छा
लगा,
जैसे
मेरी
आत्मा
को
शीतल
हवा
मिल
गयी
।
मैंने
शाम
फ्रांसिस
नाटक
घर
में
बिताई।
अलैक्जेन्डर
ड्यूमास
के
अभिनय
और
कल्पना
शक्ति
ने
मुझे
पूरी
तरह
ठीक
कर
दिया।
शायद
एकाकीपन
दिमाग
के
लिये
बहुत
खतरनाक
है
हमें
अपने
चारों
ओर
ऐसे
आदमी
चाहिये
जो
सोच
सकें
और
बात
कर
सके।
अगर लम्बे समय तक अकेले रहे हम भूतों से बात करने लगते हैं। मैं अपने होटल सड़क से प्रसन्नचित्त लौटा, भीड़भाड़ भरे इलाके में चलते मुझे पिछले हफ्ते में बीते समय का खौफ याद आने लगा। क्योंकि मैं विश्वास करने लगा था कि मैरे साथ मेरी छत के नीचे कोई और भी हैं ,हमारा मस्तिष्क कितना कमजोर है ,कितनी जल्दी डर जाता है जरा सी नासमझी हमसे गलतियाँ करा देती है।
अगर लम्बे समय तक अकेले रहे हम भूतों से बात करने लगते हैं। मैं अपने होटल सड़क से प्रसन्नचित्त लौटा, भीड़भाड़ भरे इलाके में चलते मुझे पिछले हफ्ते में बीते समय का खौफ याद आने लगा। क्योंकि मैं विश्वास करने लगा था कि मैरे साथ मेरी छत के नीचे कोई और भी हैं ,हमारा मस्तिष्क कितना कमजोर है ,कितनी जल्दी डर जाता है जरा सी नासमझी हमसे गलतियाँ करा देती है।
केवल
यह
कहने
की
जगह
‘,नहीं
समझ
पाता
,कारण
नहीं
जानता
’
हम
रहस्यमयी
और
अलौकिक
ताकतों
केा
मानने
लगते
हैं।
14
जुलाई
,
स्वाधीनता
दिवस
के
जलूस
में
सड़कों
पर
बच्चों
की
तरह
खुश
होता
आतिशबाजी
और
झंडे
देखता
चल
रहा
हूँ
,वैसे
सरकारी
तौर
पर
एक
निश्चित
दिवस
पर
खुश
होना
कहाँ
की
समझदारी
है
?
भेड़ो
के
झुंड
की
तरह
भीड़
चल
रही
है
,अभी
विद्रोह
में
बदल
सकता
है
।
हम
ऐसे
ही
है
,खुश
हो
जाओ
तो
खुश
हो
जायेंगे
।
अगर
कोई
कहेगा
जाओ
पड़ोसी
से
लेलो,
तो
लड़ने
लगेंगे
,कहेगे
सम्राट
को
वोट
देा
तो
सम्राट
केा
वोट
दे
देंग, अगर कहेंगे
जनता
को
वोट
दो
जनता
केा
दे
देंगे।
जो
निर्देश
देता
है
वो
भी
वेबकूफ
है
,मनुष्य
की
आज्ञा
मानने
की
जगह
सिद्धान्तों
की
आज्ञा
मानते
हैं
जो
वेबकूफी
भरे
गलत
भी
हो
सकते
है
पर
क्योंकि
वे
सिद्धान्त
है
इसलिये
उसे
मानिये,
वे
बदले
नहीं
जा
सकते
।
प्रकाश
यदि
भ्रम
है
तो
शोर
भी
भ्रम
है।
16
जुलाई
,
मैंने
कुछ
देखा
वह
मुझे
बहुत
परेशान
कर
रहा
है
।
मैं
अपनी
चचेरी
बहन
मैंडम
सबले
के
यहां
रात
को
खाना
खा
रहा
था
जिनके
पति
76 वीं रेजीमेंट
में
कोलोनल
थे
,वहाँ
दो
युवा
महिलायें
थी
उनमें
से
एक
की
शादी
एक
डाक्टर
से
हुई
थी
डा॰
पेरेन्ट
जो
स्नायुतंत्र
विशेषज्ञ
है
वशीकरण
द्वारा
रोग
का
निदान
करते
हैं।
हमे
उसने
बताया
,उसने
प्रकृति
के
रहस्य
की
ओर
इंगित
करते
हुए
कहा
,‘
पृथ्वी
के
रहस्य
मैं
सितारों
की
बात
नहीं
कर
रहा
वह
अलग
है।
जबसे
मनुष्य
ने
सोचना
प्रारम्भ
किया,
जब
से
अपने
विचार
लिखने
प्रारम्भ
किये
अपने
को
रहस्यों
से
घिरा
पाया
है
जिन्हें
वह
बता
नहीं
पाता।
जब
तक
बुद्धि
प्रारम्भिक
अवस्था
में
होती
है
अदृश्य
आत्माऐं
उसके
चारों
और
घूमती
रहती
है।
जब
वे
उन्हें
महसूस
करने
लगता
है
तब
अलौकिक
शक्ति
का
एहसास
होता
है।
तब
परियाँ,
बौने
भूत-प्रेत
मैं
कहूँ
तो
भगवान
का
आस्तित्व
,वह
किसी
भी
धर्म
से
आया
,सतही
लेकिन
बहुत
ही
वेबकूफी
भरा
अविश्वासनीय
आविष्कार
मनुष्य
के
दिमाग
में
उत्पन्न
हुआ
।
बाल्तेयर
ने
कहा
है,
वह
सत्य
है
भगवान
ने
मानव
अपनी
कल्पना
से
बनाया
लेकिन
मानव
ने
वापस
भगवान
को
अपने
सिक्के
में
ढाल
लिया।
होरला: भाग 5
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