Sunday 10 January 2016

होरला: भाग 7

मुझे निश्चय ही सोच लेना चाहिये कि मैं पागल हो चुका हूँ  नितांत पागल अगर सचेतन नहीं होता अपनी दशा अच्छे से जान पाता उसको समझ पाता लगता है मैं इंद्रजाल में भ्रमित हो रहा हूँ कुछ अज्ञात गड़बड़ी मस्तिष्क में हो गई हैं मनोवैज्ञानिक उसको समझने का प्रयास कर सकते हैं इस अस्तव्यस्तता ने मेरी समझने की शक्ति को बहुत कम कर दिया है। 



यही घटना चक्र स्वप्न में भी मायाजाल फैला देता है जिससे हमें कोई आश्चर्य नही होता, क्योंकि हमारे सोचने की शक्ति और नियत्रित करने की ताकत सो जाती है जबकि हमारी कल्पना शक्ति जाग्रत हो जाती है क्या यह संभव नहीं है कि हमारा सूक्ष्मतंत्र मूर्धन्य मस्तिष्क पर हावी हो गया हो जिसने मुझे लकवाग्रस्त कर दिया हो। कुछ लोग नाम भूल जाते हैं  नम्बर प्रमुख तारीखें आदि याद नहीं रहती तब क्यों मुझें अपनी भ्रम युक्त्त दशा पर आश्चर्य हो रहा है?




       यह सब मैं पानी के किनारे घूमते हुए सोच रहा था। सूर्य अपने पूरे तेज से चमक रहा था और धरती प्रसन्न हो रही थी। मुझमें जीवन के प्रति मोह जाग्रत हो रहा था, गौरेया जिनका चहकना मुझे आनंदित करता है नदी किनारे के पौधे जिनके पत्तों की खड़खड़ाहट मुझे आनंदित करती है।


       कुछ भी हो, कुछ असहजता महसूस हो रही थी जैसे कोई अज्ञात शक्ति मुझे जड़ कर रही है, रोक रही है, मुझे आगे बढ़ने से रोक रही है, मुझे वापस बुला रही है एक मार्मिक इच्छा जैसे हमने किसी प्रिय विकलांग केा घर पर अकेले छोड़ दिया हो और मन में रहा हो, कि उसके साथ कोई दुर्घटना हो सकती है।



       मैं चाहते हुए भी वापस आया जाने मुझे लग रहा था कोई बुरा समाचार मिलेगा कोई पत्र या टैलीग्राम। लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ।


       8 अगस्त ,आज बड़ी भयानक शाम थी। अब वह अपने आप को नहीं दिखाता, लेकिन महसूस होता है वह मेरे आसपास है मुझे देख रहा है बेध रहा है मुझ पर हावी हो रहा है या अधिक विकट है जब उसने अपने को छिपा रखा है अगर प्रकट होकर अपनी अलौकिक शक्ति दिखा देता वह अच्छा था। कुछ भी हो मैं सो गया।


       9 अगस्त , कुछ भी नही है पर मैं डरा हुआ हूँ        10 अगस्त, कुछ नहीं, कल क्या होगा ?
       11 अगस्त ,अभी भी कुछ नहीं, यही सोच कर मैं घर में बैठा नहीं रह सकता मुझे जाना चाहिये।
 12 अगस्त ,रात्रि दस बजे सारा दिन मैं जाने की कोशिश करता रहा ,



लेकिन जा नहीं पाया मैं आजादी के साथ अपनी गाड़ी में बैठकर रोन जाना चाह रहा था लेकिन नहीं जा पाया, क्या कारण है ?


       13 अगस्त ,जब हम पर कोई रोग आक्रमण करता है तब हमारे अंदर की सभी इंद्रिया टूट सी जाती हैं, हमारी ऊर्जा नष्ट हो जाती है हमारी मांसपेशियां शिथिल हो जाती हैं हमारी हड्डियाँ मांस की तरह मुलायम हो जाती है। हमारी शरीर पानी हो जाता है।



       मुझे यह सब महसूस हो रहा है मुझमें जैसे शक्ति ही नही है साहस अपने ऊपर नियन्त्रण ,अपनी इच्छा को मैं कार्यान्वित नहीं कर पा रहा। मैं अपने आप कुछ नहीं कर रहा वरन् कोई अन्य मेरे लिये कर रहा है मैं तो उसकी आज्ञा का पालन कर रहा हूँ।


       14 अगस्त, मैं खो गया। किसी ने मेरी आत्मा पर अधिकार कर लिया है और उस पर उसका नियन्त्रिण है। कोई मुझसे सब करवा रहा है मैं डरा हुआ सहमा दर्शक मात्र हूँ। मैं बाहर जाना चाहता हूँ नहीं जा सकता वह नहीं चाहता इसलिये मैं नहीं जा सकता कांपता सहमा टूटा सा बैठा हूँ मैं कुर्सी में गड़ गया हूँ और कुर्सी ने जमीन इतनी कसकर पकड़ ली है कि कोई शक्ति उसे नहीं हिला सकती।


       तब एकाएक मुझे लगा मुझे अपने बगीचे में जाना चाहिये कुछ स्ट्राबेरी तोड़ कर खानी चाहिये और मैं गया ,मैंने स्ट्राबेरी तोड़ी और खाई भगवान! भगवान यदि है भगवान तो मुझे बचाये मुझ पर दया करे औह कैसी यातना है कैसी भयावहता है।


       15 अगस्त, लगता यह भी वही दशा है जैसे मेरी बहन पांच हजार फ्रेंक मांगने आई थी। वह किसी अन्य व्यक्ति की शक्ति के चंगुल में थी जो उसके अंदर प्रवेश कर गया था ,दूसरी आत्मा, दूसरी आत्मा जिसने नियत्रंण में ले लिया हो ,क्या दुनिया खत्म होने वाली है ?


       लेकिन वह कौन है ? वह अदृश्य जो मुझ पर शासन कर रहा है वह अलौकिक दौड़ में भागने वाला।
       अदृश्य है तो वह कैसा है ? दुनिया के प्रारम्भ से इस प्रकार मायाजाल में जकड़ लेते हैं जैसे मुझे जकड़ लिया है मैं जैसा मेरे घर में हो रहा है ऐसा तो मैंने कही नहीं पढ़ा। ओह! में इसे बस छोड़ पाता, बस मैं जा पाता इससे बच पाता ,भाग जाता ,कभी नहीं लौटता ,पर नहीं कर सकता।



       16 अगस्त, किसी प्रकार मैं दो घंटे के लिये निकल लिया एक कैंदी की तरह जिसे एकाएक अपनी कोठरी का दरवाजा खुला मिल गया हो। मुझे ऐसा लगा मैं आजाद हूँ और वह मुझसे बहुत दूर है मैंने गाड़ीवान से घोड़े भगाने के लिये कहा, तेजी से जितनी तेजी से हो सके और मैं रोन पहुंच गया।



       मैंने गाड़ी पुस्तकालय के निकट रूकवाई और डा॰ हरमन हैरेस्टस का प्राचीन और आधुनिक निवासियों पर शोध प्रबन्ध मांगा।


       मैं अपनी गाड़ी पर वापस आया। मैं कहना चाहता था रेलवे स्टेशन लेकिन इसके स्थान पर मैं इतने जोर से चिल्लाया कि सभी आने जाने वाले मुझे देखने लगे ,घर ,और मैं गाड़ी की पिछली सीट पर पसर गया मानसिक यंत्रणा से ग्रस्त था। उसने मुझे ढूंढ़ लिया था और फिर मुझ पर हावी हो गया था।




       17 अगस्त ,ओह! क्या रात थी मैं कुछ खुश था। मैंने एक बजे सुबह तक किताब पढ़ी हैंरेस्टय दर्शनशास्त्र का विशेषज्ञ उसने उन अलौकिक शक्तियों के ऊपर लिखा था जो मनुष्य के चारों आरे घूमती रहती हैं। उसने उनकी उत्पत्ति उनका रहने का स्थान शक्ति, आदि पर विस्तार से लिखा था ,लेकिन जो मुझे पर हावी थी उसके विषय में कुछ नहीं था। 


कहा जा सकता है जब से मनुष्य ने सोचना शुरू किया वह किसी नये एहसास को महसूस करता है वह उसको देख नहीं पाता। इसी भय से उसने अनेक प्रकार के भूतप्रेतो की परिकल्पना की है।

होरला: भाग 8

No comments:

Post a Comment

आपका कमेंट मुझे और लिखने के लिए प्रेरित करता है

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...