Wednesday 13 January 2016

मुफ्त के सलाहाकार

बढ़ती मंहगाई, सिकुड़ते हृदय कोई भी चीज तो मुफ्त नहीं मिलती। पहले गली मुहल्लों में एक घर में दंराती होती थी पूरे मुहल्ले का अचार उसी दरांती से कटी फांको से पड़ता था। एक के घर मेहमान आता, घर में सब्जी नहीं होती थी तो भी मेहमान की थाली भर जाती, एक एक कटोरी सब्जी सब पड़ोसियों के घर से जाती, अब एक कटोरी सब्जी मांगेंगे पता लगेगा पड़ोसन दूसरे दिन ही दो कटोरी सब्जी मांग ले गई।


 ईश्वर ने पृथ्वी की रचना की तो जल ही जल दिया, पहाड़ों पर से झरने नदियाँ गिरा दी। पृथ्वी के गर्भ से सोते फूटे कि पियो चाहे जितना पानी पियो। खाना मिले पर पानी के तो पैसे नहीं लगेंगे पर भला हो सरकार का पहले तो सरकार लेती थी पैसे, पर वह भी झेला जाता था पर अब तो बोतल में बंद ठप्पा लग कर बिकने लगा है। अब कोई चीज मुफ्त नहीं मिलती कुछ दिन ठहरिये सांस लेने पर भी या टैक्स लगेगा या वह भी डिब्बे में भरकर बिकेगी।


 बस एक चीज अगर मुफ्त यहां है ,तो वह है सलाह, खूब इफरात में है। पर ध्यान रखियेगा मुफ्त सलाह देने वाले खूब मिल जायेंगे पर भूल कर भी मांगने लगियेगा, आप सोचे कि पार्टी में डॉक्टर साहब मिल गये हैं पूछ लो या वकील साहब है कानूनी दांव पेंच पूछ लें, दूसरे दिन सुबह ही बिल जायेगा।


 असली मुफ्त के सलाहाकार तो सदा आपके ईर्द गिर्द ही मिल जायेंगे। सब हैं आपके अड़ोसी-पड़ोसी, नाते रिश्तेदार। माना कि आप मकान बनवा रहे हैं। अपनी जमीन के आगे खड़े हैं हाथ में नक्शा है। तुंरत पड़ोसी नमूदार होंगे, क्या बनवा रहे हैं,?

घर
आर्चीटेक्ट कौन है ?’
मोहन जी,’
मोहनजी, अरे यह क्या किया, मेरे एक रिश्तेदार हैं उन्होंने तो पहले उनसे नक्शा बनवाया फिर बीच में ही आर्चीटेक्ट बदल दिया
क्यों ?’

 अरे साहब! बिलकुल बेकार है दड़वा बनवा कर रख देंगे, मेरी सलाह मानिये आप विपिन जी को लीजिये  अगर आपने आर्चीटेक्ट नहीं बदला तो समझ लीजिये अपने को ताजिंदगी एक मुर्गी ही समझते रहेंगे।


 सच मानिये इन मुफ्त सलाहकारों के बीच आप चक्करघिन्नी बन जायेंगे। आप को विश्वास नहीं होगा कि आप ईट भी ठीक लगा पाये हैं या नहीं। आप अपने कमरे में पीला रंग कराना चाहेंगे। तो क्या मजाल है आप पीला रंग करा सकें। एकदम से इतने लोग उस रंग को नकारने वाले मिल जायेंगे कि यदि आप ने करा भी लिया तो आप उसमें बैठने में भी अपराधी महसूस करने लगेंगे। आप को लगेगा 


आपकी बड़ी गंवारु पसंद है। वे सलाहाकार जब भी आयेगे कहेंगे, आप ने हमारा कहना मान कर सत्यानाश करा दिया। यहां तक कि आप महसूस करने लगेंगे कि आपने मकान नहीं कबूतर खाना या कबाड़ाखाना बनवाया है और इठलाते फिर रहे हैं। जितना खर्चा किया उससे आधे में शानदार बंगला बन जाता, अब उससे आधे में चाहे आप बिना पलस्तर की ईट ही खड़ी कर पाते।

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