Sunday 10 January 2016

वाह! क्या बात है ? अगला भाग

वाह! क्या बात है ?
कन्हाई जी की बनायी तस्वीर तो बोलती है।’ इतना कह तो गई पर मन ही मन सोचने लगी यदि अधिक तारीफ कर दी तो श्रीमती अग्रवाल का दिमाग खराब हो जायेगाफूल कर कुप्पा हो जायेंगी और फिर जब से उन्होंने सुना है येे तस्वीर बहुत मंहगी हेाती है बहुत लालयित थींपर देखने को मिली नहीं थी। 

अब बतायें भी तो क्या बतायें कि क्या खूबी है कुछ उल्टा सीधा बता दिया तो वैसे ही मजाक उड़ेगा। वह कहें कि देखी नहीं है तो यह भी ठीक नही। सोचा चुप लगाना ही बेहतर है। इसलिये इठलाती बलखाती बोली।


मैंने मधुबनी मंगाई है वो भी नये कारीगरों की या वो कौन महिला है जिसे राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है उन सबकी नहीं राजघराने की है उस पर असली काम हो रहा है।
 वृन्दावन से मंगाई महारास की तस्वीर के आगे खड़ी श्रीमती अग्रवाल कोल्ड्र कॉफ़ी देती तस्वीर की एक एक खूबी बताती जा रही थीं ,इस पर जब रोशनी पड़ती है तो तस्वीर नाचती सी लगती है।


 ये जो नगीने हैं वो क्या हीरे हैं,’ दामों से प्रभावित श्रीमती मलिक बोली, ‘झिलमिला तो बहुत रहे हैं


 ‘नीला रंग नीलम पीस कर बनाया होगा तभी इतनी मंहगी है ,नहीं तो तो ऐसी क्या खूबी है इसमें ?’ श्रीमती पांडे ने फुसफुसाते हुए मुँह बिचकाया। मेरी बेटी तो बहुत बढि़या तस्वीरें बनाती है उससे कहूँगी कुछ नगीने लगा कर बना दे फिर देखना इन तस्वीरों को मात करेगी।


 श्रीमती मित्तल घर आकर बिलबिलाती डोल रही थीं, उफ! वे अपने यहाँ पार्टी में क्या दिखायेंगी, न तो उसके पास कलसा, हंडें हैं, खरीद भी लायें तो उन्हें इतनी जल्दी पुराने कैसे करेंगी, पुराने जाकर खरीद कर लाना बाप रे फालतू पैसा डालना है। 


कोई मूर्ति कोई पेन्टिग कुछ तो हो। कैसी है उसकी सासू उन पर कोई पुरानी चीज ही नही है। तभी उसकी नजर सास जी के पूजा घर में कृष्ण जी की बड़ी तस्वीर पर पड़ी, अरे वाह घर में हीरा है और वे इधर उधर घूम रही हैं। कभी यह कृष्ण भगवान की तस्वीर कभी सासू जी के मास्टर जी बना करदी थी मायके के साथ लाई तस्वीर को सासूजी ने पूजा का माध्यम बना लिया था।


 वाह! क्या शैली है सब कुछ नया सा तंजाबुर भी है मथुरा शैली की मूर्ति कला सी भी, बस यही टंगेगी ड्रांइग रूम हैं।


 ‘अरे ! बहू यह क्या कर रही हो मेरे भगवान जी...सास जी अपने भगवान् को उठाये जाते देख घबड़ा उठी।


 कुछ नहीं माँ जी अच्छी जगह ही टांग रही हूँ, , यहाँ कौन देखता है ? अगरबत्ती ही तो जलानी है न, वहीं घुमा आइयेगा नहीं तो दूसरी तस्वीर मंगा दूंगी।


 यह कहती कौन-सी शैली में बताऊँ किस शैली का नाम दूँ, जो सब देखती रह जायेगी पुस्तक और पत्रिकाओं को खोलने चल दी।


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