लेखक
- गाई द
मोपासा
8 मई ,
ओह
कितना
खुशनुमा
दिन
है।
आज
मैंने
सारा
दिन
घर
के
सामने
घने
छायादार
चनार
के
पेड़
के
नीचे
घास
पर
लेटे
लेटे
बिता
दिया।
मुझे
शहर
का
यह
भाग
बहुत
पसंद
है
।
इसका
मैरे
पूर्वजों
से
संबंध
है
,गहरी
और
जमी
जड़ें
किसी
भी
व्यक्ति
को
अपनी
मिट्टी
से
बांधे
रखती
हैं
,जहाँ
उसके
पुरखे
रहे
हो
और जहाँ
उसका
बचपन
रचा
बसा
हो।
भूमिहारों
की
अपनी
टंकार
,गांव
की
मिट्टी
की
सोंधी
खुशबू
और
वहाँ
का
वातावरण।
जहाँ
मैं
पला
बढ़ा
यह
धर
मुझे
बहुत
अच्छा
लगता
है।
खिड़की
से
बगीचे
के
किनारे
बहती
सीन
नदी,
दूसरे
किनारे
पर
ऊँची
सड़क,
चैड़ी
विशाल
सीन
नदी
जो
रोन
औ
ली
हाब्रे
को
जाती
है
,इधर
से
उधर
जाती
नावें
दिखाई
देती
हैं।
बायें
रोन
बड़ा
शहर
,नीली
छत्तों
वाला
नुकीली
गोथे
मीनारों
वाला
शहर,
अनेकों,
पतली
या
चैड़ी
चर्च
द्वारा
संचालित
छोटी
छोटी
धंटियों
की
आवाजें
।
सुबह
सुबह
दूर
से
बजते
घडि़याल
की
टंकार
,
हवा
के
रूख
के
साथ
ऊँची
या
धीमी
आवाज।
कितनी
मनमोहक
सुबह
है
यह
,ग्यारह
बजे
एक
लम्बी
नावों
की
कतार
,एक
बड़े
से
भाप
से
चलने
वाले
इंजन
से
बंधा
धुआं
उगलता
निकलता
है।
दो
अग्रेजी
स्कूनर
जिनका
लाल
झंडा
अंतरिक्ष
में
लहराता
है,
एक
ब्राजील
का
थ्रीमास्टर
श्वेत
धवल
आश्चर्यजनक
रूप
से
चमकता
हुआ
,मैंने
उसे
सैल्यूट
किया,
नहीं
कह
सकता
क्यों
?
परंतु
उस
छोटे
से
जहाज
को
देखना
मुझे
अच्छा
लग
रहा
था।
12
मई
,
मुझे
पिछले
कुछ
दिन
से
बुखार
आ
रहा
था
।
बीमार
सा
हो
रहा
था
या
कहना
न
होगा
जरा
उत्साह
की
कमी
थी।
कह
नहीं
सकते
कब
रहस्यमयी
मनो
चेतनाऐं
हमारी
खुशियों
को
अवसाद
में
बदल
देती
है,
हमारे
आत्मविश्वास
को
हताशा
में
।
कह
सकते
हैं
तरंग
,अदृश्य
तरंगे
अनजान
शक्तियों
से
संचरित
हमारे
चारों
ओर
घूमती
हैं
और
उनकी
रहस्यमय
उपस्थिति
हमें
प्रभावित
करती
हैं
।
मैं
प्रसन्न
बहुत
अच्छी
मनोस्थिति
के
साथ
जागा
,मेरा
मन
गाने
का
कर
रहा
था।
नहीं
जानता।
मैं
पानी
के
किनारे
गया
और
कुछ
दूर
जाकर
लौट
आया।
मैं
सहमा
सा
घर
लौट
आया
मानों
कोई
विपत्ति
मेरा
इंतजार
कर
रही
है
क्यों
?
एक
ठंडी
लहर
मेरी
खाल
पर
से
गुजर
रही
थी
जो
मेरा
मनोबल
गिरा
रही
थी।
क्या
वह
बादलों
के
रूप
में
थीं
?
आसमान का
रंग,
या
आसपास
के
वातावरण
का
रंग
था
,
जो
बार
बार
अपना
रंग
बदल
लेता
था,
वे
मेरी
आंखों
के
सामने
जा
रही
थी
साथ
ही
मेरे
विचारों
को
भटका
रही
थी
?
यह
कौन
बता
सकता
हैं
?
जो
कुछ
भी
छुए,
बिना
जाने,
जो
कुछ
भी
हम
करते
हैं
,बिना
वर्गीकरण
किये
तीब्रता
से
आश्चर्यजनक
अव्यक्त
प्रभाव
हमारे
स्नायुतंत्र
पर
पड़ता
है
उसके
माध्यम
से
हमारे
विचारों
को
प्रभावित
करता
है
फिर
हृदय
को।
इस अव्यक्त की रहस्यमयता कैसी है ,हम अपनी इंद्रियों से नहीं व्यक्त कर सकते। वह बहुत छोटा है या विशाल हमारी आंखे नहीं देख सकती । बहुत नजदीक है या बहुत दूर न हमारे कान सुन सकते है
जो धोखा
दे
देते
हैं
क्योंकि
वे
वायु
की
तरंगों
को
हम
तक
पहुंचाती
हैं
और
ध्वनि
को
जन्म
देती
है
।
वह
शांत
प्रकृति
को
संगीत
भरा
कर
देती
है
हमारी
सूंघने
की
शक्ति
जो
कुत्ते
की
सूंघने
की
शक्ति
से
कम
है
हमारी
स्वाद
ग्रंथि
जो
शराब
की
उम्र
नहीं
बता
सकती।
अगर हमारे पास अन्य अवसर होते जो हमारे पक्ष में हमारे चारों ओर नवीन आश्चर्यजनक वस्तुऐं अनुभव करते।
16
मई
,
मैं
बीमार
हूँ
निश्चय
ही
पिछले
महिने
मैं
बहुत
ठीक
था
।
मुझे
बुखार
सा
है,
तेज
बुखार
या
मैं
बुखार
के
तंत्र
में
हूँ
जिससे
मेरा
दिमाग
भी
शरीर
की
तरह
रोगग्रस्त
हो
गया।
लगातार मुझे
लगता
रहता
है
कि
कुछ
खतरा
आने
वाला
है
।
कुछ
अघट
घटेगा,
शायद
मृत्यु
किसी
अनजान
बीमारी
का
आक्रमण
जो
मेरी
मांसमज्जा
को
संक्रमित
कर
देगा।
17
मई,
मैं
अपने
चिकित्सक
से
मिल
कर
अभी
लौटा
हूँ
,क्योंकि
मैं
सो
नहीं
पा
रहा
था।
उसने
बताया
मेरी
नाड़ी
तेज
चल
रही
है।
मेरी
आंखें
पनिया
गई
हैं।
मेरा
स्नायुतंत्र
अकड़
सा
रहा
था
लेकिन
किसी
विशेष
बीमारी
का
कोई
लक्षण
नहीं
मिला
मुझे
,बस
एक
लाल
दवा
का
स्नान
कर
लेना
चाहिये।
होरला: भाग 2
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