के सामने खड़ी खड़ी पत्नी मुँह बिचकाने की प्रैक्टिस कर रही थी, अरे भाग्यवान यह क्या कर रही हो क्यों आड़े टेढ़े मुँह कवि, गायकों के से बना रही हो, कहीं जाने की तैयारी है क्या ?
नहीं! ‘नये ढंग से ठुनकते कहा,’ रूठने की तैयारी है’
अरे! पत्नी थोरई रूठती है। रूठते तो नेता है पार्टी के नेता, पार्टी के अध्यक्ष, पार्टी अध्यक्ष सरकार से, तुम क्यों रूठ रही हो,।
हाँ मैं क्यों रूठ रही हूँ। आम जनता हूँ रूठे या मरे आपकी बला से,
‘अरे बाप रे! मैं भी क्या बेवकूफ हूँ वो तो प्रैक्टिस कर रही थी, और मेरे पूछने से तो वास्तव में रूठ गई। अब कैसे मनाऊँ ? अभी तो नाश्ता, खाना कुछ नहीं बना अगर नहीं बनाया तो बेकार सौ दो सौ की चपत लग जायेगी। चलो गाना गाकर मनाते हैं।
फिल्मों में नायक बाजार में दौड़ दौड़ कर गा गा कर मना लेता है, और किनारे खड़ी प्रेमिका को समुद्र की लहरों पर या नाव चलाते गा लेता है वो सुन भी लेती है तो क्या मैं पांच फुट दूरी से नहीं गा सकता। लाइन अपने आप तो बनी नहीं, पता नहीं फिल्मी नायक कैसे बना लेते हैं। रूठे रूठे मेरे सरकार नजर आते है’ गाते आगे बढ़ा कि दुगनी जोर से बिफरते बोली, अब ये भेंकड़ा फाड़ना बंद करो ज्यादा दिमाग मत खराब करो।
‘आखिर बात क्या है ? कुछ पता चलेगा या दौरा पड़ा है।’
‘अच्छा तो अब दौरा लग रहा है तुम्हें ,जे किस के पल्ले पड़ गई’। ‘ वो बिसूरते बोली।
‘किसने कहा था क्यों नहीं अपने बाप से मना किया’ हमको भी तैश आ गया।
‘देखो, देखो, बाप पर मत जाओ ये तो शिवजी के सोलह सोमवार किये थे उसका फल है मेरे पिताजी का कोई कसूर नहीं है।’
‘अब शिव जी की पूजा की किसने कहा था,? अब नहीं करती तो क्या होता।’
‘और क्या होता, तुमसे भी गया गुजरा पल्ले पड़ता ’,उसका रोना जारी था।
‘अच्छा! अब जो हो गया सो ठीक है मुझे भूख लगी है पेट में पड़ जाय रोटी तो मैं आगे कुछ सोचूँ।’
‘बस तुम्हें तो खाने की पड़ी रहती है ,एक दिन का अनशन नहीं कर सकते अनशन करो तो जरा फोटो वोटो आये सो कुछ नहीं।’
‘अनशन करूँगा तो मेरे पुरखे तक नप जायेगे, पर करूँ तो क्यों ? रूठी तुम हो अनशन तुम करो मेरीसमझदारी इस समय बिलकुल बंद हो रही है।’ हैरान था कि आखिर हुआ क्या है।
तभी टी वी पर एक विज्ञापन चमका और उसकी उंगली उठी।
देखो जरा सा मुँह बिचकाने पर हीरे का हार ला दिया ,मैं तो जब से रो रही हूँ।’
‘हे भगवान... तो यह कारण है.. मैं पहले तो माँ के लिये सोने की चूडि़याँ ला दूँ दस साल हो गये एक साड़ी नहीं ला सका।’
‘यही तो यही तो कहती हूँ कुछ तो सीखों... सीखो सीखो कैस मनाया जाता है....’
‘अरे इतनी सी बात... कल लाऊँगा ठीक अब तो... थोड़ा टी वी से अलग रोल करलो... यह कौन सा चैनल है ,देखना बंद करो।’
दूसरे दिन अपनी पासबुक उलटी पलटी दस साल की नौकरी के पृष्ठ उलटे और दो हजार जेब में डाल कर चला जौहरी की दुकान पर। पहली बार जिंदगी में सोने चांदी की दुकान देखी थी शादी में माँ ने अपने ही जेवर चढ़ाये थे। पहले कभी ऐसी दुकानों पर चढ़े नहीं । बाद में सोचा ही नहीं । कभी सोने चांदी के भावों पर नजर नहीं डाली तो शान से अकड़ते कहा, ‘भई एक हीरे का सैट दिखाओ।’
सेल्सगर्ल ने ऊपर से नीचे हमें देखा। भ्रम नहीं तो होठों पर एक व्यंग्य की मुस्कराहट आई और एक छोटा सा सैट दिखाया, ‘अरे नहीं थोड़ा ठीक ठाक दिखाओ ’ और अच्छा और अच्छा करते जरा ठीक ठाक देखा तो दाम पूछे... पांच लाख।
‘पांच लाख.. ’हकलाकर पूछा, ‘या पांच हजार’
‘क्यों मजाक करते है सर, पांच हजार में कुंदा भी नहीं आयेगा..’’ ठीक है... ठीक है हकलाते कहा,‘यह पसंद है कल आऊँगा।’
अरे, बाप रे मन में सोचा रूठी बीबी मंजूर... यह तो... टी वी वाला कहां से रोज ले आता है... पूछना पड़ेगा.. कौन से बाप की नौकरी करता है... या ... चल यार नकली माल ही सही। नकली ज्वैलरी की दुकान पर देखा, अरे साहब एक नहीं सैकड़ों देखिये, असली को मात करेगा, बीबी को खुश करने के लिये खरीदिये पहने और आराम से चोरों से तुड़वाये क्या फर्क पड़ेगा..?
‘सोने से कम नहीं खो जाय गम नहीं’ बिलकुल सस्ते कौड़ी के दाम यह दस हजार यह पन्द्रह हजार यह ग्यारह हजार यह जरा... छोटा है वह छः हजार का है... जेब के दो हजार रुपयों को थपथपाते दुकान से नीचे उतर आये
हाय! अब बीबी कैसे मुस्करायेगी ?
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