Wednesday, 20 January 2016

बचपन की सांस्कृतिक यात्रा भाग 4

मारने वाले से बचाने बाले अधिक ताकतवर है कहते है एक बालक तीसरे दिन जीवित खेलता मिला उसके ऊपर दो पत्थर पिरामिड के आकार के खडे हो गये थे। वह बरात कभी कभी आज भी याद जाती है

       राम बरात से पहले दिन धनुष यज्ञ की लाला होती थी उस लीला का सबकेा इंतजार रहता। पहले सीता जी का डोला हमारे घर के सामने से जाता और डोले के निकलने  के बाद ही हम प्रेस मे भाग लेले थे क्योकि उसके बाद ही कटरे मे लीला प्रारम्भ होती थी। एक तरफ पुष्प वाटिका बनी होती सीता जी सहेलियों के साथ घूमती एक तरफ दषरथ का दरबार होता 

विषाल धनुष तखत पर रखा होता बड़ी बड़ी मूछों वाले राजा उस धनुष को उठाने का प्रयत्न करते राम फूल की तरह उसे उठा लेते तब कहां थी अक्ल कि धनुष हल्के कागज और पतली बास की खप्पचियों का बना है राम का नाजुक सा शरीर जब उसे उठाता राम के ऊपर श्रद्वा हो जाती फिर आते गरजत बरसते परषुराम दिल दहल जाता डर कर माँ से चिपक जाते। बारात के बाद होती कोप भवन की लीला कैकयी के लिये मन क्रोध से भर उठता। 


हर लीला के साथ जुड़ जाते थे बनवास की लीला के बाद की सब लीलाऐ महाविद्या के मैदान मे हेाती। हमारे परिवार का एक तख्त मैदान में रहता और ठीक स्टेज के पास ही रस्सी से बना वी आई पी घेरा रहता क्योकि हमारे परिवार से चंदा अच्छा जाता था प्रतिदिन शाम को तांगे मे भरकर सब मैदान मे पहुंच जाते सुपर्णखां  की नाक कटना देखना हमें आनंदित करता उसे देखना प्रिय था  घाधरा चोली और चमकदार दुप्पट्टा पहनकर सुपर्णखां पूरे मैदान का मटक मटक कर चक्कर लगाती राम लक्ष्मण और  सीता भी मैदान के चक्कर वन के कपड़ों में लगाते। 


फिर प्रारम्भ होता सुपर्णखां और राम लक्ष्मण संवाद कभी गाने में कभी वाक्यों में  और जब लक्ष्मण नाक काटते कटी नाक लेकर सुपर्णखां चक्कर लगाती  बड़ा सुखद क्षण होता था  हू हू करती लाल लाल कटी नाक कभी छिपाती कभी दिखाती  और रो रो कर रावण के पास जाकर षिकायत करती क्या आज के टी वी सीरियल वो आनंद दे सकते हैं रावण बध बाले दिन बेहद भीड होती हम छोटे बच्चे उस समय बड़ो के कंघे पर बैठ कर लीला फिर रावण, हय रावण और कुंभकरण के बडे बडे लकडी कागज के बने कम से कम 60 देखते  


राम रावण का युद्व पहले धूम धूम कर पूरे मैदान मे तीर कमान और ढाल तरवार के साथ होता फुट ऊंचे पुतले धू धू कर जल उठते   रावण के दसों सिरों से एक एक कर दांतो मे अतिषबाजी छूटती जैसे विषाल रावण हंस रहा हो अपने दंभ पर उसके पुतले के गिरने के साथ मेला खत्म होता और दूसरे दिन फिर राज्यभिषेक के लिये डोला शहर भर मे घूमता। कहना यह है कि पूरा शहर राममय होता था पूरी लीला शहर के अलग अलग स्थानो पर होती केंवट राम संवाद स्वामी घाट पर ,भरत मिलाप असकुडा घाट पर ।ताड़का वध की लीला भी  असकुंडा घाट पर खेली जाती घर के नजदीक होने की वजह से पूरी लीला देखने को मिलती थी  


एक किनारे ताढ़का का  विषाल पुतला खड़ा किया जाता बड़ी चैड़ी नाक उसमें बड़ी सी नथ ,लाल होंठो से झांकते  नुकीले दात थाली जितने बड़े ब़ड़े  कुंडल राम और लक्ष्मण रथ पर आते ताड़का बनी चरित्र काले चमकीले वस्त्र पहने छमछम करती भयानक मुखैाटा लगाये  बड़ी कागज की जीभ लगाये युध्द का अभिनय करती रावण के सभी परिजन और सैनिकों को काले चैड़ा गोटा लगाये वस्त्र होते और राम  के पीले सुनहरे और सेना के लाल या पीले। ढम ढम झम झम युध्द होता ताड़का बड़ी तेजी से घूमती लपकती और अंत में राम का तीर लगता वह जमीन पर गिरती छटपटाती और उधर पुतले में आग लगा दी जाती ,फिर विजय जलूस निकलता आज रामलीला देखना संभवतः कथित षिक्षित समाज के लिये वर्जित है गंवरदल का मेला कहलाता है।


       बृज भूमि कृष्ण की लीलास्थली है मथुरा मं घर घर लड्डू गोपाल की ही पूजा होती है 10 इंच से बडी मूर्ति मुदिर मं स्थापित की जाती है मंदिरों मे तो कृष्ण के पूर्ण स्वरूप या राधाकृष्ण की युगल मुर्ति की पूजा की जाती है। कृष्ण को कभी राजा महाराजा या किसी भी ऐसे संम्बोधन से संबोन्धित नही किया जाता कि एहसास हो कृष्ण महाराजधिराज या भगवान थे। यद्यपि द्वारकाधीष मंदिर वहाँ का ऐक प्रमुख मंदिर है उन्हे सब प्यार से लाला लल्ला छोरा कान्हा कन्हैया ही कहते है। वहां महिलाओ मं यषोदा भाव है ,मातृत्व भाव, वे कृष्ण की एक एक लीला पर बलिहारी है 


मथुरा में मदिर तो हर चार घर के बाद मिल जायेगें बडे बडे जहां भव्य मूर्तियां है कृष्ण जन्म स्थान वहां का विषाल सुप्रसिद्व मंदिर है जैसे जैसे श्रद्वालुओ की भीड़ बढ रही है मंदिर मे मूर्तियों की संख्या बढ रही है उसक स्वरूप बृहत्तर हो रहा है लेकिन मुख्य मंदिर द्वारिकाधीस का मंदिर है जो वहां के सेठ ने बनवाया था। विश्राम घाट पास ही है द्वारिकाधीस के मंदिर मं घुसते ही एक षुचिता और पावनता का एहसास होता है 


बहुत कम स्थान ऐसे है जहां ऐसा लगे कि अजस्त्र ऊर्जा का स्त्रोत बह रहा है वहां स्त्री पुरूष माला करते तेजी से परिक्रमा करते देखे जा सकते हैं मुख्य बात जिसके लिये मै कहना चाह रही थी मुर्ति महाराजा कृष्ण की है कृष्ण जो द्वारका के अधीष हैं लेकिन श्रद्वालुओ का उनके भी दर्षन करते लाला का स्वरूप अर्थात् बाल कृष्ण का स्वरूप दिखाई देता है



उसी भाव से दर्षन करते है। लडडू गोपाल की मूर्ति का स्वरूप ,घुटअन चलते हुए कृष्ण और एक हाथ  जमीन पर और एक हाथ में माखन का लडडू सिर के बाल ऊपर बंधे हुए। कमर मे करधनी हाथ में कडे पैर मे छोटी छोटी पैजनियां कानों मे कुडल माथे पर त्रिपुंड तिलक बाल स्मित। यही स्वरूप हर घर मं मिलेगा उस पर बारी बारी जाते ,बलिहारी लेते मिलेगे।



       राधे राधे के हुंकारा जयकारा जयकारा सर्वत्र मिलेगा। एक दूसरे से मिलेगे तो चलते हुए देखेगे तो यात्री को देखेगे तो कहेगें राधे राधे लेकिन किसी भी घन मे राधा कृष्ण की युगल सा अकेली राधा की मूर्ति नही मिलगी यूँ तो सब जगह है हाँ कुछ मंदिरो के अवष्य राधा कृष्ण की मूर्ति मिल जायेगी पर अधिकांष कृष्ण की बंयी बजाती अकेली त्रिभंगी मूर्ति ही दर्षनार्थ मिलेगी या बरद हस्त उठाये श्री कृष्ण  
नवनिर्मित सभी मंदिरों में युगल मूर्ति के ही दर्षन होते हैं आरती के बाद जय के हुंकारे में कहा जायेगा जै श्री राधे
बचपन की सांस्कृतिक यात्रा भाग 5

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