Tuesday, 15 December 2015

ये पर्दानशी आंखे

डालकर पर्दा न जाने क्या छिपाती है ?
     चीर कर पर्दा किसी पर कहर ढाती है,

      इन पर्दानशी आंखों में कैसा जादू है

      डाल दी नजरें तो सासें थम सी जाती है।


ईश्वर ने आकाश का पर्दा बनाया और उसके पीछे से सब पर नजर रखी । अब ईश्वर की  आंख भेंगी है, टेढ़ी है ,प्रसन्न  हैं , हम तो नहीं देख सकते । वह हमें देख सकता है। इंसान ने भगवान को पीछे छोड़ दिया, इतने बड़े आसमान की क्या जरूरत ? दो छोटे वाले काले पहिये आंखों के सामने रख लिये ,उनके पीछे से दुनिया पर नजर है ।


बहाना धूप का है पर रात में भी नेता-अभिनेता काला चश्मा लगाये पार्टी में देखे जा सकते हैं । काले चश्में के पीछे क्या है? कहते है नजरें सब कह देती है तो जब उस पर पर्दा ही पड़ गया तो कहते रहो कुछ अब वह जो देखेगा वही दिखेगा।


काला चश्मा और सफेद कपडे अब नेता की पहचान बन गये हैं जितना बड़ा नेता उतने सफेद कपड़े और उतना गहरा काला चश्मा।  किसी से नजर न मिले और उनकी नजर सबके हावभाव देखती रहे।


एक आम प्रचलन अब मृत्यु के समय चश्मा पहनने का हो गया है। उठावनी हो उठाला श्रंद्धाजंलि समारोह हो या दाह संस्कार। परिवार प्रमुख चश्मा लगाये दिखेंगे। भैया रोते आदमी को तो बार बार चश्मा पोंछना पड़ेगा और उतारना पड़ेगा ।


दुःख होगा तो आंखे भरेंगी, भरेंगी तो टपकेंगी पर चश्में के पीछे दुनिया समझेगी की रो रोकर लाल हुई आंखे होंगी ,इसलिये चश्मा लगाया है कि दुनिया दुःखी नजरें न देखे। नेता कभी रोता अच्छा लगता है ,नही न ,पर कभी जनता के साथ रो ले तो वो भी अच्छा लगता है।


दाह संस्कार और मृत्यु, विमान उठने के समय चश्मा न पहना तो सेलीब्रेटी क्या ?अलग लगना चाहिये ।


आंख में आंसू न आये तो जमाना तो न देखे कि आंख हंस रही है ,रो नहीं रही है चश्मा चढ़ाओ ,दुनिया को एक रंग में देखो काले रंग में।नियम तो नियम है नियमों का क्या


ये पर्दानशी आंखे का अगला भाग

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