दिल्ली आने के बाद से पहिली बार अपना वास्ता क्रिकेट से पड़ा। वास्ता भी ऐसा कि अब तो सोच लिया है क्रिकेट के खिलाड़ी दिल्ली मे तो हम दिल्ली से बाहर। टीम तो ग्यारह की कोटला मैदान में खेली परन्तु खिलाड़ी पूरी दिल्ली ही नजर आयी।
क्या बड़े क्या बूढ़े या बच्चे सब का बस चले तो पर सड़क दफ्तर कुछ भी हो उसे ही क्रिकेट का मैदान बना लें। क्या ही जोश व्याप्त था कि स्कोर पूछने वाले हर जगह आपको मौजूद मिलेंगे, इस स्कोर ही अकेले ने हमें इतना तंग किया कि हम इससे बचने की राह ही निकालने लगे।
मैच का पहिला दनि था। हम इतमीनान स बस में चढ़े दफ्तर की ओर पत्रिका पढ़ने हुए जा रहे थे। खचाखच भरी बस में बोल रहे व्यक्तियों की आवाज ऐसी लग रही थी मानो हजारों झीगुर आवाज कर रहे है। कभी लारी कप्तान फला, कभी गावस्कर या कभी विश्वनाथ कभी तेंदुलकर कुछ इसी किस्म के शब्द कानों में टकरा रहे थे। सोचा, होंगे कोई नेवी के कैप्टन जो तेज दौड़ती लारी के नीचे आ गये होंगे।
दूसरा बोला, मैं कैसे मान लूँ, हजारे ने वह सिक्का जमाया था कि बस।
बस तो राजनीति लड़ाने का अड्डा है ही पर हमारी समझ में ये दोनों नाम नहीं आये। अभी तक इन दोनों के नाम कोई मंत्री या नेता तो सुना ही परन्तु तभी हमारे बगल में बैठे सज्जन उन दोनों के बीच में कूद पड़े, हां साहब यह बात तो है क्रिकेट के मैदान में अब तक रन तो सबसे ज्यादा तेंदुलकर ने ही बनाये है।
उसने ये बाक्य कहे और हमने अपना सिर पीट लिया अपनी अकल के दिवालिये पन के लिये। तो यह सब बहस कासार क्रिकेट था। अब पटौदी और लारी का रहस्य भी समझ में आ गया था।
पेपरवेट ने तो इतनी जोर की उछाल मारी थी कि वह सीधे दीवार पर लगी एक बहुमूल्य पेंटिंग से टकराया और उसके छक्के उड़ गये। हालांकि क्रिकेट के मैदान में अभ एक भी छक्का नही लग पाया था। जिस समय चाय की छुट्टी हुई उस समय मेज की आधी वस्तुओं की भी छुट्टी हो चुकी थी।
इतवार का दिन था हमने सोचा लाओ आज क्रिकेट का मैच ही देखा जाय। पता नहीं उस दिन किस के ग्रहों ने जोर मारा कि खेल खूब जमा। पास बैठे मौलवी जी बार-बार पान मुंह में ठूंसते और खिलाड़ी के आउट होने पर पिच-पिच कर आस-पास की जमीन को ठोस बना देते थे।
बीच-बीच में भरे मुंह से क्रिकेट की हिस्ट्री सुनते जा रहे थे, जिससे उनके मुंह से पीक नहीं फूल झड़ झड़ कर हमारे स्वेटर, बांह पेन्ट की शोभा बढ़ा रहे थे।
खेल और खिलाड़ी भाग 2
क्या बड़े क्या बूढ़े या बच्चे सब का बस चले तो पर सड़क दफ्तर कुछ भी हो उसे ही क्रिकेट का मैदान बना लें। क्या ही जोश व्याप्त था कि स्कोर पूछने वाले हर जगह आपको मौजूद मिलेंगे, इस स्कोर ही अकेले ने हमें इतना तंग किया कि हम इससे बचने की राह ही निकालने लगे।
मैच का पहिला दनि था। हम इतमीनान स बस में चढ़े दफ्तर की ओर पत्रिका पढ़ने हुए जा रहे थे। खचाखच भरी बस में बोल रहे व्यक्तियों की आवाज ऐसी लग रही थी मानो हजारों झीगुर आवाज कर रहे है। कभी लारी कप्तान फला, कभी गावस्कर या कभी विश्वनाथ कभी तेंदुलकर कुछ इसी किस्म के शब्द कानों में टकरा रहे थे। सोचा, होंगे कोई नेवी के कैप्टन जो तेज दौड़ती लारी के नीचे आ गये होंगे।
फिर से पत्रिका में ध्यान लगाया तो लगा जैसे दो बन्दर बड़ी तेजी से पास ही गुर्रा रह हो देखा, दो सज्जन बहस कर रहे थे। एक कह रहा था, अरे यार तुम मानोगे नहीं, अब तक उमरीगर ही सबसे आगे रहे हैं। वो अपने जमीन को ले आये।
दूसरा बोला, मैं कैसे मान लूँ, हजारे ने वह सिक्का जमाया था कि बस।
बस तो राजनीति लड़ाने का अड्डा है ही पर हमारी समझ में ये दोनों नाम नहीं आये। अभी तक इन दोनों के नाम कोई मंत्री या नेता तो सुना ही परन्तु तभी हमारे बगल में बैठे सज्जन उन दोनों के बीच में कूद पड़े, हां साहब यह बात तो है क्रिकेट के मैदान में अब तक रन तो सबसे ज्यादा तेंदुलकर ने ही बनाये है।
उसने ये बाक्य कहे और हमने अपना सिर पीट लिया अपनी अकल के दिवालिये पन के लिये। तो यह सब बहस कासार क्रिकेट था। अब पटौदी और लारी का रहस्य भी समझ में आ गया था।
पेपरवेट ने तो इतनी जोर की उछाल मारी थी कि वह सीधे दीवार पर लगी एक बहुमूल्य पेंटिंग से टकराया और उसके छक्के उड़ गये। हालांकि क्रिकेट के मैदान में अभ एक भी छक्का नही लग पाया था। जिस समय चाय की छुट्टी हुई उस समय मेज की आधी वस्तुओं की भी छुट्टी हो चुकी थी।
इतवार का दिन था हमने सोचा लाओ आज क्रिकेट का मैच ही देखा जाय। पता नहीं उस दिन किस के ग्रहों ने जोर मारा कि खेल खूब जमा। पास बैठे मौलवी जी बार-बार पान मुंह में ठूंसते और खिलाड़ी के आउट होने पर पिच-पिच कर आस-पास की जमीन को ठोस बना देते थे।
बीच-बीच में भरे मुंह से क्रिकेट की हिस्ट्री सुनते जा रहे थे, जिससे उनके मुंह से पीक नहीं फूल झड़ झड़ कर हमारे स्वेटर, बांह पेन्ट की शोभा बढ़ा रहे थे।
खेल और खिलाड़ी भाग 2
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