Friday 18 December 2015

जूता भाग 2

जूता
वही नाली के पास उसे रख देते हैं, जहां उनकी पवित्रता का इतना ख्याल रखा जाता है कि किसी ने खाने को दिया खाया और उठाया चल दूसरी गाछ़ी पर ।देवी देवताओं के कोप से तो सब घबराते ही हैं जब वे खुद चल कर आये हैं तो  कुछ श्ऱ़घ्दा तो करनी ही पड़ेगी।


मंदिर में भी हर कोई नहीं घुस सकता वहां देवी देवता की अवमानना का ख्याल है कि कोई चाहे नहा धोकर आये पर जात चिपकानी होगी स्वच्छता नहीं । पर इन दौड़ते भागते   मंदिरों  की स्वच्छता का ख्याल किसी को भी नहीं आता कि इस को बंद करा दे पर बात जुगाड़ की है यह भीख् मांगने का जुगाड़ है ।  जुगाड़ फिट करते है बेकार लड़के जो यहां तादाद में हैं। अपनी प्रेमिकाओं को पटाने के लिए पाकेटमारी चेन तोड़ना करते हैं।


प्रेमिका पटती कम बेवकूफ बना कर अपना जेब खर्च चलाने की जुगाड़ करती है । कोई बैंको से सरकारी रुपया क्योंकि सरकार का माल तो अपना माल । पहले लोन लेता है फिर जुगाड़ बिठा माफ करा लेता है ।



ये जिंदगी ही जुगाड़ है ठोक ठोक कर बनायी हुई। अगर देखा जाये तो जीवन क्या है ? जीवन खाने की जुगाड़ मात्र है बस खाना खाना और खाना। एक वर्ग है उसका पेट इतना बड़ा है कि उसमें पूरा देश समाता जा रहा है तब भी भूख नही मिटती वो बड़ी बड़ी जमीने बड़ी बड़ी बिल्डिंगे और बड़े बड़े बैंक लाॅकर उठाया और दबा लिया । एक एक गस्से में मुँह में रखते जा रहे हैं । एक वर्ग है पूरा परिवार सुबह से खाने की जुगाड़ में निकलता है।


कभी लकड़ी बीनता है ,कभी कागज बीनकर चूल्हा जलाता है ,एक आटे की जुगाड़ करता है ,तो एक सब्जी की। न मिले तो प्याज फोड़ कर नमक रखकर खा लेता है । पर अब तो फरमान ऊपर से आ गया है ,अगर प्याज मंहगी है तो क्या जरूरी है खाना ,मत खाओ ।


एक है गोगोई वो सलाह दे रहे हैं क्यों नहीं कीड़े मकौड़े खायें ,अगर खाना नही है ठीक है ।  जाल लेकर भागते रहो एक पकड़ा मुंह में । हां जाल  के लिये पैसे तो गोगोई दे ही देगे क्योंकि पेट भर कीड़े पकड़ने के लिये भागते भागते कमाने का समय कहा होगा और जनता पर से आलसी होने का धब्बा भी हट जायेगा । गोगोई ही कहते है जनता आलसी है ,इसलिये पूरा महकमा आलसी है । हां अब एक नया महकमा खुलने जा रहा है कीड़ा पकड़ महकता।
श्रद्धेय नीरज जी से खेद सहित-मानव होन पाप है गरीब होना अभिशापबन्दर होना भाग्य है जिम्पाजी होना साॅभाग्य
एक टीवी ऐड में चिम्पैजी को च्यवनप्राश खिलाया जाता देख कर तो यही लगता है जैसे श्री राम जी दूरदर्शी थे । उन्हें मालुम था एक बार आदमी फिर बन्दर बनेगा फिर चिम्पैजी । वही उसका लक्ष्य होगा कम से कम च्यवनप्राश तो खाने को मिलेगा आदमी को तो सूखी रोटी नसीब नहीं है । कुछ दिन में तो महाराणा प्रताप की तरह घास पर ही जिन्दा रहेगा बहुत हुआ तो इधर उधर उगे जंगली फल ही खा लेगा ।



न लकड़ी, न बिजली, न कोयला, न तेल ,काहे पर पकाए ?क्या खाए ? सत्ताईस रुपये मैं एश करने वाला परिवार एक आदमी के कमाने से तो चलने वाला है । नहीं उसे खाने की तैयारी के लिए वैसे ही एक क्रिकेट टीम चाहिए । एक जायेगा घास ,कूड़ा, लकड़ी बीनने । एक जायेगा राशन की दुकान आटा लेने जेा एक किलो का  सात सौ पचास ग्राम मिलेगा।  एक जन एक बार मैं ढाई सौ ग्राम खा लेता है तीन ने खाया चौथा भूखा रहा गया अब हिसाब लगाओ । बीस रुपये का आटा हो गया नमक तेल लगाया तो दस रुपये का हो गया ।


जलावन लाना ही पड़ेगा । किसी से लगा कर तो खायेगा बेचारा । अब बूढ़े माँ बाप वे कहा जायें । कपड़े कहां से लायेगा बच्चों को कहां से खिलायेगा । साबुन तेल और बाप रे ! ये क्या ? खर्चे तो सुरसा के मुख की तरह बढ़ते जा रहे हैं ।  बीपीएल कार्ड तो अमीरों के लिए बनता है क्योंकि गरीब के पास पैसा खिलाने के लिए है ही नहीं ,जहां मरने की सनद के लिए पैसे देने पडे़, की हां मर गया है हां अमीरो के लिए जिन्दा रहेगा क्योंकि उसके जिन्दा रहने पर ही तो उसकी पेंशन खायेंगे । मरेगा कैसे? उसे मरना है पर किताबों में जिन्दा रहना है। क्योंकि अमीरों के मुर्गे का जुगाड़ उसकी रोटी ही करेगी ।



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