Wednesday, 13 December 2017

भारत इंडिया हो गया


बदलाब की बयार हर तरफ है  इन्सान की प्रकृति ही नहीं बदल रही है सब कुछ बदल रहा है। डॉ राधाकृष्णन ने कहा था  आवश्यक नहीं जिस उद्देश्य के साथ शताब्दियों पहले कोई कार्य शुरू किया गया है वह आज भी सार्थक हो समय के साथ आवश्यकताएं बदलती हैं अब  अगर ब्रह्माण्ड भी अपनी चाल बदल रहा है तो उसका क्या दोष टेनीसन ने कहा है परिवर्तन संसार का नियम है परिवर्तन का कोई उद्देश्य तो होता है सब कुछ नियमबद्ध है तो हमारे उद्देश्य भीतो किसी नियम के अंतर्गत होंगे लेकिन इस समय हम उदेश्यहीन है।  भारत का भारत अब कहीं नहीं अब पूरब का सूर्य पश्चिम से निकल रहा है  और पश्चिम की उदासी भरी डूबते सूर्य की हिंसक प्रवर्ती उग रही है भोरे की शीतलता डूब रही है तब ही हर तरफ पश्चिम का अनुसरण कर रहे हैं जहाँ बस चलते जाना है कहाँ किसके लिए कुछ नहीं पता उद्देश्य ही बिखराव लता है एक सूत्र मैं नहीं बंधता डोर कमजोर होती है टूट टूट कर तुकडे बिखरी रहती है भारतीय संस्कृति मैं परिवार समाज प्रमुख था उसके सामने उद्देश्य था अपने को अपने बच्चों के सामने स्थापित करना एक उदाहरण पेश करना जिससे उनके अपने बच्चे सीखें और एक सुसंस्कृत परिवार सामने आये लेकिन परिवार के साथ साथ मर्यादाये टूटी लिप्साएं बढ़ी लोलुपता बढ़ी राजनीती बदली उसके उद्देश्य बदले तो सब कुछ बदल गया तभी तो भारत इण्डिया  हो गया 

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