महर्षि दयानन्द
भारत भूमि पर महर्षि दयानन्द एक ऐसे ज्वाजल्यमान नक्षत्र हैं जिसके प्रकाश ने भारत भूमि को अंधेरे गर्त से निकालकर प्रकाशित किया है। युगों युगों में ऐसा सूर्य उत्पन्न होता है जिसका प्रकाश हर युग के अंधेरे मिटाता है।
कभी भारत भूमि ज्ञान का अथाह भंडार थी । वेद पुराण उपनिषद् में जीवन के सभी तत्व समाहित है जिस भारत में गौतम कपिल कणा व्यास, जैमिनि पतंजलि जैसे दर्शनशास्त्र प्रणेता, महर्षि शिवि ,कर्ण, दधीचि हरिश्चन्द जैसे दानी, द्रोण, भीष्म, भीमार्जुन सदृश बलशाली युधिष्ठर सदश धर्मात्मा सती, सीता, सावित्री, सुलोचना सदृशी पतिव्रत परायण अंजना तथा काली, कराली-दुर्ग और चण्डी जैसी वीरांगनाऐं हो चुकी। जहां मर्यादा पुरुषोत्तम राम जैसे राजा, सोलह कलाओं के केन्द्र रहे श्री कृष्ण जन्म ले चुके हैं। ऐसी भारत भूमि को ऋषि मुनियों ने शत शत नमन किया है।
गायन्ति देवाः किल गीतकानि
धन्यस्त्वहो भारत भूमि भागः।
जिस की प्रशंसा में देवता भी गीत गाते है। वह भारत भूमि धन्य है कहा जाता है एक बार शंकाराचार्य मंडनमिश्र से शास्त्रार्थ करने उनके नगर पहुंचे। उन्हें एक कुँए पर पनहारिने पानी भरती दिखाई दी उन्होंने उनसे मंडनमिश्र के घर का पता पूछा तो पनहारिनों ने उत्तर दिया
स्वतः प्रमाण परतः प्रमाणम्
कीराडना यत्र गिरो गिरन्ति
द्वारेषु नीडान्तरसन्निरूद्धाः
अवेहि तन् मण्डनमिश्रधाम
अर्थात् जिस घर के द्वार पर पिंजरे में बैठे पक्षी वेद स्वतः प्रमाण है या परतः प्रमाण है इस बात पर शास्त्रार्थ कर रहे है। बस समझ लेना कि यही मण्डनमिश्र का घर है
ऐसी भूमि जब चारों ओर से शास्त्रों की अवहेलना और कर्मकाण्डों से घिर घोर अंधेरे गर्त में जा रही थी अज्ञानता और सामाजिक दुरवस्था से आहत महर्षि दयानन्द ने वैदिक धर्म की पुर्नस्थापना वैदिक कर्मकाण्ड के प्रचार का बीड़ा उठाया । उनका कहना था वेद शास्त्रादि के अप्रचार के कारण जो अन्धकारमय युग में विधर्मियों ,नास्तिकों एवम् वाम मार्गियों ने अंहिसा के प्रतीक यज्ञादि को अज्ञानता के कारण दूषित और कलंकित किया है उसे उचित मार्ग दिखाने के लिये आर्य समाज की स्थापना की।
पंडितों ने अपने लाभार्थ वेद मंत्रों के अपने ढंग से अर्थ निकाल लिये थे और यजमानों को अनेक कर्मकाण्डों में लिप्त कर दिया था । अनेकों देवी देवताओं के चक्कर में भारतवासियों को फंसा दिया था। अनेक मत खड़े हो गये थे । विभिन्न विचारों के अलग अलग मत बन गये थे । शैव वैष्णब, जैन, बौद्ध तो एक दूसरे की जान के दुश्मन बन गये थे । ऐसे समय में महर्षि दयानन्द देवदूत के समान आये और पंडितों और धर्माबलंबियों के चक्कर से देशवासियों को निकालने का प्रयास किया इसके लिये नगर नगर शहर शहर जाकर प्रवचन दिये और शास्त्रार्थ किये ,जागृति फैलाई। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों के मिटाया अस्पृश्यता छुआछूत जैसे कोढ़ का विरोध किया । देश प्रेम की भावना जगाकर स्वतंत्रता की अलाख जगाई। देश की सुप्त आत्मा को जगाकर एक महान उद्धारक के रूप में देश को झिझोड़ डाला था।
भारत भूमि पर महर्षि दयानन्द एक ऐसे ज्वाजल्यमान नक्षत्र हैं जिसके प्रकाश ने भारत भूमि को अंधेरे गर्त से निकालकर प्रकाशित किया है। युगों युगों में ऐसा सूर्य उत्पन्न होता है जिसका प्रकाश हर युग के अंधेरे मिटाता है।
कभी भारत भूमि ज्ञान का अथाह भंडार थी । वेद पुराण उपनिषद् में जीवन के सभी तत्व समाहित है जिस भारत में गौतम कपिल कणा व्यास, जैमिनि पतंजलि जैसे दर्शनशास्त्र प्रणेता, महर्षि शिवि ,कर्ण, दधीचि हरिश्चन्द जैसे दानी, द्रोण, भीष्म, भीमार्जुन सदृश बलशाली युधिष्ठर सदश धर्मात्मा सती, सीता, सावित्री, सुलोचना सदृशी पतिव्रत परायण अंजना तथा काली, कराली-दुर्ग और चण्डी जैसी वीरांगनाऐं हो चुकी। जहां मर्यादा पुरुषोत्तम राम जैसे राजा, सोलह कलाओं के केन्द्र रहे श्री कृष्ण जन्म ले चुके हैं। ऐसी भारत भूमि को ऋषि मुनियों ने शत शत नमन किया है।
गायन्ति देवाः किल गीतकानि
धन्यस्त्वहो भारत भूमि भागः।
जिस की प्रशंसा में देवता भी गीत गाते है। वह भारत भूमि धन्य है कहा जाता है एक बार शंकाराचार्य मंडनमिश्र से शास्त्रार्थ करने उनके नगर पहुंचे। उन्हें एक कुँए पर पनहारिने पानी भरती दिखाई दी उन्होंने उनसे मंडनमिश्र के घर का पता पूछा तो पनहारिनों ने उत्तर दिया
स्वतः प्रमाण परतः प्रमाणम्
कीराडना यत्र गिरो गिरन्ति
द्वारेषु नीडान्तरसन्निरूद्धाः
अवेहि तन् मण्डनमिश्रधाम
अर्थात् जिस घर के द्वार पर पिंजरे में बैठे पक्षी वेद स्वतः प्रमाण है या परतः प्रमाण है इस बात पर शास्त्रार्थ कर रहे है। बस समझ लेना कि यही मण्डनमिश्र का घर है
ऐसी भूमि जब चारों ओर से शास्त्रों की अवहेलना और कर्मकाण्डों से घिर घोर अंधेरे गर्त में जा रही थी अज्ञानता और सामाजिक दुरवस्था से आहत महर्षि दयानन्द ने वैदिक धर्म की पुर्नस्थापना वैदिक कर्मकाण्ड के प्रचार का बीड़ा उठाया । उनका कहना था वेद शास्त्रादि के अप्रचार के कारण जो अन्धकारमय युग में विधर्मियों ,नास्तिकों एवम् वाम मार्गियों ने अंहिसा के प्रतीक यज्ञादि को अज्ञानता के कारण दूषित और कलंकित किया है उसे उचित मार्ग दिखाने के लिये आर्य समाज की स्थापना की।
पंडितों ने अपने लाभार्थ वेद मंत्रों के अपने ढंग से अर्थ निकाल लिये थे और यजमानों को अनेक कर्मकाण्डों में लिप्त कर दिया था । अनेकों देवी देवताओं के चक्कर में भारतवासियों को फंसा दिया था। अनेक मत खड़े हो गये थे । विभिन्न विचारों के अलग अलग मत बन गये थे । शैव वैष्णब, जैन, बौद्ध तो एक दूसरे की जान के दुश्मन बन गये थे । ऐसे समय में महर्षि दयानन्द देवदूत के समान आये और पंडितों और धर्माबलंबियों के चक्कर से देशवासियों को निकालने का प्रयास किया इसके लिये नगर नगर शहर शहर जाकर प्रवचन दिये और शास्त्रार्थ किये ,जागृति फैलाई। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों के मिटाया अस्पृश्यता छुआछूत जैसे कोढ़ का विरोध किया । देश प्रेम की भावना जगाकर स्वतंत्रता की अलाख जगाई। देश की सुप्त आत्मा को जगाकर एक महान उद्धारक के रूप में देश को झिझोड़ डाला था।
No comments:
Post a Comment
आपका कमेंट मुझे और लिखने के लिए प्रेरित करता है