Sunday, 9 February 2025

Bhajan 24

 1ओम जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे भक्त जनों के संकट क्षण में दूर करें। 

जो ध्यावे फल पावे दुःख बिन से मन का  सुख सम्पत्ति घर आवे कष्ट मिटे तन का 

ओम जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे मात पिता तुम मेरे शरणा गहूॅं  किसकी

तुम बिन और न दूजा आस करूॅं मैं जिसकी  तुम पूरण परमात्मा तुम  अर्न्तयामी

पार ब्रह्म परमेश्र तुम सबके स्वामी ओम.....तुम करूणा के सागर तुम पालन करता

मै मूर्ख खलकामी कृपा करो भरता ओम.....तुम हो एक अगोचर सबके प्रजापती

किस विधि मिलूं दया निधि तुमको मैं कुमती ओम....

दीन बन्धु दुख हर्त्ता तुम ठाकुर मेरे अपने हाथ उठाओ द्वार पड़ा तेरे 

विषय विकार मिटाओ पाप हरो देवा श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ सन्तन की सेवा 

ओम जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे।  










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2जय जय सुर नायक जन सुख दायक प्रणत पाल भगवंता

गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिन्धु सुता प्रिय कंता

पालन सुर धरनी अद्भुत् करनी मर्म न जानय कोई 

जो सहज कृपाला दीन दयाला करहु अनुग्रह सोई

जय जय अविनाशी सब घट वासी व्यापक परमानन्दा 

अविगत गोतीतं चरित पुनीतम माया रहित मुकुन्दा 

जोहि लागि विरागी अति अनुरागी विगत मोही मुनि वृन्दा 

निशि वासर ध्यावहि गुनगन गावहि जयति सो श्रद्धा नन्दा

जेहि सृष्टि उपाई त्रिविध बनाई संग सहाय न दूजा 

      सो करहुं अधारी चिन्त हमारी जानहि भगति न पूजा 

सो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गजंन विपति वरूथा 

मन बचि क्रम वानी छाड़ि सयानी सरल सकल सूर यूथा

शारद श्रु्रति शेषा ऋिषिय अष्ेाषा जा कहु कोई नहीं जाना 

जेहि दीन पियारे वेद पुकारे द्रवहु सो श्री भगवाना

भव वारिध मन्दिर सब विधि सुन्दर गुण मन्दिर सुख पुंजा 

मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कजां 

जानि समय सुर ऋषि मुनि सकल समेत सनेह 

गगन गिरा गभीर भई हरहु षोक सन्देह 

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3हरि ओम तत्सत हरि ओम तत्सत जपा कर जपाकर जपाकर जपाकर 

जो दुष्टों ने लोहे का खम्बा रचा था तो निर्दोष प्रहलाद क्यों कर बचा था

करी थी विनय एक स्वर से जो उसने हरि ओम....

लगी आग लंका में हलचल मचा था  तो घर फिर बिभीषण का क्यों कर बचा था

लिखा था यही नाम कुटिया में उसके हरि ओम तत्सत .............

कहो नाथ शिबरी के घर कैसे आये    आये तो फिर बेर झूठे क्यों खाये

ह्नदय मे यही जिव्हा पर यही था हरि ओम तत्सत हरि ओम तत्सत 

हलाहल का प्याला मीरा ने पिया था कहो विष से अमृत कैसे हुआ था

दीवानी थी मीरा इसी नाम पर हरि ओम....

सभा में खड़ी द्रोपदी रो रही थी रो रो के आँसू से मुँह धो रही थी

पुकारा था दिल से यही नाम उसने हरि.....

हरि ओम में इतनी षक्ति भरी थी गरुड़ छोड़ धाये न देरी करी थी

बढ़ा चीर उसमें यही रंग रंगा था हरि ओम तत्सत हरि ओम तत्सत 

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4संझा सुमरन कर लें अरे मन संझा सुमरन करले

 काहे का दिवला काहे की है बाती काहे का धिरत जरे

सोने का दिवला कपूर की बाती सुरभी का धिरत जरे  रे मन ......

काहे की नाव काहे का है खेवा कोन लगावे बेड़ा पार 

सत्य की नाव धर्म का है खेवा राम लगावे बेड़ा पार रे मन ......

चन्दा सूरज और तारेन की इनकी माता जपले 

चोरी बुराई और पर निन्दा इन तीनो से बचले रे मन .....

संझा सुमरन करले अरे मन संझा सुमरन करले 

साँझ सकारे ओर दुपहरे तीनों वखत हरि भजले

काहे की चैोकी काहे का आसन काहे की माला जपले

ज्ञान की चौकी प्रेम का आसन ह्नदय की माला जपले

साधू संगत गुरून की सेवा माता की आज्ञा में चल रे 

चोरी चकारी और पर निन्दा इन तीनों को तज रे 

भूली भूली ािफरत बाबली ठाकुर द्वारे में पड़ रे 

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5साँझी विरिया मेरे घर में जसुदा के लाला आये 

जसुदा के लाला आये नन्द के दुलारे आये 

हीरा बालू मोती वालू चौमुख दिवला घर में वालू 

चोटी गूथू माँग सवाँरू दई के सवारे आये 

हरि की होवे एक नजरिया रंग रहे वो आठ पहरिया

मनन करे दिन रैन गुजरिया रसिया तुम्हारे आये 

रसिया तुम्हारे आये छैला हमारे आये

राहस रसिया मंगल गावे सहस बनी करताल बजावे 

गोपी नाचे भाव बतावे श्यामा नाचे भाव बतावे

नन्द के दुलारे आये जसुदा के लाला आये 

मोर मुकुट पीताम्बर सोहे मुरली अधर हाथ में सोहे 

सूर श्याम बलिहारी राधे सखियों ने दरशन पाये 

सखियों ने दरशन पाये सबने आनन्द मनाये

जसुदा ने मंगल गाये साझी

हरि की होवे एक नजरिया संग सहे चोहार पहरिया

 भजन करे दिन रैन गुजरिया 

नंद के दुलारे आये जसुदा के प्यारे आये

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6राम को अधार सिया राम को अधारा रे 

मेरी तेरी करते दिन रात यूँ गुजारा रे 

साँचा हरि नाम और धुन्ध को पसारा रे 

भस्मासुर भस्म किया शंकर दुख तारा रे 

गिरजा को रूप धरा मोर मुकुट वारा रे 

भक्तन पर भीड़ पड़ी आन खम्ब फाड़ा रे 

हिरनाकुश मार दिया प्रहलाद को उबारा रे 

खेलत खेलत गेंद गिरी यमुना बिच धारा रे 

अवतो गेंद मिलत नाही नन्द के दुलारा रे 

काली दह में कूद पड़े कालिय को नाथा रे 

कूबलि़या का दन्त तोड़ा कंस को पछारा रे

तुलसी दास यही कहत नही जानन हारा रे 

अग्रसेन राज दियो हो रही जय जय कारा रे 





7पहले मैं गौरी गनेश मनाऊॅं

प्रात हेात गणपति को सुमरू घटां शंख मृदंग बजाऊॅं 

फल मेवा पकवान मिठाई लड्डू का मैं भोग लगाऊँ 

कंचन थाल कपूर की बाती जगमग जगमग दीप जलाऊँ

पान सुपाड़ी ध्वजा नारियल माथे पर हरी हरी दूब चढ़ाऊँ

सूरदास गणेश भजन करो आठो पहर तुम्हारे गुण गाऊॅं ।

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8मेरो राम मिलन कैसे होय गली तो चारो बन्द पड़ी 

चार गली है चारांे बन्द है कौन गली से जाऊँ

एक तो चारो बन्द पड़ी मेरो राम 

पहली गली है दया धरम की दूजी गली है दान

तीजी गली है हरि सुमरन की चोथी मे साधु सम्मान 

गली तो ...................

हरि सुमरन में मन नही लागे दान दिया न जाय 

दया धरम देखे डर लागे साधू का किया अपमान

गली तो चारो.........................

आग लगे डाका पड़े चोर मोर लै जाय 

यह अधर्म तो सहे जात है दान दिया न जाय 

गली तो चारो...................

चारो ही पन ऐसे ही बीते जैसे सूकर श्वान

जब जाओगे यम के द्वारे कहा बताओगे राम 

गली तो .................................

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9धनुष धारी पर होजा मतवाला रे भज सीताराम

ठोकर खाई बहुत सी झूठ जगत व्यवहार

सीता पति मैं इसीलये आया तेरे द्वार

मुझे दर दर नही भटकना रे भज......

नृप दशरथ के महल में जनम लिया सरकार

कौशल पति प्रभु प्रगट भये तीन लोक करतार

खेलत चारो सुकमारा रे भज

फूल लेन बगिया गये  दशरथ राजकुमार

राम धनुष जब तोड़ दिया सिय डाली जयमाल 

जहाँ मिल गये चन्द्र चकोरा रे मज...................

सीय स्वयंवर में जुड़ी भीड़ भूप दरबार

राम धनुष जब तोड़ दिया सिय डाली जयमाला

युगल जोड़ी पर जाऊॅं बलिहारा रे मज ................

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Saturday, 8 February 2025

Bhajan 23

 150मन मूर्ख पापी कौन तुझे समझावे 

निन्दा कर के दिवस गंवाये रैन पड़ी सो जाये 

दुर्जन की संगत में बैठे संत संगत ना भाये 

कबहूँ की माया अधिक देख के धनी पुरूष बन जाये

कबहूँ दीन दुखी बन मूर्ख जग को शीश झुकावे 

आतम आनन्द रूप न जाने देह से नेह लगावे 

एक दिन तेरी सुन्दर काया माटी में मिल जाये 

महल अटारी भवन झरोखे आलीशान बनावे 

या सुन्दर देही पर पगले क्यों इतना इतरावे

या देही को भस्म करन हित जंगंल में ले जावे

गर्भ माह जो कौल कियो नर बाको मत बिसरावे 

बहनो सुमरन कर लो हरि का भव सागर तर जावो

                         

                      151 भगवान मेरी नइया उस पार लगा देना 

अब तकतो निभाया था आगे भी निभा देना 

दलबल के साथ माया घेरे जो मुझको आकर 

तुम देख लेना मोहन झट आके बचा लेना 

तुम ईश मैं उपासक तुम देव में पुजारी 

जो बात सत्य होवे सच कर के दिखा देना 

सम्भव है झंझटो में मैं तुमको भूल जाऊॅं

पर नाथ कहीं तुम भी मुझको न भुला देना 

हम मोर वन के मोहन नाचा करेगें वन में 

तुम श्याम घटा बन कर इन वन में उठा करना 

वन करके हम पपीहा पी पी रटा करेगें

तुम स्वाति बूँद वन कर प्याले पे दया करना 

हम राधे श्याम जग में तुम्ही को निहारेगें

तुम दिव्य ज्योति बनकर आँखो में रमा करना 


152 कर ले प्रभू से प्यार फिर पछतायेगा

झूठा है संसार धोखा खायेगा

माया के जितने धन्धे झूठे है उनके बन्दे

तन उजले मन गन्दे आँखों के बिलकुल अन्धे

नजर क्या आयेगा झूठा है संसार 

मतलब के रिश्तेदारी भा्रत पिता सुत नारी 

क्यो मति गई तेरी मारी जब चलेगी तेरी सवारी 

साथ कौन जायेगा झूठा है संसार ...............

मन प्रभू चरणों में लगाले तू जीवन सुफल बनाले 

ले मान गुरू का कहना दिन चार यहाँ का रहना 

कौन समझायेगा झूठा है संसार ...............

154तेरा रामजी करेगें बेड़ा पार उदासी मन काहे को करे 

नैया तेरी राम हवाले लहर लहर प्रभु आप सभालें

आप ही करेगें वेड़ा पार उदासी .............

काबू में मझधार है इसके हाथों में पतवार है उनके 

जरा सोच के देखो एक बार उदासी ............

सहज किनारा मिल जायेगा तुझको सहारा मिल जायेगा

जरा दिल से तो करिये पुकार उदासी.................

तू निर्दोष  है तुझे क्या डर है पग पर साथी हनुमत है 

तेरी वोही करेगें बेड़ा पार उदासी 


155फँस के माया के चक्कर में उलझ गयो रे 

तू भूल गयो हरि नाम भूल गयो रे 

जन्म मानव का लिया हरि ने हाथ फेरा है

भूल माया में गया कहता मेरा मेरा है 

साथ में लाया क्या और क्या जग में तेरा है

अमर रहना नही मरघट में होय डेरा है

झूठी बातन के झूले में झूल रहो रे

तू भूल प्रेम से कर ले भजन प्रेम की भिक्षा वाले 

गुरू से कर ले भजन प्रेम की भिक्षा पाले 

गुरू से प्रेम करे ज्ञान की इच्छा वाले

खुश रहते हैं सदा सतसंग की शिक्षा वाले 

मुक्ति पद पाते हैं गीता की परीक्षा वाले 

कुछ भी न कियो न जीवन में फिजूल गयो रे

राम के नाम में अपनी लौ लगायेगा

सहारे सत्य के वो बैकुन्ठ धाम पायेगा

तू ही करता तेरा कर्तव्य काम आयेगा

बने होनी वही जैसा कि तू बनायेगा


156माता अनसुइया ने डाल दिया पालना

तीनो देव झूल रहे वन करके लालना 

मारे ख्ुाशी के फूली न समाती 

गोदी में फिर फिर झूला झूलाती

कौन करे आज मेरे भाग्य की सराहना झूल रहे 

मेरे घर आये मुझे देने बड़ाई 

भूल गये यहाँ आप सारी चतुराई 

भारत की देवियो से आज पड़ा सामना झूल रहे 

स्वर्ग लोक से मृत्यु लोक पधारे 

मुनियों की कुटियों में करने गुजारे 

तन मन से नाच रहे पूछे कोई हाल ना झूल रहे 

ताहि समय नारद मुनि आये

 देख दशा मन मैं मुस्काये

सत्य मई आज तेरे मन की भावना झूल रहे .................


157राम का नाम लेकर के मर जायेगें

ले अमर नाम दुनिया में कर जायेगें

यह न पूछो कि मर कर किधर जायेगें

वो जिधर भेज देगें उधर जायेगें 

राम का नाम ..........................

टूट जाय न माला कहीं प्रेम की

कीमती ये रतन सब बिखर जायेगें 

राम का नाम ..............

तुम ये मानों ना मानों खुशी आपकी

हम मुसाफिर है कल अपने घर जायेगें 

राम का नाम ..................................

158राम भजन में चोकस रहना कलियुग नाच नचायेगा 

सधवाओ को सूखे टुकड़े विधवा चुपड़ी खायेगी

तस्वीरें नर्तकियोें की घर घर लटकाई जायेगी

सच्ची बात कहेगा जो वह वेबकूफ कहलायेगा 

पिता जायेेगा अस्सी तक चल देगा पुत्र जवानी में

ब्राह्नाण धर्म जीविका करके डूबेगें जजमानी में

नारी पुरुष की भाँति चलेगी पुरुष नारि बन जायेगा

बेटा यही धर्म समझेगा रकम बाप की खायेगा

भाई चारा कहाँ शत्रुता भाई ही दिखलायेगा

शादी भी व्यापार बनेगी यही अनोखा ढंग होगा

ब्याह नहीं लड़का होगा घर का वालि का होगा

स्वयं ज्योतिषी दलाल बन यह सम्बन्ध मिलायेगा

मन्दिर तीर्थ बनेगें अड्डे दुराचार व्यामचार के 

सन्यासी भी रहा करेेगे घर में साहूकरों के 

शूद्र व्यास गद्दी पर डटकर कथा पुराण सुनायेगें

जब यह हाल देश का होगा समय बिलक्षण आयेगा

सत्य पथ पर आडिगा रहेगा उसे न काल सतायेगा

राम भजन में चोकस रहना कलियुग नाच नचायेगा 



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