बिहार में मधुबन से सात किलोमीटर दूरी पर स्थित बासों पट्टी में एक ऐसा पेड़ है जिसकी डालियों और पत्तियों में से बरसात होती रहती है इस पानी के फव्वारे को देखने के लिये हजारों लोग जुटे रहते हैं , तथा इस पानी का सेवन करते हैं आसाम के जंगलों में भी ऐसी बेलें पायी जाती हैं जिनसे पीने का स्वच्छ पानी निकलता हैं । दक्षिण अफ्रीका के केपकोरने नामक प्रदेश में पानी बरसाने वाले पेड़ पाये जाते हैं । केपकोरने में वर्षा नाम मात्र को होती है। फिर भी वहाॅं के लोग मजे में खेती वारी करते हैं । यहाॅ कुछ ऐसे वृक्ष हैं जो बहुत पानी बरसाते हैं ये पेड़ हवा में उठने वाले जलकणों को सोख लेते हैं और रात में उन्हीं कणों को बरसा देते हेंै ।
मैडागास्कर नामक द्वीप में भी प्यासों की प्यास बुझाने वाले वृक्ष हैं । बीस फुट ऊॅचे इन वृक्षों के पत्ते केले के पत्तों के समान बहुत बड़े बड़े होते हैं । एक मोटे तने में केवल दो दिशाओं में निकले ये पत्ते वृक्ष को एक अच्छी शक्ल दे देते हैं । नीचे के किसी पत्ते के डण्ठल को काटने से उसमें शीतल और स्वच्छ जल का एक सोता फूट पड़ता है फिर थोड़ी देर में आसानी से इतना जल निकल आता है कि आसानी से आठ दस आदमी अपनी प्यास अच्छी तरह से मिटा सकते हैं। मैडागास्कर द्वीप के उत्तर पूर्व में सिचलीग द्वीप समूह है वहाॅं के एक वृक्ष में दो दो नारियल एक साथ लगते हैं और ताकल में बीस बीस किलो के होते हैं
1926 में मेजर फ्रेंक ए गुड ने न्यू ब्रंजकवक में एक सेव के वृक्ष पर 17 कलमें लगाई थींउन्होंने ब्रंजविक में उगने वाले समस्त सेव एक ही सेव के वृक्ष पर उगाये कदाचित संसार भर में अपनी तरह का यह एक ही बाग है ।
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