Monday, 5 August 2024

Horla part 1

 होरला

           लेखक - गाई द मोपासा अनुवाद डा॰ शशि गोयल


   8 मई , ओह कितना खुशनुमा दिन है। आज मैंने सारा दिन घर के सामने घने छायादार चनार के पेड़ के नीचे घास पर लेटे लेटे बिता दिया। इसका मेरे पूर्वजों से संबंध है ,गहरी और जमी जड़ें किसी भी व्यक्ति को अपनी मिट्टी से बांधे रखती हैं ,यह धर मुझे बहुत अच्छा लगता है। खिड़की से बगीचे के किनारे बहती सीन नदी, दूसरे किनारे पर ऊँची सड़क,,इधर से उधर जाती नावंे दिखाई देती हैं ।

12 मई , मुझे पिछले कुछ दिन से बुखार आ रहा था। कह नहीं सकते कब रहस्यमयी मनोचेतनाऐं हमारी खुशियों को अवसाद में बदल देती है, हमारे आत्मविश्वास को हताशा में । तरंग,अदृश्य तरंगे अनजान शक्तियों से संचरित हमारे चारों ओर घूमती हैं और उनकी रहस्यमय उपस्थिति हमें प्रभावित करती हैं । मैं प्रसन्न बहुत अच्छी मनोस्थिति के साथ जागा ।

मैं पानी के किनारे गया और कुछ दूर जाकर सहमा सा घर लौट आया , एक ठंडी लहर मेरी खाल पर से गुजर रही थी जो मेरा मनोबल गिरा रही थी। आसमान का रंग, या आसपास के वातावरण का रंग था , जो बार बार अपना रंग बदल लेता था, कुछ भी छुए, बिना जाने, जो कुछ भी हम करते हैं ,बिना वर्गीकरण किये तीब्रता से आश्चर्यजनक अव्यक्त प्रभाव हमारे स्नायुतंत्र पर पड़ता है उसके माध्यम से हमारे विचारों को प्रभावित करता है फिर हृदय को।

इस अव्यक्त की रहस्यमयता कैसी है ,हम अपनी इंद्रियों से नहीं व्यक्त कर सकते।  बहुत नजदीक है या बहुत दूर वह शांत प्रकृति को संगीत भरा कर देती है हमारी सूंघने की शक्ति जो कुत्ते की सूंघने की शक्ति से कम है हमारी स्वाद ग्रंथि जो शराब की उम्र नहीं बता सकती।

17 मई, मैं अपने चिकित्सक से मिला ,क्योंकि मैं सो नहीं पा रहा था। उसने बताया मेरी नाड़ी तेज चल रही है।  किसी विशेष बीमारी का कोई लक्षण नहीं मिला  ।

25 मई , मेरी दशा कुछ अजीब सी हैं । रात आते आते किसी अघटित का भय हावी हो जाता है ,मुझे नींद का डर ,अपने बिस्तर का डर सताने लगता है। 

दस बजे के करीब अपने कमरे का ताला खोलता हूँ मैैं डर जाता हूँ । मैं अपनी दराजें देखता हूँ ,पलंग के नीचे झांकता हूँ । एक असहजता की भावना मेरे रक्त में दबाब बढ़ा देती है । संभवतः स्नायुतंत्र गड़बड़ा जाता हैै। तब मैं बिस्तर पर जाता हूँ मैं नींद का इंतजार करता हूँ जैसे फांसी की सजा पाया व्यक्ति जल्लाद का इंतजार करता है। मेरा शरीर लिहाफ के अंदर कांपने लगता है । मैं नींद के आगोश में चला जाता हूँ 

 संभवतः दो और तीन घंटे ।,मुझे महसूस होता है कोई मेरे निकट आ रहा है मुझे छू रहा है । वह मेरे बिस्तर पर आ रहा है ।मेरी छाती पर झुक रहा है । मेरी गर्दन अपने हाथों में ले रहा है और अपनी पूरी शक्ति से दबा रहा है जिससे मेरा दम घुट जाय।

मैं सपने में लकवाग्रस्त हो रहा हूँ । मैं चिल्लाने की कोशिश करता हूँ लेकिन आवाज नहीं निकलती । मैं हिलना चाहता हूँ लेकिन हिल नहीं पाता । जोर से सांस लेता हूँ जिससे 

वो मुझे दबा रहा है ,मेरा दम घोट रहा है उसको उठाकर फेंक सकूँ ,लेकिन,मैं नहीं कर 

1

पाता। और तब मैं एकाएक जाग जाता हूँ , कांपता हुआ पसीने से भीगा हुआ।


2 जून, मेरी दशा बिगड़ रही है , कभी कभी जंगलो की ओर घूमने निकल जाता हूँ । मैं सोचता हूँ कि ताजा रोशनी मंद शीतल ,जड़ी बूटियों की खुशबू लिये हवा मेरी नसों में नया खून भर देगी मेरे दिल को नई ताकत मिलेगी। मैं चौड़ी सड़क पर मुड़ जाता हूँ ,सहसा कंपकपी भर गई  । मैंने कदम बढ़ा दिये जंगल में अकेला हूँ । यह एहसास आते ही डर गया । एकाएक मुझे लगा मेरे पीछे कोई है वह मेरे कदम से कदम मिलाकर चल रहा है। मैं पलटा मुझे कुछ नहीं दिखाई दिया । ंमैं सीधा चला फिर उल्टा और जंगल के बीच में पहुंच गया। 

3 जून,   मुझे कुछ दिन कहीं यात्रा पर निकल जाना चाहिये।

2 जुलाई ,  मैं वापस आ गया, बिल्कुल ठीक बहुत खुशनुमा यात्रा रही । मैं मौन्ट सैन्ट मिशेल गया कैसा सुदर दृश्य था । एक असाधारण बड़ी घाटी मेरे सामने थी । दो पहाड़ियों के बीच जो छुटपुटे में खोती जा रही थी, साफ सुनहरे आसमान में एक अलग सी पहाड़ी। सूर्य गायब हो गया ,अग्नि की लपट सी लिये आकाश में उस बलुई पहाड़ी का आकार उभरा उसकी चोटी पर एक प्रतीक चिह्न था।

भोर होते ही मैं वहाँ गया, मैंने देखा वह चर्च  था।  गहरी और संकरी सड़क चढ़कर विशाल चर्च की इमारत तक पहंुचा जो ईश्वर के लिये पृथ्वी पर बनाई गई थी इतनी बड़ी जितना कस्बा  ।

जब मैं चोटी पर पहुंचा तो मैने पादरी को देखा, हम उठती लहरों को देखते हुए बातें  करते रहे। तब मुझे पादरी ने कहानियाँ ,, आख्यान सुनाये कस्बे के आदमियों ने जो पहाड़ी थे कहा कि रात में कोई भी बालू पर आवाजें सुन सकता है । तब एक ने दो बकरियों को मिमयातें सुना। ‘असंभव ’ आदमियों ने कहा, यह केवल समुद्री पक्षियों की चीखें हैं जो कभी बकरी के मिमियाने की आवाज लगती है तो कभी आदमियों के रोने कलपने की । लेकिन स्वर्गीय मछुआरों ने कसम खा कर कहा था कि उन्होंने एक एक भेड़पालक को घूमते देखा था उसका सिर उसके लबादे में छिपा था । उसके पीछे एक बड़ा सा बकरा आ रहा था जिसका चेहरा मनुष्य का था और उससे छोटी बकरी जिसका चेहरा औरत का था दोनों के लम्बे सफेद बाल थे । दोनों झगड़ते बदजुवानी में बात करते चल रहे थे  और एकदम दोनों रुक गये और जोर-जोर से पूरी शक्ति से मिमियाने लगे।

‘आप इस पर विश्वास करते हैं? ’ मैंने पादरी से पूछा। ‘मैं नहीं जानता’,,‘अगर धरती पर अन्य जीव भी हमारे समानान्तर हैं यह क्यों है कि हम अभी तक नहीं जान पाये, यहां देखो, हवा प्रकृति में सबसे शक्तिशाली है । वह आदमी को गिरा देती है ं बड़ी बड़ी इमारतें धराशायी कर देती है पेड़ों को जड़ से उखाड़ देती है । जो गरजती है क्या तुमने उसे कभी देखा हैं? 

4 जुलाई ,मैं दोबारा बीमार हो गया मेरे रात्रि के स्वप्न लौट आये थे। पिछली रात को मुझे लगा था कि कोई मुझ पर झुका हुआ है और मेरे होठों के बीच मेरा जीवन चूस रहा है। हाँ वह मेरे गले से जोंक की तरह चूस रहा था मैं उठ गया़, मैं हिल भी नहीं पा रहा था ।

5 जुलाई,  क्या मैंने अपनी अक्ल खो दी है । जो रात में हुआ उसके विषय में सोचता हूँ तो 

2


मेरा दिमाग घूम जाता है। प्यास महसूस होने पर आधा गिलास पानी पिया ,देखा पानी की 

बोतल मुँह तक भरी हुई है। फिर मैं बिस्तर पर चला गया वही भयानक निद्रा । इस बार और भयानक झटका लगा। 

मैंने अपने आपको देखा छाती में खंजर घुसा हुआ है । सांस उखड़ रही है खून से लथपथ सांस नहीं ले पा रहा हूँ । मरने ही वाला हूँ और समझ नहीं पा रहा हूँ क्या यह मैं ही हूँ ।

होश ठिकाने आने पर मुझे फिर से प्यास लगी । मैंने मोमबत्ती जलाई और पानी की बोतल के पास गया । मैंने उसे उठाया वह खाली थी।  मैं एकदम इतने खतरनाक हद तक डर से जकड़ गया कि मुझे बैठना पड़ा । मैं भय और आश्चर्य से जड़ हो रहा था । पारदर्शी कांच की बोतल पर नजरें गड़ा दी । किसी ने पानी पी लिया था लेकिन किसने? मैं नींद में चलने लगा हूँ , दोहरी जिंदगी जिसके विषय में हमें पता ही नहीं होता है । हमारे अंदर दो व्यक्ति हैं या अजनबी, अनजान और अदृश्य । उन क्षणों में जब हमारी आत्मा जड़ हो रही है हमारे शरीर पर हावी हेा जाती है ,वह उसकी आज्ञा मानने लगती है ।


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