पवित्र अग्नि की चोरी
बात उस समय की है जब संसार मे केवल पृथ्वी और स्वर्ग ही थे। स्वर्ग के राजा थे श्रेयस, उनकी पत्नी का नाम था हीरा! पृथ्वी पर मानव का जन्म नहीं हुआ था केवल विशाल पशु ही विचरण करते थे लेकिन उन पशुओ में कोई भी इतना बुद्धिमान नहीं था जो पृथ्वी पर शासन कर सके। देवताओं ने निश्चय किया कि इस प्रकार के प्राणी का निर्माण किया जाय जो पृथ्वी पर सुयोग्य रूप से शासन कर सके। इसके लिये प्रामीथियस नामक एक देवता को इस कार्य के लिये चुना गया।
प्रामाथियस ने मिट्टी और पानी से लुगदी बनाई उससे एक प्राणी का निर्माण किया जानवर चारांे हाथों पैरो से चलते थे लेकिन इस प्राणी को उसने सीधा खडा किया। अब प्रामीथियस सोचने लगा कि इस प्राणी को ऐसी क्या विशेषता उपहार में दी जाय कि वह अन्य से भिन्न हो सके।
प्रामीथियसय के भाई एपीमिथियस ने पशुओं का निर्माण किया था और उसने उन्हें सभी विशेषताएंे दे दीं जैसे शक्ति साहस चालाकी तेज भागने की कला पांव नाखून सींग आदि। अब मनुष्य को क्या दें?
प्रामीथियस के मस्तिष्क मे आया कि मुनष्य को अग्नि उपहार स्वरूप दी जाय जिससे वह पशुओं को अपनेे वश मे कर सके तथा उससे अनेकांे वस्तुओं का निर्माण कर अपना बचाव कर सके,क्योंकि मनुष्य के पास अपने बचाव का कोई भी साधन जैसे सींग, पैने नाखून, मोटी चमडी आदि कुछ नहीं था। वह तो हवा पानी तक से अपनी रक्षा करने मे असमर्थ था। प्रामीथियस वापस स्वर्ग आया। उसने सूर्य के रथ से मशाल जलाई और उस पवित्र अग्नि को मनुष्य को उपहार स्वरूप दे आनन्दित वापस स्वर्ग चला गया।
लेकिन जब जीयस ने मनुष्य के पास अग्नि देखी तो वह परेशान हो गये। क्योंकि अब मनुष्य पूरी तरह देवताओं जैसा था। जीयस ने सोचकर एक सर्वाग सुन्दरी नारी का निर्माण किया। उसका नाम रखा पांडोरा और उसे प्रामीथियस के घर भेज दिया । पांडोरा को देखकर प्रामीथियस तुरंत समझ गया कि मुझे बर्बाद करने के लिए जीयस ने नारी का निर्माण किया है। क्योंकि पवित्र अग्नि को चुराकर वह मनुष्य को दे आया है।
लेकिन ऐपीमीथयस पांडोरा केा देख उसके प्रेम में पड़ गया और उसे घर ले आया। ऐपीमीथियस के पास एक बवसा था। जिसमें उसके पास वहुत से ऐसी वस्तुऐं बंद थी। जिन्हें उसने पशुओं को दिया नहीं था। एपीमीथियस ने पांडोरा को चेतावनी देते हुए कहा कि कुछ भी हो जाये इस बक्से को नहीं खेलाना।
पांडोरा अपनी उत्सुकता न रोक पाई कि आखिर इसमें ऐसा क्या बंद है जो वह नहीं दिखाना चाहता । जैसे ही वह अकेली हुई वह बक्से की ओर भागी। उसने सोचा जरा सा खेाल कर देख लूंगी और तुरंत बंद कर दूंगी। एपीथिसियस को मालूम भी नहीं पड़ेगा। जैसे ही उसने ढकना हटाया उसमें से तमाम नाशकारक वस्तुऐ,ं महामारियॉं, ईष्या, द्वेष, घृणा, दुश्मनी आदि निकल पड़ी और चारों ओर बिखर र्गइं। पांडोरा ने जल्दी से ढकना बन्द करना चाहा लेकिन तब तक वहुत देर हो चुकी थी। और बक्सा खाली हो गया केवल आशा उसमें बंद रह गई। आशा जिसे मनुष्य कभी नहीं छोड़ता।
अब देवताओं को मनुष्य से कोई खतरा नहीं रह गया था। क्योंकि अब मनुष्य के खुद के ही दुश्मन थे जो जानवरों से बदतर थे। लेकिन प्रामीथियस को जीयस अभी भी क्षमा नहीं कर पाया। जिसने स्वर्ग की पवित्र अग्नि को चुराया है उसे दंड अवश्य दिया जायेगा। उसे अपनी कृति मनुष्य से बहुत प्यार है। जीयस ने कहा,‘ उसे काकेशस पहाड़ की चोटी पर जंजीर से जकड़ दिया जाय। वहां सूर्य का ताप कभी नहीं मिलेगा वह कराहेगा, तड़पेगा। एक गिद्ध उसके पेट केा निरंतर नोचता रहेगा जितना वह नोचेगा पेट फिर उतना ही होता जायेगा।
जीयस ने उसे पहाड़ की चोटी पर बंधवा दिया लेकिन प्रामीथियस न कराहा न तड़पा न सहायता के लिए चिल्लाया वह बहादुरी से वहां अपना दंड भोगता रहा।
No comments:
Post a Comment
आपका कमेंट मुझे और लिखने के लिए प्रेरित करता है