Tuesday, 26 July 2016

भजन भट्ट महान

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Saturday, 23 July 2016

जब तन माटी हो गया

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 यहां प्राचीन काल से आजतक सम्बन्धियों और मित्रों की आत्मा दूसरी दुनिया में शांति से रहेंगे और लौटकर रिश्तेदारों को परेशानी में न डालें इसके लिये अनेकों संस्कार किये जाते हैं। इन संस्कारों का मुख्य उद्देश्य होता है कि मृतक प्रेत चुड़ैल आदि योनि में जाने से बच सके। एकाएक मृत्यु प्राप्त व्यक्ति खतरनाक प्रेत बनते हैं उनकी इच्छाऐं अतृप्त रह जाती हैं। ईष्र्यावश वे इस संसर में आकर अनिष्ट करती हैं। उनके संस्कार के समय तांत्रिको ंसे तंत्र-मंत्र की सहायता ली जाती हैं।
       सीलोन रूस फिलीपाइन्स दक्षिणी अफ्रीका आदि देशों की कुछ जातियां तो घायल या गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति को घर से बाहर निकाल देते हैं। क्योंकि उनके अनुसार जिस स्थान पर व्यक्ति की मृत्यु होती है वहां बार-बार आते हैं।
       मृतक आकर घर अपवित्र न करे इसलिये कहीं-कहीं घर से बाहर तो कहीं गांव से ही बाहर निकाल देते हैं। कुछ स्थान पर मरने वाले को पलंग पर से उतार कर पृथ्वी पर या कुश की चटाई पर लिटा दिया जाता है। जिससे कि शीघ्र पाताल में अपने साथियों से मिल सके। यह प्रथा हिन्दू धर्म में है।
       साइबेरिया के याकूत जाति के लोग तो मृतक से इतना डरते हैं कि वृद्ध या गभीर रूप से बीमार व्यक्ति का मृतक भोज उसके जीवन काल में ही कर दिया जाता है। उसे सबसे ऊँचे स्थान पर बिठाकर सबसे अच्छा भोजन कराया जाता है फिर जंगल में ले जाकर जीवित ही दफन कर दिया जाता है। यहां तक कि दूसरी दुनियां में जाने के लिये घोड़ा सवारी के रूप में दफनाया जाता है।
       ज्यूइश लोग लाश छूने वाले को सात दिन तक अस्पृश्य मानते हैं सातवें दिन उसको नहलवाया जाता है। बिना जुए पर जुते जवान बैल का रक्त चारो और छिड़का जाता है फिर बैल का सब कुछ जला दिया जाता है साथ ही पवित्र लकड़ियों का बुरादा अग्नि में डला जाता है। बची हुई राख को झरने के पानी में मिलाकर जिसने लाश न छुई हो ऐसा व्यक्ति लाश छूने वाले के ऊपर डालता है और घर को उसी पानी से पवित्र करता है।
       मृतक के संस्कार की विधि अलग-अलग ढंग से अपनाई जाती है। ईजिप्ट केनेरी द्वीप आदि में माना जाता है कि मृतक की आत्मा निश्चित समय के बाद लौटकर शरीर में प्रवेश करेगी इसके लिये शरीर पर तेल जड़ी बूटी का लेप लगाकर सुरक्षित रखा जाता है और समस्त मृतकोपयोगी सामान उसके साथ दफनाया जाता है।
       कांगोे में शरीर को कुछ ही समय तक ही सुरक्षित किया जाता है उस पर विभिन्न चित्रकारी की जाती है। इसके लिये वहां लाशों के चित्रकार अलग से होते हैं।  जो अपनी कला से वृद्ध वयक्ति के चेहरे को भी युवक की तरह चित्रकारी करते हैं और उसकी कला को देखने सब लोग आकर मृतक को देखते हैं।
       प्राचीन काल में यहूदी शीघ्रतातिशीघ्र मृतक की आत्मा प्रेत बनने से बचने के लिये घर को ही जला देते थे। पुरातन समय में तो यहूदी यहां तक करते थे कि मृतक के घर को छोड़कर बाकी घर गिरा देते थे और सब अन्य स्थान पर बस जाते थे। जिससे मृतक का प्रेत अकेला ही भटकता रहे। अब भी इस जाति के लोग लाश को छत से खिड़की से प्रेतको बहकाने के लिये ले जाते हैं। चीन मे दफनाने के बाद आतिशबाजी रास्ते में छोड़ते हैं जिससे प्रेत वापिस न लौट सके।
       शरीर किस प्रकार नष्ट हो इसके लिये जलाया जाना शीघ्रतातिशीघ्र उपाय है लेकिन इसके अलावा अन्य उपाय भी प्रयोग में लाये जाते हैं। एकाकी झोपड़ी में रखना नाव मे रखकर बहाना, कब्र मकबरा गुफा आदि उपाय प्रयोग में लाये जाते हैं। भारत में प्रयोग मंे लाये जाने वाले उपाय जलाना और दफनाना दोनों ही पवित्र प्रदूषण मुक्त हैं क्योंकि लाश को गिद्ध, चील आदि के लिये छोड़ना भारी प्रदूषण फैलाना है। बहुत सी जातियों में एक निश्चित स्थान पर मृतक को छोड़ आते हैं। गिद्ध चील नोंच नोंच कर मांस खा जाते हैं साल में एक या दो बार सारी अस्थियां किसी सूखे कुऐं में फेंक दी जाती हैं जहां वो पंचतत्व में विलीन हो जाती है।
       यूरोप मंे ताम्र युग मे और कुछ उत्तरी अमरीका के रैड इंडियन आदि में कुछ इससे मिलता जुलता उपाय अपनाया जाता है। खुरचकर या दफनाकर मृतक के शरीर पर से मांस हटा लिया जाता है। हड्डियों को एक खाल मे बांधकर बर्तन मे रखकर गहरी मिट्टी मे दफना दिया जाता है।
       बहुत सी जातियां मृतकों को बड़े बड़े मर्तबानों में रखकर दफनाते हैं। गुआना के आदिवासी मृतक को नाव में या पेड़ के खोखल में रख देते हैं
       किसी को जिन्दा गाड़ना प्राचीन काल में सजा दी जाती थी। कहीं दीवार में चिनवा दिया जाता था। पेरू में विवाहित चरित्रहीन स्त्रियों को जीवित गाड़ दिया जाता था। मैक्सिको और मध्य अमेरिका मे प्रसिद्ध व्यक्तियों की पत्नियां यहां तक की नौकर भी दफना दिये जाते हैं। 15 वीं शताब्दी में जर्मनी में यह आम था। भारत में आज तक राजस्थान में अधिकतर पति के साथ स्त्री जला दी जाती है।
       चीन और भारत में मृतक के बिस्तर दे दिये जाते हैं। चीन मंे मृत्यु के बाद परिवार एक लालटेन देवदार की लकड़ी की कुर्सी रूपया, खाना लेकर देवता के मंदिर में जाते हैं। तीन दिन के संस्कार पिंडदान आदि करते हैं। उनका विश्वास है इससे मृतक की आत्मा को शांति मिल जाती है और समझा जाता है। देवता, स्वर्ण के देवता से मृतक का परिचय करा उसे उचित मार्ग दिखायेगे और मंदिर में दान दक्षिणा चढ़ाई जाती है। फिर मृतक को विधिवत दफनाये जाने का दिन चुना जाता है। जोर-जोर से चीखते मृतक को दफनाते हैं।
       भारत में हिंदुओं मंे अकालमृत्यु से मरने वाले को गंगा जमुना में प्रवाहित कर दिया जाता है जैसे सर्प का काटा, चेचेक से मृत आदि।
       असम की एक जाति खामती में उनके प्रसिद्ध पर्व साडकेन के दौरान मृत व्यक्ति को शीघ्र ही श्मशन ले जाते हैं। सात दिन तक अग्नि नहीं जलाते और शव को तीन दिन तक वृक्ष पर लटकाये रखते हैं। क्योंकि साडकेन के अवसर पर गडहा नहीं खोदा जाता।
       पंच तत्व से निर्मित शरीर को पंचतत्व में विलीन करना है न मुश्किल। कितना डर लगने लगता है अपनों को अपनों से। 

Friday, 22 July 2016

परिहास

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राम का पलायन

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राम का पलायन

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Wednesday, 20 July 2016

जीभ का घाव


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 विज्ञान कहता है जीभ का घाव बहुत जल्दी भर जाता है और ज्ञान कहता है कि जीभ से निकली बात का घाव कभी नहीं भरता।
       रसना जो हरसमय रसमय रहती है मुलायम कोमल इसमें हड्डी नही है अर्थात् कठोर नहीे है पर मुलायम चमड़े की मार खाता उधेड़दी देती है यह तो और भी छिपी हुई हे इसके तो कड़क पहरेदार इसीलिये है कि बोले और छिप जाये फिर झेलते रहो।
गुलाब सी गुलाबी
गुलाब जामुन सी मुलायम
जामुन सी कालिख छोड़ती
जीभ है निराली
       जब ही तो जब चलती है और ऐसी मार मारती है कि फिर उसका रखवाला लाख कोषिष करले अब तो निकल गया तीन कमान से सोचने ही नहीं देती दिमाग और जीभ और हृदय तीनों आड़े टेड़े चल देते है दिमाग सोचे नहीं दिल समझे नहीं कि जीम चट से निकल पड़ती है जब ही तो ए बी सिंह ने सोचा न समझा अब बेटी को जान से मारने की धमकी दे डाली अगर ऐसे में खुद भी लेकर चलेंगे तो क्या कर लेंगे बेटी तो गई हार हाल में हाँ बेटे को हार पहनायेंगे बेटा बड़ी वहादुरी का काम करके आया है तू तो इनाम का हकदार है तुझे तो जान की बाजी लगा कर बचा लूंगी हां तेरी बहन होगी तो तू भी साथ होगा पर वो मरेगी क्योंकि लड़की है।
गन्ने सी रस से भरी
मारती डंडे की मार
बत्तीस दांतो से लोहा लेती
बिना उसके आदमी बेकार
है बहुत मन चली
झट से फिसल जाती
और फिर चाँद पर
जूते पड़वाती। तिदेव यहां 

duniya ek rupaye main


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Monday, 18 July 2016

जीभ का घाव सबसे गहरा

  कृ विज्ञान कहता है जीभ का घाव बहुत जल्दी भर जाता है और ज्ञान कहता है कि जीभ से निकली बात का घाव कभी नहीं भरता।
       रसना जो हरसमय रसमय रहती है मुलायम कोमल इसमें हड्डी नही है अर्थात् कठोर नहीे है पर मुलायम चमड़े की मार खाता उधेड़दी देती है यह तो और भी छिपी हुई हे इसके तो कड़क पहरेदार इसीलिये है कि बोले और छिप जाये फिर झेलते रहो।
गुलाब सी गुलाबी
गुलाब जामुन सी मुलायम
जामुन सी कालिख छोड़ती
जीभ है निराली
       जब ही तो जब चलती है और ऐसी मार मारती है कि फिर उसका रखवाला लाख कोषिष करले अब तो निकल गया तीर कमान से सोचने ही नहीं देती दिमाग और जीभ और हृदय तीनों आड़े टेड़े चल देते है दिमाग सोचे नहीं दिल समझे नहीं कि जीम चट से निकल पड़ती है जब ही तो ए बी सिंह ने सोचा न समझा अब बेटी को जान से मारने की धमकी दे डाली अगर ऐसे में खुद भी लेकर चलेंगे तो क्या कर लेंगे बेटी तो गई हार हाल में हाँ बेटे को हार पहनायेंगे बेटा बड़ी वहादुरी का काम करके आया है तू तो इनाम का हकदार है तुझे तो जान की बाजी लगा कर बचा लूंगी हां तेरी बहन होगी तो तू भी साथ होगा पर वो मरेगी क्योंकि लड़की है।
गन्ने सी रस से भरी
मारती डंडे की मार
बत्तीस दांतो से लोहा लेती
बिना उसके आदमी बेकार
है बहुत मन चली
झट से फिसल जाती
और फिर चाँद पर
जूते पड़वाती है यहां
जीभ शरीर का सबसे कोमल  मुलायम अंग है पर ईएसआई  पटपट करती है कि उसके बोल से घायल आदमी पानी नहीं मांगता 

गुस्से का फंदा

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Friday, 15 July 2016

शादी बर्बादी

मुझे यह कार खरीदे हुए  एक साल से भी अधिक हो गया और आज तक मैंने एक पैसा भी इसकी मरम्मत के लिए नहीं दिया
हाँ वह कार सुधरने वाला रशीद भी यही शिकायत कर रहा था


लालती का कहना है 'दुनिया मैं सभी आदमी स्वतंत्र पैदा होते हैं लेकिन ज्यादातर लोग शादी कर लेते हैं 

हिरन का शिकार

लालजी को हिरन के शिकार का बहुत शौक  था। जब वे पांचवी बार हिरण के लिए शिकारगाह के रेस्टहाउस पहुंचे और उन्होंने अपना सूटकेस खोल तो सबसे ऊपर किसी पत्रिका से काटे गए हिरन का चित्र पाया चित्र के साथ श्रीमती जी द्वारा लिखी गई दो पंक्तियां थी ठीक से पहचान लो हिरन इस तरह का होता है। 

Wednesday, 13 July 2016

कौन जनता है

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गजब हैं सीरियल की महिलाएं

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Tuesday, 12 July 2016

चने और बिल्ली के बच्चे

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तकिया ला


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kabhi nav pani main

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निश्चय दृढ होना चाहिए

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Monday, 11 July 2016

jan kalyaan


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लोभ


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Sunday, 10 July 2016

bacchoo miyan ne tash khele

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tgkWa txg ns[kh [ksyuk mudk tkjh gSA

आनंद बुद्धिजीवियों की बातों मैं

dfo in~ekdj yaxM+krs gq, t;iqj njckj esa gks jgs dfo lEesyu esa tk igqWapsA vkf[kj esa mudks dksus esa [kM+k ns[kdj egkjkt t;flag us  dgk^ dfooj vki dgkWa ls i/kkjs gSa\ vkius dqN lquk;k ugha  \*
;g lqudj in~ekdj vkxs c<+s vkSj cksys ]
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dgWaw in~ekdj djksfuu  dks  dks”k nhUgksa
“kMjkf”k fn;s egknku vf/kdkjh dks
xzke fn;s /kke fn;s vfer vkjke fn;s
vUu ty nhus txrh ds tho/kkjh dks
nkrk t;flag nksÅ ckr rks u nhUgha sgWaw

vkSj ;g dgdj os pqi gksx;s A njckj esa [kM+s dfox.k vkSj Lo;a egkjkt Hkh cspSu gks x;s A egkjkt cksys]^ dfooj  os nks dkSu lh cLrq,Wa gSa ftUgsa nsus esa eSa vleFkZ jgk ^A
inekdj gWals vkSj cksys]
^cSfju dks ihB vkSj nhB ij ukjh dks *A



laLd`r dkyst ds Åij okys dejs esa ia- enu eksgu th  Nk=ksa dks i<+k;k djrs  Fks A laLd`r dkyst ds lkeus jgus okys ,d edku ekfyd us ,dfnu bZ”oj pan fo|klkxj ls f”kdk;r dh fd dkWyst ds Nk=ksa ds dkj.k gekjs ?kj  dh yM+fd;kWa Nr ij ugha tk ikrhAlHkh Nk= esjs ?kj ij vkWa[k xM+k;s cSBs jgrs gSaA
fo|kklkxj  th us enueksgu th ls dgk&enu]vkuane

Saturday, 9 July 2016

जनक का स्वप्न

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Friday, 8 July 2016

एसा भी होता है

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Thursday, 7 July 2016

भोजन भट्ट महान

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Monday, 4 July 2016

क्रोध पाप कर मूल

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1-     Øks/k vkus ij ml ifjn`’; ls dqN nsj ds fy;s gV tkb;sA
2-     dqN dgus ls iwoZ fnekx dks ’kkar djs ‘’kkar fpÙk ls tcko ns u fd Øks/kkos’k esa A
3-     Øks/ko’k fd;s x;s vius O;ogkj dh ehekalk djsaa ;fn vki xyr gS rks ftlls vkius Øks/k ds o’khHkwr xyr O;ogkj dj fn;k gS] mlls ekQh ek¡xus esa fgpfdpkgV u djsaA
4-     Lkeus okys dh ckr dks le>us dk iz;kl djsaA mlus D;ksa vkidh Hkkoukvksa ds fo:n dk;Z fd;kA
5-     Øks/k esa O;fDr ds iqjkus O;ogkj dks ;kn djrs gS mlds vuqlkj gh ckr djrs gSa fdlh O;fDr ds fy;s ;fn udkjkRed fopkj gS rks ;gh lkspsxsa fd og vkneh gj gkyr esa xyr gSA blfy;s Øks/k tYnh vk tkrk gS ij lkeus okys dh ekufldrk dks le>us dks iz;kl djsaA
6-     dHkh dHkh ?kj dh >qa>ykgV n¶rj esa deZpkfj;ksa ij vkSj n¶rj dh >qa>ykgV ?kj ds cPPkksa ij fudy tkrh gSA ysfdu nksuksa dks ,d nwljs ds chp es u vkus nsaA

7-     dHkh dHkh tjk lh ckr rwy idM+ ysrh gS vkSj ckn esa ;g lkspdj cgqr nq%[k gksrk gS fd tjk lh ckr dk craxM+ cu x;k ;fn u vkxs ckr c<+kbZ gksrh rks Bhd FkkA blfy;s NksVh NksVh ckrksa dks udkjus dh lkspsa u fd mUgsa rwy nsus dh NksVh ckr dk gy ckrphr ls Hkh fudy tkrk gSA
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9-     ,d ckj jkr dks euu vo’; djsa fd vkius fnu esa fdruh ckj vkSj D;ksa xqLlk fd;k D;k vkidk xqLlk djuk Bhd Fkk nwljs fnu de Øks/k vk;sxkA




नेहरु की नम्रता

धर्मवीर सुन्दर लाल

जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद में म्युनिसपैलिटी के चेयरमैन थे। उन्हीं दिनों की बात है मिर्जा अबुल फजला टैक्स सुपरिडेंट थे। म्युनिसपेलिस के कायदों के मुताबिक टैक्स जमा करने की आखिरी तारीख 31 मार्च होती थी। यदि 31 मार्च तक टैक्स नही जमा किया गया तो म्युनिसपैलिटी के वाटर वक्र्स के इंजीनियर नल के कनेक्षन काट देते थे। मिर्जा साहब ने देखा टैक्स न देने वालों की सूची में ऊंचे ऊंचे अफसर षहर के रईस और सभ्रान्त नागरिक होते थे पर उनमें से किसी के पानी का नल नही काटा जाता था। नल कटता था निम्न मध्यवर्ग के लोगों का और गरीबों का।
मिर्जा अबुल फजल ने जवाहर लाल नेहरू के सामने पेषकष रखी कि यह ठीक नहीं कि उसी अपराध पर गरीबों को ही सजा मिले और अमीर खुले छोड़ दिये जाय। जवाहर लाल नेहरू भी इस बात से पूर्ण सहमत थे कि यह अन्याय नही होना चाहिये।
दूसरे दिन अबुल फजल ने 51 आदमियों की पहली सूची चेयरमेन के सामने प्रस्तुत की और उन सबके नल काटने के आदेश दे दिये गये। उसके बाद इलाहाबाद के षहर में अभूतपूर्व हंगामा मच गया। जिनके नल काटे गये उन नागरिकों में इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सर ग्रिमबुड वीयर्स का षीर्ष स्थान था, उसके नीचे सर तेज बहादुर का साथ कई रईस राय बहादुरों के नाम थे। स्वयं जवाहर लाल नेहरू के पिता पंडित मोतीलाल नेहरू का नाम था।
नेहरू जी जब घर आनन्द भवन पहुॅंचे तो पिता ने आड़े हाथों लिया कि पहले नोटिस भेजा जाना चाहिये था फिर नल काटा जाना चाहिये। जवाहर लाल नेहरू ने नम्रता से जबाव दिया ,‘यह एक उसूल की बात थी और तो कुछ मैने किया वही मुझे करना चाहिये था।

बड़ी छोटी मछली

अब मछलियां बगुले के झांसे में नहीं आने वाली थी। वह उसकी जात पहचान गई थी। ‘हूँ! खड़ा है आंख बंद किये एक टांग पर । खड़ा रह बच्चू तू क्या, समझता है कि हम झांसे में आ जायेंगे।’ मछलियाँ हंसती व भगत बन बगुले के आस पास भी नहीं फुदकती थी। एक आंख से देखती और डुबकी लगा कर दूर ही दूर किलोल करती रहती और जैसे ही उसकी टांग हिलती अथाह जल राशि में गायब हो जाती। बगुले परेशान हो गये। वे छिप कर भी बैठे , पत्थर की ओट में बैठे पर मछली मछली खबर पहंुच जाती और उस के आस पास भी मछलियाँ नहीं फटकती थीं परेशान बगुलों ने रूप बदले। नये रूप बनाये अंत में तेजी से झपट्टा मार कर मछलियों को पकड़ने लगे। पहले तो भूख लगने पर ही मछलियों के लिये घात लगाते थे परंतु जब उन्हें मछलियाँ मिलना मुश्किल हो गया तो मौका पाते ही पकड़ लेते और पहाड़ी पर सूखने रख देते जिससे जब जरूरत हो खा सके क्यों कि आगे मिली न मिली।

 यह देख मछलियाँ परेशान हो गई सांस लेने तो ऊपर आना ही पड़ता था कभी कभी बेध्यानी में कोई बगुले के आस पास ऊपर आती वह झपट लेते।
 मछली मछली आपस में सलाह करने लगी कि क्या किया जाय। अंत में तय पाया गया कि एक मछलियों की आम सभा बुलाई जाय। बड़ी बड़ी मछलियों को मुखिया बनाया क्योंकि वे सशक्त थी।  तालियों की गड़गड़ाहट के बीच में बड़ी मछलियों ने अपनी पूंछ और फन हिलाकर अभिवादन स्वीकार किया और उनकी समस्या सुनी।
 मछलियों की सुरक्षा के कदम उठाये जाने चाहिये। इस प्रकार तो मछली की जाति का नामोनिशान मिट जायेगा। जल प्रदूषण, मनुष्य घात आदि खतरे तो वैसे ही सर पर घूमते रहते हैं, बगुले और परेशान कर रहे हैं, इनसे निजात पाना आवश्यक है। नारे लगाये गये मछली आस्तित्व अमर रहे।
मछलियों को जीने का हक मिले। मछली जात जिंदाबाद। बगुले हाय हाय! 
बगुलों से प्रार्थना की अन्य छोटे कीड़ों को खाकर काम चलाए।
 उन्होंने बड़े बड़े वैनर बनाये और जलूस निकाला।
 बगुले हमारी सहायता करे
 हमारा भक्षण करना बंद करे आदि आदि।
 बड़ी मछलियों ने प्रस्ताव रखा कि केकड़ों ने बगुले से बदला लिया था उनसे सहायता मांगी जाये तो मछलियाँ सहमत हो गई एक मत से सबने हामी भरी ओर केकड़ों के अध्यक्ष के पास जाकर सहायता मांगी। जब बगुलों को ज्ञात हुआ कि केकड़ें मछलियों के साथ आ रहे है तो वे सहम गये उन्होंने बड़ी मछलियों को वार्ता के लिये बुलाया।
 बगुले बोले,‘ मछलियाँ हमारा भोजन है हम उनके बिना जीवित नहीं रह सकते हमारा पेट भरा रहेगा फिर कोई परेशानी नहीं है।’
 ‘इस समस्या का हल तो निकालना ही चाहिये नहीं तो हम सब ये तलाब छोड़ कर गहरे तलाब में चले जायेंगे और अन्य जीवों से मदद लेकर तुम लोगों के आस्तित्व को खतरे में डाल देंगे।’
 बगुले खिलखिला कर हंस पड़े ,‘नादान न बनो ,तुम बड़ी मछलियाँ ही जब छोटी मछलियाँ निगल लेती हो तो हमारे उन्हें खा लेने में क्या हर्ज है। तुम लोग निरोध घूमो तुम्हें कुछ नहीं होगा पर छोटी मछलियाँ तो कीड़े मकोड़े हैं उनकी पैदाइश भी तो खूब है । हमारी खुराक तो वे ही हैं तुम्हें क्या ? हमें उन्हें खाने दो  तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे तुम खूब आराम से घूम सकोगी।’
 अभिवादन के साथ वार्ता समाप्त हुई। छोटी, मछलियाँ बदस्तूर बगुलों के पेट में जाती रही। जब भी कोई छोटी मछली सिर उठाने की कोशिश करती, उन्हें डलिया में भर बगुलों के खेमें में डाली के रूप में पहुंचा दिया जाता।

Sunday, 3 July 2016

रब्बी और अब्बाहू


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