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तेरे मदहोश लबों पर तपिश है उसी रंग की
तेरी खामोश निगाहों मैं अदा है उसी एक रंग की
वो रंग तेरे रुखसार पर उतर आया है
वो रंग दीदार इ यार पर और भी निखर आया है
सुर्ख कहते हैं उसे या खालिस इश्क का अंदाज
वो रंग बयां कर देता है।
पानी पर लिख दिया था मैंने जब इश्क
तो साहिल को बिछा दिया था तुमने क़दमों मैं
मोती से बिखरे थे लफ्ज तुम्हारे
हुस्न को लिख दिया था मैंने नज्मों मैं
चाँद तुम्हारे हाथों का कंगन बन गया था
सितारों ने छु लिया था जब तुम्हे
रंग गुलों के सिमट आए थे बदन पर तुम्हारे
निगाहों से जब मैंने प्यार किया था तुम्हे
है सबसे जुदा आज तुम्हारे हर अंदाज की अदा
बहुत लुभा रही है मुझे ये तुम्हारे श्रंगार की अदा
उठ कर मेरे पहलू से यूं न जाओ
तुमपल दो पल को यहीं ठहर जाओ
आई थी तुम जिन रास्तों से फूल बिखरे हैं अबतक वहां
जोगी तो इन गुलों को समेटूगा मैं कहाँ
तुम्हारे कदमों मैं मेरी मुहब्बत को यूं ही बिछे रहने दो
तुम्हारी अहातों पर मेरी चाहत के गुलाबों को यूं ही सिमटे रहने दो
कल चली जाना कि तुम्हारे जाने से खो जाएँगी सारी फिजायें
आज की शब तो चाहत की महफ़िल यूं ही सजी रहने दो।
ख्वाब सी मदहोश तुम,
नीद से खामोश हम
रंगों मैं सिमटी सी तुम
कहकशां से बिखरे हम
फूलों से लिपटी सी तुम
बादलों से बरसते हम
शवाब से निखरती सी तुम
कुछ कुछ दीवाने हम
महकती हवा सी तुम
तुम मैं समाते हम
बहुत कुछ मुकम्मिल सी तुम
एकदम अधूरे हम
अब तुम ही तुम हो
तुम ही हम हैं
और दरमियाँ सिर्फ मुहब्बत है
बेहिसाब बेपनाह
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