Thursday, 10 July 2025

Tips

 

cake

To keep iced cake without damaging it place the cake in the lid and gently lower the tin on top. But remember to keep the tin upside down.

Use sunflower oil for cake batter instead of cream. Cake turn out equally tasty and they will be low on calories too.

A little glycerine added to the cake batter makes the cake softer and puffier.

Short of cake tin double the aluminum foil and mould it around the outside of the desired dish .Remove the foil and bake cake in the foil mould.

For a professional touch brush the top of home made biscuits with beaten egg.

The  easiest way to divide a cake into layers is to use a piece of sewing thread .Hold the thread around the cake and pull it to opposite direction. the cut will be neat even and almost crumbles.

To give custard an extra flavor add a tsp of brandy to it just before serving.

Bake cake in greased idli mould instead of in one large bake tin, so instead of getting one cake you'll have plenty of mini cakes.

To prepare a thin dough for pancake wheat flour instead add the flour to the water stirring constantly. This way no lumps are formed and the dough is ready faster. When preparing puddings add a few drops of lemon juice improves the flavor of pudding

If a top of pear cake develops cracks  while baking ,soak a kitchen napkin in warm water ]wring out water and place it over cake. This will bring the edges together.

To get a smooth consistency and avoid uneven cream formation while thickening milk for pudding ice creams etc. add a pinch of soda bi carb  to one lit milk before boiling it .

braj ke bhajan

 9 दिखा दे रूप ईश्वर का मुझे गुरूदेव करूणा कर 

कोई बैकुन्ठ के ऊपर कोई कैलाश पर्वत में 

कोई सागर के अन्दर में बता दे सोया शय्या पर 

कोई दुर्गा गजानन को कहे जगदीश सूरज को 

कोई सब सृप्री का कर्त्ता चतुमुर्ख देव परमेश्वर 

धरे नित ध्यान योगी जन कोई निर्गुणा निरजंन का 

कोई मूरत पुजारी है कोई अगनी के हैं चाकर 

सकल संसार में पूरसा कहे वेदांत के वादी 

वो बह्नानन्द संशय को मिटाकर तार भव सागर 

............................................................................................................

30गुरू हमें दे गये ज्ञान गुदड़िया 

खाने को एक वन फल देगे पीने को दे गये एक तुगड़िया 

बैठक को एक आसन देगें सोवन को एक काली कमरिया 

राम भजन को तुलसी की माला भजन करन को दे गये खंजड़िया 

कहत कबीर सुनो भई साधो हरि के दरश की में हो गई चेरिया 

...................................................................................................................


31गुरू पइया लागू राम से मिलाय दीजो रे 

बहुत दिनन से सोवे मेरा मनवा भज की बेरिया जगाय दीजो रे 

विष से भरे पड़े घर भीतर अमृत बूद चुआय दी जो रे 

रत अधियारी मेरे घर भीतर दीपक ज्योति जलाय दीजो रे 

कहत कबीर सुनो भई साधो आवाागमन मिटाय दीजो रे 

........................................................................................................................

32दिवस शुभ जन्में का आया बधाई है बधाई है

सुयश गुरूदेव का छाया बधाई है बधाई है

हरा है कट भक्तों का तभी भगवान कहलाये

आनन्द जग बीच है छाया बधाई है बधाई है

पढ़ाया पाठ सत्संग का जलाया ज्ञान का दीपक

सुकृति का छत्र फहराया बधाई है बधाई है 

घटाकर मान खल दल का पढ़ाया ज्ञान गीता का 

सभी ने हर्ष गुन गाया बधाई है बधाई है ☺





सतगुरू 

33सतगुय पिया मोरी रंग दे चुंदरिया 

रंग दे रंगा दे मोल मंगादे दया धर्म की लगी वजरिया

सत्य धर्म की चुनरी रंगा दे दया धर्म की डाली बुन्दकिया 

ऐसी चुन्दरी प्रभुजी रंगा दो धोवी धोवे चाहे सारी उमरिया 

जब में चुन्दरी ओड़ के बैठी दया धर्म की लागी नजरिया

कहत कबीर सुनों भई साधो हरि चरनन की हो जँाऊ दसिया 


34अगर सतगुरू जी हमें न जगाते 

तो सतसंग की गंगा में हम कैसे नहाते

जो उपदेश साबुन को हम न लगाते 

तो शान्ति सफाई को हम कैसे पाते अगर 

भक्ति के लोटे में भर कर गंगा जल

तो विश्वास चन्दन की बिन्दी न लगाते अगर 

सुमरिन की साड़ी वो हमको पहिनाते 

तो शन्ति के मूरत में हम कैसे आते

वो सोहन सोहन कहते जगाते

तो मुवित की डोली में हम कैसे जाते

ये गुरू की मदद हो और प्रभु की कृपा हो 

तो संसार सागर से हमको छुड़ाते अगर 

................................................................................


35दरशन कर लीजे जन्म सुधारे मगंला आरती

पहली झाँकी गजानन्द की गबरी पुत्र मनाय

ऋद्धि सिधि संग मे बैठी लड्डू का भोग लगाय 

दरशन ......................

दूजी झाँकी कृपा चन्द्र की करलो चित्त लगाय 

मोर मुकुट पीताम्बर सोहे गल फूलों के घर 

दरशन ...............................

तीजी झाँकीं राम चन्द्र की शोभा वरन न जाय 

शीश मुकुट कानों में कुण्डल धनुष वाण लिये हाथ 

दरशन .........................

चोथी झाँकी चार भुजा की करलो चित्त लगाय 

सबरी दुनिया दरशन को धावे कर दिया बेज पार 

दरशन .........................

पाँचई झाँकी द्वारकानाथ की शोभा वरन न जाय 

रेल पेल से दरशन दीजो मीरा के महाराज 

दरशन ..................

छटई झाँकी मोर मुकुट की शोभा वरन न जाय 

तुलसी दल चरणामृत ले के रोग धोग सब जाय

सातई झाँकी जगन्नाथ की करलो चित्त लगाय

छप्पन भोग छत्तीसो व्यंजन प्रेम से भोज लगाय 

आठई झाँकी बद्री विशाल की करलो चित्त लगाय 

ऊँचे नीचे पर्वत चढ़कर तपत कुइ मेरो नाहाय 

नोई झाँकी हनुमान की शोभा वरन न जाय 

लाल लगोहे सोटे वाले गदा लिये है हाथ 


36खड़े हम दर पर दरशन को खबर कर दो रघुन्नदन को 

यद्यपि आपने कृपा कर दिया रूप धनवान 

किचिंत भक्ति के बिना सब ही है वेकाम 

करूँ क्या लेकर इस धन को खबर ...........

खेल तमाशे में सदा दौड़ दौड़़ मन जाय 

भजन भयंकर सा लगे बुद्धि भृष्ट हो जाय 

कहाँ तक रोऊ इस मन को खबर 

लख चौारासी योनि में नाना कष्ट उठाय 

जियन मरण से है दुखी पड़े शरण में आय 

झुकाये हुये हैं गरदन को खबर .....

पापों से नइया भरी डूब रही मॅंझधार 

कुछ डूबी डूबन चली राम नाम आधार 

लगा दो बेड़ा पार इसको खबर ...........


37भगवान तुम्हारे दरशन को उन्मत भिखारिन आई है

चरणों में अर्पित करने को व्याकुल उर अन्तर लाई है

निठुर जग के बन्धन में फँस पहचान न पाई थी तुमको 

अपनों ने भी ठुकराया जब तब ज्ञात हुआ तेरा मुझको 

निज घर को भी तज अब तुझसे ही अपना कहलाने आई हूँ 

भगवान दरशन ...............

ले भव्य भावना का दीपक स्नेह भरा तन मन धन से 

बाती की हूँ समता किससे बह स्वंय बनी अपने पन से 

खारे आँसू के मोती की जय माला पिरो कर लाई हूँ 

भगवान दरशन ................

मुख पर उसके जो झलक रही जो भरी ह्नदय में विरह व्यथा 

ऐसा भी कोई मिला नही जो सुनते उसकी करूणा कथा 

युग युग सचितं करके ही मैं यह भेट चढ़ाने आई हूँ 

भगवान दरशन ....................................

........................................................................................

38निर्बल के प्राण पुकार रहे जगदीश हरे जगदीश हरे 

सासों के स्वर झनकार रहे जगदीश हरे जगदीश हरे 

आकाश हिमालय सागर में पृथ्वी पाताल चराचर में 

यह मधुर बोल गुंजार रहे जगदीश हरे जगदीश हरे 

जब दया दृष्टि हो जाती है जलती खेती हरियाली है 

इस आस पर जन आधार रहे जगदीश हरे जगदीश हरे 

सुख दुखों की चिन्ता है ही नही भय है विश्वास न जाय 

टूटे न लगा यह तार रहे जगदीश हरे जगदीश हरे 

तुम हो करूणा के धाम सदा सेवक है राधेश्याम सदा 

बस इतना सदा विचार रहे जगदीश हरे जगदीश हरे 

..........................................................................................................


39पितृ मात सखा एक स्वामी सखा तुम ही एक नाथ हमारे हो 

जिनके कहु और आधार नहीं उनके तुम ही रखवारे हो 

प्रतिपाल करो सगरे जग अतिशय करूणा उर धारे हो 

भूल है हम ही तुमको तुमसे हमरी सुधि जाहि विसारे हो 

शुभ शान्ति निकेतन प्रेम निधे मन मन्दिर के उजियारे हो 

उपकारन लो कहु अन्त नहीं छिन ही दिन जो विस्तारे हो 

महाराज महा महिमा तुम्हरी समझे विरले बुधिवारे हो 

इस जीवन के तुम जीवन हो इन प्रानन के तुम प्यारे हो 

तुमसे प्रभु पाय प्रताप हरी कोह के अब और सहारे हो 

.................................................................................................................


40दया निधि तेरे दर को छोड़ कर किस दर जाऊँ मै। 

सुनता मेरी कोन है जिसे सुनाऊँ मेै। 

जब से याद भुलाई तेरी लाखों कष्ट उठाये हैं 

ना जानू या जीवन अन्दर कितने पाप कमायें हैं

हूँ शरमिन्दा आपसे क्या बतलाऊ में दया निधि ....

तुमतो संत जनों के स्वामी तुमको सब फरमाते हैं

ऋषी मुनि और योगी सन्त तुमरा ही यश गाते हैं 

छीटां दे दो ज्ञान का क्या बतलाऊँ में दया निधि ....

ये तो मेरे पाप कपट हैं पास न आने देते हैं 

जो में चाहूँ मिलूँ आपसे दरशन पाऊँ में दया निधि ....

बीती है सो बीती स्वामी बाकी उमर सवाँरू में 

चरणो के ढिग बैठ आपके गीत प्रीत कके गाँऊ में 

छीव दे दो ज्ञान का होश में आऊँ में दया निधि ...

Wednesday, 9 July 2025

Bhajan mala

 8हे मेरे गुरू देव करूणा सिन्धु करूणा कीजिये

हूँ अधम आधीन अशरणा अब शरणा में लीजिये

खा रहा गोते हूँ मैं भव सिन्धु के मझधार में 

आसरा है दूसरा कोई न अब संसार में 

हे मेरे गुरूदेव करूणा सिन्धु करूणा कीजिये।

मुझमें है जप तप न साधन और नही कुछ ज्ञान है.......

निर्लज्जता है एक बाकी और बस अभिमान है .....

पाप बोझ से लदी नैया भँवर में आ रही

नाथ दोड़ो अब बचाओ जल्द डूबी जा रही है

आप भी यदि छोड़ देगें फिर कहाँ जाऊँगा में

जन्म दुख से नाव कैसे पार कर पाऊँगा में है.......

सब जगह भजुंल भटक कर ली शरणा अब आपकी

पार करना या न करना दोनों मर्जी आपकी है......

........................☺....................................................................................................


29 दिखा दे रूप ईश्वर का मुझे गुरूदेव करूणा कर 

कोई बैकुन्ठ के ऊपर कोई कैलाश पर्वत में 

कोई सागर के अन्दर में बता दे सोया शय्या पर 

कोई दुर्गा गजानन को कहे जगदीश सूरज को 

कोई सब सृप्री का कर्त्ता चतुमुर्ख देव परमेश्वर 

धरे नित ध्यान योगी जन कोई निर्गुणा निरजंन का 

कोई मूरत पुजारी है कोई अगनी के हैं चाकर 

सकल संसार में पूरसा कहे वेदांत के वादी 

वो बह्नानन्द संशय को मिटाकर तार भव सागर 

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30गुरू हमें दे गये ज्ञान गुदड़िया 

खाने को एक वन फल देगे पीने को दे गये एक तुगड़िया 

बैठक को एक आसन देगें सोवन को एक काली कमरिया 

राम भजन को तुलसी की माला भजन करन को दे गये खंजड़िया 

कहत कबीर सुनो भई साधो हरि के दरश की में हो गई चेरिया 

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31गुरू पइया लागू राम से मिलाय दीजो रे 

बहुत दिनन से सोवे मेरा मनवा भज की बेरिया जगाय दीजो रे 

विष से भरे पड़े घर भीतर अमृत बूद चुआय दी जो रे 

रत अधियारी मेरे घर भीतर दीपक ज्योति जलाय दीजो रे 

कहत कबीर सुनो भई साधो आवाागमन मिटाय दीजो रे 

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32दिवस शुभ जन्में का आया बधाई है बधाई है

सुयश गुरूदेव का छाया बधाई है बधाई है

हरा है कट भक्तों का तभी भगवान कहलाये

आनन्द जग बीच है छाया बधाई है बधाई है

पढ़ाया पाठ सत्संग का जलाया ज्ञान का दीपक

सुकृति का छत्र फहराया बधाई है बधाई है 

घटाकर मान खल दल का पढ़ाया ज्ञान गीता का 

सभी ने हर्ष गुन गाया बधाई है बधाई है 


jai shree Ram

 राम

चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान् श्री राम का जन्म हुआ था ।गोस्वामी तुलसीदास ने अपने अमरकाव्य रामचरित मानस की रचना भी इसी दिन अयोध्या में आरम्भ की। श्री राम का जन्म मघ्यान्ह काल में हुआ थस इसकारण दोपहर में राम महोत्सव मनाया जाता है । भगवान् श्री राम सदाचार के प्रतीक हैं उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है । भगवान् को उनके सुख समृद्धि पूर्ण व सदाचार युक्त शासन के लिये याद किया जाता हे। उन्हें भगवान् विष्णु का अवतार माना जाता है ।भगवान् श्री राम जीव मात्र के कल्याण के लिये अवतरित हुए थे । हिन्दू धर्म के कई त्यौहार जैसे राम नवमी दशहरा ,दीपावली राम जीवन कथा से तुड़े हैं । श्री राम आदर्श पुत्र,आदर्श भाई,आदर्शमित्र आदर्श स्वामी आदर्श पति आदर्श सेवक माने जाते हैं -

राम एक पुरुषोत्तम हैं राम की महिमा बहुत बड़ी,

लेकिन उनकी महिमा में भी मुश्किल कैसी आन खड़ी

नहीं पूर्ण संपूर्ण कोई यहीं बने इंसान हैं 

दिख जाते हैं दोष अनेकों कैसे कहें भगवान् हैं

बाली को धोखे से मारा वह भी मां का जाई था 

रावण के वध का कारण भी उसका अपना भाई था

केवल कहने भर से राजा न्याय कभी कर पायेगा 

हर युग में कुलटा कहलाकर सीता को ठुकरायेगा

धोखे से गर्भित सीता को मरने जंगल छोड़ दिया

साथ निभाने का जीवन में राम वचन क्यों तोड़ दिया

राम नाम है कष्ट निवारन राम नाम दुःख हर्ता है

उसने कष्ट उठाये क्यों कर राम ही जिसका भर्ता है 

चारो ओर तुम्हारी जय जय किसने कितने त्राण दिये।

जीवन लेना पाप है फिर भी सरयू में जा प्राण दिये ।


Tuesday, 8 July 2025

asprshya

 भारत का आम नागरिक साधारण वस्त्र पहनता है शहरों में वस्त्र विन्यास अवश्य कुछ बदल गया है। पर गाँवों का वस्त्र विन्यास वही है साधारण कपड़े हॉं गाँव की लड़किया शहर में आकर सलवार सूट पहनने लगी है। चेहरा मोहरा साफ रखकर सज कर रहती हैं। उन्हें आप पहचान नही सकते किस वर्ग से है यदि बाल्मीकि वर्ग से थी तब उनका पहनने के वस्त्र अलग होते थे झाड़ू डलिया हाथ में होती थी लंहगा फरिया ही आमतौर पर पहनती थी अब उनको पहचानना मुश्किल हो गया है ऐसे में दलित का बिल्ला लेकर चले वही व्यक्ति पहचाना जा सकता है या आपको मालुम है कि फला व्यक्ति दलित है। 

☺दलित में भी स्पर्श्य और अस्पर्श्य अलग अलग है देखने में सब एकसे तब मंदिरों में भीड़ में कौन जा रहा है कौन दर्शन कर रहा है कैसे पंडे पुजारी इस बात को कह सकते हैं कि उनके मंदिर में यदि अस्पर्श्य घुस जाता है तो मंदिर को गंगा जल से धोते हैं उस गंगाजल से जिसमें स्वयं स्पर्श्य अस्पर्श्य सबका मल बहता है गंगाजल को शुद्व कैसे कह पाते हैं जब उसमें सैंकड़ो लाखों स्नान करने वालो के शरीर का मल वह रहा है उस शुद्व कैसे कह सकते हैं उसे किससे धोयेंगे। लेकिन गंगा के प्रति श्रद्धा है तो वह पाप हारिणी कलुष निवारिणी है ।

Saturday, 5 July 2025

Bhajan mala

 21ये कंचन का मृग नाथ मुझे लगता प्यारा है

मोतिन सीग जड़े अति सुन्दर रतन जटिल सब अंग मनोहर

चलता चंचल चाल वहाँ ने आप सवाँरा है ............

महाराज अब ऐसा कीजे मृग चर्म मुझे ला दीजे

त्रिभुवन पति भगवान मान लो वचन हमारा है ..............

इतना सुन सीता की बानी उठे राम सब कारज जानी

एक हाथ तरकश लिये दूसरे धनुष सवाँरा है...............

आगे आगे मृगया जाये पाछे से धाये रघुराई 

एक वाण जब तान मिरग के उर में मारा है.............

गिरा धरन पर घोर चिकारा हा सीता लखन पुकारा

कोमल चित भगवान आपके धाम सिघारा है ..........

हा हा कर सुनी जब सीता कह लक्ष्मन परम समीता 

तुम्हारे भ्रात पर विपत पड़ी जाओ देओ सहारा हैं............

इतनी सुन सीता की बानी कह लक्ष्मणा सुन भात भवानी

त्रिभुवन पति भगवान उन्हें कोन मारन वाला है

क्रोध वन्त सीता उठ वोली हरि इच्छा लक्ष्मणा मति डोली.....

राम रेख खीच कर चला रघुवंश कुमारा है

तुलसी दास ऐसे रघुराई विपत पड़े तब होय सहाई 

त्रिभुवन पति भगवान उन्हें कोन मारन हरा है 

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22मेरी छोटी सी ये नाव तेरे जादू मरे पाँव 

मोहे डर लागे राम कैसे बिठाऊॅं तुम्हें नाव में 

जब पत्थर से हो गई नारी यह लकड़ी की नाव हमारी

करूँ यही रोजगार पालू सब परिवार सुनो सनी दाता कैसे

प्रभु एक बात मानो बिठाऊँ तेरे चरणो की धूल धुलाऊँ 

मेरो सशंय हो जाय दूर अगर तुम्हें हो मंजूर 

तभी बिठाऊॅं तुम्हें नाव में

चरणा बड़े प्रेम से धोये सब पाप जन्म के खोये

हुआ बड़ा ही प्रसन्न संग सिया लखन किये राम 

दरशन आओ बिठाऊँ तुम्हें नाव में.............

चरणा मृत में सबको पिलाऊँ तुम्हें प्ष्ुपों की भेट चढ़ाऊँ

ऐसा समय बार बार नहीं आता सरकार अब तो ..........

वह धीरे से नाव चलाता वह गीत खुशी के गाता 

सोचे यही मन में सूरज डूबे छिन में नही जाय 

वन में बैठे रहे मेरी नाव में मेरी ..............

ले लो मल्हाह उतराई मेरे पल्ले नहीं एक पाई 

करलो यही स्वीकर मेरा होगा बेड़ा पार 

तेरी होगी जय जय कार बैठे आये हैं तेरी नाव में ........

जैसे खिवैया प्रभु तुम हो वैसे खिवैया प्रभु हम हैं

हमने किया नदी पार करना भव सागर से पार 

कमल चढ़ाऊँ तुम्हें नाव में मेरी  


भुवन पर आवत धनुष धरे 

सीता राम लक्ष्मणा भरत शत्रुधन इनमें राम बड़े...

रामचन्द्र चढ़ हाथी आवे हनुमत चंवर धरे

पीताम्बर की कछनी काछे गल जयमाल धरे....

धन्य माग राजा दशरथ के आरति करत खड़े 

अपने मन्दिर से निकली जानकी मुतियन माँग मरे.....

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23काले नाग के नथेया 

दूर खेलन मत जाओ प्यारे ललना मारेगी काहू की गैया 

कहत जसोमति सुनो कन्हेैया तुमको कंस मरेया 

कहत श्याम जी सुन मोरी मय्या हमको कौन मरय्या 

खेलत गेंद गिरी जमुना में कुद पड़े कन्हैया 

नाग भी सोवे नागिन विनिया डुलावे ऐ फन पे नाचे कन्हैया 

नाग नाथ जब बाहर आये जसुमत लेत बलैया।

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24ऐ श्याम सलोना लिये दोनां माँगे दान दही का 

कहाँ की हो तुम सुघड़ ग्वालनी कहाँ तुम्हें है जाना

बरसाने की सुघड़ ग्वालिनी गोकुल हमें है जाना

जो कान्हा तुम्हें दहिया का शौक है तोड़ लाओ पाता बनाय लेओ दोना 

चार कोने का बना है दोना खाली हो गई मटकी भरा नही दोना 

वृन्दावन की कुँज गलिन में पकड़ लियो साड़ी का कोना

जो बात कान्हा तेरे मन में बंसत है वही बात नही होना

चन्द्र सखी भजवाल श्याम की मन में बसे मन मोहना।

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25मेरो मन लागा फकीरी में

हाथ में कूड़ी बगल में सोठा, चारों मुल्क जगीरीे में 

जो सुख है हरि नाम भजन में सो नही भोज अमीरी में 

भाई बन्धु और कुटुम्ब कबीला, बंध्यो है मोह जंजीरो से 

प्रेम नगर में रैन हमारी भील वीन आई सबूरी में 

आखिर ये तन खाक मिलेगा क्यों फिरता मगरूरी में 

भली बुरी सबही सुन लीजे कर गुरजान गरीबी में 

कहत कबीर सुनों भई साधो प्रभु जी मिले सबूरी में 

......................................................................................................................

26गुरू 

बिना गुरू किये निस्ताव न होयगा।

तू तो कहे मेरे महलदुमहला इसमें तेरा गुजारान दोयगा

तू तो कहे मेरे कुटुम्ब बहुत है इस पर तेरा गुजारा न होयगा

गहरी नदिया नाव पुरानी इसमें तेरा उवार न होयगा

कहत कबीर सुनो भई साधो मानुष तन दुवातन  होयगा।

...........................................................................................................

27आज हमारे आये गुरूजी

चरण धोय गुरू आसन दोन्हा सिघासन पधरावे गुरूजी

धूप दीय नेवेधे आरती पुष्प मालपहिराये गुरूजी

पाँच बेर परिक्रमा करके चरगो शीष झुकाये।

कहत कबीर सुनो भई साधो आवागमन मिटाये गुरूजी।

.......................................................................................................

27गुरू चरणा मिले बड़े भाग्य से 

अपने गुरूजी को भोजन कराऊ रामा सिघासन पधराये गुरूजी

अपने गुरूजी को सारी मगाई राया जल मगवाया हरिद्वार से गुरूजी

अपने गुरूजी को विडिया मगाई रामा इलायची मगाई बड़ी दूर से 

अपने गुरूजी की सेज विछाई रामा फूल मगाये चम्पा बाग से 

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गुरू

28हे मेरे गुरू देव करूणा सिन्धु करूणा कीजिये

हूँ अधम आधीन अशरणा अब शरणा में लीजिये

खा रहा गोते हूँ मैं भव सिन्धु के मझधार में 

आसरा है दूसरा कोई न अब संसार में 

हे मेरे गुरूदेव करूणा सिन्धु करूणा कीजिये।

मुझमें है जप तप न साधन और नही कुछ ज्ञान है.......

निर्लज्जता है एक बाकी और बस अभिमान है .....

पाप बोझ से लदी नैया भँवर में आ रही

नाथ दोड़ो अब बचाओ जल्द डूबी जा रही है

आप भी यदि छोड़ देगें फिर कहाँ जाऊँगा में

जन्म दुख से नाव कैसे पार कर पाऊँगा में है.......

सब जगह भजुंल भटक कर ली शरणा अब आपकी

पार करना या न करना दोनों मर्जी आपकी है......

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Friday, 4 July 2025

amrit bindu

 बच्चे वे हाथ हैं जिनके सहारे हम जीवन स्वर्ग बना सकते हैं - हेनरी बार्ड बीबर

हमें जिन्दगी की सीख विद्वानों केबजाय अज्ञानी माने जाने वाले बच्चों से मिलती है । - महात्मा गांधी

माता पिता सबसे बड़ा उपहार जो अपने बच्चेां को दे सकते हैं जिम्मेदारी की जड़ें और स्वतंत्रता के पंख - डेनिस वेडली

बच्चों को सांचे में डालना नहीं बल्कि मानसिक तौर पर खोलना चाहिये ।  जैस लेयर

खंडित वयस्कों में सुधर के वजाय बच्चों में सषक्ति का भाव निर्मित करना अधिक आसान है -फेडरिक डगलस

बच्चों को आलोचकों की नीं रोल मॉडल की जरूरत होती है - जोसेफ जुबर्ट

युवावस्था के बाद बचचों से मित्रवत् व्यवहार करें वे जैसे जैसे बड़े होंगे अच्छे दोस्त बनते जायेंग ।- चाणक्य

हर बच्चा अपने साथ यह संदेष लाता है कि ईष्वर अब तक इंसान से नाउम्मीद नहीं हुआ है ।


बच्चे गीली मिट्टी की तरह होते हैं उन्हें आकार देना बड़ों के हाथ में है ।

फर्ष से एक एक सीढ़ी चड़ना आदमी को आदमी बनाये रखता है

यात्रा का अंत नहीं होता वह तो रास्त ही रास्त है चरवैति चरवैति


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