Wednesday, 6 August 2025

brij ke bhajan

 61द्रोपदी रो रो करे पुकार आ जाओ द्वारका वासी युवंराज 

पाचों पीतम मेरे बैठे कोई धीर नही देता है दुशासन 

अब लाज बचाओ आय आ जाओ द्वारका वासी 

सब सभा में राजा बैठे कोई नीति नही करता है 

दुशासन चीर उतारे आ जाओ द्वारका वासी 

सुन देर तुरत प्रभु आये अम्बर का ढेर लगाये 

द्रोपदी कृष्णा कृष्णा गुन गाये आ जाओ द्वारका वासी 



62

रथ साजो श्री भगवान द्वारका जइवे 

काहे के चार पहिये लगे कोन गाय दुइ बैल

चन्दन काठ चार पहिये लगे है सुरही गइया दुई बैल

कोन रनिया असवार हुई हे कोन राजा गाड़ीवान

रूकमनि रनिया असवार हुई है कृष्णा राजा गाड़ी वान 

जब जइवे द्वारका नाथ को दरशन करव छाप ले अइवे द्वारका 

श्री द्वारका नाथ तुम्हें में बन्दउ वारम्वार 

अम्वर का अम्वार लगा है 

633द्रपद सुता की सुनी आपने करूणा भरी पुकार 

अम्बर का अम्वार लगा है दुषासन गयो हार 

कोरव के रख पुँज बने है पाडव के रखवार 

गीता ज्ञान दियो अर्जुन को पाई विजय अपार तुम्हें बन्दउ 

विप्र सुदामा को अपनायो दुख दिये सब वर 

सुख सम्पत्ति के भरे भडारे दिया मुक्ति का द्वार तुम्हें 

गज और ग्राह के फन्द छुड़ाये कोन्ही नहीं अवार 

डूबत ब्रज को लियो बचाई नख पर गिरवर धार तुम्हें 

सुर वर मुनि के भये सहाय भक्त के रखवार 

दासी पर भी कृपा कीजे तकू में वार निहार तुम्हें 


64विपत पड़ी शंकर पर भारी धरो भगवान वेा नारी 

प्रकट भस्मा सुर वट रसा वीर प्रवल पर्वत आकार शरीर 

गया कैलाश ईश के तीर लगा तप करन प्रसुर गंम्भीर 

बीते सम्वत सात दिन किया कपट से ध्यान 

जगी समाधि शिव भोला की कहा मांग वरदान 

असुर धर शिव चरणों में साथ कहावर दीजिये भोलानाथ 

धरू जिसके मस्तक पर हाथ भस्म हो जाय वही एक साथ 

एव वस्तु शंकर कही उठा असुर हर वाय

धाया हाथ धरन शंकर पर वर निश्चय हो जाय 

फिरत भोला भागे ससारी धरो .............

कृष्णा करूणा निधान सुर भूप धरो प्रभु पार्वती का रूप 

पहन चून्दण चादर सा रूप किया नख सिख श्रंगार अनूप 

गज गामिन भामिन चली दामिन देख लजाय 

चंचल चपल चनुर एक सुन्दर नैनो सेन चलाय 

मोहनी निश्चर पर डारी धरो ..............

गई भामिन भस्मासुर पास कहे सब हम तुम करे निवास 

छोडो जप भोला तपसी की पास करव हिलमिल निवास कैलाश 

नाच दिखाओ तुम हमें कि जैसे नाचे ईश 

एक हाथ से भाव न ताजो एक हाथ धरो शीश 

लगा नाचन गई मीत भारी धरो ....................

हाथ जब सिर पर वो लाया भस्म हो गया न कुछ पाया 

कृष्णा तुम्हारी अपार माया किया जिन वैसा उन पाया

विश्व मोहनी रूप की प्रस्तुति करे महेेश 

कमला पति ध्वनि निरख मनोहर गावे रूमाल गनेश 


65बद्रीनाथ तेरी कठिन चढ़ाई जरा धोके मे आ गई रे 

आ मेरी बरजेवाप मेरा वरजे वरजे सगा मेरा वीर 

सास मेरी वरजे ससुर मेरा वरजे ननदिया का वीर 

पाँच रूपय्या खरच को वाधे वाह में एक डाला मुनाय 

गोरी कुडं तप कुड न्हाय नाख कुंड नहाय 

जब पेड़ों ने सुफल बुलाया बद्रीनाथ अब राखो लाज

खोलो किवाड़ दरश दिया जन को तुमरे चरणा चल लाय 

जब पड़ो ने सुफल कुलाच बद्रीनाथ अब राखो लाज 

ऊचें ओर नीचे पहाड़ वने हे वरफी में दिया वोराय 

कैलाशी काशी के वासी हर हर विश्व नाथ श्ंाभो 

कर डमरू त्रिशूल विराजे तीन नेत्र सुन्दर सुख साजे 

मस्तक चन्द्र विराजे हर हर महादेव गंगे 

नन्दी वाहन की असुरारी वाये अंग गिरिराज दुलारी 

गण पति गोद विराजे हर हर विश्वनाथ गंगे 

गले बीच मुंडांे की माला गले नाग लिपटाये काला 

सिंगी नाद बजावे हर हर महादेव गंगे 

66

ऐसे मन होय करूँ में फिर फेरा 

बद्रीनाथ केदार के दर्शन नर नारायन तेरा 

जगन्नाथ बलभद्र सहोद्रा चार दिनो का मेला 

आते कल द्वारका के दर्शन शरणा गहू में तेरा 

गया गजाधर बेनी माधव हरिद्वार का मेला 

चन्द्र सखी मन वालश्याम छवि हरि चरणों का चेला 


67मैं तो उन दासो का दास जिन्होने मुझे मोह लिया 

पृथ्वी दान लेन के कारण लियो बह्ना का रूप 

वन वन पड़ो पहरवा मोकू राजा वील के द्वार 

शिवरी गिद्व अजामील मोहे मोहे सदन कसेरू 

सुआ पढ़ावति गणिाका मोही मोही मीरा बाई 

तीन मुठी तन्दुल के कारणा लियो सुदामा मोल 

तीन लोक की सकल सम्पदा भक्ति दई अनमोल 


68बद्री विशाल लाल बेड़ा पार करेगें 

अपना नही दम तो पहाड़ चड़ेले 

पैसा भी नही पास जो छप्पन करेगें 

लुटिया भी नही पास जो जलपान करेगें 

कम्बल भी नही पास जो आराम करेगें 

नारद कुंड गोरी कुंड खूब नहायेगें 

तपतर कुडं नहाय बद्री आप मिलेगें 

करके दयाल दया बद्री आप मिलेगें 


69तुमें ढूढं मैं नाथ पहाड़न में तुम्हें ढढू केदार पहाड़न में 

अलक नन्दिनी जोर बहुत है मेरा जियरा उलझ गया कगार न में तुम्हें 

जगंल जंगल में ढूढ आई मेरा चीर उलझ गया झाड़न में तुम्हें 

जगन्नाथ जी पुरी विराजत बद्रीनाथ हिवाइन में 

रामेश्वर द्वारका के दरशन तीरथ चारो धामन में तुम्हें 

70

दुखियों के दुख दूर करे जय जय श्री कृष्णा हरे 

जब चारों तरफ अधियारा हो आशा का दूर किनारा हो 

जब कोई न खेवन हारा हो तब तू ही बेड़ा पार करे 

जय जय श्री कृष्णा हरे 

तू चाहे तो सब कुछ करदइे विष को भी तू अमृत कर दे 

पूरन करदे उसकी आश्शा जो भी तेरा ध्यान धरे

जय जय श्री कृष्णा हरे 

जो शरणा तुम्हारी आ जावे भव सागर से वह तर जाने 

बस जो भी तेरा ध्यान धरे उन सब का तू कल्याण करे 

जय जय श्री कृष्णा हरे 

तुम आप दया के सागर हो मन मोहन बढ़कर नागर हो 

मुरली धर तेरा गुणा गान करे जय जय श्री कृष्णा हरे 



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