☺24
मैं डूबा उस पार मोहन पार करो
और नहीं आधार मेाहन पार करो
झिमिरी नइया डगमग डोली
कर्ण धार की है मति डोली
लेकर अब पतवार मोहन पार करो
कौन नाथ तुम सम उपकारी
करते सदा दीन रखवारी
कर थोड़ा उपकार मोहन पार करो
रघुनन्दन आ वेग बचाओ
करूणा निधि करूणा कर आओ
कठिन बीच परिवार मेाहन पार करो
25☺
कृष्णा घर नन्द के आये सितारा हो तो ऐसा हो
करे सब प्रेम से दर्शन दुलारा हो तो ऐसा हो
बकासुर को मसल डाला पूतना जान से मारी
कंस को केश से खीचां खिलारा हो तो ऐसा हो
कूद पानी के अंन्दर से नाग को नाथकर लाये
चरण फण फण पे घर कर के नचारा हो तो ऐसा हो
तीर जमुना के जाकर के बजाई बांसुरी मोहन
चली घर छोड़ ब्रज नारी पियारा हो तो ऐसा हो
रचाया रास कुंजन में मनोहर रूप बन करके
देव दर्शन को चले आये दिदारा हो तो ऐसा हो
गये जब छोड़ गोकुल को नहीं फिर लौटकर आये
सखी रोती रही वन में किनारा हो तो ऐसा हो
पुरी द्वारावती जाकर महल सोने के बनवाये
हजारों रानियाँ ब्याही पंसारा होतो ऐसा हो
कुरू पाँडव लड़े रण में जीत अर्जुन की करवाई
बचाई लाज द्रोपदी की सहारा हो तो ऐसा हो
उतारा भार भूमि का सिधाये धाम अपने को
वो ब्रह्नाा नन्द दुनिया का नियारा हो तो ऐसा हो
26☺
श्यामाश्याम सलोनी सूरत कौ श्रंगार बसन्ती है
मेार मुकुट की लटक बसन्ती चन्द्र कला की चटक बसन्ती
मुख मुरली की मटक बसन्ती
सिर पर पेच श्रवण में कुण्डल की छविदार बसन्ती है
श्यामा श्याम ...............
माथे चन्द्र लस्यो बसन्ती कटि पीताम्बर कस्यो बसन्ती
मो मन मोहन बसो बसन्ती
गुंज माल गल सोहे फूलन को गल हार बसन्ती है
कनक कडूला हस्त बसन्ती चले चाल अल मस्त बसन्ती
पहर रहे पोशाक बसन्ती
रूनुक झुनुक पग नपुर की झनकार बसन्ती है
सग ग्वालन के गोल बसन्ती बेाल रहे हैं बोल बसन्ती
बजे चंग ढप ढोल बसन्ती
सब सखियन में राधे जी सरदार बसन्ती है
परम प्रेम परशाद बसन्ती लगे चसीलो स्वाद बसन्ती
है रही सब भरजाद बसन्ती
धासी राम श्याम श्यामल कोै नाम बसन्ती है
27☺
सखी घनश्याम राधे में लड़ाई होने वाली है
बहुत दिन की मुहब्बत है जुदाई होने वाली है
न हसँती बोलती राधे न करती बात मोहन की
न मालुम किस तरह ऐसी बुराई होने वाली है
मिले कल कुंज में ये श्याम बहुत मिन्नत खुशामद की
न मानी लाड़ली राधे रुखाई होने वाली है
मुरारी से हुआ अपराध ऐसा कौन सा आली
प्रिया प्यारे दोनों में सफाई होने वाली है
वहाँ उनको न कल उन बिन
न उनको चैन था उन विन
क्यों राधे श्याम पंिडत की रसाई होने वाली है
28☺
हमारे श्याम सुन्दर भी अजब माया दिखाते हैं
किसी को पल में करते खुश किसी को जा रुलाते हैं
मदारी खेल जो करता बजाकर कर डुग डुगी अपनी
उसी की भाँति मोहन भी जगत को जा नचाते हैं
मुरारी भक्तों के कारण अनेकांे रूप धरते हैं
दुर्योधन मेवा तज बिदुर घर साग खाते हैं
सदा से प्रेमी के मोहन सदा मोहन के प्रेमी हैं
वो प्रेमी प्रेम से रीझे अजब बंशी बजाते हैं
सखा अर्जुन को उनके जब कि रण में मोह होता है
तो रथ पर बैठकर वो प्रेम से गीता सुनाते हैं
29☺
यह तो बताओ भगवान कैसे जपू नाम तेरा
काहे की नाव काहे के खेवा काहे से उतर जाय पारा
सत्य की नाव धर्म को है ख्ेावा करनी से उतर जाय पारा
काहे की धरती काहे का है अम्बर काहे का बना संसारा
सत्य की धरती धर्म का है अम्बर मतलब का है संसारा
सिर की जटा खोले डोलू मैं बन वन तोऊ न मिले नन्द लाला
कहत कबीर सुनो भई साधो भजन से मिले नन्द लाला
ऐसो जपो नाम तोरा
30☺
मोहन हमारे मधुवन में तुम आया न करो
जादू भरी ये बाँसुरी बजाया न करो
छलिये आया न करो
सूरत तुम्हारी देख कर सलोनी साँवरी
सुनकर तुम्हारी बासुँरी होती हूँ बाबरी
इस बासुँरी पर टेर ये सुनाया न करो
जादू भरी ......................
सिर पर मुकुट गलमाल कटि में काछनी सोहे
कानों में कुण्डल झूमते मन को मोरे मोहे
यो चन्द्रमा का रूप ले लुभाया न करो
जादू .....................
अपनी यशोदा मइया की सौगन्ध है तुमको
माखन चुराने वाले चित चुराया न करो
जादू ............................
☺ 31
चीर आकर बढ़ा पापी खींचे खड़ा है मुरारी
भरी सभा में है करता उधारी
जुल्म करता सितम आज भारी
दुष्ट दुशासन है अत्याचारी
है ये पापी भला काट इसका गला विपदा भारी
भरी सभा में है करता उधारी
बैठे पाँडव सभी नार डाले
कोई ऐसा न मुझको बचाले
मेरी बिगड़ी बना करदे पापी फना क्या बिचारी
भरी सभा में है करता उधारी
सामने आज विपदा खड़ी है
वधिक के फन्दे में मृगनी पड़ी है
पार नइया करो भार आकर हरो
शरण तुम्हारी भरी सभा ..........................
श्याम सृष्टि के तुम हो रचैया
नाव जनकी हो तुम्ही खिवैया
फरियाद भक्त करंे विनती निशदिन करे
जनता सारी भरी सभा ..........................
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